Tuesday 8 February 2022

रेखा के लॉकडाउन ( छत्तीसगढ़ी कहिनी )

 रेखा के लॉकडाउन ( छत्तीसगढ़ी कहिनी )

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रेखा के जीवन म बदलाव ले के अइस लॉकडाउन ह। ये लॉकडाउन काबर रखे गे रहिस हे। आज भी सबके मन म विचार आथे। 21 फरवरी ले शुरु होय रहिस हे। ये ह चीन ले हवाई जहाज म उड़ा के आये कोरोना के कारण रहिस हे। ये कोरोना ह अपन कोप देखावत  रहिस हे अउ मनखे मन डर्रावत रहिन हें। सरकार ह आवागमन के साधन रेल बस हवाईजहाज ल बंद कर दे रहिस हे। सब कालेज स्कूल आफिस बंद होगे रहिस हे।


रेखा ये बात बर खुश रहिस हे के पूरा परिवार घर म हावंय। रघु ह सालों बाद घर म हावय रेखा के पति रघु कालेज म प्रोफेसर हावय। रेखा घलो स्कूल म शिक्षिका हावय। रेखा के एक बेटी हावय रंजना। रंजना ह सातवी म पढ़थे। घर के एक कुरिया म ओखर दादा दादी मन रहिथें। दादी तो गृहणी रहिस हे फेर दादा जी ह स्कूल म शिक्षक रहिस हे। पूरा परिवार शिक्षित  रहिन हे। 

अवकाश के बाद ले दादाजी अपन नतनिन रंजना ल पढ़ावय अउ घर के गार्डन के देखरेख करय। ये ओखर शौक रहिस हे। दादी तो पूरा जिनगी घर के काम अउ खाना बनाये म निकाल दिस। रेखा ल बहु बना के लइस त रेखा ह पूरा चौका ल अपन हाथ म ले लिस। रंजना होईस तभो ज्यादा आराम नइ करिस रेखा ह। अपन घर के जिम्मेदारी ल पूरा करत रहिस हे। ओखर बाद स्कूल जाये।

बिहनिया ले रंजना के अउ रघु के टिफिन तइयार करय। सब झन बर रोटी सब्जी बनावय सब ल नाश्ता करा के  सास ससुर बर कुकर  म दार भात तइयार करके रख देवय।

शाम के स्कूल ले आये के बाद तुरंत चौका म सब झन बर चाय अउ सूखा नाश्ता लान के देवय। सास ससुर ल हमेंशा अपन डायनिंग टेबल म संग म बइठार के ही खवइस। गार्डन म पानी डारे के काम सास ससुर के रहिस हे। ऊंखर ओतके तो काम रहिस हे , रंजना ल पढ़ाना, रंजना के संग म बात करना अउ क्यारी के देखभाल करना। रघु के घर म छोटे से गार्डन रहिस हे फेर भाजी ,धनिया, मिर्च घलो हो जावय। छोटे मोटे नार वाले सब्जी घलो हो जाये ये सब दादा दादी के शौक रहिस हे। रघु अपन माता पिता के बहुत ध्यान रखत रहिस हे। ओमन ल पूरा छूट रहिस हे के घर में जेन पहिली ले काम करत  आवत हव ओ सब ल करत राहव। अपन मनोरंजन के साधन म कोई कमी मत करना। 


लॉकडाउन म सब घर म रहिगें तब सबके काम म बदलाव अइस। ये बदलाव ल रंजना महसूस करत रहिस हे। बिहनिया के नाश्ता ल रघु बनाना शुरु कर दिस। रोज नवा नाश्ता खाये बर सबला मिलत रहिस हे। रघु ल देखके ओखर माँ बहुत खुश होवत रहिस हे। जेन रघु कभु पानी नइ निकाल पीयत रहिस हे तेन ह आज नाश्ता बनावत हावय। रोज सब ला अपन परस के नाश्ता देवय। रेखा ह जब काहय मैं ले लुहुं त कंधा ल धर के कुर्सी म बइठावय अउ पहिली कौर ल अपन हाथ म खवावय। घर म हमेंशा प्रेम रहिस हे फेर ये प्यार ल देखके रघु के माँ बाबूजी मन कोरोना ल धन्यवाद देवय। हा हा हा। " बने करेस कोरोना तोर आये ले मोर घर म प्रेम ह टपकत हावय।"


