Sunday 13 February 2022

गोबरी

 गोबरी

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एक ठन बगीचा म एक झन तितली ह अपन परिवार संग राहत रहिस।वो बगीचा ले थोकुन दूरिहा म एक ठन गौठान रहिस तेमा गोबरी के परिवार राहत रहिस। वोकर थोकुन दूरिहा म एक ठन रंग बिरंगा फूलवारी रहिस जेमा बारों महिना फूल फूले राहय। उहाँ के हवा ह ममहावत राहय। बहुत झन कीरा-मकोरा मन अउ मनखे मन तको उहाँ घूमे ल आवयँ अउ बइठ के थिरावँय--मजा लेवयँ।

       तितली ल वो फुलवारी म जाये बर गौठान ल पार करे बर परय। कभू कभू वो गोबरी करा बइठ घलो जवय।धीरे-धीरे उन दूनों म दोस्ती होगे।एक दिन गोबरी ह कथे--- ' बहिनी तितली  मैंहा तोला नेवता देवत हँव के तैंहा काली संझा कुन अपन लोग लइका संग मोर घर भोजन करे बर आबे'। तितली कहिस हव बहिनी मैंहा काली चार बजे पक्का आहूँ।

         बिहान भर जइसने चार बजिस तितली ह अपन लोग लइका मन संग गोबरी के घर जाये बर तइयार होये ल धरलिस वोती गोबरी ह  ताजा -ताजा गिल्ला गिल्ला गोबर के गोल-गोल नान-नान --गुलाब जामुन कस गोली बनाके तितली ल अगोरत रहिस।जइसने तितली ह अपन लोग लइका संग पहुँचिस ओइसने गोबरी ह खुश होवत सुवागत करत कहिस--'आव बहिनी -- बने करे जेन तैं अपन लइका --मोर बहिन बेटा-बेटी मन ल तको लाये हस।दूनों सहेली गोठियाये ल धरलिन।

  वोती बर तितली के लइका मन अपन दाई ल तंग करत कहे लगिन- जल्दी चल न वो--इहाँ अबडे़ बस्सावत हे---उल्टी उल्टी लागत हे। तितली ह समझावत कहिस--'अइसना नइ काहय लइका हो।सबके अपन-अपन रहन -सहन होथे।प्रेम म सब मंजूर होथे।वोमन ल शांत कराके गोबरी ल कहिस--' ले बहिनी हमन अतके बइबो। अँधियार तको होवत हे।रस्ता म कतको बइरी मन घात लगाये बइठे रहिथें।' वोतका ल सुनके गोबरी कहिस--ठीक हे बहिनी फेर भोजन करके जाये ल परही--पहिली पइत मोर घर आये हस।' 

'ले ठीक हे लान झटकुन परोस दे।'तितली कहिस।

गोबरी ह लकर धकर ला ला के सबो झन ल परोस दिस। तितली ह गोबर के नानचुक कुटका ल मुँह म डारिस त उबकाई आगे फेर बेचारी ह कुछु नइ कहिस।लइका मन तो छूबे नइ करिन। तहाँ ले छुट्टी माँगत तितली ह कहिस--' गोबरी बहिनी काली मोर घर नेवता हे झंझाकुन हमर घर बगइचा म खच्चित आबे।'

गोबरी कहिस--'हव बहिनी मोरो मन तोर घर जाये के हे फेर मैं हा आज तक ये दइहान के बाहिर ल कभू नइ देखे अँव --बगइचा कती हे तेला नइ जानवँ।एक- दू पइत दइहान ले बाहिर निकले के कोशिश करे हँव फेर हमर गोबरहा जात-बिरादरी के मन निकलन नइ दिन।'

' ओहो दुख के बात हे बहिनी फेर तैं चिंता झन कर मैं ह काली तीन बजे आहूँ अउ तोला अपन पीठ म बइठार के लेग जहौ।' 

' ठीक हे बहिनी मैं तोला अगोरत रइहौं।' गोबरी ह कहिस।

   तहाँ ले तितली ह अपन लोग लइका संग लहुटगे।बिहान भर वो ह गोबरी घर गिस अउ वोला अपन पीठ म चढ़ा के अपन घर जेन ह बगइचा म गुलाब के फूल उपर राहय--ले आइस। बगइचा ह कहर -महर ममहावत राहय। भँवरा मन गुन-गुन गुनगुनावत राहयँ। कोयली मन कुहकत राहयँ। चिरई मन चहचहावत राहयँ। 

  गोबरी बेचारी बक्खागे काबर के वो ह पहिली पइत अइसन माहौल म आय राहय।वो ह आनंद म बूड़गे। थोकुन पाहू तितली ह दौना पान के दोना म मकरंद भरके गोबरी ल खाये बर दिस। गोबरी ह चिखिस त अबड़ेच बढ़िया लागिस। बेचारी ह कभू अइसन मीठ अउ सुगंधित चीज खाये नइ रहिसे--सब ल सपेट डरिस। पाँच बजिस तहाँ ले मुँधरहा होये के पहिली तितली ह वोला वोकर घर दइहान म पहुँचा दिस।

     बिहान भर दइहान म बवाल होगे । गोबरहा मन म भारी जुरियाय होगे। कुछ कीरा मन जे मन तितली अउ गोबरी के दोस्ती ल फूटे आँखी नइ सहे सकत रहिन तेन मन गोबरहा समाज के मुखिया ले शिकायत करदिन के गोबरी ह तितली के घर गे रहिस हे।

गोबरहा समुदाय के मुखिया ह डाँटत पूछिस--'कइसे गोबरी तैं तितली के घर वोकर बगइया म गे रहे।'

'हव मुखिया जी --मै झूठ नइ बोलवँ--गे रहेंव--वो जगा ह बहुतेच सुंदर हे--ममहावत रहिथे--बस्सावत गोबर के बदला ममहावत जिनिस खाये ल मिलथे। हम सब झन ल उहाँ जाना चाही।' गोबरी ह हाथ जोर के कहिस।

   गोबरी के बात ल सुनके पंचइत म खुसुर-फुसुर होये ल धरलिस। तहाँ ले गोबरहा समाज के मुखिया कहिस--वाह रे गोबरी-तैंह हमला ज्ञान देबे।तैं नइ जानस का हमर रीति रिवाज हे के गोबर के भितरी रहना हे--गोबर ल छोंड़ के आन चीज ल नइ खाना ह न सूँघना हे।दइहान के बाहिर पाँव नइ रखना हे। तैं बहुत बड़े अपराध करे हस तेकर सेती तोला मौत के सजा दे जावत हे।' वो चिल्लाके कहिस--' येला तुरते मार दव।'

         मुखिया के काहत देरी रहिस जम्मों गोबरहा मन टूट परिन अउ गोबरी ल मार डरिन।

दूसर दिन तितली ह गोबरी के घर गिस त वोला मरे पाइस।वो गोबरहा समाज के पंचइत के बारे म सुन डरे रहिस।रोवत रोवत कहिस--'हे भगवान ये गोबरहा मन कब सुधरही।'


चोवा राम वर्मा 'बादल '

हथबंद, छत्तीसगढ़

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