Sunday 27 February 2022

छत्तीसगढ़ी फिलिम

 छत्तीसगढ़ी फिलिम

*छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म के बारे में मेहा आज बिहिनिया गुगल मा सर्च करे हँव त ये जानकारी मिलिस हे अउ थोड़ा मेहा येमा जोड़े हँव।*🙏🏻


छत्‍तीसगढ़ी के पहली फिल्‍म, अप्रैल 1965 में रिलीज मनु नायक के *कहि देबे संदेस* हरे, 1985 मा विजय पांडे-निरंजन तिवारी के *घर द्वार* भी बनिस । 

छत्‍तीसगढ़ राज्‍य गठन 1 नवंबर 2000 के हफ्ता भर पहिलीआईस फिल्‍म *मोर छइंहा भुंइया* ।

ओखर बाद छत्तीसगढ़ मा अभी तक लगभग 80-100 छत्‍तीसगढ़ी फिल्‍म बन चूके हे जेखर सूची ये हरे👇🏻-

01 अब मोर पारी हे, 02 अंगना, 03 ए मोर बांटा, 04 बैर, 05 बंधना, 06 बनिहार, 07 भांवर, 08भुंइया के भगवान, 09 भोला छत्तीसगढ़िया, 10 छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया, 11 छत्तीसगढ़ महतारी, 12 गजब दिन भइगे, 13 घर द्वार, 14 गुरांवट, 15 जय मां बम्लेश्वरी, 16 जय महामाया, 17 झन भूलौ मां बाप ला, 18 कहि देबे संदेश, 19 कंगला होगीस मालामाल, 20 कारी, 21 किसान मितान, 22 लेड़गा नं 1, 23 महूं दीवाना तहूं दीवानी, 24 मया, 25 मया देदे मया लेले, 26 मया देदे मयारू, 27 मया होगे रे, 28 मया के बरखा, 29 मयारू भौजी, 30 मोंगरा, 31 मोर छइंहा भुंइया, 32 मोर धरती मईया, 33 मोर गवंई गांव, 34 मोर संग चलव, 35 मोर संग चल मितवा, 36 मोर सपना के राजा, 37 नैना, 38 परसुराम, 39 परदेशी के मया, 40 प्रीत के जंग, 41 रघुबीर, 42 संगवारी, 43 तीजा के लुगरा, 44 तोर आंचल के छइयां तले, 45 तोर मया के मारे, 46 तोर मया मा जादू हे, 47 तोर संग जीना संगी तोर संग मरना, 48 तुलसी चौरा, 49 टुरा रिक्शावाला, 50 टुरी नं 51 रंगोबती, 52 रौताईन, 53 हिरो नं.1, 54 महूं कुंवारा तहूं कुंवारी, 55 बिदाई, 56 बेनाम बादशाह, 57 लव स्टोरी, 58 बीए फर्स्ट इयर, 59,बी.ए सेकंड इयर, 60.आई लव यू, आई लव यू 2, 61 राजा छत्तीसगढ़िया, 62 प्रेम युद्ध, 63, दईहान, 64 लव दिवाना, 65 लव लेटर, 65 रंग रसिया, 66 प्रेम सुमन, 67 प्रेम के बंधना, 68 मोही डारे, मोर 69 जोड़ीदार, 70 किरिया, 71 राजा 72 छत्तीसगढ़िया 2, 73 ससुराल, 74 दिल परदेसी होगे रे, 75 राजू दिलवाला, 76 घर परिवार, 77 तोर मोर यारी, 78 दबंग दरोगा, 79 लैला टीपटाप छैला अंगुठा छाप, 80 जोहार छत्तीसगढ़, 81 हंस झन पगली झंस जबे, 82 डार्लिंग प्यार झुकता नहीं।


छत्‍तीसगढ़ी फिलिम के निर्माता - मनु नायक, विजय पान्‍डे, शिवदयाल जैन, प्रेम चन्‍द्राकर, राकी दासवानी, अलक राय, मोहन सुन्‍दरानी, मधुकर कदम, दुष्‍यंत राणा, मनोज वर्मा, क्षमा‍निधि मिश्रा, संतोष जैन, रूपाली-संदीप तिड़के, संतोष सारथी, निर्देशक - निरंजन तिवारी, सतीश जैन, प्रेम चन्‍द्राकर, क्षमानिधि मिश्रा, मनोज वर्मा, डॉ. पुनीत सोनकर, असीम बागची, मनु नायक। संगीत - मलय चक्रवर्ती, कल्‍याण सेन, सुनील सोनी, दुष्‍यंत हरमुख, भूपेन्‍द्र साहू, गीत - हनुमंत नायडू, हरि ठाकुर, लक्ष्‍मण मस्‍तुरिया, राकेश तिवारी, कुबेर गीतपरिहा, प्रीतम पहाड़ी, कैलाश मांडले, रामेश्‍वर वैष्‍णव, गिरवरदास मानिकपुरी गायन - लता मंगेशकर, मोहम्‍मद रफी,महेन्‍द्र कपूर, साधना सरगम, कुमार शानू, अनूप जलोटा, विनोद राठौर, उदित नारायण, सुदेश भोंसले, कविता कृष्‍णमूर्ति, सुमन कल्‍याणपुर, मीनू पुरषोत्‍तम, मन्‍ना डे, बाबा सहगल, अनुराधा पौडवाल, सोनू निगम, अभिजीत, बाबुल सुप्रियो और सुरेश वाडकर जैसे बालीवुड वालों के साथ स्‍थानीय प्रतिभाओं में ममता चंद्राकर, अलका चंद्राकर, मिथिलेश साहू, सुनील सोनी, अनुज शर्मा, प्रभा भारती अउ बहुत अकन  लंबा सूची हे।


अभिनय - अनुज शर्मा, प्रकाश अवस्‍थी, करन खान, अनिल शर्मा, प्रदीप शर्मा, लोकेश देवांगन, रा‍जू दीवान, मनोज जोशी, योगेश अग्रवाल, संजय बत्रा, चंद्रशेखर चकोर, शशिमोहन सिंह, अंकित जिंदल/ निशा गौतम, पूनम नकवी, प्रीति डूमरे, विभा साहू, शिखा चिदाम्‍बरे, रीमा सिंह, स्‍वप्निल कर्महे, सीमा सिंह, सिल्‍की गुहा/ मनमोहन ठाकुर, अनिल वर्मा, रजनीश झांझी, पुष्‍पेन्‍द्र सिंह, उपासना वैष्‍णव, सुमित्रा साहू, संजू साहू, रंजना नोनहारे/ शिवकुमार दीपक, कमल नारायण सिन्‍हा, संजय महानंद, शैलेष साहू, निशांत उपाध्‍याय, बसंत दीवान, प्रमोद भट्ट, हेमलाल कौशिक, क्षमानिधि मिश्रा, मन कुरैशी, अनुकृति चौहान, मुस्कान साहू।

*ये नाम मन सूची क्रम अनुसार नइ हे आघू पाछू हो सकत हे अउ सूची मा कतको झन के नाम भी नइ हे।*

*जतका जानकारी मिलिस वोला बताय के प्रयास करे गेहे।*


*राजकुमार निषाद*राज*

*छंद साधक-सत्र-16*

Saturday 26 February 2022

व्यंग्य- स्वच्छ भारत अभियान

व्यंग्य- स्वच्छ भारत अभियान 

                    गाँव ला स्वच्छ बनाये के संकल्प ले चुनई जीत गे रहय । फेर गाँव ला स्वच्छ कइसे बनाना हे तेकर , जादा जनाकारी नइ रहय बपरी ल । जे स्वच्छता के बात सोंच के , चुनई जीते रहय , तेमा अऊ शासन के चलत स्वच्छता अभियान म , बड़ फरक दिखय । बहुत दिन ले बांचे के कोशिस करिस , फेर छेरी के दई कब तक खैर मनाही , लपेटा म आगे अऊ वहू संघरगे शासन के अभियान म । अपन गाँव ल स्वच्छ बनाये बर , घरो घर , सरकारी कोलाबारी बना डरिस । एके रसदा म , केऊ खेप , नाली , सड़क अऊ कचरा फेंके बर टांकी ...। गाँव म हाँका परगे के , कनहो मनखे ला , गाँव के खेत खार तरिया नदिया म , दिशा मैदान बर नइ जाना हे , जे जाही , तेकर ले , डांड़ बोड़ी वसूले जाही । कागज म , गाँव के भौतिक कचरा के , अधकचरा नियंत्रण होगे फेर , एक कोती गाँव उहीच करा के उहीच कर , अऊ दूसर कोती , मनखे के मन म सकलाये कचरा , शौचालय के संखिया ले जादा बाढ़हे बर धर लिस ।  

                    एक दिन के बात आय , एक ठिन तिहार म , उही गाँव के भगवान ल , अबड़ अकन भोग लगिस । भगवान घला कभू खाये निये तइसे , उनिस न गुनिस , पेट के फूटत ले खा डरिस । रथियाकुन पेट पदोये लागिस । भगवान सोंचिस मंदिर भितरी म करहूँ , त पुजेरी सोंचही भगवान घला मंदिरेच म .......। चुपचाप लोटा धरिस अऊ निकलगे भाँठा ..... । जइसे बइठे बर धरिस , कोटवार के सीटी के अवाज सुनई दिस । भगवान सोंचिस – कोटवार हा कहूँ मोरे कोती आगे अऊ चिन डरिस त बड़ फजित्ता हो जही । धकर लकर हुलिया बदलिस तब तक , कोटवार पहुँचगे अऊ केहे लागिस – तैं नइ जानस जी , हमर गाँव हा ... ओ डी एफ ... घोषित हे , इहाँ खुल्ला म शौच मना हे । भगवान पूछिस ‌- कती जगा बईठँव , तिहीं बता ? कोटवार खिसियावत किथे – तोर घर शौचालय निये तेमा , भाँठा पहुँच गेस गंदगी बगराये बर ।  भगवान किथे – मोला तो पूरा गाँवेंच हा शौचालय दिखत हे अऊ अतेक गंदा के , बइठना मुश्किल हे । कोटवार अकबकागे , सोंचत रहय .. कइसे गोठियाथे बिया हा ... । 

                    भगवान फोर के बतइस - मंदिर म धरम के ठेकेदार मन , कोंटा कोंटा तक म अपन सोंच के शौच म ... दुर्गति कर देहें । कोटवार किथे – मंदिर मा रहिथस त , पुजारी अस का जी ? तोर घर म तो  शौचालय हाबे , उहें नइ बइठथे गा .... । भगवान किथे - मोर तो कतको अकन घर हे बाबू , जेकर गिनती निये । मंदिर म मोर नाव ले अपन अपन रोटी सेंक के , मोर रेहे के जगा म शौच कर देथें । मस्जिद म रहिथँव त , अलगाववाद अऊ कट्टरवाद के पीप ला , जतर कतर शौच कस बगरा देथे । गिरिजाघर म खुसर जथँव त , वहू मन , लबारी के प्रचार प्रसार करत ...... पूरा खोली म , एक ला दूसर ले लड़ाये के बैचारिक कचरा ल घुरवा कस , बगरावत रहिथे । 

                    थोकिन सांस लेवत फेर केहे लागिस ‌‌‌- आम जनता के घर के , सरकारी शौचालय के तो बाते निराला हे । बनते बनत देखथँव , ओकर हरेक ईंटा म मिस्त्री , ठेकेदार अऊ इंजीनियर के , शौच के निशान पहिली ले मौजूद हे । शौचालय बनतेच बनत , इँकर भ्रस्टाचार के गंदगी ले निकले बदबू म , नाक दे नइ जाय । कोटवार किथे – तोर पारा के पंच ला नइ बताते जी ..... । भगवान किथे - उहू ला बतायेंव , थोरेच दिन म एक ठिन ओकरो नाव के , बइमानी के शौच लगे ईंटा चढ़गे । सरपंच तो अऊ नहाकगे रहय , ओहा जगा जगा के शौचालय म धोखाधड़ी के कांड़ लगावत किंजरत रहय । अधिकारी मन करा का शिकायत करतेंव - ओमन कपाट बर , लबारी के फ्रेम तैयार करत रहय , जेमा सरहा मइलहा लालच के पेनल , वहू अतका भोंगरा के ........ बिगन झाँके जना जाये के , कती मनखे भीतरि म खुसरे हे । बिधायक के घर म , फरेब के पलस्तर लगाये के , योजना बनत देखेंव । दिल्ली तक पहुँच गेंव , उहां येकर संरक्षण बर , मौकापरस्ती के छड़ अऊ विस्वासघात के सीमेंट म , फकत आँकड़ा के छत , बनत रहय । उहू छत के हाल तो झिन पूछ बइहा ....... , अतका टोंड़का ........ अऊ हरेक टोंड़का ले , देश ला बर्बाद करइया , किरा बिलबिलावत .... बदबूदार सोंच , बूंद बूंद करके टपकत , गंदगी बगरावत रहय । अभू तिहीं बता कोटवार , कति जगा जाके गोहनावँव । कति मनखे , मोर बर , स्वच्छ शौचालय बना सकत हे ? मोर देस म स्वच्छ भारत के कल्पना कइसे अकार लिही ? 

                      कोटवार किथे - जब अतेक ला जानथस , त , तिहीं नइ बइठ जतेस दिल्ली म । कोन गंदा बगराये के हिम्मत करतिस । भगवान जवाब देवत किहिस – मय भगवान अँव बेटा । मय सरग म शासन कर सकत हँव फेर , तोर भारत म शासन , मोर बर मुश्किल का ...... असंभव हे । कोटवार लंबा सांस भरत किथे - का करबे भगवान – जेला अच्छा जानके दिल्ली म बईठारथन तेमन ...... उहाँ बइठते साठ , कोन जनी काये खाथे .. , का पचथे ....... का नइ पचय ......., संसद भितरी म , गंदगी बगराना शुरू कर देथे , इही गंदगी हा , जम्मो देश म , धिरलगहा , एती ओती , जेती तेती , जतर कतर , बगरके देश ला जहरीला बना देथे । जे मनखे संसद म खुसर नइ सके तिही मन , तोरे कस लोटा धरके , गंदगी करे के जगा अऊ मौका तलाशत किंजरत रहिथे .......। 

                     कलेचुप लोटा धरके भगवान हा मंदिर म खुसरिस ओकर बाद से .. कभू निकले के हिम्मत अऊ इच्छा दुनों नइ करिस । 

    हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

यात्रा वृतांत-मोर पहिली साहित्यिक हवाई यात्रा..



 

यात्रा वृतांत-मोर पहिली साहित्यिक हवाई यात्रा..

   अक्टूबर महीना के लगत ले चम्मास के बादर पानी थोर कमतिया जाए रथे. साहित्यिक सांस्कृतिक कार्यक्रम मन के दिन बादर भरदियाये ले धर लेथे. चारों मुड़ा आयोजन अउ बलउवा के नेवता मिले लगथे. 

  ठउका सन् 2017 म अक्टूबर के लगतीच पं. रविशंकर वि. वि. के कुलपति डा. केशरी लाल वर्मा जी के फोन बड़े बिहंचे आगे. मोर फोन ल उठातेच उन कहिन- 'ओहो.. तोला फोन लगा लगा के हलाकान होगे हंव. दू दिन होगे, सोच डरे रेहेंव अब फोन नइ लगही, त यूनिवर्सिटी ले एकाद झन लइका ल तोर घर भेजहूं कहिके, फेर येदे मोर साढ़ू विष्णु बघेल जगा ले तोर दुसरइया नंबर मिलिस त गोठबात हो पाइस'.

  'आखिर का बात होगे सर'. मैं केशरी लाल जी ल कभू भैया कहि देथंव, त कभू सर घलो कहि लेथंव. उन कहिन- 'अहमदाबाद चलना हे, तोला कविता पाठ करना हे. चलबे नहीं?' 

  मैं कहेंव- ' हव चल तो देहूं, फेर मैं हिन्दी म कमतीच लिखथंव.' उन कहिन- 'हिन्दी नहीं, छत्तीसगढ़ी म पढ़ना हे.' मोला अकचकासी लागिस, के उहाँ गुजरात म छत्तीसगढ़ी कोन समझही कहिके.

    त उन बताइन, 'अहमदाबाद म 8 अक्टूबर 2017 के संझा 4.30 बजे ले कवि दादूराम हवेली म 'गुजराती अउ छत्तीसगढ़ी भाषा के संगोष्ठी' हे, वोमा तोला कविता पाठ करना हे, मैं तोर नाम ल लिखवादे हंव. आज सांझ कन भारत सरकार के साहित्य अकादमी के मुंबई कार्यालय ले तोर करा फोन आही, उन तोला कार्यक्रम म भाग ले के बारे म पूछहीं त हव कहि देबे.' 

    मैं हव भैया कहिके फोन रख देंव. थोरके बेर म फेर उंकर फोन आइस, अउ मोला बताइन के '7 अक्टूबर के संझा 4 बजे के हवाई जहाज ले निकलना हे. मैं तोर टिकिट बुक करवा देथंव, माना एयरपोर्ट 3.30 तक पहुँच जाबे, अउ अपन पहचान पत्र आदि धर लेबे. वोकर बिना एयरपोर्ट म खुसरन नइ देवंय.'

    मैं संझा मुंबई ले अवइया फोन के अगोरा करत रेहेंव, तेकर पहिली देवरघटा जांजगीर वाले साहित्यकार रामनाथ साहू के फोन आगे. मोला कहिस- 'भाई जी 7 तारीख के दू अढ़ाई बजे तक मैं रायपुर के घड़ी चौक पहुँच जहूं, तहांले उहाँ ले दूनों झन माना एयरपोर्ट चल देबो.'

मैं वोला पूछेव- 'अच्छा तहूं मन जाहू का?' मोला कोन-कोन जाही, का-का कार्यक्रम होही तेकर विस्तृत जानकारी नइ रिहिसे. त उन बताइन के छत्तीसगढ़ ले पांच झन जाबोन. तैं (सुशील भोले) अउ मीर अली कविता पाठ करहू, मैं (रामनाथ साहू) अउ परदेशी राम वर्मा कहानी पाठ करबोन अउ अउ डाक्टर साहब (डॉ. केशरी लाल वर्मा) छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य उपर अपन व्याख्यान दिहीं.' 

