Sunday 20 February 2022

कहानी: कुंदरा :-

 कहानी: कुंदरा :-

                            चन्द्रहास साहू

                            8120578897      

पांच हाथ के लुगरा , चिरहा अऊ मइलाहा जतका छेदा हावय तौन ला पहेनइयां हा नइ जाने फेर मनचलहा मरदजात मन जान डारे हावय । उँही ला माड़ी के उप्पर ले पहिरे हावय अऊ फुग्गा बाहाँ वाला पोलखा, पहुंची नरी मा रूपियामाला, भूरी चुंदी तेल फुल के अंकाल, आँखी मा काजर आंजे कजरारी ,कान मा चिकमिक -चिकमिक बजरहा खिनवा, मुड़ी मा डेंकची बोहे, बाहाँ मा मोटरी अरोये ,मोटरी मा दू झन नान्हे बड़का नोनी ला पाय  भूरी चिकनी उचपुर सुघ्घर गोदना वाली मोटियारी आवय । एक हाथ मा रूंजु के काड़ी ला धरे हावय अऊ छाती मा ओरमत रूंजु ला बजावत राग अलापिस 

भोज नगर के दसमत कइना ।

सुंदर हावय घात....  ।। 

राजा भोज के बाम्हन बेटी। 

       कुल बहमनीन के जात.... ।।

                     गुरूर-गुरूर, भुरूर-भुरूर घात सुघ्घर रूंजु हा नरियावय , एक कोती तुमड़ी अऊ बांस ला खुसेर के चार ठन तार ला झीक देहे अऊ बनगे रूंजु , दू ठन खूँटी अऊ खूँटी ला जइसे अइठे लागे रुंजु हा नरियावय टीनिन-टीनिन टुनुन-टुनून। धरमीन देवारिन हा मंदरस कस मीठ राग अलापथे वइसना रूंजु हा घला गुड़ कस मीठ नरियाथे। पारा के जम्मो मइनखे सकला जाथे अऊ धरमीन हा बिधुन होके गाथे अऊ राजा भोज के कहिनी कंतरी कहिथे। 

राजा भोज, भोज नगर के राजा रिहिस जेखर सात झन नोनी रिहिस नान्हे नोनी के नांव दसमत आवय जौन हा अब्बड़ सुघ्घर बरन वाली रिहिस । एक दिन राजा हा पुछिस।

"बेटी तुमन काखर किसमत के खाथो ओ !'' जम्मो बेटी मन राजा के किसमत के खाथन किहिस फेर दसमत किहिस।

 ‘‘ददा मेहां अपन किसमत के खाथो अऊ जम्मो जिनावर घला अपन-अपन किसमत के खाथे ।‘‘ 

राजा भोज ला खिसियानी लागिस अऊ परछो लेइस । राजकुमारी दसमत कइना के बिहाव उडि़या देवार संग कर दिस । दसमत पुछिस अपन गोसाइया ला।

 ‘‘तुमन का बुता करथो जी, भिनसरहा जाथो अऊ मुँधियार ले आथो।‘‘ 

उडि़या देवार बताइस 

"हमन जोगनी धरे ला जाथन ।" 

"कइसे रहिथे जोगनी हा..... महुंं देखहु जोगनी ला ?" 

दसमत पुछिस मुचकावत  अऊ उडि़या देवार हा किरिया खाइस।

"आने दिन जोगनी ला लानहु ।''

आज उडि़या देवार हा जोगनी ला लानिस। दसमत ला मुचकावत देखाइस  तब दसमत हा ठाढ़ सुखागे।

"तुमन हा हीरा मोती के बुता करथो।''

 अब मालिक करा गिस अऊ अपन भाग के जम्मो हीरा ला नंगा लिस। आज दसमत कइना अऊ उडि़या देवार हा राजा भोज ले जादा पोठ होगे । 

ये जम्मो कहिनी ला सुनिस तब अब्बड़ उछाह मनावय गाँव के मन अऊ धरमीन देवारिन ला चाउर-दार,नुन-तेल ,साग-भाजी आमा के अथान अऊ आनी-बानी के खुला देके पठोवय । नानकुन दुनो टूरी अऊ धरमीन बर रोटी बासी घला मिले । धरमीन हा एक गाँव ले आने गाँव इही कहिनी कंतरी ला बताये ला जावय अऊ अपन पेट के आगी ला बुताये । 

