Monday 5 October 2020

छत्तीसगढ़ी कहानी : डोकरी दाई मर गे !* -विनोद कुमार वर्मा

 *छत्तीसगढ़ी कहानी  :  डोकरी दाई मर गे !* 


                                -विनोद कुमार वर्मा

 

                    ( *1* )


      'तड़ !........तड़.!........ तड़ !..........' कई गोली सब- इंसपेक्टर झिंटूराम के कान के पास से गुजर के शांत होगे। दू गोली ओखर कंधा म लगिस अउ एक जाँघ म ! एही कोई संझा के पाँच बजती के बेरा रहे। बस्तर के सुनसान दरभा घाटी म नक्सली अउ अर्ध सैनिक बल टुकड़ी के बीच दोपहर दू बजे ले मुठभेड़ लगातार चलत रहे...!..?...

          दोपहर दू बजे........ भयंकर बारूदी विस्फोट ले पुलिया उपर गुजरत बख्तरबंद गाड़ी हवा म उछल के बीस फीट दूरिहा जा गिरिस! गाड़ी म दस सैनिक सवार रहिन। ओखर पाछू-पाछू  चालीस सैनिक मन स्पेशल बस म आवत रहिन, - एहा आम बस ले मजबूत  अत्याधुनिक संचार अउ चिकित्सा उपकरण से लैस रहिस।  एही बस म सब इंसपेक्टर झिंटूराम घलो रहिस। सबो अर्धसैनिक बल के जवान मन पेड़ , टीला, गड्ढा आदि के आड़ लेत बस ले उतर के तुरते मोर्चा संभाल लिन।  सड़क के एक कोती नक्सली अउ दूसर कोती जवान मन मोर्चा ले रहिन। दरभा घाटी के घना जंगल मा युद्ध के हालात रहिस मानो दू दुश्मन देश के सैनिक मन एक-दूसर ले लड़त हें !  सैनिक मन समझ गिन कि आज ओमन नक्सली- एंबुस म फँस गे हें! दरअसल दू-तीन दिन ले ये सूचना लगातार मिलत रहिस कि दरभा घाटी के अंदरूनी क्षेत्र मा नक्सली मन के हलचल एकाएक बढ़ गे हे अउ कुछ बड़े नक्सली नेता मन डेरा डारे हुए हें!........वास्तव म एहा नक्सली मन के बड़े सुनियोजित हमला रहिस।

         झिंटूराम सात साल ले बस्तर के नक्सली जोन म नौकरी करत हे। हवलदार ले अब सब-इंसपेक्टर बन गे हे। नक्सली मन के संग मा ओखर एहा तीसरा मुठभेड़ हे, फेर सबले खतरनाक !  मरो.....या......मारो !... अउ कोई विकल्प शेष नि रहिस !........एहा वोही दरभा घाटी ए, जेहा सात साल पहिली काँग्रेस के एक दर्जन बड़े-बड़े लीडर मन के लोहू ला पीए रहिस!

       आज नक्सली मन के तीन बड़े लीडर मन झिंटूराम के गोली के शिकार होय हें! दरअसल अर्धसैनिक बल के साथी मन लड़े बर मोर्चा लिन त झिंटूराम पेड़ के आड़ लेत अपन टुकड़ी के नेतृत्व करत  पाँच हवलदार साथी सहित  लगभग दू किलोमीटर के चक्कर काट के नक्सली मन के पाछू डहर पहुँच गिस अउ सबो 20-20 मीटर के दूरी बना के गोलाई म  पोजिशन ले लिन ताकि नक्सली मन मा भ्रम पैदा हो जाय कि सैनिक मन  पाछू कोती ले घलो घेरे हें!  नक्सली मन के संख्या तीन सौ ले उपर रहिस।ओमन संग जादा देर तक लड़ पाना मुमकिन नि रहिस।....... झिंटूराम अपन साथी मन में सबले आघू रहिस अउ बाकी मन पाछू-पाछू। जब नक्सली मन ओखर रेंज म आ गिन तव  झिंटूराम पाछू डहर ले तीन नक्सली लीडर मन के सिर ला टारगेट करके कई फायर करिस। लगभग ओही समय ओखर साथी मन भी फायरिंग करिन ।  दस मिनट के फायरिंग म नक्सली मन समझ नि पाइन कि पाछू डहर कोन कोती ले फायरिंग होत हे!.... ओही बेरा जवाबी फायरिंग म झिंटूराम ला तीन गोली एक के बाद एक लगिस।......  पाछू डहर म सैनिक मन के जादा संख्या बल के आशंका अउ अपन  तीन बड़े लीडर सहित 10 - 12 नक्सली मन के मौत ले नक्सली मन मा घबराहट अउ डर फैल गे अउ ओमन तेजी से पीछे हटिन।...... नक्सली अउ अर्धसैनिक बल के बीच मुठभेड़ कुल तीन घंटा चलिस फेर अंधियार होय के पहिली नक्सली मन अपन मृत अउ घायल साथी मन ला लेके जंगल कोती भाग गिन- सैनिक मन के हथियार अउ गोली-बारूद लुटे के ओमन के मंसूबा धरे के धरे रह गे!...... अब ये लड़ाई म  जेन सैनिक मन मरिन तेमन मर गिन ! फेर बाकी घायल मन के जान बचगे!....... नक्सली मन के हत्थे चढ़तिन तव कोनो के जान नि बचतिस !

