Tuesday 8 February 2022

व्यंग्य- दोस्ती

 दोस्ती

                एक गांव म आगी लगे रिहीस । चारों कोती अफरा तफरी मातगे रिहीस । जे दऊड़ सकय , तेमन दऊड़ के अपन प्राण बचा डरिन । अशक्त अऊ कमजोर मन आगी म लेसाए बर मजबूर रिहीन । फेर एक झिन अइसे मनखे घला रहय , जे कहींच अंग ले खंगे अऊ खिरे नइ रहय , न कन्हो कोती ले कमजोर  , फेर कतको जगा ओकर देहें म लेसाए भुंजाए के निशान रहय । पता करे गिस , तब जानिन के , ये वो मनखे आए जेहा .... कमजोर अऊ अशक्त मनखे मनला बचाए के फेर म लेसात – भुंजात रिहिस ।

              आगी हकन के लागे रहय । अभू अऊ भयंकर रूप ले डरिस । शहर ले गाँव , मैदान ले ब्यारा , परसार ले घरो घर तक अमरगे वो आगी ..... । एक झिन अंधरा रहय .... जेहा भागे बड़ जोर ले , फेर दिखय निही तेकर सेती ..... आगीच म झपा जाये । अंधरा खुदे जरे लगिस फेर दूसर ला जरत अऊ उंखर दरद अऊ आह सुन के .... अपन पीरा ल भुला जाये , ओहा एक्को बेर बचाये के गुहार नइ कर सकिस । आगी लगइया उही रहय ....... । बने मनखे हा जानत रहय अऊ ओला आगी लगाये बर घला मना करे रहय ....... ओकर दुष्परिणाम ल जनाबा करे रहय , फेर ओ अंधरा नइ मानिस । बने मनखे हा ..... अंधरा ला घला ....  तहूं देश के नागरिक अस कहिके ..... बचा डरिस ..... । समे के साथ आगी अपने अपन बुझागे .... ।  

               कुछेच दिन पाछू , अंधरा फेर तैयार होके पदोये लागिस । ए दारी आगी लगाना त बड़ चाहे , फेर बीते समे म , ले दे के अपन बांचे के कहिनी ओकर देहें ल पूस कस जाड़ कंपकंपा अऊ थरथरा देवय । बने मनखे संग दोस्ती करे के कोशिस करिस । कन्हो भाव नइ दिस । तभे ओला अंधरा अऊ खोरवा के दोस्ती के कहानी के सुरता आगिस के .... कइसे खोरवा ला .... अंधरा हा अपन खांध म बइठार के मड़ई देखाये बर लेगे रिहीस । मजा पाये के साध अऊ दूसर ल परेशान करे के ओकर तृष्णा जोर मारे लागिस । एक दिन ..... मौका पाके एक झिन बने मनखे ल खोरवा बना दिस । बने मनखे ओला जान नइ पइस । अंधरा ओकर इलाज करा दिस , बैसाखी धरा दिस । दूनो संगवारी बनगे । अभू खोरवा हो चुके बने मनखे हा ..... मने मन अंधरा के धन्यवाद करत , गुन गावत , ओकरे बिसाये बैसाखी ल धरके रेंगे लागिस । अब खोरवा हा , अंधरा के पिछलग्गू बनगे । अब अंधरा जइसे कहय , खोरवा तइसने देखय , तइसने सुनय अऊ तइसनेच कहय घला । अंधरा , कहूंच करा असानी ले आगी लगा देवय , कतको झिन ओ आगी म लेसा भुंजा जाये फेर , अंधरा ल कहींच नइ होये , ओहा इही खोरवा ल खांध म बइठार के ओकर बताये रद्दा म निकल भागे , अऊ बांच जाये । 

                 कुछ दशक बाद ..... पूरा देस ला आगी म उलझाके ..... अंधरा हा देस के कर्णधार बनगे । अंधरा के घर ..... अंधरा लइका पइदा होय लागिस । इंकर लइका बाला मन ला , आगी लगाये के गुन विरासत म मिले रहय । उही ला .... लइका मन घला ..... अपन बूता अऊ कर्तव्य समझ , जगा जगा , समे कुसमे आगी लगा के टरक देंवय , अऊ अपन बांचे बर केवल खोरवा तलासय । एती खोरवा के कुछ लइका अऊ चेला मन घला ..... अपन आप ला ...... खोरवा बनाना शुरू कर दिन । यहूमन ..... सरी मरम ल जान डरिन । अंधरा के खांध म चढ़हे के सुख के कल्पना अऊ बैसाखी धरके रेंगे के इच्छा इंकरो मन म पनपे लागिस । एमन जान डरिन के .... जे खोरवा होके रइही ..... तिही ल अंधरा अपन खांध के सवारी कराही ...... अऊ कतको कस सुख .... जइसे बड़े जिनीस पद …. इनाम ...... धन दोगानी सबेच दिहीं । एक बात अऊ ...... खोरवा मन के कन्हो सभा समागम बर साधन सुभित्ता घला इही अंधरा हा ..... मुहइया कराही । वर्चस्व अऊ नाम घला ..... अंधरा के खांध म बइठने वाला पाहीं ।

                 आगी लगते रहय । जरत , लेसात , भुंजात मनखे मन , आगी लगइया ल जान घला डरे रहय । फेर अभू कती गोहारे ? ओमन ल बचा सकइया मनखे मन , खोरवा बन के अंधरा के हाथ बेंचा के , ओखर खांध म बइठके , मजा लेवत घूमत हे । जेन बने हे , तेमन खोरवा हो जाये के जुगाड़ करत हे , या खोरवा हो जाये के अगोरा । आघू चलके इही अंधरा मन राजनीति के नाव ले अऊ खोरवा मन साहित्य के नाव ले जनाबा होगिन दुनिया म , जेकर दोस्ती वाजिम म जबर हे ।  

    हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा

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