Tuesday 8 February 2022

कहानी- चिरई चुगनी

  चिरई चुगनी

                  

                             चन्द्रहास साहू 


                        Mo 8120578897


"मेहा किरिया खाके कहत हव दाई ! बिहाव करहू ते ओखरेच संग। मेहा जावत हव ओखर संग मिले बर।''

मोटियारी सुमन किहिस। आँखी के समुन्दर जलरंग -जलरंग करत रिहिस ओखर । जानकी तो ठाड़ सुखागे। हुंके न भूंके। आँखी के आंसू घला अटागे रिहिस। झिमझिमासी लागिस। मुहु चपियागे। दुवारी के बरदखिया खटिया मा हमागे अब । खटिया के तरी मा माड़े फुलकाछ के लोटा के पानी ला सपर-सपर पी डारिस। उदुप ले उठिस अऊ नानकुन झोला ला धरिस। अपन बेटी सुमन के हाथ ला धर के रेलवाही कोती चल दिस। टिकट कटा के रेलगाड़ी में बइठगे दुनो महतारी बेटी। गाड़ी दउड़े लागिस अपन गति मा अऊ जानकी के मन घला। भलुक मुक्का हावय तभो ले मन गोठियावत हावय। सुरता करत हावय अपन ननपन ला।

                 चौक के महाबीर ला पैलगी करथे। दूध पियावत गाय ला जोहार करथे। शीतला तरिया के पार ला चढ़के पिपराही खार मा जाथे, तब मन मोहा जाथे जानकी के। बम्बूर के पिवरी फूल मुड़ी मा गिरे तब अइसे लागथे जइसे प्रकृति हा स्वागत करत हावय। चिरई चिरगुन के चिव- चिव स्वागत गीत गाथे।  जानकी के मन गमके लागथे । बइला के घाँघरा अऊ टेक्टर के गरजना- सब सुहाथे।  खेत के नानकुन बखरी मा झूलत तोरई तुमा कुम्हड़ा  के लोई ला कुंदरा मा पीठइया चढ़ाथे। भाटा ला झेंझरी मा टोर के धर लेथे। दाई हा जिमीकांदा खनत हावय झौउहा भर । ददा हा मुही फोर के ये डोहरी ले ओ डोहरी पानी पलोवत हावय।  नान - नान बिता भर के लाल अऊ पालक भाजी फूलगोभी .…..। सेमी के नार मा फरे पोक्खा- पोक्खा सेमी , सादा फूल, फूल मा उड़ावत- बइठत रंग - बिरंगा  तितली  अऊ तितली के पांख......सुघ्घर । अइसे लागथे जइसे सब ला काबा भर पोटार लेवव। 

"बेटी ! ये जतका खेत दिखत हावय ते हमर आय। चालीस एकड़।''

ददा हा जानकी ला खेत देखावत रिहिस। जानकी बेरा-बेरा मा आथे खेत देखे बर। पाछू दरी पोरा मान के चीला चढ़ाये बर आये रिहिस।

"ददा माईलोगिन मन जब अम्मल मा रहिथे तब सात किसम के कलेवा ले सधौरी खाथे। अन्न्पूरना  के बरन धान जब गभोट होथे तब चाउर गहु के गुड़हा चीला खवाके इही मंगलकामना करथे- दाई तोर कोरा भरे राहय, तोर कोरा ले पोठ धान मिलही जौन हा हमर कोठी ला भरही अऊ गरीबी नइ आवन देवय।दाई अन्नपूरना हा सबके पालक आवय फेर आज किसान हा पालक बनके अपन बेटी ला सधौरी खवाथे ।''

"हाव सिरतोन काहत हस बेटी !''