                       गाँव के निकलती मा परिया अऊ परिया मा चार ठन खूँटा ला गाडि़या दिस। कमचील ला नवाके झिल्ली -मिल्ली अऊ बांस टाट ला छाइस। ओखर उप्पर पेरा ला फेक दिस अऊ बना डारिस अपन बर सुघ्घर ’’कुंदरा'' ..। तिरसुल वाला मुड़भर के देवता जेखर फुनगी मा लिमउ गोभाये हे , सांकर बाना अऊ बाजू मा झांपी, झांपी मा फोटो मुरती अऊ आनी-बानी के जरी बुटी। मंझोत मा पिड़हा कुहकु बंदन पोताये  हे - अतनी तो कुल देवता आवय जौन ला ओखर गोसाइया हा छोड़ के सरग चल दिस। जेखर पूजा अरचना करथे धरमीन हा । मइनखे हा किरिया खाके दगा देथे फेर लोहा के देवता ,पथरा के भगवान अऊ फोटू मा मुचकावत किशन भगवान हा जम्मो उछाह  दुख मा पंदोली देथे , सहारा देथे।  का चाही येमन ला.........? चुरवा भर पानी गुंगुर -धुप अऊ गुड़ के हुम,नानकुन नरिहर अऊ खोंची भर तेल- बाती । जम्मो सियान अऊ लइका के रखवारी करथे इही देवता धामी हा। पाछू कोती नानकून कुरिया अऊ कुरिया मा नान्हे बडे़ ,दरजन अकन सुरा । हबराहा, झबलु एक ठन कुकुर । कथरी-गोदरी, टिन-टिप्पी , माली -थरकुलिया फुटहा कड़ाही अतकी तो जैजात आवए धरमीन के जौन ला अपन संग-संग किंजारथे। 

                                कका काकी , भइयां भौजी देवर देरानी जम्मो कोई पांच सात ठन कुंदरा बनाके रहिथे । धरमीन हा गाँव कोती ले लहुटिस तब ठाड़ सुखागे। जम्मो कुंदरा ला छीही-बिहि कर देये रिहिस । टीन -टप्पर ,कथरी गोदरी येती -वेती जम्मो कोती छिदरे- बिदरे  रिहिस। कुंदरा के कमचील ,टाट झिल्ली -मिल्ली बिगरे रिहिस अनर -बनर । सुरा कुरिया घला फुटगे रिहिस अऊ ढेये -ढेये कहिके सुरामन नरियावय । 

"काखर का अनीत कर डारेव भगवान मेहां। जेमा मोर कुंदरा ला छति -गति कर डारे हावय परमातमा , का होगे ...?''

धरमीन गुणे लागिस । जम्मो जिनिस ला सकेले लागिस नान्हे टूरी मन रोये फेर धरमीन हा आँसू ला पी डारे । 

  ’’ये राड़ी देवारीन, दुसटीन इहाँ ले भाग नही ते मार डारहू।’’ 

एक झन रेगडू हड़हा बॉस बरोबर उचपुर नानकुन मुँहू के मइनखे हा खिसियावत किहिस । मुहू तो नानकुन रिहिस फेर ओखर भाखा अब्बड़ बीख रिहिस।

  ’’का होगे सरपंच साहेब ,मेहां तो मोर रद्दा मा आथो मोर रद्दा जाथो। काखरो लाटा-फांदा मा नइ राहव ’’।  धरमिन किहिस

’’वाह रे भकतीन ! गाँव-गाँव  गली-गली मा चाल चिन्हावत रेंगत हावस अऊ अभी सधवइन बनत हस।’’  सरपंच हा धरमीन के गोठ ला सुनके किहिस ।

’’तोर सुरा हा खेत-खार ला खुरखुंद मताथे अऊ तेहां गाँव ला । अपन मरद ला खाये हस अऊ इहाँ के मरद ला अपन मोहो मा फॉस के वहू ला खाये के उदीम करत हस कलजागरीन।’’ सरपंच बखाने लागिस,हफरे लागिस। 

