Friday 20 November 2020

जेठवनी ले जुड़े लोक मान्यता के वैज्ञानिक पहलू- पोखनलाल जायसवाल

 जेठवनी ले जुड़े लोक मान्यता के वैज्ञानिक पहलू- पोखनलाल जायसवाल

     

       अइसे कोनो मनखे नइ हें, जेन कार्तिक महीना के महत्तम ले  परिचित नइ होहीं। छत्तीसगढ़ म दशराहा माने के बिहान भर ले कार्तिक नहाय अउ रामधुन के संग प्रभात फेरी के रिवाज तइहा ले चले आवत हें। आज के नवा पीढ़ी के रामधुनी पार्टी ले नइ जुड़े से ए नँदावत हे। अब कतको गाँव म प्रभात फेरी नइ होवय। महीना भर कार्तिक स्नान करे के पाछू पुन्नी स्नान के संग आँवला छाँव तरी खीर पका के प्रसाद बाँटे जाथे। लोक मान्यता हवै कि कार्तिक स्नान ले कुँवारी कन्या ल मनवांछित वर के प्राप्ति होथे। ए स्नान के बहाना बेरा उए के पहिली जागे के आदत बनय। जउन पढ़इया लइका मन बर बने रहिथे। मुँधरहा शांत वातावरण म पढ़े ले पाठ के तियारी बने होथे माने जाथे। मन एकाग्र रहिथे तभे कोनो भी बुता म मन रम थे अउ बुता सफल होथे। बिहनिया के नवा किरण नवा ऊर्जा के संचार करथे।मन म नवा उत्साह भरथे। तभे सूरज ल प्रकृति के पोषक माने गे हे। इही धरती बर ऊर्जा के मूल स्त्रोत आय।

       कार्तिक अमावस के दिन दीपावली अउ बिहान भर देवारी माने जाथे। अँजोरी पाख के एकादशी के दिन जेठवनी/देवउठनी परब  माने जाथे। ए तरह ले कहे जाय त कार्तिक महीना तीज परब अउ बड़ महत्तम के महीना होथे।

      जेठवनी के दिन खुसियार के मँड़वा सजा के तुलसी महरानी अउ शालीग्राम के बिहाव रचाय जाथे। इही दिन ले खुसियार खाना शुरुआत करे जाथे। लोक मान्यता के मुताबिक ए दिन ल मंगल कारज बर-बिहाव के नेंग जोग,भवन निर्माण के पूजा-पाठ जइसे जम्मो नवा काज के शुरुआत बर उत्तम माने जाथे। ए दिन ल देवउठनी एकादशी के नाँव ले घलो जाने जाथे। देवउठनी मतलब देवता  धामी मन के जागरण के दिन। एक अउ मान्यता के अनुसार आसाढ़ शुक्ल एकादशी ल देवसुतनी एकादशी कहे जाथे, जेकर अनुसार ए दिन ले चार महीना देवता धामी मन धरती म विचरण नइ करे। विचरण नइ करना मतलब आराम करना अर्थात् सुतना/सो जाना आय। ए तरह ले ए एकादशी देवसुतनी एकादशी कहाथे। तब ले जेठवनी एकादशी तक कोनो भी काम के शुरुआत के मनाही रहिथे। देवता धामी मन के आशीर्वाद नइ मिलय जान के जम्मो नवा काम ल कुछ दिन बर स्थगित कर दे जाथे। ए समय के मौसम ऊपर धियान दे जाय त पता चलथे कि ए चार महीना ह चउमास के महीना होथे। जेमा खेती-बाड़ी के बड़ बुता रहिथें अउ सावन-भादो के बरसा ले घर-दुआर रोहन-बोहन रहिथें। तइहा के बेरा म गली-खोर म माड़ी भर गैरी माते राहय। आवाजाही बड़ मुश्किल हो जाय। कोनो भी कार्यक्रम करे म पहुना मन बर रहे-बसे के बेवस्था गड़बड़ात रहिन। पानी-काँजी म सबो के खान-पान के बरोबर बेवस्था नइ करे जा सकत रहिन, अइसे प्रतीत होथे। आज घलो एकर सहज कल्पना करे जा सकत हे। संगेसंग यहू विचार करे जा सकत हे कि बछर भर के खाय बर अन्न उपजाना अउ ओकर चिंता करना ले, बड़का अउ कोनो काम हो नइ सकय। इही कारण रहिन होही जे चउमास भर कोनो भी काम के शुरुआत करना ल तइहा म अच्छा नइ मानिन होही। आज सबो मौसम ले बाँचे बर नवा-नवा तकनीक आगे हे। सबो प्रकार के बेवस्था हो सकत हे। गली-खोर म चिखला-माटी नइ राहँय। बारहमासी आवाजाही के बेवस्था हे। कोनो प्रकार के दिक्कत के सवाले नइ हे। चउमास के बीते ऊपर ले चारों मुड़ा सुक्खा जउन रहिथे।

      खार के लक्ष्मी घर म पाँव धर डरे रहिथे...पाँव धरे के अगोरा रहिथे। नवा काज करे खातिर सबके हाथ कच्चा रहिथे। अजम हो जथे कि असो अमुक बुता ल करे म कोनो दिक्कत नइ होय। नोनी-बाबू के हाथ पिंवराए जा सकत हे। रहे-बसे बर छाँव के बेवस्था ल सुधारे जा सकत हे।

        जेठवनी के दिन कतको घर गाय ल सोहई बाँधे जाथे। सोहई बँधइया राऊत भाई ल अपन तरफ ले भेंट स्वरूप कपड़ा, धान, पैसा जउन बने दे के सुग्घर परंपरा चले आत हे। जेला पाके राऊत मन असीस देथें...अन्न धन ले भरे रहय भंडार। ए असीस म राउत जिहाँ किसान के भंडार भरे रहे के कामना करथे, उहें अपन पेट के चिंता घलो करथे। ए रीत ह किसान अउ राऊत के आपसी संबंध ल सजोर बनाथे। दूनो के खुशहाली के प्रतीक घलो बनथे। 

       अपन लोक संस्कृति, लोक परम्परा अउ लोक मान्यता मन ल अँधविश्वास, रूढ़िवादिता ए कहिके एक सिरा ले खारिज करे के पहिली सोचन। वोकर पाछू का भेद हवय?  तब अउ अब म जरूरत के जिनीस के उपलब्धता अउ पर्याप्तता म फरक ल समझन। समय के संग बदलाव जरूरी हे। फेर बदलाव के अर्थ ए नोहय कि पूरा के पूरा बदले जाय। विकास के नाव म जइसे कोनो भी वैज्ञानिक खोज म संशोधन कर परिष्कृत करे जाथे, वइसने लोक मान्यता, परम्परा अउ संस्कृति ल समय प्रासंगिक बनाना ही सही बदलाव रही। अइसन बदलाव के स्वागत भी करना चाही।


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी (बलौदाबाजार)

3 comments:

  1. बहुत सुग्घर जानकारी सर जी

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    1. धन्यवाद निषाद राज जी

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