Tuesday 8 February 2022

सोनाखान के सपूत-वीर नारायण सिंह

 सोनाखान के सपूत-वीर नारायण सिंह



छत्तीसगढ़ के पहली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, गरीब मन के सुनैईया,जब्बर देशभक्त,माटी के लाज रखईया,साहसी,वीर अउ न जाने कतको नाम ले जनईया सोनाखान के चमकत हीरा वीर नारायण सिंह हमर राज बर कोनो पहिचान के जरूरत नई हे। अपन मातृभूमि बर जेन-जेन काम करिस,अपन जनता के सेवा करे के सबो उदिम करिस अउ जीवन घलो वार दिन। अइसन सपूत बेटा ल पाके माता-पिता,गांव,समाज देश ह घलो धन्य हो जाथे। अइसन वीर पुरूष मन के नाम-शोर चंदा-सुरूज के रहत ले जगमगात रही।


पोठ जमींदार--

वीर नारायण सिंह मन सोनाखान के जमीदार बिंझवार राजपूत रिहिन। इंकर पुरखा मन  पिता रामराय अउ बबा रामराजे हर जमीदारी शुरू ले करत रिहिन। 35 साल के उमर म अपन पिताजी रामराय के बीते के पीछू 1830 में जमीदारी के भार संभाले के शुरुआत करिन। अंग्रेज मन सोनाखान के जमीदारी ले अब्बड़ चिढे अउ इरशा भाव रखे रहय,काबर के इहा ले कोई कर ओमन ल नई मिले। 303 रुपये 12 आने के राजस्व हर साल जमा होय। फेर कोई भी टकोली कर के नाम म अंग्रेज मन ल फूटे कौड़ी नई मिले। सोनाखान में बिंझवार वंश के लगभग चार सौ साल ले जमीदारी चलत रिहिस। मने सोनाखान पक्का पोठ अउ परतिस्थित जमीदारी रिहिस।


कलचुरी राजा ले इनामी--

इंकर जमीदारी कलचुरी मन के बिलासपुर शाखा के अंतर्गत आय। ये जमीदारी रतनपुर के कलचुरी राजा बाहरसाय  ले वीर नारायण के पूर्वज मन ल उँकर सैनिक सेवा के इनाम के रूप म करमुक्त जागीर के रूप म दे गे रिहिस। मने सोनाखान सैनिक शासन के अंर्तगत रिहिस। ते पाय से अंग्रेज मन ल कोई कर वसूल करत नई बने। त अंग्रेज मन अब्बड़ दुश्मनी रखे रहय। इलियट सोनाखान के प्रति शोषण के भाव रखे अउ इहाँ अंग्रेजी कोषालय ल कहि नई देके फैसला करे रहय।


वीर के पदवी--

सत्रहवीं सदी म सोनाखान जमीदारी के स्थापना होइन,इंकर पूर्वज मन पहली सारंगढ़ के जमींदार के वंशज रिहिन। पहली सोनाखान के नाम सिघगढ़ होत रिहिस। क़ुररूपाट डोंगरी में नारायण सिंह के वीरगाथा घलो दफन हे, ओकर कर एक ठन स्वामिभक्त घोड़ा रहय जेमे सवार होके अपन राज के शोर-खबर लेय। एक दिन पता चलिस की सोनाखान के तीर म एक ठन नरभक्षी सेर आतंक मचावत हे, फेर तो परजा के सेवा बर आघु रहैया वीर तुरते अपन तलवार निकालिस अउ सेर के जगह म जाके मार डारिस। ओकर बहादुरी के सेती ब्रिटिश सरकार ह वीर के पदवी ले सम्मानित करिस।


परजा के लोकप्रिय--

वीर नारायण सिंह ल जनहित के काम म रुचि रहय,ये कारण अपन परजा म लोकप्रिय नंगत के रहय। एक बार 1856 मे येही सेत्र म अब्बड़ के अकाल पड़ गे, आदमी मन दाना-दाना बर तरसे लगिस। अरजी-विनती ले काम नई बनिस त जम्मो किसान भाई मन ल संग म लेके कसडोल के अनाज बेपारी माखन के अनाज गोदाम ल लूट के भुखाय परजा में बांट दिस। ये काम के सूचना रायपुर के डिप्टी कमिश्नर चाल्स इलियट ल दिन फेर ये काम ल कानून विरोधी मानके गिरफ्तारी के वारंट दे दिस। अपन जनता के दयनीय दशा अउ शासन के कमजोर काम के कारण नारायण सिंह ल अइसन कदम मानवता बर उठाय रिहिस। एमे कोई गुनाह के बात नई हे। पर अत्याचारी अंग्रेज मन ल दया,धर्म,मानवता ले का करना हे। रायपुर ले कटक तक सबो अधिकारी मन ल नारायण सिंह ल पकड़ ल लाय बर भेज दिस। उँकर घर म एक सैनिक के टुकड़ी भेजिस अउ 24 अकटुबर सन 1856 के सोनाखान म अब्बड़ परेशानी करत सेर वीर नारायण सिंह ल बंदी बनाके रायपुर लाइन अउ लूटपाट, डकैती के आरोप लगाके रायपुर जेल म डाल दे गिन। पर चोट खाय बघवा ल  पिंजरा मन रहवई पसंद नई आय।


