Friday 20 November 2020

मोर सुरता मा चँदैनी गोंदा-शशि साहू

 *मोर सुरता मा चँदैनी गोंदा-शशि साहू


7 नवम्बर 1971 चँदैनी गोंदा के पहली मंचन, सुरता धुमलाय कस हे। न मोला तारीख याद हे ना सन। काबर की मँय तब बहुत छोटे रेहेव 9-10 बछर के। धन का सोंच के बाबू जी मोला बघेरा ले गें। चारो कोती सइमो - सइमो ।

मनखेच मनखे, मंच के आघू मा राहेर काड़ी के बड़े जन झिपारी रहे, जेमा चँदैनी गोंदा खोंचाय रहे। उही ल निकाल निकाल के गुच्छा कस बना डारे रहँव। अउ धरे रहँव। कार्यक्रम के उद्घाटन विद्याचरण जी शुक्ला करे रिहिन। तब तक मँय मंच मा रेहेव,मोर बगल मा एक झन फकफक ले पड़रा गजब ऊंचा आदमी खड़े रहय। मोला सुरता हे, वोला ध्यान से देखे रेहेव मुड़ी उचा के।


 बाद मा बाबू जी बतइन, वो विद्याचरण शुक्ला ये। कार्यक्रम शुरू होते ही बाबू जी मोला मंच के नीचे गद्दा मा बैठारिन।अउ वो दू झन  मनखे मन ला किहिन मोर नोनी के ध्यान रखहू। अउ मंच के पीछू चल दिन। मय वो दुनो पहुना मन संग बैठेव। अउ जब भी बाबूजी मंच मा आय त एक झन गजब हँसैया पहुना हर कहय. देख तोर ददा ला.. ।

देख देख... ।अउ एक झन हर मंद मंद मुस्काय। मँय कलेचुप रहँव।


वो दुनो महान हस्ती कोन ये, जेखर संग बैइठ के  चँदैनी गोंदा के प्रथम प्रर्दशन ल देखेव। गंज हाँसे तेन पवन दिवान

अउ मुसकात रहय तेन डॉ मनराखन लाल साहू जी।ये बात ल बाबू जी हर बहुत बाद मा बताइन। बड़ भागमानी मँय। वो दिन कला अउ साहित्य के भागीरथी संगम मा  डुबकी लगाय हँव, अउ मोला पता नइ।


रात आँखीच मा पहात हे। वोती मंच मा बबा हर भारत के नक्शा ल देखत पूछत हे. .. शिव हमर छतीसगढ़ कहाँ हे रे..  शिव कथे ये दे तो हे बीच मा।.. भारत के हिरदे हरे  बेटा छतीसगढ़ हा.. । ये प्रसंग के सुरता हे। 


दूसर प्रसंग जेन मोर मन मा जइसे छ्प गे हे।.. किसान खलिहान ले धान ला घर लाय  हे।

ओती चाँद बी घलो खेत ले सिला बिन के लाय हे। अतके मा जमीदार अपन  नौकर चाकर संग पहुँच जथे, अउ अपन नौकर मन ला धान ला उठाय बर किथे। चाँद बी के बिने सिला ला घलो झटक ले थे। घर के जवान बेटा के गरम खून खौलथे। वोहा  जमीदार के विरोध करथे। त जमीदार हर शिव के गर ला कलारी मा खिंचथे।

मार्मिक  संवाद चलथे। छतीसगढ़ के शोषण गरीबी लचारी के जीवंत तस्वीर ल शायद पहिली बार आम जनता हर मंच मा देखे होही। मोर लिए बहुत पीड़ादायक रिहिस। मँय रो डरेव। चाँद बी के सिला झटके वाले दृश्य हर बहुत मार्मिक रिहिस। 


बहादुर चाचा जमीदार के रोल मा गजब फँभे। फेर बाबू जी के गर ला कलारी मे उँखर खिंचई हर मोला एको अच्छा नइ लगिस। बहुत दिन ले मने मन उँखर से नाराज रेहेव। 

आज कहूँ करा मिल जतिन त ये बात ल उनला जरूर बताय रतेव। पर वो मन तो बहुत जल्दी निकल गे। 


आज कहत हँव। चँदैनी गोंदा  सिर्फ सांस्कृतिक संस्था

 नइ रिहिस। वो हर एक विचार रिहिस। दर्शन रिहिस।चँदैंनी गोदा छतीसगढ़ के चिन्हारी रिहिस। वोखरे सेती जन जन के हिरदे मा आज ले जीवित हे।

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