    उहिच दिन संझा साहित्य अकादमी कार्यालय मुंबई ले फोन आइस. केशरी लाल जी के कहे मुताबिक मैं उनला  अहमदाबाद जाए के स्वीकृति दे दिएंव. बाद म डा. परदेशी राम वर्मा अउ मीर अली मीर संग घलो फोन म मुंहाचाही होइस. सबो झन मोला ए ऐतिहासिक कार्यक्रम के समाचार ल रायपुर के अखबार मन म छपवाए के जिम्मेदारी मुंही ल सौंप देइन. तैं पत्रकार घलो अस तेकर सेती समाचार के उदिम ल तहीं करबे कहिके. ए बीच कार्यक्रम के विस्तृत जानकारी अउ निमंत्रण पत्र घलोक आगे, वोकर आते जम्मो पेपर अउ सोशलमीडिया म एकर सोर बगरगे. पूरा छत्तीसगढ़ के साहित्य जगत म एकर चर्चा होए लागिस. काबर ते अइसन पहिली बेर होवत रिहिसे, के छत्तीसगढ़ी भाषा ल केन्द्र सरकार के कोनो संस्था ह अपन राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम म शामिल करत रिहिसे. राज्य सरकार के संस्था मन तो पूरा राज्य भर म कतकों कार्यक्रम करत रहिथें, फेर केन्द्र ह अइसन नइ करत रिहिसे, काबर ते केन्द्र सरकार द्वारा अभी तक छत्तीसगढ़ी ल भाषा के आठवीं अनुसूची म शामिल कर के विधिवत भाषा के दर्जा नइ दिए गे हे. एकरे सेती ए आयोजन के चारों मुड़ा सोर मचगे. लोगन के बधाई देवई म फोन सरलग घनघनाए लगिस.

    7 अक्टूबर के मुंदरहा ले मैं उठ गेंव. वइसे ये आदत मैं साधना म रेहेंव तब ले परगे हे. 4 बजे उठना कसरत अउ योग करना, तहाँ ले नहा धो के पूजापाठ म रम जाना. बिहंचे ले रामनाथ साहू के फोन आगे. फेर मोला सुरता देवाइस. घड़ी चौक म दू अढ़ई बजे तक पहुंची जाहूं कहिके. परदेशी राम वर्मा, मीर अली मीर अउ डा. केशरी लाल जी चार बजे तक अपन अपन साधन लेके पहुँच जाबो कहिके बता दिए रिहिन.

   हमन रामनाथ जी दूनो 3.30 तक माना एयरपोर्ट पहुँच गेन. थोर थोर  बेरा म बांचे तीनों साहित्यकार मन घलो पहुँचगें. 4 बजे सबो झन अपन-अपन परिचय पत्र देखा के एयरपोर्ट के भीतर चल देन. उहाँ गेन त पता चलिस के हवाई जहाज तो दू घंटा देरी से जाही. इहू पता चलिस के जहाज ह रायपुर ले सीधा अहमदाबाद नइ जावय. पहिली रायपुर ले मुंबई जाबो फेर उहाँ ले जहाज बदल के अहमदाबाद जाबो. 

   जहाज के देरी होवई ह अउ थोर बेरा बाढ़गे. 7 बजे रायपुर ले चलिस, जेन ह डेढ़ घंटा के उड़ान म मुंबई पहुंचिस. मुंबई के एयरपोर्ट ह अंतर्राष्ट्रीय आय, तेकर सेती भारी लंबा चौड़ा हे. हमन ल रायपुर ले चले जहाज ले उतर के अहमदाबाद जावइया जहाज तक पहुचे म अबड़ रेंगे बर लागिस. मुंबई ले अहमदाबाद के सफर 55 मिनट म पूरा होगे. रात करीब 11 बजे हमन अहमदाबाद पहुंचेन. उहाँ के एयरपोर्ट ले हमन ल सीधा एक ठन होटल म लेगे गेइस. उहाँ हमन कविता पाठ वाले मनला एक कुरिया म अउ कहानी पाठ वाले मनला एक कुरिया म अउ केशरी लाल जी ल एक अलग कुरिया म सुरताए खातिर ठउर दे गइस.

    बिहनिया 8 अक्टूबर के नहा धो के चाय नाश्ता खातिर होटल के खाल्हे म आएन. उहाँ पहिली ले बइठे तीन चार झन लोगन ल छत्तीसगढ़ी म गोठियावत सुन के उंकर मन के बारे म मन होइस, त मैं पूछ परेंव. वोमन बताइन के दुरुग क्षेत्र के रहइया आयं, पंडवानी गायिका तीजनबाई संग आए हें. उंकरे संग बाजा रूंजी बजाथें. अभी बीते रतिहा म उहाँ आयोजित व्यापार मेला म तीजनबाई के कार्यक्रम रिहिसे.

   छत्तीसगढ़ ले बाहिर कोनो छत्तीसगढ़िया संग भेंट हो जथे, त घर के सगा बरोबर गजब निक लागथे. हमन पांचो पांडव (साहित्यकार) नाश्ता करत करत गोठियावत रेहेंन, के हमर कार्यक्रम तो सांझ के 4.30 बजे ले हे, तब तक का करे जाय?  केशरी लाल जी सलाह देइन के लगे हाथ महात्मा गाँधी जी के कर्मभूमि साबरमती आश्रम के दर्शन कर लिए जाय. सबो झन राजी होगेन, अउ जल्दी जल्दी तइयार हो के साबरमती आश्रम चल दिएन. उहों एक झन छत्तीसगढ़िया हमर मन तीर आ के संघरगे. हमन ल छत्तीसगढ़ी म गोठियावत सुनीस त हमन ल साबरमती आश्रम के निकलत ले छोड़बे नइ करीस. हमन बताएन आज संझा हमर मन के साहित्यिक कार्यक्रम हे, संग म चल, त वो ह अभी सांझ के मोर लहुटे के रिजर्वेशन हे कहिके चल दिस.

    साबरमती आश्रम के दर्शन कर के आए के बाद होटल म मंझनिया खाना खाएन अउ अपन अपन कुरिया म आराम करेन. संझौती तीन बजे  उठेन तहाँ ले चाय नाश्ता के बाद 4 बजे कार्यक्रम स्थल कवि दादूराम हवेली पहुँच गेन. उहाँ साहित्य अकादमी के अधिकारी मन जेन मुंबई ले आए रिहिन हें, हमन के परिचय गुजराती साहित्यकार मन ले कराइन, जेन उहाँ प्रतिभागी बनके अउ कार्यक्रम सुने खातिर घलो जुरियाए रिहिन हें. 

   कार्यक्रम अपन गरिमा अउ उद्देश्य ल पूरा करत संपन्न होइस. मुंबई ले पहुंचे साहित्य अकादमी के अधिकारी मन छत्तीसगढ़ ले गे हम पांचों झन के प्रस्तुति ले बहुत प्रभावित होइन. आगू अउ अइसन आयोजन म संघारे खातिर हमन के संपर्क नंबर लेइन.

   संगोष्ठी कार्यक्रम ले लहुटत अउ खा पी के सूतत रतिहा के 11-12 बजगे. फेर बिहनिया उठेन नित्य कर्म के पाछू चाय नाश्ता, तहाँ ले रायपुर लहुटे के तैयारी. अहमदाबाद ले मुंबई के उड़ान अउ फेर मुंबई ले रायपुर के उड़ान. 9 अक्टूबर के रतिहा अपन अपन घर पहुँच के थिराएन. ए साहित्यिक हवाई उड़ान यात्रा सदा दिन सुरता म रइही. ए सेती नहीं के हवाई जहाज म गेन, ए सेती के छत्तीसगढ़ ले बाहिर पहिली बार भारत सरकार द्वारा आयोजित कार्यक्रम म शामिल होए के सौभाग्य मिलिस.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो./व्हा. 9826992811

यात्रा वृतांत-साहित्यकार मन के गिरौदपुरी धाम यात्रा..


 यात्रा वृतांत-साहित्यकार मन के गिरौदपुरी धाम यात्रा..

    हमर महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म धर्म उपदेश देवत "मनखे-मनखे एक बरोबर" के जयघोष करइया गुरु घासीदास बाबा जी के जन्म भूमि, कर्म भूमि अउ तपो भूमि के दर्शन करे के अबड़ दिन के साध रिहिसे. फेर ए साध ह तब पूरा होइस, जब 2 अगस्त 2015 दिन इतवार के अखिल भारतीय गुरु घासीदास साहित्य अकादमी अउ मिनी माता फाउंडेशन द्वारा रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार मनला गिरौदपुरी के जन्म अउ कर्म भूमि,  तप भूमि छाता पहाड़ अउ पंचकुंड यात्रा के संगे-संग माता शबरी के धाम शिवरीनारायण के घलो एक संग दर्शन करवाए गिस. 

   साहित्यकार मन के ए आध्यात्मिक यात्रा म छत्तीसगढ़ राज्य के पूर्व मुख्य निर्वाचन आयुक्त साहित्यकार डा. सुशील त्रिवेदी, सद्भावना दर्पण के संपादक साहित्यकार गिरीश पंकज, सृजन गाथा डाट काम के संपादक जयप्रकाश मानस, डा. सुधीर शर्मा, अजय किरण अवस्थी, सुशील भोले, प्रवीण गोधेजा, मुकेश वर्मा के संगे-संग यात्रा के आयोजन संस्था डहर ले डा. जे.आर. सोनी अउ रामस्वरूप टंडन जी शामिल रहिन. 

    ए बात ल तो आज सबो जानत हें, वर्णव्यवस्था अउ मूर्ति पूजा के नांव म ए देश म जब भेदभाव अउ अत्याचार अपन चरम म पहुंचत गिस, तब कतकों महात्मा अउ गुरु मन पीड़ित वर्ग के उत्थान खातिर जबर अभियान चलाए रिहिन हें. ए रद्दा म गौमत बुद्ध, गुरु नानक देव ले लेके कबीर दास जी जइसे महान विचारक अउ समाज सुधारक मन सामाजिक अउ धार्मिक जागरण कर के पीड़ित वर्ग के लोगन ल आध्यात्मिक अउ सामाजिक ताकत देइन. अइसने हमर छत्तीसगढ़ राज म गुरु घासीदास जी ह सतपुरूष के उपासना करत शोषित पीड़ित अउ उपेक्षित लोगन ल एकफेंट कर के सामाजिक उत्थान के जबर बुता करे रिहिन हें.

  गुरु घासीदास जी के जनम के संबंध म जेन जानकारी मिलथे, वोमा सबले जादा प्रमाणित शासकीय तौर म लिखे गजेटियर ल माने जाथे. सन् 1993 म लिखे गे रायपुर जिला के गजेटियर के अनुसार गुरु घासीदास जी के जनम अगहन पूर्णिमा दिन सोमवार 18 दिसंबर 1756 ई. के एक कृषक परिवार म ग्राम गिरौदपुरी जिला -रायपुर (अब बलौदाबाजार) म होए रिहिसे. घासीदास जी के पूर्वज पवित्र दास जी संपन्न किसान रिहिन. पवित्र दास ले मेदिनी दास, दुकालु दास, सगुन दास, मंहगु दास अउ फेर घासीदास जी होइन. घासीदास जी के पीढ़ी ल 1756 ले 1850 तक माने गे हे. घासीदास जी के बिहाव सिरपुर निवासी किसान अंजोरी दास जी के बेटी सफुरा संग नान्हेपन म होगे रिहिसे. उंकर चार बेटा अउ एक बेटी होइन. बेटा म अमरदास, बालकदास, आगरदास अउ अड़गढ़िया दास होइन. बेटी के नांव सुभद्रा बाई रिहिस, जेकर बिहाव बिलासपुर जिला के गाँव कुटेला म होए रिहिसे.

   हमन 2 अगस्त'15 के बिहनिया 9 बजे रायपुर ले निकलेन. डा. जे.आर. सोनी जी हमन ल रस्ता म जावत खानी बतावत रिहिन हें, रायपुर ले सीधा गिरौदपुरी जाबो. पहिली जन्मभूमि के दर्शन करबो, फेर कर्मभूमि जाबो. उहाँ कुतुबमीनार ले भी ऊंचा जेन जैतखाम बने हे, वो सबला देखत फेर दुसरइया जुवर बाबा जी के तपोभूमि छाता पहाड़ जाबो तहाँ ले उहिच डहर ले बार नवापारा अभ्यारण होवत  वापिस रायपुर आ जाबो.

    हमर मन के गिरौदपुरी के पहुंचत ले मंझनिया के 12 बजगे राहय. उहाँ गेन त पता चलिस के जन्मभूमि तक बड़का गाड़ी मन नइ जा सकय, तेकर सेती रेंगत जाए बर लागही. अगस्त के महीना माने पानी-बादर के दिन. रेंगत गेन त गली म पानी रेंगे के चिनहा दिखत राहय. जन्मभूमि जगा पहुंचेन, त वोकर आगू म एक चौंरा असन बने रिहिसे, जेमा एक जैतखाम अउ एक बोर्ड गड़े रिहिसे. बोर्ड म गुरु घासीदास जन्म स्थान लिखाय रिहिसे. हमन ल लागिस के इही जन्मस्थान आय. तब सोनी जी बताइन, ए ह जन्मस्थान वाले घर के बाहरी भाग आय. एदे जेन घर दिखत हे न वोकर अंदर हे जन्मस्थान ह. काहत हमन ल घर के भीतर लेगिन. उहाँ घर के भीतर एक झन नोनी भर राहय, जे ह जेवन बनावत राहय. हमन ल उहाँ आए देखिस त वो नोनी ह बाबाजी जिहां जन्म लिए हें, वो कुरिया म लेगिस. वो छोटे असन कुरिया म एक अखंड जोत जलत रिहिस. उही जगा एक कुर्सी म सादा कपड़ा ऊपर खड़ाऊ माढ़े रिहिसे. हमन वोकर दर्शन पैलगी करेन. तहाँ ले कर्मभूमि जाए खातिर निकल गेन.

    कर्मभूमि स्थल पहुंचेन, त लागिस, कोनो बड़का तीरथ-बरत म आगे हावन. जन्मभूमि अउ कर्मभूमि स्थल के विकास म अतेक अंतर कइसे हे? त सोनी जी बताइन, जन्मभूमि के देखरेख अउ सबो व्यवस्था ल उही घर वाला मन ही बिना ककरो सहयोग के खुदे करथें. जबकि इहाँ कर्मभूमि म एक ट्रस्ट हे जेन ह एकर देखभाल अउ विकास के काम करथे. तेकर सेती दूनों जगा के विकास म अतका अंतर दिखत हे. उन कहिन, फेर हमन कोशिश करत हवन के जन्मभूमि के देखभाल घलो एकाद समिति या ट्रस्ट के माध्यम ले हो जाय, तेमा उहू स्थान के गरिमामय विकास हो सकय. (ए लेख संग संलग्न जम्मो फोटो उही दिन के खींचे आय).

    सोनी जी के मार्गदर्शन म हमन कर्मभूमि ल अच्छा से देखेन-घूमेन, बाबा जी के आशीष लेन. तब फेर नवा-नवा बने विशाल जैतखंभ देखे बर गेन. तब वोकर विधिवत उद्घाटन नइ हो पाए रिहिसे, तेकर सेती उहाँ कोनो ल जाए के अनुमति नइ रिहिसे. तब सोनी जी उहाँ के व्यवस्था देखइया मन ल बताइन के, ए मन सब रायपुर के वरिष्ठ साहित्यकार आंय, हमन इनला विशेष रूप ले इहाँ के दर्शन कराए खातिर ही लाने हावन. त फेर सिरिफ हमन ल ही विशाल जैतखंभ म जावन दिन. जैतखंभ म ऊपर चढ़े खातिर लिफ्ट तो लगे रिहिसे, फेर उद्घाटन नइ होए के सेती वो ह चलत नइ रिहिसे. त फेर हमन दर्शन करे बर आए हावन त वोकर महत्व तो रेंगत जवई म ही हे, काहत रेंगत ही पूरा ऊपर तक चढ़ेन.

   जैतखंभ के नीचे उतरत ले बनेच बेरा होगे राहय, त सोनी जी कहिथें- चलौ पहिली कोनो जगा जेवन कर लिए जाय, तेकर पाछू फेर आगू के रद्दा धरबोन. वोमन बताइन के इहाँ ले बस थोरके दुरिहा म महानदी के पुलिया हे, जेन ह बलौदाबाजार अउ जांजगीर जिला ल जोड़थे, उही जगा बढ़िया असन ढाबा हे, तिहां चलथन. 

   ढाबा म जेवन करत बेरा पता चलिस के ए पुलिया के वो पार तो शिवरीनारायण हे. त डा. सुशील त्रिवेदी जी कहिन, अरे अतेक लकठा आगे हावन त चलौ शबरी माता के ठउर के घलो दर्शन कर लेथन. 

     सबो झन हां म हां मिलाएन तहां ले शिवरीनारायण चल दिएन. उंहो बने देखेन किंदरेन. मैं पहिली घलो उहाँ गे रेहेंव, फेर मंदिर के भीतर गर्भगृह म नइ जा पाए रेहेंव. इहू बखत जब हमन उहाँ गेन त उहाँ के पुजारी मन गर्भगृह के भीतर जाए के कोनो ल अनुमति नइहे किहिस. फेर जब उनला बताए गिस के एमन सब रायपुर के साहित्यकार आंय, संग म छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त रहे डा. सुशील त्रिवेदी जी घलो संग म हें, त फेर मुख्य पुजारी ह खुदे हमन ल भीतर लेगिस. उहाँ पहिली बार देखे बर मिलिस के भगवान शिवरीनारायण के पांव के नीचे म जलधारा प्रवाहित हे. पुजारी बताइस, के ए ह महानदी आय भगवान के चरण पखारे खातिर ए जगा स्वयं प्रकट होए हे.

   बेरा बनेच होए ले धर ले रिहिसे. सोनी जी कहिन के जल्दी चले बर लागही, काबर ते बाबा जी के तपोभूमि छाता पहाड़ ह बनेच दुरिहा हे. फेर उहाँ आप सबो साहित्यकार मन के आज के यात्रा अउ बाबा घासीदास जी के संबंध म वक्तव्य घलो लेना हे. असल म हमर मनके ए पूरा यात्रा के मिनीमाता फाउंडेशन द्वारा विडियो रिकार्डिंग करे जावत रिहिसे.

   हमन ल छाता पहाड़ के पहुंचत ले बनेच बेरा होगे रिहिसे, तभो बेरा बूड़े बर अभी बहुत जुवर बांचे रिहिसे. सोनाखान क्षेत्र के अंतर्गत अवइया ए ठउर म हमन ल आत्मिक शांति के अद्भुत अहसास होइस. छाता पहाड़ के दर्शन परिक्रमा करे के पाछू हमन वो पांच कुंड मनला देखे बर गेन, जेकर जल ल देके बाबाजी ह शारीरिक मानसिक असाध्य रोग ले ग्रसित लोगन ल उंकर ले मुक्ति देवावत रिहन हें. 

