Sunday 20 February 2022

छत्तीसगढ़ी छन्द अउ बसंत*


 

*छत्तीसगढ़ी छन्द अउ बसंत*

            

बसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी के दिन विद्या के आराध्य देवी सरस्वती, विष्णु और कामदेव के 

पूजा के रिवाज़ हवय। ये तिहार ल हमर देश म बड़ उल्लास से मनाये जाथे। आज के दिन पीला वस्त्र धारण करे के रिवाज हवय। शास्त्र म बसंत पंचमी के उल्लेख ऋषि पंचमी के रूप म मिलथे। काव्यग्रन्थ में बसंत के अनेक प्रकार से चित्रण मिलथे। अलग-अलग कवि मन अपन-अपन ढंग से बसंत के  चित्रण करे हवँय।  माघ शुक्ल पक्ष पंचमी के दिन ला बसन्त पंचमी के रूप जाने जाथे। बसंत के आय ले फूल म बहार आथे। खेत म लहलहात सरसों के पिंवरा फूल, मउरात आमा के पेड़ ,चारो डहर रंग-बिरंग के उड़त तितली, गुनगुनावत भौंरा मन ला मोह डारथे। जौ अउ गेहूँ के बाली घलो निकले धर लेथे। अइसन म कवि के मन आल्हादित होना स्वाभाविक हें । हिन्दी छ्न्द सरिक छत्तीसगढ़ी के छन्द म घलो बसंत के गज़ब के चित्रण मिलथे। 

            हमर पुरोधा साहित्यकार जनकवि कोदूराम दलित बसंत के बड़ सुग्घर चित्रण अपन छन्द मा करे हवँय। उँकर कलम के अंदाजे निराला हे। बंसत ला ऋतु के राजा कहे जाथे। बन के परसा मा जब फूल आथे तब येकर सौंदर्य देखे लाइक होथे,अइसन लागथे मानो केसरिया फेंटा मा कलगी खोंचे राजा के बेटा खड़े हवय। दलित जी के काव्य सौन्दर्य देखव - 

हेमंत गइस जाड़ा भागिस, आइस सुख के दाता बसंत

जइसे सब-ला सुख देये बर आ जाथे कोन्हो साधु-संत ।

बन के परसा मन बाँधे हें, बड़ सुग्घर केसरिया फेंटा

फेंटा- मा कलगी खोंचे हें, दीखत हें राजा के बेटा ।

        छन्दविद अरुकुमार निगम जी वर्तमान के महँगाई उपर करारा बियंग करत हुए बसन्त राजा ले निवेदन करत सार छन्द मा लिखथें- 

सल्फी ताड़ी महुआ मा तँय, माते हस ऋतुराजा।

एक पइत तँय बजट-बसंती, बनके एती आजा।। 

दार तेल ईंधन अनाज ला, करवा दे तँय सस्ता।

हम गरीब-गुरबा मन के हे, हालत अड़बड़ खस्ता।

             बसंत ऋतु के अद्भुत छटा ला देख के युवा कवि जीतेंन्द्र वर्मा खैरझिटिया दोहा म कहि उठथे- 

परसा सेम्हर फूल हा, अँगरा कस हे लाल।

आमा बाँधे मौर ला, माते मउहा डाल।

खैरझिटिया द्वारा प्रकृति के सुग्घर मानवीकरण रोला छन्द म देखव- 

गावय गीत बसंत, हवा मा नाचै डारा।

फगुवा राग सुनाय, मगन हे पारा पारा।

करे  पपीहा शोर, कोयली कुहकी पारे।

रितु बसंत जब आय, मया के दीया बारे।

          युवा गीतकार द्वारिका प्रसाद लहरे"मौज" के सार छंद मा बसन्त गीत के बानगी देखव - 

परसा फुलवा लाली लाली, सरसो फुलवा पिंवरा।

ममहावत हे चारो कोती, भावत हावय जिंवरा।।

रंग बिरंगा फुलवा मन के, नीक लगे मुस्काई।।

ऋतु बसंती के आये ला, बउरागे अमराई।।

         बसंत आगमन अउ बिरहन के पीरा ल उकेरत बोधन राम निषादराज"विनायक" 

किरीट सवैया मा अपन बात रखथें - 

आय बसन्त फुले परसा गुँगवावत आगि लगावत हावय।

देख जरै जिवरा बिरही मन मा बहुँते अकुलावत हावय।।

कोकिल राग सुनावत हे महुआ मीठ फूल झरावत हावय।

रंग मया पुरवा बगरे चहुँ ओर इहाँ ममहावत हावय।।

             ऋतुराज बसंत के स्वागत बर प्रकृति घलो उत्सुक हवय। पुरवाई के संग पेड़ पौधा मन के उमंग घलो अवर्णीय हवय। आशा देशमुख के हरिगीतिका छन्द मा येकर सुग्घर चित्रण मिलथे:-

स्वागत करय ऋतुराज के,सजके प्रकृति माला धरे।

ममहात पुरवाई चले, आमा घलो फूले फरे।।

गोंदा खिले  पिंवरा सुघर, माते हवा के चाल हे।

गाना सुनावत कोयली, साधे बने सुर ताल हे।

          येती जाड़ा के भागती होथे अउ वोती बसंत ऋतु के आती। बसंत ऋतु में न तो ठंड रहय अउ ना गर्मी, अइसन मौसम हा सबो मनखे के मन ला  मोह लेथे। रोला छन्द में दिलीप वर्मा येकर वर्णन करत लिखथें- 

आगे हवय बसंत, देख लव जाड़ा हारे। 

भौंरा गीत सुनाय, कोयली हाँका पारे। 

रंग बिरंगा फूल, गजब मँहकावत हावय। 

देख प्रकृति के रंग, सबो के मन हरसावय। 

            बसंत जब आथे चारो कोती छा जाथे। बसन्त आगमन के ग़जब के चित्रण कन्हैया साहू "अमित' अपन छन्द मा करथें- 

हरियर मा पिंवरा मा, राहेर मा तिंवरा मा।

तितली मा भँवरा मा, फाँका मा कँवरा मा। 

करिया अउ सँवरा मा, लाली अउ धँवरा मा।

अघुवावत बसंत हे।

          बसंत आगमन के बेरा मा प्रकृति के सुन्दर मानवीकरण अजय अमृतांशु के रोला छन्द मा देखव- 

आ गे हवय बसंत, देख झूमत हे पाना।

कोयल मारै कूक, मगन हो गावय गाना।।

पींयर सरसो फूल,सबो के मन ला भावय। 

अमली हा इतरात, देख आमा बउरावय।।

         सदियों ले बसंत के गुणगान साहित्य म होत रहे हवय अउ आजो होवत हे। छन्द,गीत,कविता के संग गद्य साहित्य घलो बसंत के चित्रण म पाछू नइ रहे हे। जब ले छत्तीसगढ़ म छन्दकार मन के नवा पीढ़ी तैयार होय हवय तब ले एक ले बढ़ के एक छन्द छत्तीसगढ़ी म पढ़े ल मिलत हवय। ये छत्तीसगढ़ी साहित्य बर शुभ संकेत आय। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

मो.9926160451

No comments:

Post a Comment