Tuesday 8 February 2022

व्यंग्य- कुकुर सहिराये अपन पूछी

 कुकुर सहँराये अपन पुछी 


                    सोनाखान हा बहुत बड़े जमींदारी रिहिस । पूरा क्षेत्र म किसान अऊ मजदूर मनखे मन के जीविका के साधन खेती खार रिहिस हे । ये क्षेत्र के मन बहुतेच मेहनती रिहिन ...... समे म पानी बरसके साथ दे देवय तब तो अतका  फसल होय .... जेला रपोटे नइ सकय ....... अऊ पानी धोखा दिस तब अकाल दुकाल के नौबत पर जाय ........ । चतुरा घला रिहिस इहाँ के मनखे ..... । रात दिन के अकाल दुकाल के अतका आदत परगे रिहिस के ..... गरीब से गरीब मजदूर मनखे तको हा बहुत तकलीफ झिन होय सोंच , घर म कोठी बनाके धान चना ला छाब के राखे रहय । इहाँ के मन खाये बर केवल जुन्ना धान के उपयोग करय । नावा धान ला बियारा म सुखो के कोठी म छाब के राखे रहय । 

                    एक समे जबर अकाल परिस । पेरा तक नइ लू सकिन । फेर पूरा जमींदारी म कन्हो मनखे भूख नइ मरिस । कोठी म सकलाये धान हा सबके जीव ला बचा दिस । दूसर बछर तको उही हाल होगे । अब का करे ..... का नइ करे ........ । बिजहा बर बाँचे खोंचे धान हा कोठी ले निकले लगिस । बिजहा धान हा अतेक बाटुर के पेट नइ भर सके । भूख म मनखे के तड़फना सुरू होगे । समस्या बड़ गम्भीर होगे । सुलझाये बर गाँव गाँव म बइसका सकलागे । एक ठिन गाँव के मन समस्या के निदान बर हरेक दिन एक बेर सार्वजनिक रांधे खाये के सोंचिन ताकि कम से कम .... जेकर घर बिलकुलेच निये तहू ला एक टेम खाये बर मिलय । जेकर जेकर घर म अनाज बाँचे रिहिस तेमन अपन कोठी ला झार पोंछ के सार्वजनिक भंडारा म मदत करे लगिस । उही गाँव म एक झिन किराना दुकान वाला सेठ रिहिस । ओकर तिर म बहुत अकन बिसाये अनाज रिहिस । ओहा सोंचिस के अइसन बेवस्था हा जादा दिन नइ चल पाही ...... पाछू लूटपाट होना तय हे ...... डर हमागे ..... । अनाज बचाके बाहिर लेग सकना सम्भव नइ दिखत रिहिस । रातों रात पइसा ला धरके नौकर ला समझावत अइसे कहिके भागिस के , ओकर ददा हा बिमार परगे हे अऊ अबत तबक होगे हे । गाँव के मन ला यदि मोर गोदाम के अनाज के आवसकता परही तो जतका चाहे ..... निकाल के उपभोग कर सकत हे । नौकर ला कुची थमहा के चल दिस । 

                    बिहिनिया ले ओकर घर अऊ दुकान म संकरी तारा कुची लगे देख गाँव के मन सुकुरदुम होगे । ओकर नौकर ला पूछिस त नौकर हा सरी बात ला उइसनेच बतइस जइसे सेठ केहे रिहिस । कन्हो पतियइन ...... कन्हो नइ पतियइन । कतको झन मन गोदाम के पूरा अनाज ला गाँव के सम्पति घोसित करके उपभोग करे के सोंचिन । कन्हो कहय जानबूझ के भागे हे बिया हा ....... अऊ बहाना घला अइसे मारे हे ताकि गाँव के मन तरस खाके ओकर समान ला झन लूटे ..... । 

                    सियान मन फइसला करिन के चाहे भूख म परान निकल जाय फेर ओकर गोदाम म हांथ नइ लगाना हे । बपरा हा संकट म खुदे परे हे । इहाँ रहिके नइ देतिस त लूट मार सोंचतेन । रहत ले भले नइ दिस फेर जावत जावत सरी सम्पति ला बाँट सकत हव कहिके .... हमर उपर अहसान कर दिस । रहत ले अपन हांथ उचाके देतिस तब अलग बात रिहिस ...... । धीरे धीरे अकाल के विभीसिका हा बिकराल रूप धर लिस । अब दिन म एक बेर सार्वजनिक भोजन म घला मुश्किल होय लगिस । पोट पोट करत कुछ मनखे मन भूख के मारे परान त्याग दिन । सियान मन हारगे । सब मिलके तय करिन .... सेठ के गोदाम खोले के ........ । गोदाम खुलगे .......... बछर भर गाँव भर ला पाले के शक्ति रिहिस ओकर गोदाम के अनाज म ......... । अतेक अकन होही .. कन्हो सोंचे नइ रिहिन । सियान मन आवसकता के हिसाब से उहाँ के अनाज ला नाप नाप के उचइन अऊ गाँव म हरेक मनखे ला , जइसे चलत रिहिस तइसने केवल एके बेर , वहू म सार्वजनिक भंडारा म , भोजन दे के घोसना करिन । अमीर गरीब किसान मजदूर संग जम्मो मनखे एक बेर भोजन पाये लगिन । 

                    किसानी के दिन आगे । रझरझ रझरज गिरत पानी हा किसान मजदूर के मुहुँ म पानी लान दिस । सेठ के गोदाम ले बिजहा निकलगे । काम कमई म चार महिना कइसे निकलगे पता नइ चलिस । आगर के घाघर धान होइस । कोठी डोली छलछलाये बर धर लिस । जतका अनाज सेठ के गोदाम ले निकाले गे रिहिस तेला नाप नाप के वापिस भर दिन । एक दिन सेठ तक खभर अमरगे । ओहा गाँव वापिस का करे बर जाहूँ ..... कहींच नइ बाँचे होही सोंचत रिहिस ...... फेर अपन सम्पति बाँचे के बात सुन गाँव वापिस लहुँटगे । 

                    चौपाल म मनोरंजन बर तास के फड़ लीम चौंरा खालहे जमे रहय । सियान मन आपस म , भोगे दुख अऊ साथ देवइया संगवारी मन के गोठ गोठियावत रहय । सेठ घला बइठे रहय । ओहा सोंचत रहय के ओकरो योगदान के चरचा होतिस ...... । ओकर का योगदान रिहिस तेला हरेक मनखे जानत रहय ....... । ओकर नाव नइ लेवत देख , सेठ ले रेहे नइ गिस ......... । ओहा सीधा सीधा अपन नाव नइ लेके घुमा फिराके केहे लगिस के , गाँव के खुसियाली म अऊ बहुत झिन के योगदान हे ....... उहू मन के प्रसंसा करे अऊ नाव ले मा का हर्ज हे ......... । कन्हो मनखे ओकर बात ला महत्व नइ दिस । सेठ चुपचाप चल दिस । चौंरा तिर खड़े कुकुर भूँके लगिस । सेठ के जातेच भार चुपचाप खड़े रहिके पुछी हलाये लगिस ....... । सेठ के बात अऊ कुकुर के हालत पुछी के ... कोई महत्व नइ रिहिस .......। कुकुर सहँराये अपन पुछी .... कहत .... अपन अपन घर मसक दिन गाँव के सियान मन ...... । 


 हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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