  मुंधियार होए असन होए ले धरिस, तब उही जगा के चातर जगा म हमन ल बइठार  के वो दिन के यात्रा अउ अनुभव के वक्तव्य रामशरण टंडन जी एंकर के रूप म लिन. सबो झन अपन- अपन अनुभव के बात बताइन. महूं अपन बात राखेंव, संग म मिनीमाता अउ छत्तीसगढ़ महतारी के बीच सामंजस्य स्थापित करत अपन एक गीत घलो सुनाएंव-

मोतियन चंउक पुराएंव जोहार दाई

डेहरी म दीया ल जलाएंव जोहार दाई

छत्तीसगढ़ महतारी परघाए बर

अंगना म आसन बिछाएंव...

   ए गाना ल सुने के बाद डा. त्रिवेदी जी मोला कहिन- सुशील आज के तो तैं ह मंच ल लूट लिए रे.

   दिन बुड़े ले धर ले रिहिसे तइसने हमन रायपुर वापसी खातिर निकलेन. आवत- आवत मन म ए चार लाईन गूंजे लागिस-

गुरु बाबा के कहना हे- मनखे-मनखे एक समान

सतमारग अउ सत बानी ले ही आही नवा बिहान

सब सिरजे हें एक जोति ले इहीच हमर पहचान

ऊंच नीच के भेद करत करथौ कइसे फेर अभिमान

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811


चरडबिया गाड़ी के मजा..

 यात्रा वृतांत-सुरता//

चरडबिया गाड़ी के मजा..

   हमर देश म 16 अप्रैल 1853 के सबले पहिली रेल गाड़ी मुंबई अउ ठाणे के बीच 33.8 कि. मी. के दूरी ल 57 मिनट म पूरा करे रिहिस हे. उही दिन ह इहाँ के इतिहास म रेलगाड़ी के शुरुआत के दिन के रूप म शामिल होगे. तब ले चालू होए सफर ह आज पौने दू सौ साल अकन के अपन बड़का यात्रा ल पूरा करत कतकों हजारों किमी के लंबाई म विस्तारित होगे हवय. भाप इंजन ले डीजल इंजन अउ फेर बिजली इंजन के रूप म गौरव गाथा गावत हे. आज हमर देश के अइसन कोनो राज्य या क्षेत्र नइहे जिहां रेल के पहुँच नइ हो सके होही, अइसे कहे जाय. तभो ले आजो कुछ अइसन लोगन मिल जाथें, जे ए कहिथें के हमन अभी तक रेलगाड़ी के सवारी नइ करे हन, त बड़ा अलकर लागथे. एकदम पहुँच विहीन जगा के लोगन के मुंह ले अइसन सुनई ह एक बखत पतियाए असन लाग घलो जथे. फेर कोनों पढ़े लिखे, नौकरी पेशा मनखे जे शहर असन जगा म राहत होवय, उंकर मुंह ले अइसन गोठ के सुनई ह मुंह फार के देखे के छोड़ अउ कुछु असन नइ लागय.

   बात 2014-15 के आय. छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के जिला सम्मेलन जिला मुख्यालय गरियाबंद म होवत रिहिसे. तब के अध्यक्ष दानेश्वर शर्मा जी के नेवतई म हमन कविता पाठ खातिर उहाँ पहुंचे रेहेन. कवि सम्मेलन के संचालन मुकुंद कौशल जी करत रिहिन हें. मंच म मोर बगल म उही क्षेत्र के एक नवा कवयित्री रीता जी बइठे रिहिन हें. वो मोर जगा पूछिस- सर, आपमन रायपुर म रहिथव त रेलगाड़ी म अबड़ चढ़त होहू ना? मैं हां कहेंव. त वो बताइस- मैं दुरिहा ले देखे तो हंव, फेर अभी तक चढ़े के मौका नइ मिल पाए हे. मैं वोला कहेंव- ये कार्यक्रम ल झरन दे. मंच ले उतरे के बाद गोठियाबो.

  कार्यक्रम के झरे के बाद वो मोला कहिस- सर जी, इहें मोर भाई घलो रहिथे. तीरेच के एक गाँव म शिक्षक हे. मैं रात के उहें रइहू. आपो मन रुक जावव न. इही बहाना मैं गरियाबंद के तीरेच म बिराजे भकुर्रा (भूतेश्वर) महादेव के दरस करे करे के मनसुभा बनावत हव कहि देंव. रतिहा म उंकर घर फेर रेलगाड़ी ऊपर चर्चा होइस. त वोला बताएंव- अभी भिलाई म छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के प्रदेश स्तरीय वार्षिक जलसा होवइया हे. तैं वो दिन रायपुर म मोर घर आ जाबे. मैं तोला रायपुर ले भिलाई तक के यात्रा ल रेलगाड़ी म करवा दुहूं. वो हव सर कहिके, तुरते तैयार होगे. वइसे तो मैं दुरुग भिलाई जब कभू जावंव त सड़क के रद्दा जावंव. फेर वो दिन वो नोनी के रेलगाड़ी म बइठे के साध पूरा करे खातिर रेलगाड़ी म भिलाई गेंव.

   जिहां तक मोर बात हे, त मैं तो नानपन ले रेलगाड़ी के मजा लेवत हंव. काबर ते हमर गाँव नगरगांव ह दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे के अन्तर्गत मुंबई हावड़ा मार्ग म हावय. पहिली हमन भाठापारा म राहत रेहेन त सिलयारी स्टेशन ले रेलगाड़ी चढ़-उतर के आवन-जावन. बाद म हमर सियान के बदली भाठापारा ले रायपुर होगे, त मांढर रेलवे स्टेशन ले रायपुर आना-जाना होवय. चाहे सिलयारी स्टेशन ले उतर के आ, चाहे मांढर स्टेशन ले जा हमर गाँव ह दूनों जगा ले एकेच कोस परथे.

  रायपुर म आए के बाद जब गाँव जावन त वो बखत मांढर ले रायपुर के टिकिट किराया 30 पइसा लागय अउ कुल 12 मिनट के सफर म रायपुर ले मांढर पहुँच जावत रेहेन. मांढर म उतरन अउ रेलवाही के तीरे-तीर बरबंदा फाटक तीर जावन, उहाँ ले गिधौरी के बस्ती होवत नगरगांव पहुंचन. 

   हमर गाँव के तीर ले कोलहान नरवा बोहाथे. वोमा रेलगाड़ी नाहके खातिर जबर पुलिया बने हे. वोकर बाजूच म एक अउ पुलिया हे, जेला हम सब बंगाली पुलिया के नांव ले जानथन. ए पुलिया के नांव बंगाली पुलिया कइसे परिस? एकर संबंध म हमर बबा बतावय- जब ए मुंबई हावड़ा रेल लाईन बनत रिहिसे, तब ए पुलिया ह घेरी-भेरी भरभरा के गिर जावय. 

  वो पुलिया के निर्माण कारज एक बंगाली इंजीनियर के देखरेख म होवत रिहिसे. पुलिया के बार बार गिरई म वो हलाकान होगे रिहिसे. तब एक रतिहा वोला सपना आइस के, उहिच तीर म बोहरही दाई के ठउर हे, तेकरे आसपास म एक मंदिर के निर्माण करवा तब वो पुलिया ह पूरा बन पाही. बंगाली इंजीनियर ह सपना के बात ल मान के बोहरही दाई के जेवनी मुड़ा म थोरिक दुरिहा म एक शिव जी के मंदिर बनवाइस. तब जाके वो पुलिया के निर्माण कारज ह सिध पर पाइस. अउ फेर उही बंगाली इंजीनियर के सुरता म वो पुलिया के नांव बंगाली पुलिया परगे. 

    वो बखत बिहनिया जुवर जेन लोकल गाड़ी आवय, वो ह दुर्ग ले मांढर तक ही चलय. मांढर ले फेर वापस लहुट जावय. अब तो ये गाड़ी ह एती डोंगरगढ़ तक बाढ़गे हे, अउ वोती कोरबा तक. तब ए लोकल गाड़ी ल "चरडबिया गाड़ी" काहन, काबर ते वोमा मुड़ी के छोड़ चारेच ठन डब्बा राहय.

   हमर ए मुंबई हावड़ा लाईन म जतका गाड़ी आथे सब बड़े लाईन वाला आय. फेर छोटे लाईन के गाड़ी म चघे के घलो जबर मजा आवय. एक तो रायपुर ले राजिम जावय, तेमा सिरिफ सउंख खातिर चढ़ परन. फेर एक बार के छोटे लाईन के गाड़ी म चघे के जबर सुरता हे.

  तब मैं आईटीआई म रेहेंव. उहाँ हर बछर खेलकूद प्रतियोगिता होवय. वोमा जेन मन पोठ प्रदर्शन करयं वोकर मन के चयन प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता खातिर होवय. मोर स्कूली बेरा ले ही कबड्डी अउ बालीबाल के खेलई म चयन होवत राहय. आईटीआई म घलो प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिता खातिर मोर चयन होगे. ए प्रतियोगिता ल जबलपुर म होना राहय. 

  हम सबो प्रतिभागी मनला जबलपुर लेगे-लाने के जवाबदारी उहाँ एक खत्री सर रिहिसे, तेन ल सौंपे गिस. वो ह सब लइका मन संग बइठ के जोंगिस के जबलपुर हमन गोंदिया-बालाघाट होवत जाबो अउ लहुटती म बिलासपुर डहार ले आबो. सबो लइका वोकर बात म सहमत होगेन.

   निश्चित तिथि म रायपुर ले बड़े लाईन वाले गाड़ी म चढ़के गोंदिया पहुंचेन. तहाँ ले उहाँ ले गाड़ी बदलेन. उहाँ देखेन ते छोटे लाईन वाले 'धकपकहा गाड़ी'. ए ह छोटे लाईन वाले गाड़ी म चढ़े के जबर अनुभव रिहिसे. वइसे तो रायपुर ले राजिम वाले गाड़ी म चढ़े रेहेन, फेर ए दूनों के अनुभव म भारी अंतर. रायपुर ले राजिम वाले रद्दा ह मैदानी भाग म होए के सेती वतेक जीवलेवा नइ रिहिसे, जतका गोंदिया वाले रद्दा ह  रिहिसे.

   गोंदिया ले बालाघाट तक तो अलवा-जलवा बनेच रेंगिस. फेर जइसे उहाँ ले आगू बढ़ेन अउ डोंगरी-पहाड़ मन के बीच म हबरेन तहाँ ले वो सफर ह मुड़पीरवा असन लागे लागिस. वो जगा के पहुंचत ले बेरा पंगपंगाए असन होगे राहय, त हमन गाड़ी ले उतर के रेंगत जावन तभो ले गाड़ी ले अगुवा जावन. तहाँ ले फेर कोन जगा बइठ के सुरतावन. गाड़ी जब हमर मन जगा आ जावय त फेर वोमा बइठन. वो गाड़ी ह भाप इंजन म चलय, तेकर सेती जगा-जगा वोमा पानी भरे खातिर जुगाड़ लगे राहय. हमन गाड़ी के दंतनिपोरई के सेती उही पानी भरे के जगा मन म दतवन-मंजन अउ नहाना-धोना घलो कर डारे राहन. वो दिन तो अतिच होगे रिहिसे. हमन ल लेगइया खत्री सर ल अबड़ गारी देवन. बाद म पता चलिस, के खत्री सर के ससुरार गोंदिया म रिहिसे तेकर सेती वो ह उहाँ थोकन बिलमे खातिर अइसन जाए के रद्दा जोंगे रिहिसे. सही म जब हमन गोंदिया म गाड़ी बदले खातिर रगड़ के तीन-चार घंटा स्टेशन म बइठे रेहेन, तब तक खत्री सर ससुरारी मान के लहुट आए रिहिसे.

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

रोचक प्रसंग- सुशील भोले

 


रोचक प्रसंग- सुशील भोले

'का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' अउ ओकर पाछू के दर्शन...

    छत्तीसगढ़ी गीत-संगीत के मयारुक मन सुप्रसिद्ध गायक रहे केदार यादव के गाये ए लोकप्रिय गीत- "का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल, तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते- रेंगत आंखी मार दिए ना..." 

   एला जरूर सुने होहीं अउ घनघोर सिंगारिक गीत के सुरता करत मन भर मुसकाए होहीं. फेर ए गीत के रचयिता लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी एला का कल्पना कर के कइसन संदर्भ म लिखे रिहिन हें. एला जानहू, त परमानंद जी के कल्पना अउ ओकर गहराई के कायल हो जाहू.

    बात सन् 1989-90 के आय. तब मैं छत्तीसगढ़ी मासिक पत्रिका 'मयारु माटी' के प्रकाशन-संपादन करत रेहेंव. एक दिन रायगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ. बलदेव जी के मोर जगा सोर पहुंचिस के हमन लोककवि बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' जी संग भेंट करे बर रायपुर आवत हन. तहूं तइयार रहिबे. काबर ते हमन वोकर घर ल देखे नइ अन, तहीं हमन ल वोकर घर लेगबे. 

   निश्चित दिन 9 जनवरी 1990 के डाॅ. बलदेव जी रायगढ़ के ही एक अउ साहित्यकार रामलाल निषादराज जी संग रायपुर पहुँचगें. इहाँ रायपुर म आकाशवाणी म कार्यरत खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं उंकर संग संघर गेंन. मोर बचपन रायपुर के कंकालीपारा, अमीनपारा आदि म ही बीते हे, तेकर सेती परमानंद जी के महामाई पारा वाले घर मैं कतकों बेर गे रेहेंव. 

     सबो साहित्यकार मनला लेके परमानंद जी के घर गेन. उहाँ आदर-सत्कार अउ चिन-चिन्हार के बाद साहित्यिक गोठ-बात चालू होइस. सब तो बढ़िया चलत रिहिस. तभे डाॅ. बलदेव जी थोक मुस्कावत, मजा ले असन पूछ परिन- 'परमानंद जी! का तैं मोला मोहनी डार दिए गोंदा फूल' जइसन गीत ल आप कब लिखे रेहेव?

   तब परमानंद जी डाॅ. बलदेव के मनसा भरम ल टमड़ डारिन, अउ घर के दुवारी कोती ल झांक के आरो दिन- 'ए गियां आ तो..' उंकर बुलउवा म एक चउदा-पंदरा बछर के चंदा बरोबर सुग्घर नोनी ओकर आगू म आके ठाढ़ होगे, अउ कहिस- 'काये बबा' तब परमानंद जी अपन उही नतनीन डहर इसारा करत कहिन- 'इही वो गियां आय. जे दिन ए ह ए धरती म आइस, उही दिन ए गीत ल लिखे रेहेंव. 'तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती, रेंगते-रेंगत आंखी मार दिए गोंदा फूल'. 

   वो नोनी छी: बबा कहिके घर म खुसरगे. तब परमानंद जी के निरमल हांसी घर-अंगना के संगे-संग हमरो मनके चेहरा म बगर गेइस. उन कहिन- 'डाॅक्टर साहेब, कवि के जाए के बेरा होवत हे, अउ आगू म उन्मत्त प्रकृति हे, उद्दाम कविता के रूप म दंग-दंग ले खड़ा हो गिस.'

     घनघोर सिंगारिक गीत कस लागत ए रचना के मूल म कतका निर्दोष अउ उज्जवल भाव. हमर जइसन आम कवि-लेखक मन के कल्पना ले बाहिर के दृश्य आय. 

    परमानंद जी आगू कहिन- 'नारी सौंदर्य अउ प्रेम बरनन म मैं ह ओकर प्राकृतिक स्वरूप ल जरूर अपनाय हौं, फेर शिथिलता ल कभू स्थान नइ दे हौं... आज तो हमर बड़े कवि मन घलो सीमा लांघ जाथें डाॅक्टर साहेब, सारी-सखा तो बेटी बरोबर होथे, फेर वोकर बरनन म बनेच मजाक होगे हे. शायद उंकर इशारा- ' मोर सारी परम पियारी' जइसन लोकप्रिय सिंगारिक रचना डहर रिहिस.

( ए प्रसंग संग संलग्न चित्र उही दिन के आय, जेमा नीचे म डेरी डहर ले- रामलाल निषादराज, बद्रीबिशाल यदु 'परमानंद' अउ डाॅ. बलदेव. पाछू म खड़े- खगेश्वर प्रसाद यादव अउ मैं सुशील वर्मा 'भोले')

-सुशील भोले

संजय नगर, रायपुर

मो/व्हा. 9826992811

कहानी-किरिया (महेंद्र बघेल)

  

             कहानी-किरिया

                   (महेंद्र बघेल)


देवारी के लक्ठाती म तीन अकड़ के नाॅंगरजोत्ता किसान अघनू हर हरहुना धान ला मिंज-कूट के बेंचे बर सोसायटी मा कई दिन ले खटे रहय। तब खार खाके  तउल बाबा मन ला चहा पानी के चढ़ोतरी चढ़ाइस तेकर पाछू ले देके धान हा तउलाइस। अउ एती सुसायटी बाबू हर मरदनिया के मेछा कटई कस करजा के पइसा ला चुक ले तुरते उड़ा दिस। जीव करलागे फेर उधारी ल तो पटायेच ल परही..। 

             साॅंझ के पाॅंच बजगे रहय ,घर जाय बर अघनू हर सायकल मा चढ़िस अउ पायडिल ला ओंटत ओंटत मनेमन मा गुंताड़ा करे लगिस- "हाथ मा एक टिकली नइहे।अब तिहार बार ला मनाॅंय ते मनाॅंय कइसे जाय, ऊपर ले दवई बूटी वाले मन के तगादा।" कई ठन बात मगज म आवत गीस जावत गीस। इही सोचत सोचत घर अमरत ले मुॅंधियार होगे रहय। रातकुन अघनू हर खा-पी के सुतगे, फेर नींद परे तब ,कतरो अलथी-कलथी मारिस।मगज मा घेरी बेरी उही बात आय उही बात जाय, चिंता फिकर मा ऑंखी कब लटकिस गम नी मिलिस।

     "चिंता फिकर म आदमी जब समाधान खोजे म असहाय हो जथे तब विवेक ह घलव ओधियाये बर धरथे, उही समे कहूॅं टपले हिम्मत के पूछी धरागे तब तो बात बन जथे, नइते अनहोनी हा मेर्री मारके तो बइठेच रहिथे धीरज ला डसे बर।"

      अघनू के नींद ह उचटिस , वतीक बेर शुकवा हर नइ उवे रहय, दसना मा फेर ढलंग गय अउ सुते-सुते पहुॅंचगे सोच के दुनिया मा।         बीते बाॅंवत-बियासी, रोपई-निंदई के सुरता करत मने मन मा गुने लगिस -  "खार मा तीन अकड़ खेत हावय तो जरूर  फेर कोठी मा एको दाना बीजा नइहे।प्राभेट कंपनी के बीज-भात के जरवत ले जादा माहॅंगी होय के सेती यहू साल सुसायटी ले सरोना अउ एक हजार दस के बीजहा धान  बिसाना पड़िस। का करबे कते साहेब के छाॅंव परे रिहिस ते सरोना हा एको बीजा जागबे नइ करिस, एक हजार दस हर आधा जागबे करिस ता साॅंवा, बदॅंउर, करगा अउ राहड़ा के मारे खेत बिल्लागे। खेत निंदवावत- निंदवावत कनिहा ढिल्ला परगे। सरकारी बीजा के चक्कर मा चार सौ बीसी के शिकार तो होइ गेंव।"