चाय बनाये बर रंजना ल कहे जाये। रंजना ह तो देखत राहय कब मैं चौका म जावंव। काबर के स्कूल के पढ़ाई अउ अपन स्वयं के जल्दी के कारण रेखा ह ओला चौका म नइ जावन देत रहिस हे। आज रंजना अपन पापा संग चौका म जाथे अउ काम म मदद भी करथे। सब नाश्ता करके बाहिर गार्डन म बइठ जथें। अब रघु ह स्वयं पेड़ पौधा म पानी डारथे। अपन बाबू जी ल आराम करे बर कहिथे। माँ बाबू जी रंजना संग गोठियावत रहिथें। माँ ह साग काटे बर दे दे कहिथे रेखा ल त रेखा कहिथे ----

" नहीं माँ तैं चार दिन तो आराम करके बाद म तो तोला भी काटना हे।"

रेखा सब संग गोठियावत साग ल सुधार लेथे। अब रघु आराम से पेपर पढ़थे अउ अपन बाबूजी ल समाचार सुनाथे। आजकल बाबूजी आराम करत हे। 

"कोन पेपर ल पढ़य उही कोरोना म मौत के संख्या बताथे।"

जेन समाचार रघु बताथे तेन म मजाक रहिथे। रघु अपन घर के वातावरण ल बहुत खुशहालीपूर्ण रखे हावय। सब झन थोरिक देर म अपन अपन कुरिया म चल देथें। सब झन नहा के तइयार हो जथें। तब तक रेखा खाना बना के टेबल म रख देथे। रेखा घलो नहा के तइयार हो जथे। माँ बाबू जी थोरिक आराम करे बर लेट जथें। रंजना अपन खेल म लग जथे। सातवी पढ़त लइका ह आज भी गुड्डा गुड़िया खेलथे।

गणित के सवाल हल करथे, कुछ पेंटिंग्स करथे। रंजना बहुत बढ़िया चित्रकारी घलो करत रहिस हे। रंजना जब भी समय मिलय त कुछ न कुछ काम करते राहय। रघु ह टेबल म सब झन बर पानी भर के रखथे अउ थाली कटोरी लाथे।


रेखा के तइयार के होवत ले एक बज जथे। सब झन साथ म खाना खाथें। रघु के मजाक चलते रहिथे।  खाना खा के सब झन आराम करथें। रघु अउ रेखा के फोन आवत रहिथे। रंजना अपन दादी तीर ही सुतथे। दादी ओला अपन समय के गोठ ल बतावत रहिथे। अपन स्कूल के जमाना के बात ल दादी सुनाथे। समय ह तो हाँसत खेलत बीत जथे।


शाम के  फेर रघु चाय बनाथे। सब झन टेबल म आ के बइठ जथें । रेखा नाश्ता बर पूछथे त जब खाये के मन होथे त बनाथे वरना सूखा नाश्ता चलत हे। माँ ह चिंता म आ जथे--" कब तक ये नाश्ता चलही? कब तक ये बंद चलही? कब ये लोगन के मौत ह रुकही? सब कुछ अनिश्चित होगे हावय।  घर के गेट म ताला लगे आज 14 दिन होगे। साग भाजी आना बंद होगे हावय। सब दुकान म सामान के अकाल परगे हावय। अब घर म खाना कइसे चलही"?


ओखर चेहरा ल देख के रघु तीर म आ के बइठ जथे अउ पूछथे----" माँ का होगे? "

"कुछु नहीं बेटा, मैं सोचत हावंव के ये राशन कब तक चलही? साग ह तो आना बंद होगे हावय। बिस्कुट नइये। रंजना अब रोटी खाथे। ये सब कब तक ठीक होही। हमन कब तक घर म बंद रहिबो। बस ,रेल हवाई जहाज सब बंद होगे हावय। आना जाना बंद हे त राशन कहां ले आही।?"