ददा हुकारु दिस। सोनहा धान के बाली ला सिल्होए लागिस दुनो कोई । पोठ- पोठ लम्बा बाली नगरी दुबराज सफरी सरोना अऊ हाइब्रिड धान के । ये जम्मो धान के बाली के सुघ्घर झालर बनाथे जानकी हा । ओखर डोकरी दाई सीखोये हावय न । आड़ी - चौड़ी धान के बाली ला खोंच-खोंच के अइसे बनाथे कि दाना मन बाहिर कोती अऊ ढेठा भीतरी कोती। दाना ओरमत रहिथे। सुघ्घर दिखथे अब्बड़ सुघ्घर। गोल चकोर ईटा आकार के सुघ्घर झालर। झालर सेला झूमर चिरई चुगनी कुछु कहिले जिनिस उही आय। लछमी दाई के बरन घला आय येहाँ।  चिरई मन बइठथे अऊ दाना ला फोल - फोल के खाथे। चिरई के चिव- चिव, कुटूर- कुटूर ,गुटूर - गुटूर अब्बड़ सुघ्घर लागथे। मन मोहा जाथे। गौरइया सलहई पड़की परेवा मिठ्ठू मैना के संग परदेसी चिरई मन घला आ जाथे दाना चुगे बर .....!  चिरई दाना ला चुग के अपन वंश बढ़ाथे। धान के बाली अपन अस्तित्व ला मेटा देथे  चिरई मन बर।  तभे तो चिरई चुगनी कहिथे येला। अऊ बाचल पैरा ला गाय खाथे तब वहु अघा जाथे। जानकी अऊ ओखर  दाई हा बना डारे रिहिस सुघ्घर धान बाली के झालर ...चिरई चुगनी ।

"कतका सुघ्घर हावय ददा ! हमर छत्तीसगढ़ के परम्परा संस्कृति हा ..! अब्बड़ गुरतुर ।''

जानकी  किहिस अपन बनाये चिरई चुगनी ला देखावत । दाई ददा घला अब्बड़ उछाह हावय।

"कुंदरा के मियार मा.., मंझोत के डंगनी मा.. जाम के रुख मा.. कोन जगा बांधो चिरई चुगनी ला ..? नही .. । बोर के पाइप  मा मोर चिरई चुगनी ला बाँधहु।  ददा !  चिरई मन आही दाना ला खाही अऊ पानी घला पिही कतका सुघ्घर लागही चिव - चिव करत चिरई हा।'' 

 जानकी  किहिस अऊ अपन मुहु ला बजाए लागिस चिव- चिव ।

"हव बेटी बांध दे ।''

ददा किहिस अऊ  पंदोली दिस। 

"कतका सुघ्घर हावय ददा हमर बोर के पानी हा । मोर संगवारी घर के बोर फेल होइस अऊ हार्ट अटैक मा ओखर बाबू ....!''

"कलेचुप रहा बेटा अइन्ते- तइन्ते के गोठ झन गोठिया  बेटी !''

ददा बरजिस। 

" हमर किसमत मे कहा गंगा माई हावय बेटी ! ओ तो तोर पूजा करे के जगा मा बोर करवाय हव तब निकलिस भक्कम पानी । हमर पूजा करे वाला भुईयां के पानी अटागे रिहिस धुन हमरे हाथ छुतियाहा रिहिस ते ?   येहा पांचवी बेरा आय । पाछू दरी के चारो  बोर हा तो सुक्खा होगे। बोर पानी के लालच मा अब्बड़ करजा होगे हावय ओ ! कोन जन कइसे छूटाही ते  ? पांच एकड़ खेत बेचे ला लाग जाही अइसे लागथे।''

 ददा संसो करे लागिस।

                      जानकी तो फुरफन्दी रिहिस । ये घर ले ओ घर, ये पारा ले ओ पारा किंजरे । फेर जिनगी मा गरेरा कइसे समागे आरो नइ पाइस। ददा के टट्टागाड़ी मा बइठ के आइस जवनहा  परदेसी ओखर दाई अऊ ददा हुकुमचंद हा। ओखर राज मा दंगा फसाद होगे तेखर सेती पलायन करके आये हावय। सब सुघ्घर होही अऊ लहुट जाही...। अइसना किरिया खाये रिहिस । फेर नइ लहुटिस ।          