’’ये भुइयाँ ला, ये गाँव ला छोड़ के आने गाँव जावव। इहाँ ला झन बिगाड़ो। ये भुइया मा मेहां बियारा बनाहु ,धान अऊ गहू चना मिंजहू।’’ सरपंच किहिस ।  

’’दसो बच्छर ले हावन ये जगा मा।...नइ छोडव। खैरखाडाढ़ के तीर मा रेहेव तब बरदिया हा खेदारिस। ठाकुर दाई तरिया के पार मा रेहेव तब पटईल हा बखानिस अऊ पीपर के छइंया बर कोटवार हा झगरा करिस। कहाँ जावव नोनी बाबू ला धरके.........? गरीब के सुते बर चार हाथ के भुइयाँ घला नइ मिले, .........वाह रे भगवान... ! मोर मरद नइ हावय तब तेहां मोला कुकुर गत करत हस, इजत ला बेचत हस मोर।’’ 

धरमीन किहिस । 

                  ’’तोर का इजत रही रे दस दुवारी में खुसरइया के, अपन माँस ला बेचके रोटी मंगइयां।’’

 सरपंच किट किटावत किहिस । 

’’मोर इही मांस बर तोरो नियत डोलगें रिहिस ।मोर भुइयाँ, मोर माटी झन कह- काया हा घला माटी होही ।... भरे पइसा के गरब झन कर, कफन के कपड़ा मा खिसा नइ होवय । ..हाय चीज ,...हाय बस,...हाय-हाय, रपोटो -रपोटो झन कर महल अटारी के रूदबा झन देखा- कुंदरा के लइक घला नइ होबे सरपंच।’’

 धरमीन हा रोवत-रोवत अतकी तो किहिस। 

सरपंच के खेदारे ले काहाँ जाही बपरी हा ....? ओखर आने लागमनी हा जाये के तियारी करत रिहिस । 

ये सुवारथी समाज मा राड़ी के कोनो इज्जत हे का.........? चील गिधवा कस आँखी ला गडि़याये रहिथे धरमीन उप्पर ,भाग ले दू ठन आँखी हावय जादा आँखी होतिस ते का होतिस ...?.. एक मुड़ी दू आँखी मा जम्मो टूरी मन बर ,मोटियारी मन बर नियत डोलथे फेर रावण के दस मुड़ी  बीस आँखी रिहिस  ओखर नियत हा सिरिफ एके झन माइलोगिन माता सीता उप्पर डोलिस । ये एक मुड़ी वाला सिरतोन के रावण  आवय कि दस मुड़ी वाला हा  रावण आए .....? बच्छर पुट रावण मारथे फेर रावण हा तो कुकुरमुत्ता बरोबर फेर जग जाथे। कइसे जीयो भगवान मेहां...? मोर नोनी हा पढ़ लिख के अगुवाही कहिके इस्कूल मा भरती करे हॅव कइसे पढावव.......? कइसे सहो ताना ला  कइसे बचावव लाज .........?''

 धरमीन हा गुने लागथे।

        कहिथे ना एक ठन रद्दा हा मुंदाथे तब आने रद्दा के कपाट  हा उघरथे । धरमीन बर आज शीतला दाई बरोबर बनके आइस दसमत नाव के डोकरी हा। सरपंच के अनीत के भोगना भोगत हावय यहुँ हा । अपन बियारा के एक ठन कोंटा मा कुंदरा बनाये बर दिस दसमत डोकरी हा। धरमीन अब उँही मा रेहे लागे 

