Monday 16 November 2020

क्रातिकारी गीतकार : लक्ष्मण मस्तुरिया-अजय अमृतांशु


 

क्रातिकारी गीतकार : लक्ष्मण मस्तुरिया-अजय अमृतांशु


     "3 नवंबर पुण्यतिथि विशेष"

"जागो रे जागो बागी बलिदानी मन..
धधकव रे धधकव सुलगत आगी मन..."

अइसन गीत के एक-एक पंक्ति अउ एक-एक शब्द अन्तस् ल झकझोर देथे,अउ सीना चीर के सीधा अन्तस् मा उतरथे। छत्तीसगढ़ी गीत मा क्रांति के अइसन आह्वान करने वाला क्रांतिकारी गीतकार केवल लक्ष्मण मतुरिया ही हो सकथे कइहूँ ता गलत नइ होही। छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान जगइया मस्तुरिया जी के कलम ले क्रांति के चिंगारी निकलय। अन्याय,अत्याचार, जमाखोरी, बेरोजगारी, पलायन अउ नपुंसक राजनीति उपर उँमन निडर हो के कलम चलाइन ।

मस्तुरिया जी अपन गीत म कतेक गंभीर बात कहिथे :-
        "जागो रे जागो बागी बलिदानी मन..
परिवर्तन उही ला सकथे जेन जुझारू होथे,बागी होथे, लड़े अउ मर मिटे बर हमेशा तियार रहिथे। अउ बलिदान भी उही मन दे सकथे जेन अपन मूँड़ी मा कफ़न बाँध के निकलथे । तब अइसन गीत बागी अउ बलिदानी मन बर टॉनिक के काम करथे । मस्तुरिया जी जब कहिथें-
      "धधकव रे धधकव रे सुलगत आगी मन"
तब देह के रूवाँ रूवाँ खड़ा हो जाथे। अन्याय अत्याचार के खिलाफ़ खड़ा होने वाला युवा जेन परिवर्तन लाय के जज्बा रखथे अइसन एक आह्वान ल सुन के उमन मर मिटे बर उतारू हो जाथे। जब दानव मन ले देवता मन घलो हार जाथे तब आदि शक्ति माँ दुर्गा पापी मन के संहार करे बर अवतरित होथे। तब मस्तुरिया जी वीरांगना दुर्गावती सरिक मातृशक्ति मन ल आह्वान करथे :-
"महाकाल भैरव लखनी
 महामाया दुर्गा काली मन..। जागो रे...
             ओज ले भरे अइसन गीत ल सुनके काकर तन म आगी नइ लगही ? दमदार लेखनी के संग वजनदार प्रस्तुति म मस्तुरिया के कोनो मुकाबला नइ रहिस। जेन मनखे एक घव 
मस्तुरिया जी ल सुन लय आजीवन वोला नइ भुलाय। छत्तीसगढ़ी के अमर गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया शोषित वर्ग के प्रतिनिधि कवि/गीतकार रहिन। शोषक मन के खिलाफ जब उमन मुखर होके लिखथे तब खून मा उबाल आना स्वाभाविक हे :-
"लंद फंद वाले मालामाल हे
सिधवा बर रोजे अकाल हे
अउ गोहार परत हे नाचे
छानही चढ़ चढ़ पापी मन..."

नपुंसक राजनीति के खिलाफ खुल के लिखे बर करेजा चाही,मस्तुरिया जी निडर होके लिखिन- 
"भीख माँगे म जिनगी के 
अधिकार कोनो ल मिलय नही..
कुंडली मारे साँप सिंहासन
आगी आँच बिन हिलय नहीं...।"

अइसन बात ल लिखना अउ मंच म पढ़ना तलवार के धार म चलना हवय। फेर कबीर के रददा म रेंगइया मन ककरो परवाह कहाँ करथे । 

जमाखोरी तब भी रहिस अउ आज भी ये विकराल समस्या हे जेला जड़ ले उखाड़ना जरूरी हवय। जमाखोर मन के ख़िलाफ़ उँकर आक्रोश देखव-
"लहू ले माँहगी तेल गुड़ 
निर्दयी होगे बैपारी मन ..जागो रे.."

अपन फर्ज ले विमुख, देश अउ समाज के प्रति उदासीन केवल अपन म मस्त मनखे मन ला लताड़त मस्तुरिया जी कहिथें -
"मुर्दा जागव मरद बनव रे
छाती बाँख म गरब भव रे
देश धरम पुरखा पीढ़ी बर...
मरव खपव जीवदानी मन" जागो रे..

मस्तुरिया जी कालजयी गीतकार रहिन। उँकर गीत के प्रासंगिकता तब ले जादा आज महसूस होथे।सम्मान के साथ जीना ही उँकर फितरत रहिस। उँकर कृति "सोनाखान के आगी" के पंक्ति देखव :-  
"बिना सुराजी के जिनगानी
मुरदा हे तन मरे परान
बिना मान सभिमान के मनखे
गाय गरु अउ कुकुर समान"

सिधवा छत्तीसगढिया मन ला अपन स्वाभिमान के 
रक्षा करे खातिर मस्तुरिया जी आजीवन घेरी भेरी चेताइन :-
अरे नाग तैं काट नहीं त
जी भर के फुफकार तो रे
अरे बाघ तै मार नहीं त
गरज-गरज धुतकार तो रे

छत्तीसगढ़ के पावन माटी सब ला शरण दिस। अलग अलग राज के मनखे आके इँहे के होके रहिगे। फेर कुछ लोगन छत्तीसगढ़िया मन के अस्मिता अउ स्वाभिमान सँग आज घलो खेलत हवय। उँनला मस्तुरिया जी खुला चुनौती देथे :-
"एक न एक दिन ए माटी के
पीरा रार मचाही रे ..
नरी कटाही बइरी मन के
नवा सुरुज फेर आही रे।"

येहू कटु सत्य आय कि मस्तुरिया जी आजीवन अपन स्वाभिमान के साथ कभू समझौता नइ करिन। छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के पीरा ला जीवन पर्यन्त लिखिन। मनखे के सीना धधक जय,अपन माटी के खातिर मनखे मर मिटय, मुरदा घलो खड़े हो जय अइसन प्रेरणा देने वाला अमर गीतकार सदियों मा कोनो एक होथे। मस्तुरिया जी के पुण्यतिथि मा उन ला ला शत शत नमन ।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)

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