Tuesday 8 February 2022

छत्तीसगढी ब्यंग---- ===पसरा काॅदा भाजी के====

 छत्तीसगढी ब्यंग----


===पसरा काॅदा भाजी के====


       डाक्टर साहेब हर कहि देय रहय कि तयॅ भाजी पाला के साग जादा खाय कर। तोर पेट सफा रही। आॅखी तेज अउ बग बग दिखही। जे नइ दिखे ओहू दिखही। मॅजे हुए राजनीतिक असन दुरदर्शिता अउ पारदर्शिता आही। अइसन सलाह अंकलहा बर संत के अमर संदेश असन होगे। अंकलहा के भीतर कंजूसी सुभाव ले कम लागत मा जादा खरीददारी के अर्थशास्त्री गुण भरे हे। ओकर कंजूसी चरचा मा रथे। काकरो सुभाव ओकर ले मेल खाथे तब कहि घलो देथे कि कब ले अंकलहा बनगेस? नाम भले अंकलहा हे फेर भरे बोजे चीज बस वाले हरे । ओइसे भी धनिक धनवान मन ही जादा कोचरू रथे। सूंघ के देख के जीने वाला के ये दुनिया मा कमती नइये। 

        लाल पालक मेथी चौलई भथुवा असन भाजी मा ए बी सी डी सबो किसम के बिटामिन भरे रथे। भाजी घलो सोच के खुश रथे कि चना मसाला आलू मटर गोभी पनीर के जमाना मा हमर साख कमती नइ होय हे । एक कप चाय मा गाॅव के कोटवार पट जाथे ओइसने भाजी घलो लसुन मिरचा के फोरन मा जम जथे। तेलहा मसाला के चमचागिरी के जरूरत नइ परे। राजनीति मा कोनो कोनो नेता के सुभाव अपराधिक सुभाव के रथे ओइसने चेंच अउ खोटनी भाजी के रथे। जादा जमाए ले पेट मा गुड़गुड़ी करके झारे उतारे मा कमती नइ करे। कोंवर कोंवर अमारी माने सतसंग मा बइठे सुन्दर नारी परानी जेकर उपर नामी संत महात्मा के नीयत गड़े रथे। अइसन रूप गुनकारी अमारी बर समय देखके झपटी झपटा मचे रथे। 