                      भलुक सड़क तीर ला पोगरा डारे हावय। बेसरम काड़ी झिपारी छा डारिस । बंदन पोताये पथरा माड़ गे अब। बंदन पोताये पथरा माड़  जाथे तब आस्था बिसवास  बाढ़ जाथे । 

 पार्षद पंच सरपंच कोनो नइ बरजिस । भलुक महाशिवरात्रि आथे तब दूध पीयाथे । नवराति दसेरा देवारी मा खीर पुड़ी .. । ईद , क्रिसमस मा कोल्ड्रिंक अऊ शरबत बाटथे। जम्मो धरम बर आस्था हावय तब का के डर...? कोन डरवाही ....? कोन भगाही...?

                        पथरा हा भगवान आय कि नही परमात्मा जाने फेर भीड़ हा तो भगवान आय जुझारू कर्मठ नेता माटीपुत्र मन बर। सुकालू करा राशनकार्ड नइ हावय। अऊ बुधारू करा मतदाता परिचय । फेर ये परदेसिया मन कर सब हावय अब । समारू के परछी भसके चार बच्छर होगे। आधार कार्ड के बिना कोनो योजना के लाभ नइ मिले अऊ...! 

               झिल्ली झिपारी वाला चार कुरिया हा अब संगमरमर लगगे तरी-तरी । चकाचक मन्दिर अऊ मन्दिर प्रांगण होगे। मंत्री जी उदघाटन करे हावय न।  

                     " जतका चर ले ..चर । जतका चुहक ले...चुहक। येहा तो छत्तीसगढ़ माने सी जी आवय। सी माने चारा अऊ जी  माने गाह आय.. चारागाह । जतका चर ले...।''

बाप  हुकुमचंद अऊ बेटा परदेसी खिलखिलाए लागिस गोठिया के। 

                      जानकी अऊ परदेसी हम उम्मर तो आय अऊ कब दुनो के अंतस मा मया के गोरसी रगरागये लागिस पार नइ पाइस। हुकुमचंद तो एखरे ताक मा रिहिस। बिलई ताके मुसवा।

"ददा परदेसी संग बिहाव करहु ।''

 अब्बड़ बरजिस फेर जानकी के अर्दली पन मा नवगे ददा हा । दु संस्कृति दु रस्म रिवाज ले बिहाव होगे। फेर गांव समाज के ठेकेदार हा जानकी के ददा ला छोड़ दिही का...?  नही  आनी बानी के हियाव - नियाव होये लागिस । बइठ - बइठका होये लागिस। कतक ला सहही माटी के चोला हा । एक दिन सिरागे ददा हा ।

    

                    परदेसी के साध पूरा होगे । चालीस एकड़ खेत जानकी के नाव ले कब परदेसी के नाव मा चड़ीस  पार नइ पाइस।

मीठ लबरा के बरन अब दिखे लागिस । ताना अपमान रोज के गोठ होगे अब ।  अऊ बेटी के जनम आइस तब ... सात जनम ले संग निभाहु, मया के किरिया खवइया ला जानकी अऊ ओखर बेटी सुमन बस्साये लागिस। निकाल दिस घर ले। कोन जन कुलदीपक, डेहरी के अंजोर करइया टूरा के जनम आतिस तब डिंगयहा के घर कतका महर -महर ममहातिस ते ....?