        झिंटूराम के शरीर ले गरम-गरम लोहू तर-तर, तर-तर बोहावत रहे,- ओला रोक पाना ओखर बस म नि रहिस। अब रात के बेरा होत रहे- सरकारी सहायता बर  बिहान पहाय के इन्तजार करना परही! 

      धुप्प अंधियारी रात.....कहीं पास ले कराहे के आवाज आत रहे त कहीं दूर ले उल्लू के बोले के कर्कश ध्वनि !......झिंटूराम के चेतना धीरे-धीरे  जात रहिस। ओला अइसे लगिस कि अब ओखर आखिरी समय आ गे हे! .......बचपन के कुछ चेहरा मन ओखर पथराई खुले आँख के आघू मा चलचित्र के भाँति आय लगिन, जेमन सो या तो बहुत मया करे या फेर घृणा!.......सबले पहिली पिता के राक्षसी चेहरा सामने आइस जेहा शराब पी के ओखर अम्मा संग लगभग रोज मारपीट करय ! अउ फेर ट्रक दुर्घटना म ओखर मृत वीभत्स शरीर!......फेर अपन अम्मा के सुरता आइस जेहा अर्ध सैनिक बल म ओखर भर्ती के शुभ- समाचार ला सुन के रोवत-रोवत मुँहटा तीर म आधा घंटा ले बइठे रहिस!.....फेर सुरता आइस ओ घटना कि  नौकरी ज्वायन करे के छै महीना बाद जब ट्रेनिंग कम्पलीट करके घर वापिस आय रहिस अउ अम्मा बर नावा लुगरा के संग घुंघरू वाला पैंरी खरीद के लाय रहिस त ओला देख के अम्मा मुँहटा म बइठ के फेर रोय ला धर ले रहिस। 

        झिंटूराम के चेतना धीरे-धीरे  अंतरिक्ष म विलीन होत रहिस। ..........फेर डोकरी दाई के सुरता आइस, जेखर हाथ ले चाकलेट अउ भात खाना ओहा कभू नि भूल पाइस! ...... ओह!........ बचपन भी कतका मासूम होथे........ डोकरी दाई.!... ....डोकरी दाई !  कहत ओखर मुँह नि थके।..... भला डोकरी दाई के मया ला ओह कइसे भूल पाही?...मरत बेर घलो   बचपन के एक-एक घटना चलचित्र के भाँति ओखर पथराई आँखी म झूलत रहे ...........


                       ( *2* )


    *लगभग 22 बरस पाछू जब* *छत्तीसगढ़ राज नि बने* *रहिस* ..........


         'मर जाय साला बेर्रा ह.......कीरा परे.......मोर डेगची अउ जम्मो चाउँर ला चोरा के ले गे ! ...... ओई दरूहा मंगतू होही ! का करों.....मोर हाथ-गोड़ थक गे हे, नि तो साले ला......'  -डोकरी दाई बड़बड़ावत रहे, फेर ओखर गारी के सुनईया ओमेर कोनो नि रहिस।

          इंदिरा आवास योजना म दू जगा घर बने हे। डोकरी दाई रइथे तेन मेर चार घर अउ बाकी घर थोरकुन दुरिहा म । डोकरी दाई ओमेर अकेल्ला रइथे, बाकी तोनों घर म कोनो रहे बर नि आय हें। डोकरी दाई दू दिन ले परेशान हे , काबर कि ओखर नानकुन ताला मुरचा खा के खराब हो गे हे। बिहन्चे एक बार अउ कोशिश करिस फेर ताला नि सुधर पाईस त बाहर पार के संकरी लगा के गोबर संइते बर चल दिस। डोकरी दाई गोबर के छेना बना के बेचे त दू पइसा पा जाय, फेर हर महीना सरकारी पेंशन के पइसा अउ  चाउँर के भरोसा ओखर दिन मजे म कटत रहिस। आज गोबर संइत के आइस त देखथे कि घर  खुल्ला हे! ओखर जी धक् ले रह गे!  घर भीतरी खुसरिस त देखथे कि ओखर कुल जमा पूंजी डेगची, लोटा, गिलास अउ आठ किलो चाउँर गायब हे! ओला समझत देरी नि लगिस कि एहा मंगतू दरूहा के करतूत हे!