        अघनू ह बीजा ह बने नइ जामे हे कहिके खेत ल मौका म देखे बर कृषि विकास विस्तार अधिकारी ल कई बेर शिकायत करिस, कलोली करिस। साहेब मन आज आहूॅं,काली आहूॅं कहि कहिके समय पहा दिन फेर आबे नइ करिन।अबीजहा धान के  सेती बड़ उपाय करिस अघनू हर, खेत म फेर बोंवाई करवाय बर गांव मा घरोघर जा-जाके धान खोजिस। एक दाना बीजहा धान नइ मिलिस, कलप के रहिगें अघनू हर। ले देके पता  चलिस कि परोसी गाॅंव धनगाॅंव मा दाऊ धन्ना सिंग के खेत म थरहा हवय। जेन नापडंगनी के हिसाब मा बेचावत हे, सुनके भरपूर ठंडा साॅंस लिस।

           अघनू हर बड़े बिहनिया ले साइकिल म निकलगे धनगाॅंव अउ पहुॅंचगे दाऊ के दुवारी मा। परछी मा सीजर धूॅंकत आधा सुते अउ आधा बइठे बरोबर दिखत रहय धन्ना सिंग ह।हुरहा देखके अकचकागे अगनू ह ,येहा न तो खटिया हरे न कुरसी, सइत दूनो के बीच वाले कोई जिनिस होही टू इन वन कस। पुरखा सियान मन तो कभू बइठारे नइ रिहिन अरामी कुरसी मा। त काला जानही अघनू ह अरामी कुरसी के मजा ला ।

      जै जोहार करत अघनू हा किहिस - "राम राम दाऊ जी, सुने हॅंव कि आप मन के खेत मा धान के थरहा बाचे हे। जेन ल बेचइया हव । ओकरे खबर मिलिस, तब पता लगाय बर आय हॅंव।"

     अगनू के गोठबात ला सुनके दाऊ ला अतका  समझ तो आगे रिहिस कि  अघनू हा मजबूरी मा फॅंसे हवय तभे इहाॅं आय हे।

        अरामी कुरसी मा जेदर्रा सांप कस कसमसात दाऊ हा कहिस - "हव, सही बात तो आय ,थरहा ला तो बेचनाच हवय। कतिक लगही तेला जल्दी  बता डार, तुहरे सही कई झन थरहा पुछइया मन सॅंझा बिहने हर रोज अब्बड़ आवत हें।"

            आफत मा फॅंसे मनखे के संग कइसे सुवारथ ला साधना हे कोई इकरे ले पूछे। काबर इही काम हर तो इकर पुरखौती धंधा पानी हरे।

     ऑंय-बाॅंय,बजार ले दू गुना उप्पर बढ़ा चढ़ा के भाव ल बताइस, सुनके अघनू कट्ट खागे।आखिर करे ते करे का, पाछू हटे मा खेत परिया लहुट जही, किसान के काम तो बस माटी के सेवा बजाना हे, जुआ खेले बरोबर।बस इही सोचत-सोचत दाऊ कर ले दू अकड़ खेत के पुरतीन थरहा बिसा डरिस। आधा थोरहा पैसा ल तुरत जमा कर दिस अउ आधा पैसा ल धान लुवे के बाद म जमा करे बर खॅंधो डरिस।

       बिहान दिन थरहा उखाने बर बनिहार लगाइस। गाड़ा-बइला मा डोहारे बर बनिहार, रोपा लगाय बर बनिहार लगाइस। तब चार पाॅंच दिन मा लटपट सबो खेत के रोपई बुता हर उरकिस। रोपा लगई के बुता हर एके झन के बस के बात तो नोहे। 

   सरकारी अबिजहा धान के सेती किसान ल कतिक चितखान अउ जेब ढिल्ला करना पड़थे,तेकर गम ला अगनू जइसे किसानेच मन ह जान सकथें।

       जे जगा म किसान मन ल बेरा-बेरा म सहयोग-सुझाव के दरकार रहिथे। उहां के घलव अकथ कहानी हे।देख कतका गोरा नारा हे अधिकारी सुराज प्रसाद हर ,फकफक ले ओग्गर, चक सादा कार मा चढ़के आथे, कारे मा चढ़के जाथे। गोटारन कस लाल-लाल ऑंखी अउ बाटा हर भरनाहा भरनाहा कस अइसे दिखत रहिथे मानो लहरलोट होके आय हे का । चौबीस घंटा संग म रखे बाटल ल देख के लगथे कि बाटल म पानी कस दिखत पदारथ ह मिनरल वाटर आय ते कुवाटर आय।

         इही जिला कृषि विभाग के सबले बड़े अधिकारी,जेकर डमडम ले गुदुम कस तनाय पेट अउ लाल बंगाला कस ललमुॅंहा चेहरा ल देखके भुरभुस जनाय ल धरथे। कहुं येकर बउग म सरकारी योजना के नेवती रसा ह खमस मींझरा तो नइ होगे हे। 

        साहेब सुराज प्रसाद अउ धनगाॅंव के दाऊ धन्ना सिंग दूनो के बनेच मितानी हे, फेवीक्वीक के मजबत जोड़ कस।काबर दूनो झन ह कृषि यूनिवर्सिटी मा सॅंघरा पढ़े-लिखे हवॅंय।ये दूनो मितान मन दाऊ लाला घर के लल्ला ऑंय, तेकर सेती बड़ संस्कारी होय मा संदेह करना उचित नइहे।जानकार मन बताथें कि दूनो के पूर्वज मन के नेरवा ह इहाॅं नइ गड़े हे।आजादी के तुरते बाद म इनकर पुरखा मन इहाॅं पुलिस के नौकरी करे बर आइन। अउ इहाॅं के चातर भुइयाॅं म फसल अपन लहलहाइन। तभे तो उॅंकर विस्तार मन आज घलव फलत-फूलत हें अउ पेज-पसिया धरके चरपा के चरपा लुवतहें।

    घर परिवार के मनखे मन के बड़े बड़े-बड़े पद मा रहे के लाभ तो बाकी रिश्तेदार मन ला परसाद मा आखिर मिलथेच न। आजादी के फसल ला टुटपूॅंजिया मन हर थोरे लुही, उॅंकर बर तो हर जगा इंटरव्यू के काटा गड़े हे। अउ बड़पूॅंजिया मन बर का इंटरव्यू ? जब उहाॅं उकर कका भैया मन पैनल मा मेर्री मार के बइठे हें। तब का आनलाइन अउ का पारदर्शिता।

           जनता ल चश्मा लगाना नइ पड़े ओकर ऑंखी म तो सबो चीज ह झल-झल ले दिखी जथे। वो अलग बात हे उंकर मुहुं ले कभू बक्का नइ फूटे ते।बस इही भाईचारा ले कालेज के पढ़ई ले अधिकारी बनई तक के सफर ला तय कर लेना उनकर बर कोई अनहोनी घटना नोहे। उही पहुॅंच अउ पहचान वाले कुल परम्परा के मान-सम्मान ल राखत सुराज प्रसाद हर आज जिला के कृषि अधिकारी पद मा शोभायमान हे।

     नैतिकता ,नियम कानून  जइसन शब्द ला छेरी कस चरे के अइसन प्राणी मन ला अघोषित पारंपरिक छूट रहिथे।कानून जनइया उकील फुकील मन ह तो घलव इनकर खुदे ममा फुफू के लागमानी आय।त का मजाल हे कि कानून हर इखर कुछू उखाड़ सके।

           अउ एती कहत लागे सौ एकड़ के जोतनदार, अपन ददा के एकलौता सपूत , धनगाॅंव वाले दाऊ धन्ना सिंग, का ककरो ले कम हे। कृषि विभाग म जनपद क्षेत्र (ब्लाक) के बड़े साहेब के  नौकरी पाइस। फेर सबो काम-काज ह उल्टा च पुल्टा।किसानी बुता बर मिले खातू-बीजा अउ दवई ल किसान ल नइ बाॅंट (वितरण) के बेपारी मन कर बेचई-भॅंजई ह ओकर बर चुटकी के काम आय। मजाल हे आफिस के कोनो बाबू-साहेब मन के.. ओला कुछू बोल सके।

          कन्हो मन बोल दॅंय त धमकी-चमकी लगाके मनमाने डरवाय के उदिम करे। मनमाफिक चढ़ोतरी के आगू पत्रकार मन घलव अपन कान म तेल डार के कुंभकरण कस सुत जाॅंय। एती-ओती चारो-कोती कोई हिम्मत नइ करें ओला कुछू कहे के। तेकर सेती सरकारी चीज बस ल सुलटाय बर ओकर हिम्मत ह बाढ़ते गिस। पैसा अउ पहुॅंच के बल म साल-पुट बइमानी अउ चार सौ बीसी ले बाचे के सुगम रस्ता के भरपूर उपयोग करे। धीर लगहा सरकारी ममा-फुफू मन के आशीर्वाद ले शहर म कई ठन पलाट अउ गाॅंव म खेती-खार के रकबा ल घलव बढ़ाते गिस। 

         उही दुवे-तीन साल होत रहिस होही तभे लंबा हाथ मारे के चक्कर म सब गड़बड़ झाला होगे। किसान मन ल बाॅंटे बर मिले स्प्रींकलर पाईप अउ स्प्रेयर ल आफिस म पहुंचे के पहिली बहिरे-बहिर बेपारी मन कर बेच दिस। ये पईंत सब दाॅंव उल्टा परगे। सरकारी समान के चोरी अउ लाखों के गबन मा अइसे धॅंधइस कि नौकरी ले चुक्ता हाथ धोना पड़गे। बाॅंचें के कतको उदीम करिस, ममा-फुफू मन नइ बचा सकिन। हाॅं बइमानी के अनुभो साटिपिकट जरूर मिलिस। फेर उकर बर जुर्माना संग खानगी ला भरके इज्जतदार के पावती ला झटक लेना कोनो मुश्किल काम ए का।नौकरी गीस ते गीस सौ-सौ एकड़ जोतनदार दाऊ के मान सम्मान मा भला का उद जलिस।

    धनगाॅंव के दाऊ धन्नासिंग  के लमचोचवा नाक हा नाक हरे ,कोन्हो भारतीय शेयर बाजार के सूचकांक थोड़े आय जेमा भदरस ले गिर जही।

        यहू साल अघनू ह सुसायटी ले करजा निकालिस तभो ले निंदई, रोपई बर पैसा नी पुर पइस। आखिर म साहूकार ले उॅंचहा ब्याज म पैसा निकालना पड़िस। सही टेम म सुसायटी ले खातू नइ मिलिस , डेव्ढ़ा रेट म बाहिर ले खातू बिसाना परिस। जस-जस समय पहावत गिस, रोपाही खेत म साॅंवा, नरजा, बन-कचरा मन घलव उम्हियावत गिस। येला देख के अघनू के माथा म सॅंशो के लकीर तनागे अउ ओहा चुरमुरा के रहिगे। सरकारी बीज-भात ह अबीजहा तो होइचगे, किसानी थरहा म घलव गंज बन-कचरा के बासा होगे।

          साॅंवा-बदउर जइसे बन-कचरा ले खेत ह परिया झन लहुट जाय। इही सोच-सोच के अघनू ह कनिहा के टेड़गावत ले अपन धरम निभाइस फेर हार नी मानिस।

          भादो के निकलती अउ कुॅंवार के लगती म दूध भराय के टेम म सिरबिस ले आखरी पानी टोर दिस। अघनू ह घेरी-बेरी के निंदई, चलवई, रोपई अउ माहंगी खातू ले अइसने दंदरगे रहिस। उप्पर ले सुक्खा..!धन तो पड़ोसी भाई के नलकूप के सहारा मिलगे, नइते सुक्खा म धारे-धार बोहा जतिस। एती खेत म पानी के पलोती होइस ओती सुबे-शाम झम-झम बादर निकलना शुरू होगे। दिनमान गरमी अउ रातकुन बादर। गरमी के मारे धान-पान ल का कहिबे जीव-जंतु मन के जीना मुसकुल होगे रहिस। कुॅंवार के अनसम्हार बदराहा गरमी ले खेत म माहू झपागे।

     रकम-रकम के उदिम करिस तब कहुं जाके घेरी-बेरी के दवा छिंचई ले हप्ता-पंदरा दिन म कीरा-काॅंटा ले छुटकारा मिलिस।  

            फसल के घेरी-बेरी सेवा-जतन करई ले पइसा ह भला कतिक दिन ले पुर पाही.., हाथ सिरबिस जुच्छा होगे। जुच्छा हाथ ल देख-देख के प्रमाणित बीज के मठराहा घाव ह अउ उपकगे। तेकरे सेती जाॅंच के हाल-चाल जाने बर अघनू ह बलाक आफिस डहर फेर धमक दिस। आफिस के कपाट कर बैठे चपरासी ह तॅंय अभी नइ जा सकस कहिके उही कर रोक दिस। अतिक म अघनू कहिस-" तॅंय मोला काबर रोकथस, मोला शिकायती जाॅंच के बारे म पूछना हे, मोला जावन दे"। तब चपरासी बोलिस-" भीतरी कोति पारटी-सारटी चलत हे, जिला के बड़े साहेब सुराज प्रसाद ह आय हे। अभी अंदर जाना मना हे। आधा घंटा के पाछू आ जबे।"

  चपरासी के बरजई ल सुनके अघनू ह नजीक के लीम छांव म जाके बइठगे।

         उही घंटा-डेड़ घंटा ले बइठे-बइठे असकटा गे रहिस अघनू हर, अउ उनिस न गुनिस सोज्झे खुसरगे आफिस म। तब तक बड़े बाबू ह अपन कुर्सी म बइठगे रहिस।ओकर ले  शिकायती आवेदन के बारे म पूछिस।अतिक म बड़े बाबू ह बतइस कि तोर संग बहुत झन किसान मन के शिकायती कागज ल जिला आफिस म भेजवा डरे हन उही मन जाॅंच करही। उही मन धान ल भेजवाथें, उही मन अबीजहा के कारण ल बता सकथें।

          अघनू ह स्टाफ रूम म बइठे साहेब सुराज प्रसाद के तीर घलव अपन समस्या ल रखिस। साहेब ह का जुवाब ल दीही भला। आजो बस रटे-रुटाय एके ठन जुवाब ल ओरिया दिस- "धीरज रखे रहव, जाॅंच खच्चित होही, सबला न्याय मिलही।" तहाॅं बात खतम..! कुल मिलाके यहू बखत अघनू ह आफिस के असवासन ल सुरता म गॅंठियाके लहुटगे।

           घर लहुटती म अघनू ह दाऊ धन्ना सिंग के थरहा के देनदारी ल चुक्ता करे बर सायकिल के हेंडिल ल धनगांव डहर मोड़ दिस।त दाऊ घर के बाहिर म एक ठन चक सादा कार ह खड़े रहिस।कार ल देखके अइसे लगत रहिस मानो कोई सगा-पहुना आय होही।ऊंखर घर के बहिरी कोन्टा म भलवा बरोबर दिखत सखरी म बॅंधाय झुलपाहा कुकुर ह हुरहा हाॅंव-हाॅंव करिस।अघनू ह लटपट बाचिस नइते कुकुर ह हबक दे रहितिस। हाॅंव-हाॅंव ल सुनके भीतरी डहर ले थोरिक चमकावत टाॅंठ बानी म एक झन चिल्लाइस-ए टाईगर,क्या कर रहा है...? अवाज ल सुनके उनकर टाईगर ह तुरते कलेचुप होगे अउ पूछी ल हलावन लगिस।

             कोन आय हे कहिके आरो लेवत मुनीम ह अइस अउ अघनू ल भीतरी डहर बलाइस। त उहाॅं सुराज प्रसाद अउ धन्ना सिंह दूनो झन गपशप मारत , धुॅंगिया उड़ावत बइठे रहॅंय। "अभी च तो साहेब ह आफिस म बइठे रहिस ,लघियाॅंत धनगाॅंव अमरगे।" -अघनू ह मने मन म इही बात ल सोचत उधारी के पैसा ल जमा करिस अउ अपन गाॅंव लहुटे लगिस।

साॅंझ कुन पाॅंच बजे रहिस होही धनगाॅंव के बजार चौक म अमरे च रहिस त चाय पीये के चुलुक होइस तहान एक ठन होटल के आगू म ठाढ़ होगे। उही होटल म पुराना चिन-पहिचान के एक झन सॅंगवारी शोभा राम ह मिलगे। दूनो म आपसी जोहार-भेंट होइस, तहा घर-परिवार, खेत-खार अउ सुख-दुख के बात गोठियाय लगिन। शोभा ह अघनू ल पूछिस - ए साल खेती-बाड़ी के का हाल-चाल हे मितान। कूत-कबार ह बाढ़िस हे.. कि काम-कमई ह पानी-बादर के भेंट चढ़गे..? अघनू ह कहिस- "काला बताबे मितान दुब्बर ल दू अषाढ़ कस हमर हाल हे। सोसायटी ले बीज बिसाएन.., अबीजहा होगे। दाऊ धन्नासिंग ले थरहा बिसाएन.., खेत ह साॅंवा, करगा , राहड़ा जइसे बन म बिल्लागे, फेर माहू झपागे। बाचे-खोंचे मोर हिस्सा म जतका आइस उही मोर कमई। दाऊ कर उही थरहा के बाचे पैसा ल जमा करे बर आय रहेंव।"

            अतिक म शोभा ह कहिस- " अरे मितान तहूॅं ह कहाॅं प्रमाणित-व्रमाणित बीजा के चक्कर म फॅंसगे रहेस, सोसायटी ले जतका प्रमाणित बीज बिसाये रहे होबे न वो सब्बो बीज-भात ह दाऊ च के खेत के बीजा आय जी...।उकर खेत म कहाॅं निंदई अउ कोड़ई..! पूरा सौ एकड़ के खेत के उपज अउ ओकर ससुरारी फारम के जम्मों उपज ह प्रमाणित बीज लिखाय बोरी म सीधा भराथे अउ पहुंच जथे सोसायटी म वितरण खातिर। दाऊ धन्ना ह सोसायटी म भला नइहे मितान फेर सुराज प्रसाद नाम के ओकर पहुंच ह तो उहां माढ़े हावे रे भई..‌। ईंखर प्रमाणित बीजा ह इहाॅं के खेत-खार ल सिरिफ परिया बनाथे। येमन साॅंवा ,बदउर, नरजा ,चुहका अउ गाजर घास ले घलव खतरनाक बेलाटी बन-कचरा हरे मितान...।"

        शोभा के गोठ ल सुनके अघनू के बुध चकरागे।तुरते ताही सायकिल ल धरिस अउ शुरू-खुरू घर जाय बर निकलगे। घर जावत-जावत रद्दा म अघनू ह सोच के भॅंवरी म अइसे अरझिस कि ओकर अंतस म बोंवई ले लेके मिंजई तक के जम्मों बात ह धारावाहिक कस ओरी-पारी आवन-जावन लगिस। अबीजहा धान के जाॅंच करवाय बर उप्पर डहर शिकायत के कागज पेश करई अउ कागज ला आघू डहर दउड़ाय बर कागज म वजन रखई के सबो उदीम ह कइसे फाऊ होइस। जाॅंच ल तो भुलई जा.., वो कागज ह आगू कोति काबर नइ सरकिस.. , वो गहिर राज ह आज पता चलिस।

   उपर ले दाऊ घर के कुकुर के हाॅंव-हाॅंव करई के घटना ह घलव ओकर अंतस ल हलाके रख दिस।आज ऑंखी उघरिस तब गुस्सा के मारे तन-बदन म धधकत आगी ल खुदे गटागट पीगे।अउ सोच के काॅंटा ल उत्तर डहर घुमावत अपन आप ल बखानत एक ठन किरिया खईस  - " बिना बिलमे अब ये बन-कचरा ल उखाने बर बनेच भिड़ना पड़ही, नइते हमरे सिधवई के ओधा म , स् ..साले जम्मों बेलाटी (विलायती) कुकुर मन इहाॅं आके टाईगर बनते रइहीं ..!"