" तैं चिंता मत कर हमन बहुत झन आपस म बात करत रहिथन। सब ठीक हो जही। स्वयं सेवी संस्था हमर मदद करही।"

रात के खाना खाये के बाद सब झन बाहिर म बइठ जथें, तभे एक मनखे स्कूटर म आके एक बोरी आटा दे के जाथे। माँ ल अचरज होथे। ओला देखके रघु कहिथे मोर दोस्त के पहिचान के दूकान आये ऊंहा ले आटा भेजवाये आवय। काली बर अउ राशन आ जही। पइसा दूगना लेवत हावय फेर चिंता नइये। अभी पइसा नहीं जान बचाये के जरुरत हावय। 14 दिन बर फेर लॉकडाउन बाढ़ जथे। ऑनलाइन कुछ साग भाजी मिल जथे। 


जीवन के गाड़ी चलना शुरु हो जथे। अचानक पता चलथे के बुआजी के निधन होगे हावय। कारण कोरोना रहिस हे। ओखर परिवार म दो बेटा बहु, चार नाती सबो झन ल कोरोना हे। सब अस्पताल म हावंय। बुआजी के निधन ले बाबू जी बहुत दुखी हो जथे। माँ तो सिसक सिसक के रोना शुरु कर देथे काबर के दूनों झन सहेली असन रहिन हें। सुख दुख के साथी। फेर अतेक बड़ दुख म कोई साथ नइये।

अंतिम संस्कार नगर निगम वाले मन करिन। कोई नइ गीस। ओखर बारे म बेटा मन ल नइ बताये गे रहिस हे। दूसर दिन खबर आथे के बड़े बेटा गुजर गे। अब तो सदमा अउ गहिर होगे। एक बाप अपन बेटा के मरे के खबर सुनत हावय कइसे लगिस होही। बाबूजी तो जइसे पथरा बरोबर होगे। दू दिन म दू मनखे चल दिस बाप के दिल म कइसे गुजरिस होही। 


दूसर दिन रघु ह अपन माँ बाबूजी ल खुश रखे के कोशिश करत रहिस हे। दिनचर्या तो उही रहिस हे फेर घर म खुशी गायब रहिस हे। रंजना ही ऐती ओती चहकत रहिस हे। अचानक ऱचना ल एक चिड़िया तिनका उठाये दिख जथे। रंजना ह अपन दादी ल कहिथे -

"दादी देख तो ये गौरय्या कोनो मेर घोसला बनावत हावय। सब डाहर परेशानी हावय फेर पक्षी मन बहुत खुश हावंय।"

दादी कहिथे --" हाँ पूरा हवा साफ होगे हावय। गाड़ी मोटर के आवाज नइ आवत हे। तब तो पक्षी मन खुश होबे करहीं। कतेक चहकत हावय। अइसे लगथे के ये ह सामान कुरिया के रोशनदान म घोसला बनावत हावय। बसंत ऋतु आने वाला हे त ये मन अंडा दिहीं तभे घोसला बनावत हावंय। रंजना जाके देखथे तो सही म स्टोर रुम के रोशनदान म आधा ले ज्यादा घोसला बनगे रहिथे। दादी कहिथे --" चलो जीवन जावत हे त जीवन आवत भी हे। बहुत खुशी के बात आये।" दादा जी के चेहरा में भी खुशी दिखथे। 


रघु कहिथे --" बाबू जी आप अतेक मत सोचव ये तो फैलने वाला रोग आये। पूरा विश्व ल अपन बाहीं म जकड़ लेय हावय। अभी तो सब ल अपन जान बचाना हे। विदेश म फसे हमर देश के मन कइसे आहीं ये सोचना हे। लाखो मनखे अपन राज ले दूसर राज म कमाये खाये बर गे हावंय तेखर मन बर भी सोचना हे।"

" सही काहत हस बेटा " 