        मंगतू दरूहा के पाँच पीढ़ी ला गारी देत-देत डोकरी दाई थक गे, तहाँ अब चिन्ता सताय लगिस। मंझनिया  के बेरा झिंटू आही त ओला खाय बर का दूहूँ? न डेगची हे न चाउँर, फेर भात कइसे राँधहूँ ?....... पाँच बरस के झिंटू बर ओखर अतेक मया जइसे दू शरीर एक प्राण ! ओही चिन्ता म डोकरी दाई बिपतिया गे।

       झिंटू के पिता घलो अखंड दरूहा रहिस। एक साल पाछू दारू पी के चलती ट्रक म झंपा गे। 24 साल के मुठियारी कस फरसोनहिन दुच्छा हाथ होगे।अब ओ बिचारी के सहारा केवल झिंटू रहिस.......ओखर चार साल के नानकुन लइका!..... बिचारी लइका ला सुबे आँगन-  बाड़ी केन्द्र म छोड़े , फेर बनी-भूती बर निकल जाय त चार बजे संझा  वापिस आय। आँगन-बाड़ी केन्द्र म झिंटू कुछु खाय-पिये बर पा जाय ,फेर छुट्टी होय त उहाँ ले डेढ़ किलोमीटर पैदल चलके डोकरी दाई करा पहुँच जाय।उहाँ फेर कुछु खाना-पीना मिल जाय अउ चुटुर-चाकलेट घलो। डोकरी दाई झिंटू के आय बिना खाना नि खाय। एक ठिन डब्बा म चुटुर-चाकलेट बिसा के रखे रहय, तेमा के रोज एक ठिन ओला आते-आत खाय बर दे। फिरती बेरा म फरसोनहिन हा डोकरी दाई के घर आवय - कुछु लाल चाय-वाय पियँय, अपन दुख-सुख गोठियावँय अउ फेर अपन बेटा ला पीठ म घोड़ा-बइठार के वापिस घर ले के जाय।....... डोकरी दाई अउ फरसोनहिन आन-आन जात-बिरादरी के हें फेर झिंटू के ददा के मरे के बाद डोकरी दाई फरसोनहिन ला अपन बेटी बरोबर जाने लगिस। फरसोनहिन घलो इंदिरा आवास म रहे फेर ओखर घर हा डोकरी दाई के घर ले एक किलोमीटर दूरिहा रहिस।

       आँगन-बाड़ी ले जइसे छुट्टी होइस तइसे झिंटू हा तरतिर- तरतिर डोकरी दाई के घर कोती भागिस। उहाँ पहुँचिस त देखथे कि घर हा भीतर ले बंद हे!

      झिंटू जोर से चिल्लाइस- डोकरी दाई ! डोकरी दाई !.......  फेर भीतर ले कोई आवाज नि आइस। झिंटू पूरा ताकत लगा के दरवाजा ला हला-हला के चिल्लाय लगिस। फेर ओखर आवाज के सुनईया एमेर कोनो नि रहिन।

        दरवाजा के झेंझरी ले झिंटू भीतर कोती ला झाँकिस। ओखर जी धक् ले रह गे ! खूंटी म लटके  लालटेन के मद्धिम रौशनी खटिया उपर परत रहे..... ओहा देखिस कि गोदरी ओढ़ के कोनो सुते हे!

       झिंटू जोर-जोर से विलाप करे लगिस-' डोकरी दाई मर गे ! डोकरी दाई मर गे ! डोकरी दाई उठ ओ........अब मैं तोला कभू तंग नि करों !..... '

       फेर ओखर करूण क्रंदन ला भला कोन सुनतिस?अब मरना- जीना ला भला झिंटू का जानतिस, फेर साल भर पहिली अपन पिता के मरना ला देखे रहे!...... मुहँटा मेर बस्ता पटक दिस अउ रोवत-रोवत बइठ गे।....... कतको दुख हा घेरे रहे फेर नींद हा अपन बूता ला करबेच्च करथे- झिंटू घलो रोवत-रोवत घर के बाहिर धुर्रा- गोंटी- माटी उपर सुत गे अउ स्वप्न लोक म विचरण करे लगिस। ओला अइसे लगत रहे कि डोकरी दाई ला भगवान वापिस भेज देहे हे अउ एके थारी म भात खात दुनों झन कतकोन बने-बने गोठ-बात करत हें!