महेंद्र बघेल डोंगरगांव

7987502903

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समीक्षा

 पोखनलाल जायसवाल:


 सरकार जनहित म कतको योजना बनाथे। फेर जनहित बर बने एको योजना के फायदा जनता के मुँहाटी पहुँचे के पहिली अधरे अधर सुराज प्रसाद जइसे बिचौलिया मन धन्ना सिंग के कोठी अउ गोदाम म धरवट बना के जनता के हक ल मारथे। तइहा ले इहाँ के किसान के हाल जस के तस हे। दुख झेलत जिनगी जीयत हे। ओकर हित बर सोचइया कोनो नइ हे, जबकि ओहर सबके पेट के संसो म खेत म दिन रात गड़े रहिथे। कभू नइ सोचय मँय ए बूता ल छोड़ दँव। रूख-राई, नदी-नरवा अउ सुरुज नरायन के सँघराती चलत सबर दिन परहित म लगे रहिथे। 

        ...तब पढ़े-लिखे मन के कमी रेहे ले अधिकार के जानकारी नइ मिल पावत रहिस तब शोषण होवत रहिस। फेर आजो स्थिति म जादा सुधार नइ होय हे। जबकि पढ़े लिखे मनखे के कमी नइ हे। मनखे जउन अपन अधिकार बर लड़ सकथे। मुँह लुकावत फिरत हे। पढ़े लिखे हन कहिके खेती ले दुरिहावत हें। पलावन करत हें।कतको धन्ना सिंग अउ सुराज मन के हाथ के कठपुतली(खिलौना) बने कलेचुप कान म ठेठा बोजे तमाशा देखथे। ए मन भुला जथे कि अइसन करे म ओकर हक घलो मारे जाथे। किसान मन करा अतका बेरा नइ हे कि अपन अधिकार ल पूरा-पूरा जान सकय। उन बर बने योजना ल बरोबर जां पावँय। घाम शीत पानी म बूता करत दिन रात परोपकार के भाव ले खेत म गड़े रहिथे। कभू खेती ले फायदा कतेक होवत एकर विचार नइ करँय। हमर मिहनत ले सबके पेट भरत हे, इही म संतोष करत मगन रहिथें। धरती के सेवा बजावत धरती दाई सहीं सबो तकलीफ ल सहिथे। किसान के नाँव म बड़का नेता मन जम्मो फायदा उठा लेथे। कृषि ले जुड़े अधिकारी कर्मचारी मन इही नेता किसान के प्रभाव ले खेत म उतर के किसानी करइया किसान अउ मजदूर के हक मार देथे। सबो किसिम के योजना के लाभ घर बइठे इँखर अँगना पहुँच जथे। जेमा कमती फायदा रहिथे, तेन ल खाना पूरती करत चटनी चटा के विरोध म उठत गुंगवावत धुंगिया ल दबा देथें। 

       गिनती के बिचौलिया मन किसान के कमजोरी ल जानथें अउ मानथें कि किसान एका नइ हो सकय। जादातर रोंठ किसान मन असल म खेती नइ करँय। फेर खेती के बढ़ावा बर बने सबो योजना के फायदा बर आगू रहिथें। ऊप्पर वाला घलो छोटे अउ साधन विहीन किसान के परछो लेथे। बेरा बखत बरसा नइ होना, तरा तरा के बेमारी अउ माहू मन घलव किसान के पीठ म कोर्रा चला देथे। चतुरा अउ नेतागढ़न बड़का किसान अपन खेत ल रेगहा दे के छोटे किसान अउ मजदूर ल करजा बोड़ी म बुड़ोय के उदिम करथे। सरकारी योजना मन ल डकारत नान्हे अउ गरीब किसान के हक ल मार देथे। सरकार म बइठे मंत्री संतरी मन सब जानथें। फेर कमीशन के चक्कर म मुँह धरा जथे।

    इही सब जिनिस ल समोखत महेन्द्र बघेल जी के कहानी किरिया किसान के दुख दरद ल सोला आना उकेरे म सफल हे। कहानी के भाषा प्रवाह अउ शब्द संयोजन ह पाठक के मन मोहे ले के लइक हे। व्यंग्य के पुट घलव हे। हाना मुहावरा मन के प्रयोग एकदम सटीक होय। पात्र अउ जगा के मुताबिक संवाद गढ़ाय हे। 

       दाऊ घर के कुकुर के प्रसंग घलव कहानी म प्रासंगिक हे। जेकर ले मुंशी प्रेमचंद जी के कहानी 'पूस की रात'  सुरता आ जथे।

      कहानी के शीर्षक किरिया ल अघनू के खाय किरिया ह सार्थक करथे। ओकर खाय किरिया हे - "बिना बिलमे अब ए  बन-कचरा ल उखाने बर बनेच भिंड़ना पड़ही, नइते हमरे सिधवई के ओधा म ..।.बेलाती कुकुर मन इहाँ आके टाईगर बनते रइहीं...।" 

      जरूरत हे अघनू सही जम्मो किसान दाऊ धन्ना सिंग अउ सुराज प्रसाद जइसन मन के साँठ-गाँठ ल बेरा रहिते पहचानँय अउ उन ल सबक सिखावँय। तभे उँकर बने दिन आही। ए बूता बर अब उहीच मन ल आगू आय बर पड़ही। काबर कि अपन पेट के पीरा के इलाज डाक्टर ल बताय म ही होथे। अपनेच आँखी म नींद आथे। ए बात सबो ल समझे ल पड़ही। कलजुग म कोनो तारनहार नइ आवय अपन तारनहार खुदे बनन। इही संदेश महेन्द्र बघेल जी अपन कहानी किरिया ले देना चाहत हें।

        किसान मन के व्यथा ल उजागर करत मार्मिक कहानी लिखे बर महेन्द्र बघेल जी ल अपन बधाई पठोवत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

Monday 21 February 2022

अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाखा दिवस : छत्तीसगढ़ी खातिर अरजी

 


अंतर्राष्ट्रीय महतारी भाखा दिवस : छत्तीसगढ़ी खातिर अरजी...

    सन् 1999 ले विश्व स्तर म महतारी भाखा दिवस मनाए के चलन होए हे. काबर 21 फरवरी 1952 के बंगलादेश के ढाका यूनिवर्सिटी म पढ़इया लइका अउ सामाजिक कार्यकर्ता मन तत्कालीन पाकिस्तानी सरकार के भाषायी नीति के विरोध करत उहाँ के अपन महतारी भाखा बांग्ला के अस्तित्व बचाए रखे खातिर  जबर प्रदर्शन करे रिहिन हें. जेकर सेती पाकिस्तानी पुलिस ह वोकर मन ऊपर गोली बरसाए ले धर लिए रिहिसे. तभो प्रदर्शनकारी मन डटेच रिहिन. आखिर ए लगातार  विरोध के चलत उहाँ के तत्कालीन सरकार ल बांग्ला भाषा ल आधिकारिक रूप ले भाषा के दर्जा देना परिस. फेर आगू चलके ए भाषायी आन्दोलन म शहीद होए लइका मन के सुरता म यूनेस्को ह सन् 1999 म 21 फरवरी ल महतारी भाखा दिवस मनाए के घोषणा करे रिहिसे.

    महतारी भाखा दिवस मनाए के मुख्य उद्देश्य दुनिया भर म भाषायी अउ सांस्कृतिक विविधता के प्रचार प्रसार करना रिहिसे. संगवारी हो, अंतर्राष्ट्रीय स्तर म महतारी भाखा दिवस के संदर्भ म आज हमर अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी खातिर दू आखर गोठियाए के मन होवत हे. काबर ते छत्तीसगढ़ी खातिर घलो कतकों बछर ले कोनो न कोनो किसम के आन्दोलन होतेच हे.

   जब हमर देश म सन् 1956 म अलग भाषायी अउ सांस्कृतिक आधार म जम्मो राज्य मनके पुनर्गठन करे खातिर 'राज्य पुनर्गठन आयोग' के स्थापना करे गे रिहिसे, तभेच ले हमर पुरखा मन घलो छत्तीसगढ़ राज्य के अपन खुद के भाखा अउ संस्कृति होए के आधार म अलग छत्तीसगढ़ राज खातिर मांग चालू करिन. राज आन्दोलन के नेंव रचिन. ए राज आन्दोलन के संगे-संग भाखा खातिर घलोक आवाज उठते रहिस. जम्मो गुनी साहित्यकार मन छत्तीसगढ़ी म जादा ले जादा लिखे के चालू करिन. हमर असन नेवरिया लिखइया-पढ़इया मन आरुग छत्तीसगढ़ी म पत्र-पत्रिका निकाले के उदिम घलो करेन, तेमा छत्तीसगढ़ी के लेखक के संगे-संग पाठक मनके संख्या म घलोक बढ़ोत्तरी होवय. ए सबके परिणाम ए होइस के 1 नवंबर सन् 2000 के अलग छत्तीसगढ़ राज के अस्तित्व तो स्थापित होगे, फेर भाषा के आधिकारिक दर्जा अभी तक नइ मिल पाए हे. हाँ, ए बीच ए जरूर होइस, के छत्तीसगढ़ सरकार ह 'छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग' के गठन जरूर करिस, जेकर ले कतकों किसम के भाखा अउ साहित्य ले संबंधित आयोजन होवत रहिथे. फेर असल मांग आजो जस के तस हे. महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी म पढ़ई-लिखई के संग राजकाज के जम्मो बुता.

   एकर खातिर हमर देश के संवैधानिक व्यवस्था के मुताबिक छत्तीसगढ़ी ल संविधान के आठवीं अनुसूची म शामिल होना जरूरी हे. वइसे राज सरकार के हाथ म अतका अधिकार होथे, के वो ह केन्द्र सरकार द्वारा आठवीं अनुसूची म शामिल करे बिना घलो एला इहाँ प्राथमिक शिक्षा के माध्यम बना सकथे. बस जरूरी हे, ईमानदार नीयत के.

   जिहां तक एला आठवीं अनुसूची म शामिल करे के बात हे, त एकर खातिर हमर इहाँ के कोनो भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल ईमानदार नइ दिखय. जब केन्द्र के कुर्सी म एक दल वाले मन बइठथें, त दूसर मन आठवीं अनुसूची के नांव म राजनीतिक खुडवा खेलथें. अउ जब दूसर दल वाले मन केन्द्र के कुर्सी म अभर परथें, त दूसर दल वाले मन खुडवा खेलथें. कुल मिलाके दूनों दल वाले ओसरीपारी खुडवा खेलत रहिथें.

    इहाँ कुछ क्षेत्रीय दल वाले घलो हें, फेर उंकर मन के संख्या बल अतका नइहे, के केन्द्र वाले मनके कान ल पिरवा सकयं. तब एकर समाधान के रद्दा कइसे खुलही?

    निश्चित रूप ले जइसे बांग्ला भाषा खातिर उहाँ के पढ़इया लइका अउ समाजसेवी मन लड़िन-भिड़िन अउ कुर्बानी देइन, ठउका छत्तीसगढ़ी खातिर घलो अइसने करे बर लागही. 

    हमर इहाँ रविशंकर विश्वविद्यालय म एमए छत्तीसगढ़ी पढ़इया लइका मन ए बुता ल ठउका करत हें. एक-दू साहित्यिक अउ आने संगठन वाले मन घलो अपन सख भर हुंकार भरत रहिथें, फेर मोर अरजी हे, के इंकर मन संग इहाँ के जतका छत्तीसगढ़िया समाज हे, उंकर संगठन हे, उहू मन ए उदिम म खांध म खांध जोर आगू आवयं अउ अपन महतारी भाखा ल संवैधानिक दर्जा के मिलत ले सड़क के लड़ाई ल लड़त राहयं. अउ एक अउ बात, जब कहूँ इहाँ जनगणना होथे, त अपन महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी लिखवावयं. स्कूल मन म घलोक गुरुजी मन लइका मनके मातृभाषा के कालम म बिना पूछे-सरेखे हिन्दी लिख देथें. एकर बर घलो सावचेत रेहे के जरूरत हे. अभी सबो स्कूल म लइका मनके मातृभाषा पूछे जाने वाला हे, एमा जम्मो पालक मनला चेत करके मातृभाषा छत्तीसगढ़ी लिखवाए के उदिम करना चाही.

जय छत्तीसगढ़.. जय छत्तीसगढ़ी

-सुशील भोले-9826992811

विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी


 

“विश्व महतारी भाषा दिवस” - छत्तीसगढ़ी


घर के जोगी जोगड़ा, आन गाँव के सिद्ध - तइहा के जमाना के हाना आय। अब हमन नँगत हुसियार हो गे हन, गाँव ला छोड़ के शहर आएन, शहर ला छोड़ के महानगर अउ महानगर ला छोड़ के बिदेस मा जा के ठियाँ खोजत हन। जउन मन बिदेस नइ जा सकिन तउन मन विदेसी संस्कृति ला अपनाए बर मरे जात हें। बिदेसी चैनल, बिदेसी अत्तर, बिदेसी पहिनावा, बिदेसी जिनिस अउ बिदेसी तिहार, बिदेसी दिवस वगैरा वगैरा। जउन मन न बिदेस जा पाइन, न बिदेसी झाँसा मा आइन तउन मन ला देहाती के दर्जा मिलगे।


हमन दू ठन दिवस ला जानत रहेन - स्वतंत्रता दिवस अउ गणतन्त्र दिवस। आज वेलेंटाइन दिवस, मातृ दिवस, पितृ दिवस, राजभाषा दिवस, पर्यावरण दिवस अउ न जाने का का दिवस के नाम सुने मा आवत हे। ये सोच के हमू मन झपावत हन कि कोनो हम ला देहाती झन समझे। काबर मनावत हन ? कोन जानी, फेर सबो मनावत हें त हमू मनावत हन। बैनर बना के, फोटू खिंचा के फेसबुक मा डारबो तभे तो सभ्य, पढ़े लिखे अउ प्रगतिशील माने जाबो।


एक पढ़े लिखे संगवारी ला पूछ पारेंव कि विश्व मातृ दिवस का होथे ? एला दुनिया भर मा काबर मनाथें? वो हर कहिस - मोला पूछे त पूछे अउ कोनो मेर झन पूछ्बे, तोला देहाती कहीं। आज हमन ला जागरूक होना हे। जम्मो नवा नवा बात के जानकारी रखना हे। जमाना के संग चलना हे। लम्बा चौड़ा भाषण झाड़ दिस फेर ये नइ बताइस कि विश्व मातृ दिवस काबर मनाथे। फेर सोचेंव कि महूँ अपन नाम पढ़े लिखे मा दर्ज करा लेथंव।

फेसबुक मा कुछु काहीं लिख के डार देथंव। 


भाषा ला जिंदा रखे बर बोलने वाला चाही। खाली किताब अउ ग्रंथ मा छपे ले भाषा जिंदा नइ रहि सके। पथरा मा लिखे कतको लेख मन पुरातत्व विभाग के संग्रहालय मा हें फेर वो भाषा नँदा गेहे। पाली, प्राकृत अउ संस्कृत के कतको ग्रंथ मिल जाहीं फेर यहू भाषा मन आज नँदा गे हें  । माने किताब मा छपे ले भाषा जिन्दा नइ रहि सके, वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही।


भाषा नँदाए के बहुत अकन कारण हो सकथे। नवा पीढ़ी के मनखे अपन पुरखा के भाषा ला छोड़ के दूसर भाषा ला अपनाही तो भाषा नँदा सकथे। रोजी रोटी के चक्कर मा अपन गाँव छोड़ के दूसर प्रदेश जाए ले घलो भाषा के बोलइया मन कम होवत जाथें अउ भाषा नँदा सकथे। बिदेसी आक्रमण के कारण जब बिदेसी के राज होथे तभो भाषा नँदा सकथे। कारण कुछु हो, जब मनखे अपन भाषा के प्रयोग करना छोड़ देथे, भाषा नँदा जाथे। 


छत्तीसगढ़ी भाषा ऊपर घलो खतरा मंडरावत हे। समय रहत ले अगर नइ चेतबो त छत्तीसगढ़ी भाषा घलो नँदा सकथे। छत्तीसगढ़ी भाषा के बोलने वाला मन छत्तीसगढ़ मा हें, खास कर के गाँव वाले मन एला जिंदा रखिन हें। शहर मा हिन्दी अउ अंग्रेजी के बोलबाला हे। शहर मा लोगन छत्तीसगढ़ी बोले बर झिझकथें कि कोनो कहूँ देहाती झन बोल दे। छत्तीसगढ़ी के संग देहाती के ठप्पा काबर लगे हे ? कोन ह लगाइस ? आने भाषा बोलइया मन तो छत्तीसगढ़ी भाषा ला नइ समझें, ओमन का ठप्पा लगाहीं ? कहूँ न कहूँ ये ठप्पा लगाए बर हमीं मन जिम्मेदार हवन। 


हम अपन महतारी भाषा गोठियाए मा गरब नइ करन। हमर छाती नइ फूलय। अपन भीतर हीनता ला पाल डारे हन। जब भाषा के अस्मिता के बात आथे तब तुरंत दूसर ला दोष दे देथन। सरकार के जवाबदारी बता के बुचक जाथन। सरकार ह काय करही ? ज्यादा से ज्यादा स्कूल के पाठ्यक्रम मा छत्तीसगढ़ी लागू कर दिही। छत्तीसगढ़ी लइका मन के किताब मा आ जाही। मानकीकरण करा दिही। का अतके उदिम ले छत्तीसगढ़ी अमर हो जाही?