                  मामी ममा मरजाद ला राख लिस जानकी के। नही ते का होतिस ते .... ? भगवान श्री राम के जानकी कस यहु जानकी होगे दुखियारी....।  गोसाइया ले वियोगी । अब तो हुकुम चन्द हा सेठ हुकुमचंद होगे हे । धनबल बाहुबल सब ओखर । अइसन ससुर अइसन गोसाइया संग कइसे  लड़ो ... जानकी गोहार पार के रो डारथे।

               परदेसिया मन हमर  छत्तीसगढ़ मा उत्ती बुड़ती रकसहु भंडार जम्मो कोती के देश राज ले आये हावय कमाये खाये बर । कोन राज के नइ आय हावय  इहा ....? सब लोटा धर के आइस अऊ अतका जैजात सकेल डारिस।  बड़का होटल फेक्ट्री बड़का बिल्डिंग दुकान शॉपिंग मॉल पेट्रोल पम्प अऊ बड़का गाड़ी बड़का कालेज...सब  जिनिस तो हावय ओखर मन करा । .....अऊ हमर मन करा का हावय....? हमर करा हावय सुघ्घर नारा  - "छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया'' के।

जानकी गुनत -गुनत मुचकाये लागिस करू ..करेला अऊ लीम ले जादा करू मुचकासी ।

हा ! सब ले बढ़िया तो हावन हमन । लांघन ला जेवन करवाथन, पियासे ला पानी पियाना अऊ रहे बर छइयां देना। इही तो हमर सुघरई आवय फेर ....?  कड़ी मिहनत सरलग बुता अऊ टाइम मैनजमेंट ले अतका पोठ होवत होही परदेसिया मन कि ..... ? फेर छत्तीसगढ़िया मन घलो सिधवा हावय भोकवा नही..। अपन अधिकार ला लेये ला परही। 

जानकी गुनत- गुनत थाना कछेरी  चल दिस।  ससुर अऊ गोसाइया ले अधिकार पाये बर। बिसवास अतका रिहिस कि पथरा मा पानी ओगर जाही तब न्याय कइसे नइ मिलही..?

                     ददा के पनही बेटा के गोड़ मा आथे तब बेटा बड़का हो जाथे। पिकी फूटत दाड़ी मेंछा ला रोखा के लजाथे तब ..सिरतोन बेटा बड़का हो जाथे। अऊ बेटी ... ओ तो ननपन ले बड़का हो जाथे..। ठूबुक - ठूबुक रेंगत- रेंगत बहराये परछी ला अऊ बहारथे। धोवाये बरतन ला, अऊ मांजथे । रोटी बनावत पिसान ले सनाय ओन्हा अऊ कोवर- कोवर हाथ अंगरी ला मटकावत कहिथे

" दाई मेहा रोटी बनाहु तेन अब्बड़ मिठाही । खाबे । मेहा बड़े होहु तब तोला नइ कमाये ला लागे ।'' 

थके जानकी के माथ मा कोवर - कोवर हाथ ले मालिस करथे नानचुन  सुमन हा गोठियावत - गोठियावत तब जानकी के मन अघा जाथे । दू टीपका  आँसू गिर जाथे।


"दाई  अमर गेन रायपुर के रेलवे स्टेशन ला उतरबोन चल।'' 

सुमन के दुसरिया आरो कान मा गिस तब सुरता ले उबरिस जानकी हा। जिनगी के किताब के जम्मो पन्ना ला उलट - पुलट डारिस जानकी हा आज । आँखी के कोर के ऑंसू ला पोछिस अऊ उतरके बड़का होटल कोती चल दिस दुनो कोई।

सुमन के मन मंजूर बनके नाचत हावय। सपना के राज कुमार ले मिलही आज । बिदेशी ले मिलही आज। बिदेशी राम इही तो नाव हावय फेसबुकिया राजकुमार के। बच्छर भर के फोन फ़ेसबुक वाट्सअप के मया । ओमे तो गजब सुघ्घर दिखथे सिरतोन मा कतेक सुघ्घर लागत होही ....?  सुमन गमकत हावय। 

"बस आतेच हव।''

  फोन म किहिस बिदेशी हा अऊ कट जाथे कब आही ते ...?-आधा घंटा ...एक ..डेढ़  अगोरा करत हावय   होटल मा बइठ के। सुमन हा बिदेशीराम के।