छ.ग. में क्रांति--

इहि समे 1857 के क्रांति के आगी छत्तीसगढ़ तक पहुँचीस। वीर पुरूष के वीरता उफान मारे लगिस अउ 10 महीना 4 दिन के बाद वीर नारायण सिंह जेल ले भाग गे। अपन सोनाखान पहुचे के बाद 500 सैनिक मन के सेना तैयार करिस। येति लेफ्टिनेंट नेपियर अउ लेफ्टिनेंट स्मिथ सेना लेके खोजे बर निकलिस,देवरी के जमीदार नारायण सिंह के कका खानदानी शत्रु रिहिस वोहा अंग्रेज मन ल साथ दिस,अउ भटगांव, बिलाईगढ़ के जमींदार मन घलो इंकर सहयोग कर दिन। सोनाखान के तीर नरवा कर चारो मुड़ा घमासान लड़ई मात गे,पहली तो अंग्रेज मन के दम भर हो गे। फेर हर बार के सही यहु दारी हमर बीच के मन अंग्रेज मन के साथ देके वीर नारायण सिंह के सेना ल कमजोर करे लगिन। पर वीर ह हार नई मानिस, दुनो दहन ले गोली चले परिस। लड़त-लड़त पहाड़ी तीर मेर अंग्रेजी सेना मन वीर नारायण सिंह के सेना ल घेर डारिन। अब बहादुर नारायण पकड़ म आगे। फेर उही जेल म डाल दिन, देशद्रोह के मुकदमा दायर करिन। स्मिथ अपन रिपोर्ट में लिखिस- नारायण सिंह ल क्षमा दान देना सबसे बड़े अपराध होही।


बलिदान दिवस--

छत्तीसगढ़ डिविजनल रिकार्ड्स पत्र क्रमांक 286, दिनांक 10 दिसम्बर 1857 ई. के अनुसार- नारायण सिंह ल 10 दिसम्बर 1857 के फांसी के सजा दे गिस अउ डिप्टी कमिश्नर ह सोनाखान के जमीदारी ल खालसा ताल्लुक म बदले के अनुमति दिस। नारायण सिंह ल सजा वर्तमान रायपुर के जयस्तंभ चौक म तोप ले उड़ा के दिस। ये बात के जानकारी सबो डहन फैल गे कि सोनाखान के रण केशरी, छत्तीसगढ़ माटी के सच्चा सपूत,निर्भीक, स्वाभिमानी, प्रजाप्रिय,देशभक्त जमीदार नारायण सिंह 10 दिसम्बर 1857 के शहीद हो गे। बैरी अंग्रेज स्मिथ घलो लिखे हे--वीर नारायण सिंह ल उत्कट शौर्य,साहस अउ उत्साह के साथ हमर मन संग गोरिल्ला पद्धति ले मुकाबला करिस।


डाक टिकट--

वीर नारायण सिंह के याद अउ सम्मान म सरकार ह पीछू सन 1987 म डाक टिकट घलो जारी करिन।


पुरुस्कार--

छत्तीसगढ़ सरकार के आदिम जाति कल्याण विभाग ह उँकर याद म पुरुस्कार के स्टापना करे हे। राज्य के अनुसूचित जनजातियों में सामाजिक चेतना जागृत करे बर अउ उत्थान के क्षेत्र म बढ़िया काम करईया आदमी निहिते स्वैच्छिक संस्था मन ल 2 लाख रुपये नकद राशि अउ प्रशस्ति पत्र देके परावधान हावे हे।


वीर नारायण सिंह के वीरता के शोर जन-जन म आज फैले हे। नारायण सिंह के नाम सुनते साठ मन म एक वीर भाव,अउ पहलवान जइसे जोश के जन्म हो जथे। उँकर नाम आज सबो राज्य के मन बड़े गरब के साथ लेथे अउ श्रद्धा ले सिर झुक जथे। अइसन वीर रिहिन जेकर वीरता,बहादुरी, साहस,के बैरी मब घलो तारीफ करथे। धरती अउ आकाश के रहत ले वीर नारायण सिंह के नाम सुकवा के अंजोर जइसे चमकत रही।



                         हेमलाल सहारे

                       मोहगांव(छुरिया)

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