" अब रोज टी वी म भजन आथे तेन ल सुने करव।सबके जीवन बर प्रार्थना करव। अउ अपन जीवन ल खुश रखव।कहिथें न मनखे बीमारी ले नहीं डर म ज्यादा मरथें। हम सब ल एक दिन जाना हे। कोई आज जाही त कोई कल। सब बर बराबर के भावना रखव। आज पूरा विश्व परिवार बनगे हावय। आज अपन बर सोचे के समय नोहय।"


रोज रात के अब पूरा परिवार संग म बइठ के ताश खेलथें। 

एक दिन तो दादी अपन शादी के किस्सा सुनाथेक्षत  रंजना ह अचरज ले अपन दादी ल देखथे। दादी के बिहाव होये रहिस हे त गाँव के कुँआ म शक्कर डाल के शरबत बनाये गीस। उही ल गाँव भर बांटे गीस। ये अचरज भरे तो रहिस हे साथ ही अतेक बराती रहिन हे के आस पास के गाँव म रुके के व्यवस्था करे गे रहिस हे। हाथी में भी बरात आये रहिन हे। पहिली तो घोड़ा म बरात जाबे करत रहिन हें। पहिली बारात एक रात रुकत भी रहिस हे। दो बार के नाश्ता दो बार के खाना खिलाये जाये। कोई भी घर के बराती पूरा गाँव के बराती राहंय। सब झन सेवा करंय।


ये सब बात ल सुनके  रंजना तो सन्न रहिगे अउ बोलथे---

"अतेक खाना खिलावत रहिन हे। फेर रूके के भी व्यवस्था राहय। पहिली बहुत पइसा रहिस हे का दादी?"

दादा दादी हाँसे ले लग जथें। दादा जी कहिथे " अरे बेटा सब दिल से मदद करंय। पइसा भी राहय। सस्ता के जमाना रहिस हे।"


रघु कहिथे -" देख रंजना अब लॉकडाउन तक हमन रोज दादा दादी के जमाना के गोठ ल सुनबो। कहिनी असन लगही भी अउ हमन ल आज समय मिले हावय त ओ जमाना ल जानन तो।"


रेखा कहिथे --" सही बात आये ये लॉकडाउन अउ कोरोना के दहशत ले बाहिर ही रहना हे त हमन ल अपन आप में ही खुश रहना जरुरी हे। मोबाइल, समाचार, अखबार ले दूरिहा रहिके अपन परिवार के साथ घर म बंद राहन तभे ठीक हे। सुरक्षित रहिबो अउ मन भी ठीक रहिही।"


रंजना कहिथे -" मैं तो कभी भी सबके संग नइ रहेंव। सब अपन अपन काम म लगे राहत रहेव। आज पापा ल देख के बहुत अच्छा लगथे के ओ ह माँ के मदद करथे। पूरा दिन माँ घर के काम फेर बाहर के काम कर कर के थक गे रहिस हे अब ओला भी आराम मिलत हावय।"


दादी कहिथे " हाँ बेटा हमन तो नौकरी नइ करे रहेन त सब काम ल करके आराम भी कर लेवन। आज तो रेखा ल आराम ही नइ मिलय। पइसा कमाये के नाव म  सब दऊड़त रहिथे।  घर म सालों बाद सब झन हावन। एक दूसर के काम करत हन। हँसी मजाक करत हन सब बने लागत हे फेर दुनिया आज कहाँ चल दिस। जहाँ के तहाँ रुक गे हावय। हमन ल कुछ सीखना चाही।"


रघु -" हाँ माँ गुजरात डाहर तो जंगली जानवर मन शहर डाहर घूमे बर आ गे रहिन है। नदी साफ दिखत हे। पक्षी मन खुश हावंय,आकाश साफ हे।  हाँ माँ मोला भी घर के काम करके बहुत अच्छा लगत हे। आज मोला रेखा के तकलीफ के पता चलिस। अब हमन सब झन मिलके काम करबो।"

लॉकडाउन बढ़ते गीस। सामान के कालाबजारी घलो चलिस फेर मदद करने वाला मन के कमी नइ रहिस हे।