मँय पहिलिच बता चुके हँव कि किताब मा छपे ले कोनो भाषा जिंदा नइ रहि सके, भाषा ला जिन्दा रखे बर वो भाषा ला बोलने वाला जिन्दा मनखे चाही। किताब के भाषा, ज्ञान बढ़ा सकथे, जानकारी दे सकथे, आनंद दे सकथे फेर भाषा ला जिन्दा नइ रख सके। मनखे मरे के बादे मुर्दा नइ होवय, जीयत जागत मा घलो मुर्दा बन जाथे। जेकर छाती मा अपन देश बर गौरव नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन गाँव के गरब नइये तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन समाज बर सम्मान नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर छाती मा अपन भाषा बर मया नइये, तउन मनखे मुर्दा आय। जेकर स्वाभिमान मर गेहे, तउन मनखे मुर्दा आय। 

जउन मन अपन छत्तीसगढ़िया होए के गरब करथें, छत्तीसगढ़ी मा गोठियाए मा हीनता महसूस नइ करें तउने मन एला जिन्दा रख पाहीं। 


अइसनो बात नइये कि सरकार के कोनो जवाबदारी नइये। सरकार ला चाही कि छत्तीसगढ़ी ला अपन कामकाज के भाषा बनाए। स्कूली पाठ्यक्रम मा एक भाषा के रूप मा छत्तीसगढ़ी ला अनिवार्य करे। अइसन करे ले छत्तीसगढ़ी बर एक वातावरण तैयार होही। शहर मा घलो हीनता के भाव खतम होही। छत्तीसगढ़ी ला रोजगार मूलक बनावय। रोजगार बर पलायन, भाषा के नँदाए के एक बहुत बड़े कारण आय। इहाँ के प्रतिभा ला इहें रोजगार मिल जाही तो वो दूसर देश या प्रदेश काबर जाही? छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार, लोक कलाकार ला उचित सम्मान देवय, उनकर आर्थिक विकास बर सार्थक योजना बनावय।


छत्तीसगढ़ी भाव-सम्प्रेषण बर बहुत सम्पन्न भाषा आय। हमन ला एला सँवारना चाही। अनगढ़ता, अस्मिता के पहचान नइ होवय। भाषा के रूप अलग-अलग होथे। बोलचाल के भाषा के रूप अलग होथे, सरकारी कामकाज के भाषा के रूप अलग होथे अउ साहित्य के भाषा के रूप अलग होथे। बोलचाल बर अउ साहित्यिक सिरजन बर मानकीकरण के जरूरत नइ पड़य, इहाँ भाषा स्वतंत्र रहिथे फेर सरकारी कामकाज बर भाषा के मानकीकरण अनिवार्य होथे। मानकीकरण के काम बर घलो ज्यादा विद्वता के जरूरत नइये, भाषा के जमीनी कार्यकर्ता, साहित्यकार मन घलो मानकीकरण करे बर सक्षम हें।


छत्तीसगढ़ मा अब छत्तीसगढ़िया सरकार आए ले हमर उम्मीद घलो बाढ़ गेहे। हमर उम्मीद नवा सरकार ले ज्यादा रही। सरकार छत्तीसगढ़ी बर जो कुछ भी करही वो एक सहयोग रही लेकिन छत्तीसगढ़ी ला समृद्ध करे के अउ जिन्दा रखे के जवाबदारी असली मा छत्तीसगढ़िया मन के रही। यहू ला झन भुलावव कि जब भाषा मरथे तब भाषा के संगेसंग संस्कृति घलो मर जाथे।


“स्वाभिमान जगावव, छत्तीसगढ़ी मा गोठियावव”


लेखक - अरुण कुमार निगम

आदित्य नगर, दुर्ग (छत्तीसगढ़)


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महतारी भाखा के मान करव--


 महतारी भाखा के मान करव--


हमर छत्तीसगढ़ राज बने इक्कीस बरस होगे,राज के बिकास घलो उम्मीद के अनरूप होवत हे,सोन,चांदी,टिन,लोहा,कोईला जइसे खनिज संपदा ले भरे,महानदी, शिवनाथ, अरपा, पैरी,कन्हार, इंद्रावती जइसन अमरीत सही बोहात नदिया,बड़े-बड़े घनघोर जंगल,परबत, पठार ले परित भुइयाँ, अन्न-धन्न ले भरे कुबेर के कोठी कस हमर थाती छत्तीसगढ़ राज बर कोई जिनिस के कमी नई हे।


फेर हमर बर एक ठन बात के कमी जरूर हावे कि आज तक महतारी भाखा के मान सनमान बरोबर नई होत हे,न ही स्कूल म लइका मन ल पढ़ाय-लिखाय के बने जुगत करत हे, साग के फोरन डारे कस 3-4 पाठ ल शामिल करके अपन काम पूरा करे सही अब्बड़ शोरियात रथे। येकर ले हमर भाखा पोठ नई होय,येकर बर बने कसोरा भीर के भिड़े ल लगही। 


राजभाखा के दर्जा--

28 नवम्बर 2007 के मुख्यमंत्री जी द्वारा हमर भाखा ल राजभाषा के दर्जा देके बिल पास करिन अउ छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची में शामिल कराय के गोठ बात घलो होय रिहिस। तब ले राजभाषा दिवस ल मनात भर आवत हन। दिया बाती बारत अउ दिन भर छत्तीसगढ़ी म गोठियाही,बिहान दिन ले हिन्दी म उतर जाहि।अउ साल भर ल फुरसत होंगे फेर। अब कोन जनि आठवीं अनुसूची म शामिल कब होही वोला ऊपर वाले ल जानहि। हमर ले नान्हे-नान्हे राज के भाषा शामिल होगे त हमन आज ले देखत हन। आज ले हमरो भाखा ल हो जाना रिहिस।


गुरतुर भाखा--

हमर भाखा जइसन मिठ अउ कोई भाखा नई हे। कथे घलो--तोर बोली लागे बड़ मिठास रे छ्त्तीसगढिया....। पर इहा के लोगन मन तो हिन्दी अउ अब तो मुबाइल के जमाना म अउ दु कदम आघु खस मिंझरा भाखा बना डारिन हे तेला हिंग्लिश भाखा कहे जात हे। अइसने म भाखा समरिध बनहि। अपन छोड़ के दूसर के बोली-भाखा ल पोटारत हे। आज के मनखे मन ल छत्तीसगढ़ी गोठियाय, लिखे,पढ़े बर लाज लगथे। देहाती अउ जंगली मन के भाखा हरे कथे। कोई ल गोठियात देखहि सुनहि त वोहा निचट अनपढ़ गंवार समझे ल लगथे। ये नई कहय की अपन महतारी भाखा म गोठियात-बतरात हे जी। इहि पाय के हमन भाखा ह आज पिछवाये हे जेकर बर ये राज भर के मनखे मन जिम्मेदार हे।


भाखा ल सीखन--

हमन ल सबो भाखा ल सीखना चाहि,लइका मन ल घलो सीखना हे। पर सबले पहली अपन महतारी भाखा ल सीखन। दूसर के चक्कर म हमर महतारी भाखा पछवावत हे। ये कोई भी दहन ले बने नई हरे।


टीवी म आज तक सरलग छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम नई आइस,लोगन मन भोजपुरी,हिंदी,सिनेमा टीवी देखत हे, कोई-कोई समाचार पत्र म छत्तीसगढ़ी रूप देखे ल अब मिलत हे हरिभूमि में चौपाल, पत्रिका म पहट, मड़ई। ये मन अच्छा काम करत हे। कुछ पेज म छत्तीसगढ़ी भाखा ल छाप के महतारी भाखा के जरूर सेवा करत हे।


गांव मे सम्मान--

आज महतारी भाखा के मान सनमान ल कोई करत हे त वो गांव के अनपढ़-गंवार मन करत हे। एककनि पढ़े हे तेमन तो हिन्दी, हिंग्लिश,अंग्रेजी ल झाड़े ल धर लेहे। अइसने में तो करलई हो जहि। मने गांव म ही भाखा जीयत हे शहर म तो कब के बीमारी के खटिया म पढे हे। अधिकारी, कर्मचारी, बाबू,साहब,नेता,मंत्री मन ल अउ जादा लाज लगथे। छत्तीसगढ़ी समझ नई आय कथे। हां एक बात ठउँका हे नेता अउ मंत्री मन चुनई के पहित जरूर महतारी भाखा म गांव के मन संग गोठियाथे। केवल नारा लगाय ले नई होय--छ्त्तीसगढिया सबले बढिया। येकर बर जम्मो झन ल भिड़े ल पड़ही। छत्तीसगढ़ी म लिखन, गोठियान,पढ़न अउ लजान मत, भाखा ल आघु डहन बढ़ाय के कोई बड़े-बड़े जतन करन।


भाखा के इतिहास--

हमर भाखा अभी के नोहे हे वोहा अब्बड़ जुन्ना भाखा हरे। खैरागढ़ रियासत के राजा लक्ष्मीनिधि रॉय के दरबारी अउ चारण कवि रिहिन दलपत राव जेहा सन 1494 में अपन साहित्य रचना म सबले पहली छत्तीसगढ़ी भाखा ले काम करिस...

'लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित दे।

गढ़ छत्तीसगढ़ में न गढ़ैया रही।।


पीछू कलचुरी राजा राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिश्र ह सन 1746 म अपन रचना 'खूब तमाशा' में हमर भाखा के उल्लेख करिन। ऐसे तो पहली ब्रज,अवधि,भोजपुरी भाषा जेमे सुर,तुलसी के काव्य रचना हावे उहा छत्तीसगढ़ी के सब्द मन अब्बड़ मिल जथे। रामचरित मानस में कतरो छत्तीसगढ़ी सब्द भरे पड़े हे। ऐहि पाय से अवधि ल छत्तीसगढ़ी के सहोदरा कहे जाथे।



आजकल के नवा बिचार--

आज कोई पालक अपन लइका मन ल सरकारी स्कूल में नई पढ़ाना चाहे। सब अंग्रेजी स्कूल म मोहा गेहे। ये लइका मन बर बड़ टिपटॉप बेवस्था करथे। गृहकार्य पूरा करही,जूता-मोजा, टाई-बेल्ट,खाना-डिब्बा सब करही। फेर परिणाम देखबे ल संकोच लगथे। सरकारी स्कूल के लइका मन के कोई दाई-ददा नई हे जेला पहिरे हे उही ल बिना जूता-मोजा, टाई-बेल्ट,तेल-फूल। लइका मन अंग्रेजी म गोठियाथे दाई-ददा ल समझ नई आवत हे। कुल मिला के महतारी भाखा ल सत्यानाश करना हे। कोई-कोई मन गुरुजी के छत्तीसगढ़ी गोठियाई ल घलो देहाती पन समझथे,गुरुजी मन हिन्दी, अंग्रेजी म बात करे त लइका मन घलो सिखही।फेर अपन भाखा म गुरुजी मन लइका मन संग झन गोठियाय। जबकि महतारी भाखा ले लइका मन जल्दी समझते अउ उँकर मन  ले जादा लगाव होथे,ये बात ल समझे नहीं।



पालक मन के सोच--

एक बार एक झन पालक ल अपन लइका ल मारत देखेव त मोला अब्बड़ दुख होइस,कि तेहा हिंदी म काबर नई बोले,छत्तीसगढ़ी म काबर गोठियाय। वो लइका अपन घर आय सगा सन छत्तीसगढ़ी म गोठियात रहय। इहा फोकट सेखी मरैया के कोई कमी नई हे अस्पताल में एक झन पालक ल अपन लइका सन हिन्दी में दिखावटी गोठियाय,रहय गांव के। बाद म घर जाय के समे समझ आथे कि लइका ह कथे-बाबू धर न तोर मोबाईल ल। मने सबके सामने छत्तीसगढ़ी म बात करही ते वोला शरम आहि। इहि पाय के हिंदी झाड़त हे बीचारा ह। त अइसनो घलो डींग मरई कोई काम के नोहे। जेला अपन भाखा ल लाज आवत हे वो का अपन भाखा के मान सनमान करही। हमन खुद अपन भाखा के अपमान करे के जिम्मेदार हन।



आठवीं अनुसूची में शामिल होय--

समे समे राजनीति डहन ल घलो येला आठवीं अनुसूची में जोड़े बर अब्बड़ परयास होत रथे। पर जब जुड़ही तभे भाखा ह अउ बिकास के गति ल पकड़ही। हमर 2 करोड़ जनता के भाखा जेला आधा ले जादा आदमी मन बोलते,समझते अउ लिखे बर तो गिनती के संख्या होही। लोगन मन लिखे बर कठिन हावे कथे। हिज्जा करके तो लते-पटे पड़थे। येकर रूप क्षेत्र बिसेस म थोड़ बहुत बदल जाथे।पर आत्मा के भाव वोइसने हावे हे। हमर भाखा म गीत,कविता,साहित्य के घलो भंडार भरे हे। राजभाषा आयोग के काम म जादा तेजी लाय के जरूरत लगथे। जेकर ले भाखा के बिकास बर नवा रद्दा बनाये के जुगाड़ करे। हम सब झन ल हमर महतारी भाखा के मान-सनमान बर आगू आये ल पड़ही। स्कूल म तो एक बिषय छत्तीसगढ़ी के जरूर होना चाहि। जब पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिसा,केरल,कर्नाटक जइसे राज म अपन महतारी भाखा म पढ़ई-लिखई हो सकत हे, त हमर छत्तीसगढ़ म काबर अउ कइसे नई होही। बड़े-बड़े विकसित देश में के शुरुआती पढ़ई अपन महतारी भाखा म ही कराथे। जेकर ले लइका मन ल जल्दी समझ बनथे। येकर बर जम्मो झन ल आगू आय ल पड़ही।


                 हेमलाल सहारे

               मोहगांव(छुरिया)


महतारी भाँखा के जतन जरूरी हे


 महतारी भाँखा के जतन जरूरी हे


                     कखरो भी मुख ले निकले कोनो शब्द तब तक भाँखा नइ कहिलाये जब तक कि वो कोनो ला समझ मा नइ आ जाय, नही ते मनखे के आलावा चिरई- चिरगुन, कुकुर- बिलई, कीट- पतंगा ----- मनके बोली घलो भाँखा कहिलातिस। कोनो भी भाँखा कइसे बनिस? कोन बनाइस? कतिक महिनत लगिस? कतिक दिन मा बनिस? येखर बारे मा तनिक सोचबों ता, कोनो भी भाँखा ला छोटे- बड़े कहिथन तेखर भ्रम दुरिहा जही, हाँ कोनो भी भाँखा के बोलइया कम जादा हो सकथे, फेर भाँखा के निर्माण के प्रक्रिया अउ काम एके हे। लइका जने के बाद महतारी जइसे लइका के पालन-पोषण करत, वोला जिंदा रखथे, वइसने भाँखा ला जिंदा रखथे बोलइया मन। लइका बड़े होके अपन अकड़ गुमान या स्वारथ मा महतारी बिन रहि सकथे, फेर भाँखा बोलइया बिन नइ जी सके। महतारी अउ महतारी भाँखा ले दुरिहाई बने बात नोहे। जइसे कोनो लइका अपने महतारी ला महतारी कहिथे, कोनो आन ला नइ कहय, वइसने महतारी भाँखा ला घलो ओखर जनइया मन ला बोले, बउरे बर लगही। आन मनके मुँह ताकना गलत हे।  जइसे मातृ अउ मातृभूमि ला सरग ले बढ़ के हे केहे गेहे, वइसने बड़का हे मातृभाषा। जनम देवइया अउ पालन करइया ददा दाई के मुख के बोली लइका बर महतारी भाँखा बोली आय, जेमा दया, मया, ममता घुरे रहिथे।


                     कोनो भी भाँखा बोली कागज पाथर मा कतको लिखा जाये, यदि बोलइया समझया नइ रही ता, प्राचीन काल के कतको भाँखा- बोली अउ लिपि कस कोनो संग्राहालय मा माड़े रहि जाही या फेर बिरथा हो जही। मनखे अपन मन के भाव ला भाँखा मा उतारथे, जेला समझ के आन मनखे ओखर संग जुड़थे। भाँखा मनखे ला जीव जानवर ले अलगाथे,भाँखा बिन मनखे, मनखे मनले नइ मिल सके। भाँखा भाव, भजन, भ्रमण सबे बर जरूरी हे। मनखे भले सुख मा दाई, ददा ला नइ सोरियाही, फेर आफत मा ए ददा, ए दाई कहिबेच करथे। कहे के मतलब महतारी अन्तस् मा रचे बसे रहिथे, वइसनेच आय महतारी भाँखा। भले देखावा मा मनखे महतारी अउ महतारी भाँखा ला बिसार देथे, फेर आचार, विचार, संस्कार के दाता उही आय। महतारी भाँखा के संग मनखे के दया-मया, संस्कृति अउ संस्कार जुड़े होथे। महतारी भाँखा ले दुरिहाना मतलब अपन संस्कृति अउ संस्कार ला तजना हे। आज अपन भाँखा बोली के बढ़वार बर खुदे ला महिनत करे के जरूरत हे। कोनो भी चीज ला बनावत बड़ बेर लगथे, फेर उझारत छिन भर। अइसन मा चलत कोनो भाँखा बन्द हो जाय, दुर्भाग्य के बात हे। जइसे पानी ढलान कोती बहिथे, वइसने भाँखा घलो सरल कोती भागथे। अपन जुन्ना बोली बचन अउ माटी जे सुवाद मा नवा जमाना के शब्दकोश ला शामिल करत, कठिन ले सरल के रथ मा सवार होके, उदार भाव ले सबला स्वीकारत आज कोनो भी भाँखा बोली के अस्तित्व ला बचाये के उदिम करना चाही,तभे नवा जमाना संग जुन्ना बोली भाँखा टिक पाही। 