                   बेरा हा भुरके उडा़ये लागिस । सरकार के योजना ले सुरा लिखाइस  ओखर बर एक झन चरवाहा लगा दिस धरमीन हा। मास्टर मन हा अब्बड़ पंदोली देवय पढ़ई-लिखई मा जम्मों जिनिस बर। आज बड़की नोनी हा बारवीं किलास ले आगर होगे अऊ नान्हे हा दसवीं ला पढ़े लागिस। उम्मर होइस अऊ सुघ्घर टूरा खोजके बड़की के बिहाव करिस। ददा हा दारू पी-पीके सिरागे रिहिस फेर धरमीन हा आज दाई ददा बनके कन्या दान करिस। एक-एक चुरवा पानी मा गगरी  भर जाथे वइसना एक-एक पइसा सकेले लागिस धरमीन हा। अऊ छोटकी बर टिकली फूंदरी के दुकान खोल दिस। छोटकी हा पढाई मा पातर राहय अऊ दुकानी ला सुघ्घर चलाइस। आज गाँव मा घर बनाइस  दू कुरिया के सिरमीट के छत वाला। 

                   बड़का अऊ जब्बर रूख हा गरेर मा ढलंग जाथे फेर नान्हे कोवर रूख हा कतको गरेरा आवय जम्मो ला सही लेथे। धरमीन घला जम्मों ला सहीस अऊ जब्बर ठाढे रिहिस। घुरवा के दिन घला बहुरथे वइसना धरमीन के  दिन घला बहुरगे। जांगर खँगे लागिस फेर अपन रूंजु मोटरी अऊ गोदना के जम्मो जिनिस ला धर के जावय। आज गाँव के निकलती सरपंच के बियारा कोती ला देखिस तब ठाढ सुखागे, चार ठन बांस अऊ कमचील के तनाये कुंदरा बने रिहिस जिहां सरपंच हा टुटहा अऊ दोनगा खटिया मा सूते रिहिस ओखर गोड़ मा घांव, घांव मा  पीप अऊ माछी भिनभिनावत रिहिस। जांगर नइ चले अऊ मुँहु अब्बड़ चले।

                   ‘‘तोर बोली भाखा मोला लगगे धरमीन ! कुंदरा ले तोला भगाये हंव अऊ उही कुंदरा मा मेहां फेकाये हंव। बहु हा बस्साथे कहिथे , बेटा हा दुतकारथे अऊ नाती हा घिल्लाथे अऊ जम्मो कोई मिलके मोला ये कुंदरा मा फेक दिस। कोनो देखे ला आये, न कोनो  पुछे ला। दू दिन होगे भात बासी घला नइ खाये हंव।‘‘

 सरपंच रोये लागिस। सरपंच अब पूर्व सरपंच हो गे रिहिस। धरमीन हा झोला ले रोटी के कुटका निकालिस अऊ सरपंच ला खवाइस सरपंच गोबोर-गोबोर खाये लागिस। छिमा मांगिस सरपंच हा अऊ कुंदरा ला ससन भर देखके किहिस 

’’मइनखे ला मइनखे बनके रहना चाही धरमीन। महल अटारी के गरब रिहिस मोला। सिरतोन कुंदरा के पुरती नइ होयेव, मोला छिमा कर दे धरमीन! ’’

सरपंच रोये  लागिस अब गोहार पार के। धरमीन करू मुचकावत रेंग दिस अब। रुंजु के आरो आवत हाबे।

भोज नगर के दसमत कइना ।

सुंदर हावय घात  ।। 

राजा भोज के बाम्हन बेटी। 

       कुल बहमनीन के जात ।।

                                 

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चन्द्रहास साहू

धमतरी

छत्तीसगढ

मो न 8120578897

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 समीक्षा-पोखनलाल जायसवाल

: मनखे ल समाजिक जीव माने गे हे। मनखे जब ले समाजिक जिनगी जिए के रस्ता म आगू बढ़िस होहीं, तब ले अपन दुख पीरा ल बाँटे के उदिम करिन होही। इही उदिम आगू बढ़के किस्सा कहानी के रूप म आगे। तब के कहानी अउ अब के कहानी म फरक जरूर दिखथे। छत्तीसगढ़ी कहानी ह मुअखरा ले लिखित होवत साहित्य के पटरी म दउड़त हे। कहानी म समाजिक चेतना के सुर रहना चाही। जेकर ले रचना कालजयी हो जथे। समाजिक सरोकार ले जुड़े बिगन कहानी पाठक ऊपर अपन छाप नइ छोड़ सकय। पाठक के मन म समाजिक उत्थान करे बर चेतना के सुर नइ भर सकय। समाज म कतकोन किसम के अंधविश्वास अउ बुराई हे। जेकर ले मुक्ति के रस्ता कहानी के नायक पाठक ल दिखाथे। समाज सुधार के दिशा म कहानी सदाकाल अपन भूमिका निभाही। ए कहानी चाहे कहानीकार के कल्पना ले उपजय, चाहे आँखीं देखी कोनो घटना ले उपजय। कहानीकार पहली मनखे आय तेकर पाछू कहानीकार। अइसन म वहू ह समाज के एक ठन अंग आय। उँकरो समाजिक करतब बनथे कि समाज के उत्थान म अपन भूमिका निभाय। अभी के बेरा म चंद्रहास साहू जी अपन इही समाजिक करतब ल निभावत सरलग समाजिक हित  के कहानी लिखत हें।