मनोरंजन बर पुलिस वाला मन भी गाना गावत रहिन हे।  काम अउ पढ़ाई लिखाई सब ऑनलाइन चले ले लगगे। रंजना आठवीं म आगे। बाहर पढ़ने वाला ,नौकरी करने वाला मन फंसे रहिगें। बहुत झन मन घर वापस आगे रहिन हें।

एक साल तक रंजना ल अपन माँ ,पापा, दादा, दादी के मया दुलार मिलिस। काम कइसे करथें तेनों ल देखिस। प्रकृति ल बहुत तीर ले देखिस। अपन दादा दादी ले साठ बछर पहिली ले गाँव के बारे म जानिस। सबले बड़े बात अपन पापा ल काम करत देखिस, माँ के मदद करत देखत रहिस हे।


रेखा के जीवन म बदलाव अइस। बिहाव के बाद ही नौकरी लग गे रहिस हे। तब ले ओ ह घर अउ सास ससुर ल अइसे अपना लिस के सब के काम ल स्वयं करे ले लगगे। रंजना होइस तब सास ओला रखत रहिस हे। फेर लइका ल छोड़ के जाना भी तो पीड़ादायक रहिस हे। ये सब के संग समझौता करत चलत रहिस हे। रघु तो अइसे के कालेज से आतिस त पानी भी ओला लाके देय बर परय। रेखा नइ रहितिस त ओखर माँ ह पानी देतिस। रेखा बर तो जीवन म पहिली बार अतेक खुशी आये रहिस हे। पति नाश्ता बनावत हावय त कभू सब्जी बनावत हावय। रोज रोज के आपाधापी ले रेखा ल राहत मिलत रहिस हे। कोरोना तो अपन रंग देखावत रहिस हे, बहुत परिवार दुख झेलत रहिन हें। ये सब दुख के बीच में भी प्यार बरसत रहिस हे। रेखा बहुत खुश रहिस हे। रेखा सरिख अउ परिवार भी खुश होही ।

आज रंजना घलो बहुत खुश हे। रंजना ह मोबाइल ले देख के केक बनाये हावय।

रंजना " दादी आओ, पापा आओ, माँ अउ दादा जी आओ आज हमन केक काटबो। "

रघु -" आज मोर बेटी केक बनाये हे। कोन खुशी म केक काटबो रंजना?"

"लॉकडाउन के खुशी म "

लॉकडाउन खुशी कइसे हो सकथे। सब तो घर म बंद हे, काम धंधा बंद हे।"

रंजना अपन पापा के गला से लग जथे अउ कहिथे " हम सब साथ साथ हावन। मैं बचपन से सबला अलग अलग देखत रहेंव। दादा दादी भी बहुत खुश हावंय। मम्मी भी बहुत खुश हावय। तैं अब माँ के काम म मदद करथस न पापा। अब सब झन बहुत प्रेम से एक साथ राहत हन। कोरोना के कारण ही न? कोरोना के कारण ही लॉकडाउन होये हावय अउ हमन सब ओखरे कारण से एक संग हावन।"

रंजना के बात सुनके रघु अउ रेखा के आँख म आँसू आ जथे। सब झन मिलके केक काटथें अउ हंसी खुशी के संग केक खाथें। 

सुधा वर्मा।


समीक्षा

पोखनलाल जायसवाल

: वैज्ञानिक शोध अतेक आगू बढ़ गे हावय कि सबो असंभव ह संभव लागे लगथे। तइहा के बात ल बइहा लेगे। यहू सिरतोन लागथे। फेर कभू कभू बबा पुरखा मन के उदिम अउ अउ उपाय ह हम ल नवा रस्ता देथे। अउ कहे बर परथे कि हमर पुरखा मन निच्चट अप्पढ़ नी रहे हे। पढ़े भले नइ रहिन हें फेर कढ़े रहिन हे। आज जब कोरोना ले बाँचे म वैज्ञानिक अउ डॉक्टर मन सोशल डिस्टेंसिंग के गोठ करथे, घेरी भेरी हाथ धोय के उदिम करे बर कहिथे, त लगथे हमर पुरखा मन के तइहा के गोठ अभियो प्रासंगिक हे। सुरता करन जब धूकी बेमारी के आय ले बचे के उन मन जेन उदिम करत रहिन। आज उँकर वो उदिम सोला आना सार्थक हे।  लॉकडाउन भले आज के नवा शब्द आय जउन  कोरोना के आय ले लोगन जाने सुने अउ का होथे एकर अनभो कर डरिन। फेर एहर तभो रेहे हे, जब बबा पुरखा मन ...।