          अंकलहा बड़का झोला ला खाॅध मा टाॅगके बजार जाथे तब लगथे कि सैनिक जंगल कोती नक्सली सर्चिग मा बंदुक टाॅगके जावथे। अइसन अनुभवी ला झरती बजार मा जाय ले जादा सुख मिलथे। वोटिंग बूथ मा आवत मनखे ला देखके नेता मन सोंचत रथे कि मोला वोट दिही अइसे लागथे कहिके। ओइसने भाजी पसरा वाली आवत गिराहिक ला कातर भाव ले निहारत रथे। कोनोभाजी के भाव पूछके रेंगथे तब लगथे कि नक्सली परचा फेंक के जावथे। कतको झन कट्टरपंथी धार्मिक नेता कस भाजी पसरा ला सोज नइ देखे। कोनो मन सड़क मा परे टिफिन बम असन घूरत रथे। दू चार झन निरदली किसम के मन जीते ना जितन देय माने लेय ना लेवन देय। सिरिफ वोट काटे के काम करत रथे। फेर ओला का मालूम कि लसून मिरचा के फोरन मा जब भाजी बनथे तब गोसइंया से लेके झगरहिन सास घलो मइके जाय के प्रस्ताव ला चटकार ध्वनी ले पारित कर देथे। समझले सर्व संमति ले विधेयक पास। कतको झन संसद अधिवेशन सत्र मा बइठे कस पसरा के आगू मा पसर के प्रश्नकालिन सत्र शुरू कर देथे। कतिक के भागा आय? कब के टोरल हरे? जतका के लेना निंही ओकर ले जादा बहस। झरती पसरा माने सून्यकाल जेमे सबो ला मलोवन धरले वाले हिसाब । भाजी पसरा मा कतको झन पुरोनी बर अइसे लड़त रथे जइसे कोनो मजदूर किसान के नेता बोनस अउ समर्थन मुल्य बर लड़त रथे। फेर सरकार सही भाजी वाली ला मलूम रथे कि एक मुठा पुरोइच देहू त एक कनी अउ दे कही। माने पांच ठन माॅग मा एके ठन छूटही तभे चलही।  अंकलहा असन मन सरकार गिराय कस भाजी के भाव गिराय बर मुद्दा तलासत रथे। अॅइलागेहे, जुरहा होगेहे, भागा कमती हे जइसन मुद्दा ला हथियार बनाथे। चोंगियाहा के पाॅच रूपिया मा तीन ठन बीड़ी आथे एक ठन उपराहा नइ माॅग सकस। फेर भाजी वाली ला वोट मॅगइया नेता कस रूंगत लड़हारत रथे। अंकलहा सधे हुए राजनेता के बाप कस आय। भाजी के भाव गिराना सरकार गिराके वोटर ला कइसे फूसलाना सब एकर ले सीखव। मोर रचनात्मक सोंच ले प्रभावित होके जलनखोर  सॅगवारी कथे---------कस यार तॅय भाजी कोती हवस कि राजनीति कोती? समाजशास्त्र अउ राजनीतिशास्त्र मा डिलिट करे शोधार्थी असन समझाएंव। भितरी ले सोच; भाजी अउ भाजी पसरा के रहस्य ला समझ गेय माने राजनीति समझ गेस। आठ आना कम हे अवइया हप्ता बजार मा अउ लेहूं तब देहूं के मतलब ला समझथस?  फोकट आश्वासन देके अवइया चुनाव के जीतत ले भुलवारत रह।आम जनता अउ भाजी वाले अतके मा जागरूक होय हवे। भाव गिराबे तब काॅटा मारे बर नइ छोड़े। दारू पानी के खातरी कम होइस त दू झन के वोट मा एके वोट पाबे।

          पाच रूपिया भागा के भाजी ला उपजारत ले किसान अॅइला जथे। हिसाब पूछबे त आधा बीजा खातू के, आधा दवई मजदूरी मे चलदिस ।बाॅचिस कड़हा सरहा उही ला चार साग खायेन ओतकेच तो आय। जमानत जप्त होय नेता कस  किसान के हालत रथे। ओइसने बजार ले लहुटत बेरा भाजी वाली के  थोथना उतरे रथे। फेर अंकलहा असन मन भाजी पसरा ले घर लहुटती मा लगथे कि सैनिक सर्जिकल स्ट्राईक ले सफल होके लहुटत हे। 

           चेंच अमारी काॅदा भाजी बारी के अउ बजार के शान आय। मोर गॅवई गाॅव के बारी मा भाजी उपजथै। फेर यहू एक ठन सच आय कि सहरी संसकार के गमला मा नकाबपोश नकटी नकटा मन के पैदावार जादा हे । मोर अमारी अउ काॅदा भाजी के पाॅच रूपिया भागा हे। फेर मनखे अपन आचरण ले पाॅच पइसा मे मांहगा होवत हे। पाॅव परबे त पनही छुवै ला परथे। नेता ले मिलना हे त चमचा के पूछी धरे ला परथे। कांदा खाबे त काॅदा भाजी जगाय ला परथे। भाजी पैदा करना अउ संसकारी लइका पैदा करना कठिन काम आय। भाजी पसरा अउ राजनीतिक पचड़ा एक समान होथै। हमर धियान सवाद उपर रथे। जे नइ मिठाय,,,,,,माने समझगेस न? ओला जर मुंड़ ले उखान के फेकव न रहे काॅदा न खावन काॅदा भाजी ।


राजकुमार चौधरी 

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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