       भारतीय समाज म घुमंतू जाति के कतको मनखे अपन कला अउ संस्कृति ल लेके जिनगी जियत आवत हे। आजो कहूँ कहूँ कतको परिवार अपन पैतृक बूता ल लेके इहाँ उहाँ घूम घूम के जिनगी बसर करत हे। चाहे कारण कछू राहय। छत्तीसगढ़ म देवार जाति के मनखे इही घुमंतू जाति के मनखे आय। इही देवार मन के जिनगी के बहाना जम्मो कमजोर मनखे, भूमिहीन अउ भटकत फिरत बसर करइया मनखे के कहानी आय कुंदरा। कुंदरा जउन घाम, शीत अउ बरसा ले बाँचे के एक ठन थेबहा आय। ठीहा आय। जे हर थोरको के हवा गरेरा ल नइ सहय। उड़ा जथे। गरमी के तात तात हवा ले बाँचे के आसरा बनथे। 

       ए कहानी भारतीयता के लामे डोरी ल थामहे लोककथा के पैडगरी म चलत आगू बढ़थे। पद पइसा अउ पावर के बली म मनखे के बुध हजा जथे। कमजोरहा ल दबावत रउँदत आगू बढ़े के उदिम करथे। शेर बने फिरथे। फेर भुला जथे कि शेर बर सवा शेर घलव आथे। घुरवा के दिन घलव बहुरथे। 

      समे जइसन तइसन बीतत चलथे फेर गे समे ह लहुट के नइ आवय। फेर सीख जरूर दे जाथे। ए सीख सबो के अपन अपन ढंग ले हो सकत हे। हम का सीखथन ए  बात हमर ऊपर हे? 

      धरमीन मुस्कुल बखत म अपन हिम्मत नइ हारिस अउ जइसन तइसन अपश लइका ल अपन गोड़ म खड़ा कराइस। उहें पद अउ पावर के घोड़ा म सवार सरपंच अपन अवइया बेरा के दुख के आरो के अंदाजा नइ लगा सकिस। समे के संग अथक होइस। कमजोरहा मनखे म शामिल होइस। अपने औलाद मन ले दुत्कार पाथे।

     अइसे भी हमर पुरखा मन बेरा बेरा म बरजत कहिथे, कोनो ल दुखाना नइ चाही। कोनो दुखियारी के आह नइ लेना चाही। दुखी मनखे के अंतस ले निकले गारी ह शराप आय। अउ अशीष ह जिनगी बर वरदान होथे।

       धरमीन अउ ओकर नान्हे लइकामन के खियाल नइ करत सरपंच ह जउन दुख दिस हो सकत हे उही दुख के बलदा म सरपंच ल जिनगी के छेवर म दुख झेले ल परत हे।

      कहानी अपन उद्देश्य म सफल हे। कहानी गाँव शहर मन म बेजा कब्जा के शुरुआत कइसन अउ कति ले होइस एकरो परछो कराथे। जेकर ले आज सबो के आगू कतकोन समस्या के पहाड़ ठाड़ होवत हे।

    संवाद भाषा अउ शिल्प ए सब मन ए कहानी ल पाठक ल पढ़वावत आगू चलथे। अतेक सुग्घर कहानी बर मँय कहानीकार चंद्रहास साहू जी ल बधाई देत हँव अउ कामना करत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

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