" मेहा अब्बड़ सीखोये हव बेटी पैडगरी के कांटा खूंटी होवय कि जिनगी के बिच्छल सावचेती होके रेंगबे। बर बिहाव ठठ्ठा - दिल्लगी नोहे बेटी ! मया के विरोध नइ करो बेटी फेर टुरा ला अपन अनभव ले जाचहु अऊ मोर मन आही तब गोठ बात बनही । जादा झन सपना देख। जादा झन गुन ...।  दू घन्टा होगे कब आही ते पूछ फोन लगा के ।''

जानकी फेर बरजिस सुमन ला।

"नइ लगत हावय दाई फोन.....। स्वीच ऑफ आवत हावय... बैटरी लो होगिस होही दाई ..।'' सुमन  आस के संग किहिस।

" ओहा नइ आय बहिनी ! ओहा तो अपन राज भाग गे । तेहा अकेल्ला आतेस तब होटल के कुरिया मा लेगतिस। अऊ ...?  अऊ दाई संग आवत देख के पल्ला भाग गे।''

 रिसेप्शनिस्ट बताइस सुमन ला । सुमन अकचकागे...।

"सिरतोन काहत हस बहिनी ?''

"हाव ''

" ओहा हमर होटल मा आते रहिथे । जानथो मेहा ओला। अऊ...ओहा कोनो जवनहा नोहे । पचपन साठ बच्छर के डोकरा आवय ... डोकरा। फेसबुक वॉट्सअप मा आने जवनहा के फोटो ला स्टेटस मा डाल के....।

झटकुन मोबाइल निकाल के फेस बुक के चैटिंग देखिस सुमन हा।

 "गुड बाय'' 

 "ब्रेकअप ''

 करिया आखर ला देखत - देखत रो डारिस। भरम टुटगे रिहिस अब सुमन के। दाई जानकी के नरी मा झूलगे अब। 

                       ससन भर देखिस होटल ला । आदिवासी नृत्य मांदर खुमरी पंथी पंडवानी के पोस्टर ....छत्तीसगढ़ी संस्कृति के छप्पा ... जम्मो दिखावटी लागत रिहिस। 

छत्तीसगढ़ छत्तीसगढ़िया अऊ छत्तीसगढ़ी कोनो चिरई चुगनी नोहे ..। कोनो परदेसी चिरई आही अऊ चुग के चल दिही ...। कोनो जयचन्द ला आवन नइ देवन ये भुइयाँ मा...।

       मेन गेट मा झूलत सुन्ना झालर चिरई चुगनी ला देखिस ससन भर दुनो कोई । अऊ अपन घर चल दिस गुनत- गुनत । 

चिव- चिव, कुटूर- कुटूर ,गुटूर - गुटूर कान बाजत हे नवा उछाह के संग  जानकी अऊ सुमन के अब। मन गमकत हावय ।