                    ये दुनिया विशाल हे। आज नवा जमाना मा मनखे सबे देश राज संग जुड़ के चलत हे। गाँव, शहर ले, शहर, महानगर अउ देश-विदेश ले जुड़े हे। सियान मन हाना मारत कहिथे कि, कोश कोश मा पानी बदले अउ  चार कोश मा बानी।  माने दुनिया मा बड़ अकन भाँखा  हे, जेखर पार पाना मुश्किल हे। आज मनखे सबे संग कदम ले कदम मिलाके चलत हे, अइसन मा एक सम्पर्क भाँखा जरूरत बन जाथे। मनखे ला महतारी भाँखा के संगे संग अपन देश अउ विश्व भर मा प्रचलित मुख्य भाँखा ला बोलना अउ समझना चाही। पहली संचार अउ सोसल मीडिया के अतिक व्यापकता नइ रिहिस, ना सबे मनखे के विश्वभर मा जाना आना, ते पाय के  वो समय मनखे मन एक या दुये भाँखा जाने, पर आज अपन अस्तित्व बर महतारी भाँखा के संगे संग सम्पर्क भाँखा ला जानना जरूरी हे। भारत मा आज हिंदी सबे कोती बोले समझे जावत हे। संगे संग व्यापारिक भाषा के रूप मा अंग्रेजी जम्मो देश मा पाँव पसारत हे। मनखे मन ला अपन महतारी भाँखा के संग हिंदी, अउ अंग्रेजी के ज्ञान घलो होना चाही। आज के लइका मानसिक रूप ले ये सब बर तियार हे, कोनो लइका मन  ऊपर  एक ले अधिक भाषा ला बोले सीखे बर कहना,थोपना नही, बल्कि आज के जरूरत के रूप मा, बहुभाषी बनना कहे जाथे। एक भाषा ला धरके चलना आज सम्भव नइ हे, काबर कि मनखे जुड़ चुके हे, सरी दुनिया संग। आज भाषा जमाना के  नवा रूप के संग, सोसल मीडिया मा घलो जघा बनावत जावत हे। सब ला अपन महतारी भाँखा ला नवा दशा दिशा देना चाही, ओखर प्रसिद्धि अउ बढ़वार बर सोचना चाही। अनुवादिक एप, गूगल, टाइपिंग जैसे आज के जरूरी एप मा महतारी भाँखा दिखे, एखर बर आज के बुधियार लइका मन ला बूता करना चाही, ताकि भाषा सोसल मीडिया मा  घलो जिंदा रहे अउ सबला सहज समझ आये, तभे भाँखा के उमर बाढ़ही।


अपन भाँखा के मान करव ,

दूसर भाँखा के सम्मान करव।


जीतेंन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"

बाल्को,कोरबा(छग)


महतारी भाँखा दिवस के आप सबो ला सादर बधाई,


Sunday 20 February 2022

संत रैदास(रविदास)


 

संत रैदास(रविदास)

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हमर भारत देश आदिकाल ले साधु-संत, महात्मा मन के जन्मस्थली आय। इहाँ अनेक महापुरुष मन अवतार ले हावयँ।

इहाँ सदा संत परंपरा रहे हावय।इही संत परंपरा मा सदगुरु ,संत शिरोमणि रैदास जेला संत रविदास,रुइदास,रोहिदास आदि नाम ले पुकारे जाथे--तको आथें।

         संत रैदास के जन्म माघ पूर्णिमा रविवार, संवत 1433 (1376 ईस्वी) के वाणारसी शहर के तीर के गाँव गोबर्धन पुर मा होये रहिस। वोकर पिता के नाम संतोख दास(रग्घु) अउ माता के नाम कर्मा देवी( कलसा, घुरविनिया) रहिस। संत रैदास एक गृहस्थ संत रहिन।वोकर पत्नी के नाम लोना अउ सुपुत्र के नाम विजयदास बताये जाथे। संत रैदास के जन्म चर्मकार कुल म होये रहिस।वोहा जूता- चप्पल बनाये के काम करत रहिस। संत रैदास दीर्घ जीवी रहिन। उन  संवत 1540 ( 1518 ईस्वी ) म वाणारसी शहर म अपन नश्वर देह ल तियाग के स्वर्गवासी होये रहिन। आजकल वो जगा म संत रैदास के मठ अउ भव्य मंदिर बने हे जेकर दर्शन करे बर सरी संसार के श्रद्धालु मनखे मन आथें। एक मान्यता अइसे भी हे के उनकर देहावसान चित्तौड म होये रहिस ।उहाँ राणा सांगा के पत्नी रानी झाला जेन ह संत रैदास के शिष्या रहिन के बनवाये छतरी हावय।

         संत रैदास हा साधु-संयासी, महात्मा मन के संगति ले व्यवहारिक ज्ञान पाये रहिस। वो ह वैष्णवाचार्य रामांनद जी के शिष्य रहिन। जगत प्रसिद्ध प्रात: स्मरणीय संत कबीर दास जी ह उनकर गुरुभाई रहिन।भक्तिन मीराबाई ल संत रैदास के शिष्या माने जाथे।मीराबाई ह अपन एक पद म कहे हे--

*गुरु रैदास मिले मोहि पूरे,धुरसे कलम भिड़ी*

*संत गुरु सैन दई जब आके, जोत रली*।

            संत रैदास बहुतेच परोपकारी अउ दयालु हिरदे के रहिन हे। उनकर नजर म जात-पाँत अउ ऊँच-नीच के कोनो भेदभाव नइ रहिस।उनकर शिष्य मन मा जम्मों जात-धरम के नर नारी रहिन। संत कुलभूषण रैदास ह कर्म ल पूजा मानय अउ अच्छा कर्म करे के उपदेश देवयँ।उन काहयँ के मनखे अपन कर्म ले ऊँच या नीच होथे।

*रैदास जनम के कारने, होत न कोई नीच।*

*नर कूँ नीच करि डारिहैं,ओछे करम के नीच।*

           ऊँचा कुल म जनम लेये भर ले मनखे महान नइ हो जय। मनखे ल महान अउ पूजनीय तो वोकर कर्म ह बनाथे।उन एक पद म कहे हें---

*ब्राह्मण मत पूजिए, जो होवै गुणहीन।*

*पूजिए चरण चंडाल के, जो होवे गुण प्रवीन।*

        संत शिरोमणि रैदास ह लोगन ल काम,क्रोध ल फेंक के ईश्वर के भक्ति करे के शिक्षा देंवयँ।उन काहयँ के जेन भक्त के हिरदे म भगवान बसथे वो भक्त तको भवगान जइसे हो जथे---

*रैदास कहे जाके हदै, रहे रैन दिन राम।*

*सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।*

          परम भक्त रैदास  ह एकदम निर्मल मन वाला रहिस हे। उन लोभ, कपट, छल-छिद्र ल चिटको नइ जानत रहिस हे। मन के निर्मलता के शिक्षा देवत उन कहे हें---

*मन ही पूजा मन ही धूप।*

*मन ही सेऊँ सहज सरूप।*

        सत्य वचन हे मन ल सहज होना चाही।भक्ति काल के जम्मों संत कवि मन इही सार बात ल कहे हें। कबीर दास जी अपन साखी म कहिथें---

*मनका फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।*

*कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।*

       गोस्वामी तुलसीदास जी ह रामचरितमानस म लिखथें---

*निर्मल मन जन सो मोहि पावा।मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।*

            मन के निर्मलता के उपर संत रैदास ले जुड़े एक ठन किवदंती हे।एक पइत कुछ संत मन  संगम म गंगा स्नान करे बर प्रयागराज जावत रहिन।वो मन संत रैदास ल तको चले बर निवेदन करिन ,त रैदास ह कहिस--मैं ह अपन काम बूता ल छोड़ के नइ जा सकवँ काबर के जाहूँ त कतको झन के जूता-चप्पल नइ बन पाही अउ वोमन ल कष्ट होही। मोर बर तो इही कठौती के पानी ह गंगा माता के समान हे।अतका कहिके वोह कठौती ले जेमा चमड़ा ल कुँवर करे बर बुड़ोवय तेमा ले एक ठन सिक्का निकाल के दिस अउ कहिस--' येला गंगा मइया ले ये कहिके दे देहू के तोर भगत रैदास ह भेंट करे बर दे हावय। फेर अतका ध्यान रखहू के गंगा मइया खुद आके झोंकही तभे देहू, पानी म अर्पण झन करहू।'

 अतका ल सुनके साधु समाज मन हाँसिन फेर एक झन ह वो सिक्का ल धरलिस अउ संगम म जाके संत रैदास कहे रहिस तइसने कहिस।वोकर अचरज के ठिकाना नइ रहिस --सिरतो म संगम के जल ले गंगा मइया के हाथ निकलिस अउ वो साधू ह उही हाथ म रैदास के देये सिक्का ल भेंट करदिस।वो दिनक्षले कहावत बनगे--- *मन चंगा तो कठौती में गंगा।*

      संत शिरोमणि रैदास ह एक समाज सुधारक रहिन। उन राम ,रहीम, कृष्ण, करीम सब ल एके ईश्वर के अलग-अलग नाम बतावयँ ।उन छुआछुत, ऊँच-नीच के भावना अउ भेदभाव ल त्याग के आपसी भाईचारा, प्रेम अउ समरसता के शिक्षा देवयँ---

*ऐसा चाहूँ राज में, मिले सबन को अन्न।*

*छोट बड़े सब सम बसे रविदास रहे प्रसन्न।*

     संत रैदास हिंदी साहित्य के स्वर्ग युग के भक्त , समाज सुधारक कवि रहिन।उनकर अनमोल वचन कालजयी हे। एक एक आखर म सत्य के दर्शन हे। सिख धर्म के पूज्य ग्रंथ "गुरु ग्रंथ साहिब' म संत रैदास के 40 पद ( 16 वीं शताब्दी म गुरु अर्जुन देव के संपादन करे) शामिल हे।

         संत रैदास के साहित्य ह मानवता के अनमोल धरोहर हे। संत रैदास जी के वाणी के निकले मानवता के संदेश देवत भक्ति अउ अध्यात्म के पद मन मा ब्रज, अवधी अउ खड़ी बोली के प्रयोग दिखथे।

      संत रैदास ह अमर पद मन के रचना करे हें।आत्मा ल तृप्त करइया ये कालजयी पद ल भला कोन भुला सकथे--

*अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी।*

 प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,

 जाकी अंग-अंग बास समानी ।

प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा,

 जैसे चितवत चंद चकोरा। 

प्रभु जी तुम दीपक हम बाती ,

जाकी जोति बरे दिन राती।

 प्रभु जी तुम मोती हम धागा,

 जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।

 प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा ,

ऐसी भक्ति करे रैदासा।

           अइसन संत, मानवता के धरखंध,सर्वधर्म समभाव के उपदेशक, परोपकारी, निरहंकारी, दयालु जेन ह अपन आचरण ले सिद्ध करके देखाइस के मनखे ह जन्म या काम धंधा ले महान नइ बनय भलुक अपन कर्म ले महान बनथे---वो प्रातः स्मरणीय संत शिरोमणि रैदास ल कोटिक चरन वंदन हे।

*वर्णाश्रम अभिमान तजि,पद रज बंदहिं जासु की।*

 *संदेह ग्रंथि खंडन निपन, बानी विमुल रैदास की।*


        चोवा राम वर्मा ' बादल '

         हथबंद, छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ी छन्द अउ बसंत*


 

*छत्तीसगढ़ी छन्द अउ बसंत*

            

बसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी के दिन विद्या के आराध्य देवी सरस्वती, विष्णु और कामदेव के 

पूजा के रिवाज़ हवय। ये तिहार ल हमर देश म बड़ उल्लास से मनाये जाथे। आज के दिन पीला वस्त्र धारण करे के रिवाज हवय। शास्त्र म बसंत पंचमी के उल्लेख ऋषि पंचमी के रूप म मिलथे। काव्यग्रन्थ में बसंत के अनेक प्रकार से चित्रण मिलथे। अलग-अलग कवि मन अपन-अपन ढंग से बसंत के  चित्रण करे हवँय।  माघ शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन ला बसन्त पंचमी के रूप जाने जाथे। बसंत के आय ले फूल म बहार आथे। खेत म लहलहात सरसों के पिंवरा फूल, मउरात आमा के पेड़ ,चारो डहर रंग-बिरंग के उड़त तितली, गुनगुनावत भौंरा मन ला मोह डारथे। जौ अउ गेहूँ के बाली घलो निकले धर लेथे। अइसन म कवि के मन आल्हादित होना स्वाभाविक हें । हिन्दी छ्न्द सरिक छत्तीसगढ़ी के छन्द म घलो बसंत के गज़ब के चित्रण मिलथे। 

            हमर पुरोधा साहित्यकार जनकवि कोदूराम दलित बसंत के बड़ सुग्घर चित्रण अपन छन्द मा करे हवँय। उँकर कलम के अंदाजे निराला हे। बंसत ला ऋतु के राजा कहे जाथे। बन के परसा मा जब फूल आथे तब येकर सौंदर्य देखे लाइक होथे,अइसन लागथे मानो केसरिया फेंटा मा कलगी खोंचे राजा के बेटा खड़े हवय। दलित जी के काव्य सौन्दर्य देखव - 

हेमंत गइस जाड़ा भागिस, आइस सुख के दाता बसंत

जइसे सब-ला सुख देये बर आ जाथे कोन्हो साधु-संत ।

बन के परसा मन बाँधे हें, बड़ सुग्घर केसरिया फेंटा

फेंटा- मा कलगी खोंचे हें, दीखत हें राजा के बेटा ।

        छन्दविद अरुकुमार निगम जी वर्तमान के महँगाई उपर करारा बियंग करत हुए बसन्त राजा ले निवेदन करत सार छन्द मा लिखथें- 

सल्फी ताड़ी महुआ मा तँय, माते हस ऋतुराजा।

एक पइत तँय बजट-बसंती, बनके एती आजा।। 

दार तेल ईंधन अनाज ला, करवा दे तँय सस्ता।

हम गरीब-गुरबा मन के हे, हालत अड़बड़ खस्ता।

             बसंत ऋतु के अद्भुत छटा ला देख के युवा कवि जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया दोहा म कहि उठथे- 

परसा सेम्हर फूल हा, अँगरा कस हे लाल।

आमा बाँधे मौर ला, माते मउहा डाल।

खैरझिटिया द्वारा प्रकृति के सुग्घर मानवीकरण रोला छन्द म देखव- 

गावय गीत बसंत, हवा मा नाचै डारा।

फगुवा राग सुनाय, मगन हे पारा पारा।

करे  पपीहा शोर, कोयली कुहकी पारे।

रितु बसंत जब आय, मया के दीया बारे।

          युवा गीतकार द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज" के सार छंद मा बसन्त गीत के बानगी देखव - 

परसा फुलवा लाली लाली, सरसो फुलवा पिंवरा।

ममहावत हे चारो कोती, भावत हावय जिंवरा।।

रंग बिरंगा फुलवा मन के, नीक लगे मुस्काई।।

ऋतु बसंती के आये ला, बउरागे अमराई।।

         बसंत आगमन अउ बिरहन के पीरा ल उकेरत बोधन राम निषादराज"विनायक" 

किरीट सवैया मा अपन बात रखथें - 

आय बसन्त फुले परसा गुँगवावत आगि लगावत हावय।

देख जरै जिवरा बिरही मन मा बहुँते अकुलावत हावय।।

कोकिल राग सुनावत हे महुआ मीठ फूल झरावत हावय।

रंग मया पुरवा बगरे चहुँ ओर इहाँ ममहावत हावय।।

             ऋतुराज बसंत के स्वागत बर प्रकृति घलो उत्सुक हवय। पुरवाई के संग पेड़ पौधा मन के उमंग घलो अवर्णीय हवय। आशा देशमुख के हरिगीतिका छन्द मा येकर सुग्घर चित्रण मिलथे:-

स्वागत करय ऋतुराज के,सजके प्रकृति माला धरे।

ममहात पुरवाई चले, आमा घलो फूले फरे।।

गोंदा खिले  पिंवरा सुघर, माते हवा के चाल हे।

गाना सुनावत कोयली, साधे बने सुर ताल हे।

          येती जाड़ा के भागती होथे अउ वोती बसंत ऋतु के आती। बसंत ऋतु में न तो ठंड रहय अउ ना गर्मी, अइसन मौसम हा सबो मनखे के मन ला  मोह लेथे। रोला छन्द में दिलीप वर्मा येकर वर्णन करत लिखथें- 

आगे हवय बसंत, देख लव जाड़ा हारे। 

भौंरा गीत सुनाय, कोयली हाँका पारे। 

रंग बिरंगा फूल, गजब मँहकावत हावय। 

देख प्रकृति के रंग, सबो के मन हरसावय। 

            बसंत जब आथे चारो कोती छा जाथे। बसन्त आगमन के ग़जब के चित्रण कन्हैया साहू "अमित' अपन छन्द मा करथें- 

हरियर मा पिंवरा मा, राहेर मा तिंवरा मा।

तितली मा भँवरा मा, फाँका मा कँवरा मा। 

करिया अउ सँवरा मा, लाली अउ धँवरा मा।

अघुवावत बसंत हे।

          बसंत आगमन के बेरा मा प्रकृति के सुन्दर मानवीकरण अजय अमृतांशु के रोला छन्द मा देखव- 

आ गे हवय बसंत, देख झूमत हे पाना।

कोयल मारै कूक, मगन हो गावय गाना।।

पींयर सरसो फूल,सबो के मन ला भावय। 

अमली हा इतरात, देख आमा बउरावय।।

         सदियों ले बसंत के गुणगान साहित्य म होत रहे हवय अउ आजो होवत हे। छन्द,गीत,कविता के संग गद्य साहित्य घलो बसंत के चित्रण म पाछू नइ रहे हे। जब ले छत्तीसगढ़ म छन्दकार मन के नवा पीढ़ी तैयार होय हवय तब ले एक ले बढ़ के एक छन्द छत्तीसगढ़ी म पढ़े ल मिलत हवय। ये छत्तीसगढ़ी साहित्य बर शुभ संकेत आय। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

मो.9926160451

कहानी: कुंदरा :-

 कहानी: कुंदरा :-

                            चन्द्रहास साहू

                            8120578897      

पांच हाथ के लुगरा , चिरहा अऊ मइलाहा जतका छेदा हावय तौन ला पहेनइयां हा नइ जाने फेर मनचलहा मरदजात मन जान डारे हावय । उँही ला माड़ी के उप्पर ले पहिरे हावय अऊ फुग्गा बाहाँ वाला पोलखा, पहुंची नरी मा रूपियामाला, भूरी चुंदी तेल फुल के अंकाल, आँखी मा काजर आंजे कजरारी ,कान मा चिकमिक -चिकमिक बजरहा खिनवा, मुड़ी मा डेंकची बोहे, बाहाँ मा मोटरी अरोये ,मोटरी मा दू झन नान्हे बड़का नोनी ला पाय  भूरी चिकनी उचपुर सुघ्घर गोदना वाली मोटियारी आवय । एक हाथ मा रूंजु के काड़ी ला धरे हावय अऊ छाती मा ओरमत रूंजु ला बजावत राग अलापिस 

भोज नगर के दसमत कइना ।

सुंदर हावय घात....  ।। 

राजा भोज के बाम्हन बेटी। 

       कुल बहमनीन के जात.... ।।

                     गुरूर-गुरूर, भुरूर-भुरूर घात सुघ्घर रूंजु हा नरियावय , एक कोती तुमड़ी अऊ बांस ला खुसेर के चार ठन तार ला झीक देहे अऊ बनगे रूंजु , दू ठन खूँटी अऊ खूँटी ला जइसे अइठे लागे रुंजु हा नरियावय टीनिन-टीनिन टुनुन-टुनून। धरमीन देवारिन हा मंदरस कस मीठ राग अलापथे वइसना रूंजु हा घला गुड़ कस मीठ नरियाथे। पारा के जम्मो मइनखे सकला जाथे अऊ धरमीन हा बिधुन होके गाथे अऊ राजा भोज के कहिनी कंतरी कहिथे। 

राजा भोज, भोज नगर के राजा रिहिस जेखर सात झन नोनी रिहिस नान्हे नोनी के नांव दसमत आवय जौन हा अब्बड़ सुघ्घर बरन वाली रिहिस । एक दिन राजा हा पुछिस।

"बेटी तुमन काखर किसमत के खाथो ओ !'' जम्मो बेटी मन राजा के किसमत के खाथन किहिस फेर दसमत किहिस।

 ‘‘ददा मेहां अपन किसमत के खाथो अऊ जम्मो जिनावर घला अपन-अपन किसमत के खाथे ।‘‘ 

राजा भोज ला खिसियानी लागिस अऊ परछो लेइस । राजकुमारी दसमत कइना के बिहाव उडि़या देवार संग कर दिस । दसमत पुछिस अपन गोसाइया ला।

 ‘‘तुमन का बुता करथो जी, भिनसरहा जाथो अऊ मुँधियार ले आथो।‘‘ 

उडि़या देवार बताइस 

"हमन जोगनी धरे ला जाथन ।" 

"कइसे रहिथे जोगनी हा..... महुंं देखहु जोगनी ला ?" 