       अइसने डेढ़ घंटा बीत गे । झिंटू मुँहटा तीर म  सुतत एती-ओती हाथ-पैर ला फटकारत अल्थी-कल्थी मारत रहे। कुर्ता-पेंट धुर्रियागे।.......तभे ओला अइसे लगिस कि डोकरी दाई हा जोर-जोर से  हलावत हे अउ उठे बर कहत हे। आँखी खोलके निहारिस त बिजली के झटका कस लगिस अउ चैतन्य होके तुरते खड़े होगे।........ सामने डोकरीदाई साक्षात खड़े रहे! झिंटू डोकरी दाई ला  कस के पोटार लिस अउ रोवत-रोवत बोलिस- 'डोकरी दाई तैं कहाँ चल दे रहे ? मैं अब तोला कभू तंग नि करों!'

     डोकरी दाई हाँसिस-' ए दे लड्डू खा, तोर बर दू ठिन लड्डू खरीद के लाने हँव।'

    एखर पाछू दरवाजा के पल्ला ला आघू- पीछू ढकेल के हाथ बोज के भीतर पार के संकरी ला डोकरी दाई खोलिस। झिंटू सरपट घर के भीतर खुसरिस,  त देखथे कि डोकरी दाई हा  खटिया उपर  मुसरिया ला गोदरी ओढ़ाय रहे! दरवाजा के झेंझरी ले झाँक के देखे म अइसन लगत रहे कि डोकरी दाई सुते हे!

       थोरकुन बेर म डोकरी दाई भात-साग ला चुरो दारिस अउ झिंटू दुनों ताते-तात भात-साग ला खात मीठ-मीठ गोठिवावत रहें।

     झिंटू पुछिस- 'डोकरी दाई तैं भीतर पार ले संकरी लगा के कहाँ चल दे रहे? '

    डोकरी दाई बोलिस- 'बेटा, पेंशन के पइसा लेहे बर बैंक गये रहेंव- भारी भीड़ रहिस। फेर डेगची, लोटा, गिलास,ताला अउ चाउँर - साग  ला खरीद के लाने हँव त बेरा होगे। सुबे मंगतू दरूहा सबो जिनिस ला चोरा के  ले गे हे!'

     डोकरी दाई के घर म चोरी अउ फेर ओखर मरे के डर हा झिंटू के बालमन मा घर कर गे अउ पुलिस बने के जुनून सवार होगे!

    झिंटू बोलिस- 'दाई बड़े होके मैं पुलिस बनहूँ अउ मंगतू दरूहा ला पकड़ के जेल  म भरहूँ! '

    दाई बोलिस -' बेटा पढ़-लिख के जरूर पुलिस बनबे।फेर ओ दिन तक मैं इहाँ नि रहों- भगवान के कर्जा बाँहचे हे, ओहू ला तो छूटे बर जाना हे!'

    झिटू बोलिस-' महूँ जाहूँ दाई तोर संग!'

     दाइ बोलिस-' नहीं बेटा, तैं पाछू आबे। पुलिस बनबे त अपन अम्मा बर कुछु लेबे कि निहीं?'

      झिंटू हा अपन सबो ज्ञान के निचोड़ ला समेटत बोलिस-' हाँ दाई, अम्मा के लुगरा चिरा गे हे। ओखर बर नावा लुगरा अउ घुंघरु वाला पैंरी खरीदहूँ ! अम्मा नावा लुगरा पहिर के रेंगत-रेंगत घर आही त ओखर पैरी के छम-छम आवाज मा मैं पहिली ले जान डारहूँ कि अम्मा आवत हे!


                      ( *3* )


          *कुछ दिन बाद एक समाचार अखबार म प्रमुखता ले छपिस -' छत्तीसगढ़ के अर्धसैनिक बल के सब- इंसपेक्टर झिंटूराम को* *मरणोपरांत कीर्तिचक्र से* *सम्मानित किया जाएगा। सम्मान प्राप्त करने के लिए उनकी माँ फरसोनहिन बाई छत्तीसगढ़ शासन के विशेष विमान से 24* *जनवरी को* *दिल्ली जाएँगी*।' 

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 *छत्तीसगढ़ी कहानी : विनोद कुमार वर्मा*

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