चन्द्रहास साहू

द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब के पास

श्रध्दा नगर धमतरी छत्तीसगढ़

493773

मो. 8120578897

समीक्षा

 पोखनलाल जायसवाल: सोन के चिरैया भारत भुइयाँ ल लुटे बर कतकोन लुटेरा आइन। सबो लूटत गिन। अउ हमन परदेशिया मन ल अपने घर म जगा देवत अपन घर ले बाहिर होगेन। 'अतिथि देव भवः' के पुजारी बने गुलामी म फँसत गेंन। ए बने होइस कि स्वाभिमान जागे ऊपर ले गुलामी के बेड़ी टूटिस अउ आजादी पागेंन। जेकर बर बहुत कुर्बानी दे बर परिस। पुरखा मन ले मिले स्वतंत्रता के दिया ल बारे अपन स्वाभिमान ल बचाय रखे के जरूरत हे। आजो प्रवासी चिरई मन छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया कहिके हमर ऊपर राज करत हें अउ राज करे के कतको जतन करत हें। हमन छत्तीसगढ़िया सब ले बढ़िया के तमगा ल लटकाय अपन स्वाभिमान ल खूँटी म टाँगे गलती ल दुहराय म लगे हन। अनगइहाँ अउ अन्चिन्हार बर हमन दया दिखाथन। दया दिखाना अउ करना गलत नोहय, फेर अपन ले मुँह फेर के दया करई ह तो सरासर गलत आय। अनगइहाँ अउ परदेशी ल जगा देके अपने ल फूटे आँखीं नइ भाना कति मेर के नियाव आय। हमन काबर भुला जथन कि अपने ह काम आथे। अनगइहाँ अउ परदेशी ह तो चिरई आय बखत देख के उड़ा जथे। अपन सगा संबंधी ल कुछु साहमत करना त दूर, बात बात म ऊँकर ले झगरा मता देथन। अउ अनगइहाँ परदेशी बर सरबस लुटाय म अपन शान समझथन। हमर इही कमजोरी ल परदेशी मन भाँप के छत्तीसगढ़ ल चुगनी समझ गे हे। अउ चिरई बने इहाँ चारा चरे बर आथे। अउ हमर सरबस चरी कर डरथे, तब ले कोन जनी काबर ते हम चेत नइ करन। काबर ते अपन अस्मिता अउ स्वाभिमान ल मुरसरिया म रखे कुंभकरण सहीं नींद भाँजत रहिथन।

     इही स्वाभिमान अउ अस्मिता ल जगाय के उदिम म लिखे गे कहानी हरे चिरई चुगनी। जउन म नारी विमर्श के छाप घलव देखे ल मिलथे। ए कहानी आज के बेरा म सोशल मीडिया ले जुड़त नवा नता अउ ओकर सच्चाई ल उघारे म समर्थ हे।

      चिरई-चुगनी याने चारागाह जिहाँ ले पेट भरे के पाछू चिरई अपन ठउर लहुट जथे। वइसने रस चुहके के पाछू छोही बरोबर हम ल फेंके म चिरई मन बेरा नइ करँय अउ हम बेघरबार हो जथन। 

      कहानी के भाषा अउ शिल्प पाठक ल पढ़े म बड़ सहज अउ सरल जनाथे। भाषा म व्यंग्य के पुट देख के मन गदगद हो जथे। इही व्यंग्य ह ए कहानी म मजबूत बनाथे।

        पथरा ह भगवान आय कि नहीं तो परमात्मा जानय, फेर भीड़ ह तो भगवान आय जुझारू कर्मठ नेता माटी पुत्र बर।...

         जतका चर ले चर। जतका चुहक ले चुहक।....सी जी....याने चारागाह....।

         अइसन अउ दू चार ठन व्यंग्य ए कहानी म  पढ़े ल मिलथे। इही ह  कहानी के उद्देश्य ल अपन संगसंगे पाठक के हिरदे म छोड़त जाथे। ए व्यंग्य मन सुते स्वाभिमान ल जगाय म सफल हे कहे बानी लगथे। संवाद बढ़िया लिखे गे हे।

    ....दूनो के अंतस म मया के गोरसी रगरगाय लागिस, पार नइ पाइस।

         कहानी के अंत बढ़िया ढंग ले करे गे हे। कहानी के अइसन समापन ह आज के नवा पीढ़ी ल जिनगी भर कोनो भी नवा कदम उठाय के पहिली सोचे विचारे के संदेश देथे।

       चिरई चुगनी शीर्षक कहानी के सार्थकता ल घलव पूरा पूरा व्यक्त करथे। प्रवासी मन ल जब लगथे कि अब ए ठउर म ओला खतरा हे या फेर अब ऊँकर बर कुछु नइ हे तब वो ठउर ल छोड़ वइसने चल देथे,जइसे चिरई मन चुगनी ल छोड़ फुर्र उड़ा जथे। सुग्घर कहानी लिखे बर चंद्रहास साहू जी ल मँय बधाई देवत हँव अउ ओकर नवा कहानी के अगोरा करत नवा कहानी बर शुभकामना पठोवत हँव।


पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

9977252202

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