दसमत पुछिस मुचकावत  अऊ उडि़या देवार हा किरिया खाइस।

"आने दिन जोगनी ला लानहु ।''

आज उडि़या देवार हा जोगनी ला लानिस। दसमत ला मुचकावत देखाइस  तब दसमत हा ठाढ़ सुखागे।

"तुमन हा हीरा मोती के बुता करथो।''

 अब मालिक करा गिस अऊ अपन भाग के जम्मो हीरा ला नंगा लिस। आज दसमत कइना अऊ उडि़या देवार हा राजा भोज ले जादा पोठ होगे । 

ये जम्मो कहिनी ला सुनिस तब अब्बड़ उछाह मनावय गाँव के मन अऊ धरमीन देवारिन ला चाउर-दार,नुन-तेल ,साग-भाजी आमा के अथान अऊ आनी-बानी के खुला देके पठोवय । नानकुन दुनो टूरी अऊ धरमीन बर रोटी बासी घला मिले । धरमीन हा एक गाँव ले आने गाँव इही कहिनी कंतरी ला बताये ला जावय अऊ अपन पेट के आगी ला बुताये । 

                       गाँव के निकलती मा परिया अऊ परिया मा चार ठन खूँटा ला गाडि़या दिस। कमचील ला नवाके झिल्ली -मिल्ली अऊ बांस टाट ला छाइस। ओखर उप्पर पेरा ला फेक दिस अऊ बना डारिस अपन बर सुघ्घर ’’कुंदरा'' ..। तिरसुल वाला मुड़भर के देवता जेखर फुनगी मा लिमउ गोभाये हे , सांकर बाना अऊ बाजू मा झांपी, झांपी मा फोटो मुरती अऊ आनी-बानी के जरी बुटी। मंझोत मा पिड़हा कुहकु बंदन पोताये  हे - अतनी तो कुल देवता आवय जौन ला ओखर गोसाइया हा छोड़ के सरग चल दिस। जेखर पूजा अरचना करथे धरमीन हा । मइनखे हा किरिया खाके दगा देथे फेर लोहा के देवता ,पथरा के भगवान अऊ फोटू मा मुचकावत किशन भगवान हा जम्मो उछाह  दुख मा पंदोली देथे , सहारा देथे।  का चाही येमन ला.........? चुरवा भर पानी गुंगुर -धुप अऊ गुड़ के हुम,नानकुन नरिहर अऊ खोंची भर तेल- बाती । जम्मो सियान अऊ लइका के रखवारी करथे इही देवता धामी हा। पाछू कोती नानकून कुरिया अऊ कुरिया मा नान्हे बडे़ ,दरजन अकन सुरा । हबराहा, झबलु एक ठन कुकुर । कथरी-गोदरी, टिन-टिप्पी , माली -थरकुलिया फुटहा कड़ाही अतकी तो जैजात आवए धरमीन के जौन ला अपन संग-संग किंजारथे। 

                                कका काकी , भइयां भौजी देवर देरानी जम्मो कोई पांच सात ठन कुंदरा बनाके रहिथे । धरमीन हा गाँव कोती ले लहुटिस तब ठाड़ सुखागे। जम्मो कुंदरा ला छीही-बिहि कर देये रिहिस । टीन -टप्पर ,कथरी गोदरी येती -वेती जम्मो कोती छिदरे- बिदरे  रिहिस। कुंदरा के कमचील ,टाट झिल्ली -मिल्ली बिगरे रिहिस अनर -बनर । सुरा कुरिया घला फुटगे रिहिस अऊ ढेये -ढेये कहिके सुरामन नरियावय । 

"काखर का अनीत कर डारेव भगवान मेहां। जेमा मोर कुंदरा ला छति -गति कर डारे हावय परमातमा , का होगे ...?''

धरमीन गुणे लागिस । जम्मो जिनिस ला सकेले लागिस नान्हे टूरी मन रोये फेर धरमीन हा आँसू ला पी डारे । 

  ’’ये राड़ी देवारीन, दुसटीन इहाँ ले भाग नही ते मार डारहू।’’ 

एक झन रेगडू हड़हा बॉस बरोबर उचपुर नानकुन मुँहू के मइनखे हा खिसियावत किहिस । मुहू तो नानकुन रिहिस फेर ओखर भाखा अब्बड़ बीख रिहिस।

  ’’का होगे सरपंच साहेब ,मेहां तो मोर रद्दा मा आथो मोर रद्दा जाथो। काखरो लाटा-फांदा मा नइ राहव ’’।  धरमिन किहिस

’’वाह रे भकतीन ! गाँव-गाँव  गली-गली मा चाल चिन्हावत रेंगत हावस अऊ अभी सधवइन बनत हस।’’  सरपंच हा धरमीन के गोठ ला सुनके किहिस ।

’’तोर सुरा हा खेत-खार ला खुरखुंद मताथे अऊ तेहां गाँव ला । अपन मरद ला खाये हस अऊ इहाँ के मरद ला अपन मोहो मा फॉस के वहू ला खाये के उदीम करत हस कलजागरीन।’’ सरपंच बखाने लागिस,हफरे लागिस। 

’’ये भुइयाँ ला, ये गाँव ला छोड़ के आने गाँव जावव। इहाँ ला झन बिगाड़ो। ये भुइया मा मेहां बियारा बनाहु ,धान अऊ गहू चना मिंजहू।’’ सरपंच किहिस ।  

’’दसो बच्छर ले हावन ये जगा मा।...नइ छोडव। खैरखाडाढ़ के तीर मा रेहेव तब बरदिया हा खेदारिस। ठाकुर दाई तरिया के पार मा रेहेव तब पटईल हा बखानिस अऊ पीपर के छइंया बर कोटवार हा झगरा करिस। कहाँ जावव नोनी बाबू ला धरके.........? गरीब के सुते बर चार हाथ के भुइयाँ घला नइ मिले, .........वाह रे भगवान... ! मोर मरद नइ हावय तब तेहां मोला कुकुर गत करत हस, इजत ला बेचत हस मोर।’’ 

धरमीन किहिस । 

                  ’’तोर का इजत रही रे दस दुवारी में खुसरइया के, अपन माँस ला बेचके रोटी मंगइयां।’’

 सरपंच किट किटावत किहिस । 

’’मोर इही मांस बर तोरो नियत डोलगें रिहिस ।मोर भुइयाँ, मोर माटी झन कह- काया हा घला माटी होही ।... भरे पइसा के गरब झन कर, कफन के कपड़ा मा खिसा नइ होवय । ..हाय चीज ,...हाय बस,...हाय-हाय, रपोटो -रपोटो झन कर महल अटारी के रूदबा झन देखा- कुंदरा के लइक घला नइ होबे सरपंच।’’

 धरमीन हा रोवत-रोवत अतकी तो किहिस। 

सरपंच के खेदारे ले काहाँ जाही बपरी हा ....? ओखर आने लागमनी हा जाये के तियारी करत रिहिस । 

ये सुवारथी समाज मा राड़ी के कोनो इज्जत हे का.........? चील गिधवा कस आँखी ला गडि़याये रहिथे धरमीन उप्पर ,भाग ले दू ठन आँखी हावय जादा आँखी होतिस ते का होतिस ...?.. एक मुड़ी दू आँखी मा जम्मो टूरी मन बर ,मोटियारी मन बर नियत डोलथे फेर रावण के दस मुड़ी  बीस आँखी रिहिस  ओखर नियत हा सिरिफ एके झन माइलोगिन माता सीता उप्पर डोलिस । ये एक मुड़ी वाला सिरतोन के रावण  आवय कि दस मुड़ी वाला हा  रावण आए .....? बच्छर पुट रावण मारथे फेर रावण हा तो कुकुरमुत्ता बरोबर फेर जग जाथे। कइसे जीयो भगवान मेहां...? मोर नोनी हा पढ़ लिख के अगुवाही कहिके इस्कूल मा भरती करे हॅव कइसे पढावव.......? कइसे सहो ताना ला  कइसे बचावव लाज .........?''

 धरमीन हा गुने लागथे।

        कहिथे ना एक ठन रद्दा हा मुंदाथे तब आने रद्दा के कपाट  हा उघरथे । धरमीन बर आज शीतला दाई बरोबर बनके आइस दसमत नाव के डोकरी हा। सरपंच के अनीत के भोगना भोगत हावय यहुँ हा । अपन बियारा के एक ठन कोंटा मा कुंदरा बनाये बर दिस दसमत डोकरी हा। धरमीन अब उँही मा रेहे लागे 

                   बेरा हा भुरके उडा़ये लागिस । सरकार के योजना ले सुरा लिखाइस  ओखर बर एक झन चरवाहा लगा दिस धरमीन हा। मास्टर मन हा अब्बड़ पंदोली देवय पढ़ई-लिखई मा जम्मों जिनिस बर। आज बड़की नोनी हा बारवीं किलास ले आगर होगे अऊ नान्हे हा दसवीं ला पढ़े लागिस। उम्मर होइस अऊ सुघ्घर टूरा खोजके बड़की के बिहाव करिस। ददा हा दारू पी-पीके सिरागे रिहिस फेर धरमीन हा आज दाई ददा बनके कन्या दान करिस। एक-एक चुरवा पानी मा गगरी  भर जाथे वइसना एक-एक पइसा सकेले लागिस धरमीन हा। अऊ छोटकी बर टिकली फूंदरी के दुकान खोल दिस। छोटकी हा पढाई मा पातर राहय अऊ दुकानी ला सुघ्घर चलाइस। आज गाँव मा घर बनाइस  दू कुरिया के सिरमीट के छत वाला। 

                   बड़का अऊ जब्बर रूख हा गरेर मा ढलंग जाथे फेर नान्हे कोवर रूख हा कतको गरेरा आवय जम्मो ला सही लेथे। धरमीन घला जम्मों ला सहीस अऊ जब्बर ठाढे रिहिस। घुरवा के दिन घला बहुरथे वइसना धरमीन के  दिन घला बहुरगे। जांगर खँगे लागिस फेर अपन रूंजु मोटरी अऊ गोदना के जम्मो जिनिस ला धर के जावय। आज गाँव के निकलती सरपंच के बियारा कोती ला देखिस तब ठाढ सुखागे, चार ठन बांस अऊ कमचील के तनाये कुंदरा बने रिहिस जिहां सरपंच हा टुटहा अऊ दोनगा खटिया मा सूते रिहिस ओखर गोड़ मा घांव, घांव मा  पीप अऊ माछी भिनभिनावत रिहिस। जांगर नइ चले अऊ मुँहु अब्बड़ चले।

                   ‘‘तोर बोली भाखा मोला लगगे धरमीन ! कुंदरा ले तोला भगाये हंव अऊ उही कुंदरा मा मेहां फेकाये हंव। बहु हा बस्साथे कहिथे , बेटा हा दुतकारथे अऊ नाती हा घिल्लाथे अऊ जम्मो कोई मिलके मोला ये कुंदरा मा फेक दिस। कोनो देखे ला आये, न कोनो  पुछे ला। दू दिन होगे भात बासी घला नइ खाये हंव।‘‘

 सरपंच रोये लागिस। सरपंच अब पूर्व सरपंच हो गे रिहिस। धरमीन हा झोला ले रोटी के कुटका निकालिस अऊ सरपंच ला खवाइस सरपंच गोबोर-गोबोर खाये लागिस। छिमा मांगिस सरपंच हा अऊ कुंदरा ला ससन भर देखके किहिस 

’’मइनखे ला मइनखे बनके रहना चाही धरमीन। महल अटारी के गरब रिहिस मोला। सिरतोन कुंदरा के पुरती नइ होयेव, मोला छिमा कर दे धरमीन! ’’

सरपंच रोये  लागिस अब गोहार पार के। धरमीन करू मुचकावत रेंग दिस अब। रुंजु के आरो आवत हाबे।

भोज नगर के दसमत कइना ।

सुंदर हावय घात  ।। 

राजा भोज के बाम्हन बेटी। 

       कुल बहमनीन के जात ।।

                                 

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चन्द्रहास साहू

धमतरी

छत्तीसगढ

मो न 8120578897

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 समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल

: मनखे ल समाजिक जीव माने गे हे। मनखे जब ले समाजिक जिनगी जिए के रस्ता म आगू बढ़िस होहीं, तब ले अपन दुख पीरा ल बाँटे के उदिम करिन होही। इही उदिम आगू बढ़के किस्सा कहानी के रूप म आगे। तब के कहानी अउ अब के कहानी म फरक जरूर दिखथे। छत्तीसगढ़ी कहानी ह मुअखरा ले लिखित होवत साहित्य के पटरी म दउड़त हे। कहानी म समाजिक चेतना के सुर रहना चाही। जेकर ले रचना कालजयी हो जथे। समाजिक सरोकार ले जुड़े बिगन कहानी पाठक ऊपर अपन छाप नइ छोड़ सकय। पाठक के मन म समाजिक उत्थान करे बर चेतना के सुर नइ भर सकय। समाज म कतकोन किसम के अंधविश्वास अउ बुराई हे। जेकर ले मुक्ति के रस्ता कहानी के नायक पाठक ल दिखाथे। समाज सुधार के दिशा म कहानी सदाकाल अपन भूमिका निभाही। ए कहानी चाहे कहानीकार के कल्पना ले उपजय, चाहे आँखीं देखी कोनो घटना ले उपजय। कहानीकार पहली मनखे आय तेकर पाछू कहानीकार। अइसन म वहू ह समाज के एक ठन अंग आय। उँकरो समाजिक करतब बनथे कि समाज के उत्थान म अपन भूमिका निभाय। अभी के बेरा म चंद्रहास साहू जी अपन इही समाजिक करतब ल निभावत सरलग समाजिक हित  के कहानी लिखत हें।

       भारतीय समाज म घुमंतू जाति के कतको मनखे अपन कला अउ संस्कृति ल लेके जिनगी जियत आवत हे। आजो कहूँ कहूँ कतको परिवार अपन पैतृक बूता ल लेके इहाँ उहाँ घूम घूम के जिनगी बसर करत हे। चाहे कारण कछू राहय। छत्तीसगढ़ म देवार जाति के मनखे इही घुमंतू जाति के मनखे आय। इही देवार मन के जिनगी के बहाना जम्मो कमजोर मनखे, भूमिहीन अउ भटकत फिरत बसर करइया मनखे के कहानी आय कुंदरा। कुंदरा जउन घाम, शीत अउ बरसा ले बाँचे के एक ठन थेबहा आय। ठीहा आय। जे हर थोरको के हवा गरेरा ल नइ सहय। उड़ा जथे। गरमी के तात तात हवा ले बाँचे के आसरा बनथे। 

       ए कहानी भारतीयता के लामे डोरी ल थामहे लोककथा के पैडगरी म चलत आगू बढ़थे। पद पइसा अउ पावर के बली म मनखे के बुध हजा जथे। कमजोरहा ल दबावत रउँदत आगू बढ़े के उदिम करथे। शेर बने फिरथे। फेर भुला जथे कि शेर बर सवा शेर घलव आथे। घुरवा के दिन घलव बहुरथे। 

      समे जइसन तइसन बीतत चलथे फेर गे समे ह लहुट के नइ आवय। फेर सीख जरूर दे जाथे। ए सीख सबो के अपन अपन ढंग ले हो सकत हे। हम का सीखथन ए  बात हमर ऊपर हे? 

      धरमीन मुस्कुल बखत म अपन हिम्मत नइ हारिस अउ जइसन तइसन अपश लइका ल अपन गोड़ म खड़ा कराइस। उहें पद अउ पावर के घोड़ा म सवार सरपंच अपन अवइया बेरा के दुख के आरो के अंदाजा नइ लगा सकिस। समे के संग अथक होइस। कमजोरहा मनखे म शामिल होइस। अपने औलाद मन ले दुत्कार पाथे।

     अइसे भी हमर पुरखा मन बेरा बेरा म बरजत कहिथे, कोनो ल दुखाना नइ चाही। कोनो दुखियारी के आह नइ लेना चाही। दुखी मनखे के अंतस ले निकले गारी ह शराप आय। अउ अशीष ह जिनगी बर वरदान होथे।

       धरमीन अउ ओकर नान्हे लइकामन के खियाल नइ करत सरपंच ह जउन दुख दिस हो सकत हे उही दुख के बलदा म सरपंच ल जिनगी के छेवर म दुख झेले ल परत हे।

      कहानी अपन उद्देश्य म सफल हे। कहानी गाँव शहर मन म बेजा कब्जा के शुरुआत कइसन अउ कति ले होइस एकरो परछो कराथे। जेकर ले आज सबो के आगू कतकोन समस्या के पहाड़ ठाड़ होवत हे।

    संवाद भाषा अउ शिल्प ए सब मन ए कहानी ल पाठक ल पढ़वावत आगू चलथे। अतेक सुग्घर कहानी बर मँय कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल बधाई देत हँव अउ कामना करत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202