       लोगन विकास के घोड़ा म सवार होके कति कोति जात हे। खुदे नइ सोचत हे। बस पइसा अउ बंगला गाड़ी के सपना ल पाले आगू बढ़त रहिस। मया परेम ल मुरसरिया म रख सुख दुख ल गोठिया के फुरसत घलव नइ दिखत रहिस। सिरिफ पइसा.. पइसा  अउ..पइसा दनजर आवत रहिस। फेर वाह रे कोरोना सबो के चेत हर लेस। सब ल मया परेम के बंधान कोति ढकेल देस। जिनगी के महत्तम सिखा देस। पइसा के पाछू भगइया दउड़इया मन ल घलव बता देस कि पइसा कुढ़ोय ले जिनगी नइ मिल पावय। पइसा के रेहे ले जिनगी बचाय जा सकत हे ए भरम ह टूट गे। सिरतोन जिनगी पानी के फोटका आय, फेर साबित होगे।साँस बर हवा बिसाय ल परही कोन सोचे रहिन हे। फेर यहू बात बर अभी के बेरा ह सोचे बर मजबूर कर दिस। 

      कोरोना काल के बेरा म जिनगी म कइसन बदलाव आय हे, इही सब के लेखा जोखा रखत सुग्घर कहानी हे रेखा के लॉकडाउन।

      आज जब नवा पीढ़ी ह हम दू अउ हमर दू के परिधि म सिमटत दिखत हे, उहाँ रेखा जइसन चरित्र ह समाज ल नवा दिशा दे म अपन अमिट छाप छोड़ही, अइसे कहे जा सकत हे। पढ़े लिखे अउ नउकरी पेशा नारी म ए समस्या जादा करके देखे म आथे। अइसन म रेखा आदर्श बहू के रूप म घर परिवार ल जोरे रखे म सफल हे।

     समय परिवर्तन ल धर के चलथे। परिवर्तन प्रकृति के नियम आय। शायद इही परिवर्तन ल लेके आय हे कोरोना काल ह। अउ वो परिवर्तन आय लोगन के मन म घर परिवार बर समय निकाले अउ सुख दुख ल लेके बइठ गोठियाय के। 

      ए कहानी अपन बेरा  के आरो देवत सबो किसम के रपट ल समोय हे। संवाद अउ भाषा  चरित्र मन के मुताबिक हे। भाषा म प्रवाह हे।

 "चलो जीवन जावत हे त जीवन आवत भी हे। बहुत खुशी के बात आय।" ...दादी के अइसन संवाद ह बिपत के घड़ी म जिनगी म नवा आशा अउ सकारात्मक सोच के संचार करही। कहे जाय त कोनो अबिरथा नइ होही। मोर मन ल  छत्तीसगढ़ी शब्द के रहिते हिंदी के शब्द बउरई ह थोकन खटकिस हे। प्रसंग के मुताबिक अँग्रेजी के शब्द मन ल जगा दे गेहे। जेकर ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के लालित्य बढ़ही। छत्तीसगढ़ी के शब्द कोष म बढ़ोतरी होही। 

     कहानी के कथानक अउ देशकाल लॉकडाउन के ऊपर हे। जउन ह कहानी बर नवा विषय आय। लॉकडाउन के बेरा म घर परिवार के बीच लाखों मनखे के  किस्सा रेखा जइसन रेहे होही। रेखा तो कहानीकार सुधा दीदी के गढ़े पात्र आय। जउन हमर तिर के हो सकत हे। शीर्षक घलव सार्थक हे। 

      सुग्घर कहानी बर सुधा दीदी ल बधाई देवत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

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