Friday 20 November 2020

आलेख: परिवार(पोखनलाल जायसवाल

 *आलेख: परिवार(पोखनलाल जायसवाल

     'मनखे समाजिक प्राणी आय,जेन मनखे समाज म नी रहे, वो या तो भगवान हरे, नइ त जानवर हरे।' ए कहना रहिस हे, प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू जी मन के। मनखे ले मिलके परिवार बनथे अउ दू या दू ले जादा परिवार के मिले ले समाज बनथे। परिवार एक इकाई के रूप म होथे तव कुछ मनसे मन एक छत के छाँव म एके चूल्हा के भोजन ले पेट भरथें अउ सुख-दुख बाँटत जीथें। आने-आने चूल्हा के भोजन करैया कई परिवार ह मिलके समाज बनाथे। समाज ह एके रीतिरिवाज, परंपरा, सँस्कृति अउ सँस्कार ल मनइया मनखे मनके हो सकत हे अउ आने आने परंपरा, रीतिरिवाज के मनसे मन के भी हो सकत हे। आज समाज म परिवार एकल परिवार के रूप म जादा देखे म मिलत हवै। अइसे परिवार जिहाँ सिरीफ दाई ददा अउ लइका बस रहैं, एकल परिवार कहाथे। बहुत होगे त दादा दादी शामिल करे जा सकथे।

        एक समय रहिस जब समाज म परिवार समिलहा (संयुक्त) परिवार देखे म मिलै। जेन परिवार म दाई-ददा, दादा-दादी के संग कका-काकी, बड़े दाई-ददा अउ उँखर लइका मन रहिथे। ए परिवार के अपन आनंद अउ मजा हे। अब तो समिलहा परिवार सपना होगे हे। चार ठन बरतन रही त बाजहीच, कहनउ दू झन बहू आइच तहां ले घर म खटपिट शुरू हो जथे। मया परेम कोन जनी कति भाग जथे। कभू भाई-भाई म तारी नइ पटै, त कभू सास-बहू म, त अउ कभू देरानी जेठानी म। परोसी-परोसिन मन कहूँ कान फूँक दिस त अउ मत पूछ। चार महीना बीते नइ पाय। चूल्हा अलग हो जथे। अँगना खँड़ा जथे।

        एकल परिवार म नवा पीढ़ी के जोड़ी मन कोन जनी का सोचथे। हमर कमई घर भर म काबर बँटै। हमर कमई हमरे जगह राहै। काबर भुला जथे इही समिलहा परिवार म उँखर पालन पोषण होय हे। काबर भुला जथे कि काली ओकरो संग अइसना हो सकत हे। समय बने बने बीतथे त कछु गम नी लगै। आज के महँगई म दूनो परानी ल कमाना जरूरी होगे हवै। अइसन म नान्हें लइका के चिंता करही कोन। राम अउ माया दूनो सँघरा कब मिले हे। दादी-दादा के संग रहे ले ए बात के चिंता नइ रहै। काम बूता के खोज म गाँव ले पलायन घर परिवार ले पलायन के बहाना घलो लगथे। चार पैसा कमा के घर परिवार के बीच रहना अउ संतोष नइ करना। दू पैसा आगर कमाय बर घर परिवार ल छोड़ना, आने जगह म किराया भाड़ा म रहना, का एकल परिवार म रहे के शौक पूरा करना नोहै? नौकरी के बात आने आय। कुछ झन मन तो गँवई रहन-सहन ल ए नाँव ले छोड़ देथें कि उँखर भावी पीढ़ी पिछवा जही। अइसन केउ ठन कारण हे जे समिलहा परिवार के टूटे के कारण बनथे। मोर अकेल्ला के ठेका थोरे हे, घर दुआर ल चलाय के। हिजगा-पारी करन त बने जिनीस के, फेर कोन करथन अइसन हिजगा।

       एकल परिवार म लइका मन ल दाई ददा के डाँट फटकार के पाछू उन ल सँभलइया कोनो नइ राहैं, अइसन बखत घर म दादा-दादी अउ आने मनखे के कमी साफ देखे म आथे। बाल सुलभ मनोभाव बस्ता के बोझ म दब के दब्बू हो जथे। नइ त कुंठित होवत एकदम उद्दंड घलो हो जथे। दाई ददा के सपना के आगू उँखर सपना मर जथे।

         आज भीड़ सबो कोति हे। घर गिरहस्थी के सामान जुगाड़त मनखे थक जथे, त गुस्सा लइका मन ऊपर उतरथे। लइका लइकई मति म जिद करबे करही। ओला का पता कोन कब काबर गुस्सा जही। घर गिरहस्थी का होथे? 

       जिनगी म हरदम हमर तबीयत बढ़िया राहै जरूरी नइ। कभू मौसमी त कभू अउ कुछु कारण ले तबीयत डोले म  समिलहा परिवार के महत्व सबो ल समझ म आथे। तब अउ जब अस्पताल म भर्ती होय बर पड़ जथे।

    कभू-कभू दूनो के कामकाजी होय अउ एक झन के ट्रेनिंग लगे के बाद छोटे लइका मन के का हाल राहत होही अंदाजा लगाए जा सकत हे। आजकल बाढ़त तरह तरह के अपराध मन ए चिंता ल अउ बढ़ा देथे।

        एकल परिवार म भीड़ अउ चार झन के भावना के झमेला नइ राहय। जब चाह तब कहूँ चल दे, एकर आजादी रहिथे। अपन हर इच्छा ल पूरा करे के आजादी रहिथे। रिश्तेदार मन ले मनमुटाव बर जगह नइ बाँचै।

       एकल परिवार ले जादा समिलहा परिवार म लइका ल आनंद मिलथे, उँखर मनके शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक निर्माण जादा हो पाथे। एक दूसर के प्रति सोच, समर्पण, मया दुलार ल जाने समझे के अवसर मिलथे। एकल परिवार म विवाद ल सुलझइया नइ राहै, जे कभू-कभू जिनगी बर भारी पड़थे। संबंध टूटे के कगार म आ जथे त कभू आत्मघाती कदम घलो उठाय बर मजबूर कर देथे। टीवी सीरियल मन के आभासी जिनगी कतेक सिखा पाही।

        हम ल प्रयास करना चाही कि जतेक अवसर मिलै अपन परिवार सहित अपन भरे पूरा परिवार के बीच समय बितावन। परिवार के महत्तम ल जानन अउ लइका मन ल जाने के मौका देवन।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार)

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