Monday 21 February 2022

महतारी भाखा के मान करव--


 महतारी भाखा के मान करव--


हमर छत्तीसगढ़ राज बने इक्कीस बरस होगे,राज के बिकास घलो उम्मीद के अनरूप होवत हे,सोन,चांदी,टिन,लोहा,कोईला जइसे खनिज संपदा ले भरे,महानदी, शिवनाथ, अरपा, पैरी,कन्हार, इंद्रावती जइसन अमरीत सही बोहात नदिया,बड़े-बड़े घनघोर जंगल,परबत, पठार ले परित भुइयाँ, अन्न-धन्न ले भरे कुबेर के कोठी कस हमर थाती छत्तीसगढ़ राज बर कोई जिनिस के कमी नई हे।


फेर हमर बर एक ठन बात के कमी जरूर हावे कि आज तक महतारी भाखा के मान सनमान बरोबर नई होत हे,न ही स्कूल म लइका मन ल पढ़ाय-लिखाय के बने जुगत करत हे, साग के फोरन डारे कस 3-4 पाठ ल शामिल करके अपन काम पूरा करे सही अब्बड़ शोरियात रथे। येकर ले हमर भाखा पोठ नई होय,येकर बर बने कसोरा भीर के भिड़े ल लगही। 


राजभाखा के दर्जा--

28 नवम्बर 2007 के मुख्यमंत्री जी द्वारा हमर भाखा ल राजभाषा के दर्जा देके बिल पास करिन अउ छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची में शामिल कराय के गोठ बात घलो होय रिहिस। तब ले राजभाषा दिवस ल मनात भर आवत हन। दिया बाती बारत अउ दिन भर छत्तीसगढ़ी म गोठियाही,बिहान दिन ले हिन्दी म उतर जाहि।अउ साल भर ल फुरसत होंगे फेर। अब कोन जनि आठवीं अनुसूची म शामिल कब होही वोला ऊपर वाले ल जानहि। हमर ले नान्हे-नान्हे राज के भाषा शामिल होगे त हमन आज ले देखत हन। आज ले हमरो भाखा ल हो जाना रिहिस।


गुरतुर भाखा--

हमर भाखा जइसन मिठ अउ कोई भाखा नई हे। कथे घलो--तोर बोली लागे बड़ मिठास रे छ्त्तीसगढिया....। पर इहा के लोगन मन तो हिन्दी अउ अब तो मुबाइल के जमाना म अउ दु कदम आघु खस मिंझरा भाखा बना डारिन हे तेला हिंग्लिश भाखा कहे जात हे। अइसने म भाखा समरिध बनहि। अपन छोड़ के दूसर के बोली-भाखा ल पोटारत हे। आज के मनखे मन ल छत्तीसगढ़ी गोठियाय, लिखे,पढ़े बर लाज लगथे। देहाती अउ जंगली मन के भाखा हरे कथे। कोई ल गोठियात देखहि सुनहि त वोहा निचट अनपढ़ गंवार समझे ल लगथे। ये नई कहय की अपन महतारी भाखा म गोठियात-बतरात हे जी। इहि पाय के हमन भाखा ह आज पिछवाये हे जेकर बर ये राज भर के मनखे मन जिम्मेदार हे।


भाखा ल सीखन--

हमन ल सबो भाखा ल सीखना चाहि,लइका मन ल घलो सीखना हे। पर सबले पहली अपन महतारी भाखा ल सीखन। दूसर के चक्कर म हमर महतारी भाखा पछवावत हे। ये कोई भी दहन ले बने नई हरे।


टीवी म आज तक सरलग छत्तीसगढ़ी कार्यक्रम नई आइस,लोगन मन भोजपुरी,हिंदी,सिनेमा टीवी देखत हे, कोई-कोई समाचार पत्र म छत्तीसगढ़ी रूप देखे ल अब मिलत हे हरिभूमि में चौपाल, पत्रिका म पहट, मड़ई। ये मन अच्छा काम करत हे। कुछ पेज म छत्तीसगढ़ी भाखा ल छाप के महतारी भाखा के जरूर सेवा करत हे।


गांव मे सम्मान--

आज महतारी भाखा के मान सनमान ल कोई करत हे त वो गांव के अनपढ़-गंवार मन करत हे। एककनि पढ़े हे तेमन तो हिन्दी, हिंग्लिश,अंग्रेजी ल झाड़े ल धर लेहे। अइसने में तो करलई हो जहि। मने गांव म ही भाखा जीयत हे शहर म तो कब के बीमारी के खटिया म पढे हे। अधिकारी, कर्मचारी, बाबू,साहब,नेता,मंत्री मन ल अउ जादा लाज लगथे। छत्तीसगढ़ी समझ नई आय कथे। हां एक बात ठउँका हे नेता अउ मंत्री मन चुनई के पहित जरूर महतारी भाखा म गांव के मन संग गोठियाथे। केवल नारा लगाय ले नई होय--छ्त्तीसगढिया सबले बढिया। येकर बर जम्मो झन ल भिड़े ल पड़ही। छत्तीसगढ़ी म लिखन, गोठियान,पढ़न अउ लजान मत, भाखा ल आघु डहन बढ़ाय के कोई बड़े-बड़े जतन करन।


भाखा के इतिहास--

हमर भाखा अभी के नोहे हे वोहा अब्बड़ जुन्ना भाखा हरे। खैरागढ़ रियासत के राजा लक्ष्मीनिधि रॉय के दरबारी अउ चारण कवि रिहिन दलपत राव जेहा सन 1494 में अपन साहित्य रचना म सबले पहली छत्तीसगढ़ी भाखा ले काम करिस...

'लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित दे।

गढ़ छत्तीसगढ़ में न गढ़ैया रही।।


पीछू कलचुरी राजा राजसिंह के दरबारी कवि गोपाल मिश्र ह सन 1746 म अपन रचना 'खूब तमाशा' में हमर भाखा के उल्लेख करिन। ऐसे तो पहली ब्रज,अवधि,भोजपुरी भाषा जेमे सुर,तुलसी के काव्य रचना हावे उहा छत्तीसगढ़ी के सब्द मन अब्बड़ मिल जथे। रामचरित मानस में कतरो छत्तीसगढ़ी सब्द भरे पड़े हे। ऐहि पाय से अवधि ल छत्तीसगढ़ी के सहोदरा कहे जाथे।



आजकल के नवा बिचार--

आज कोई पालक अपन लइका मन ल सरकारी स्कूल में नई पढ़ाना चाहे। सब अंग्रेजी स्कूल म मोहा गेहे। ये लइका मन बर बड़ टिपटॉप बेवस्था करथे। गृहकार्य पूरा करही,जूता-मोजा, टाई-बेल्ट,खाना-डिब्बा सब करही। फेर परिणाम देखबे ल संकोच लगथे। सरकारी स्कूल के लइका मन के कोई दाई-ददा नई हे जेला पहिरे हे उही ल बिना जूता-मोजा, टाई-बेल्ट,तेल-फूल। लइका मन अंग्रेजी म गोठियाथे दाई-ददा ल समझ नई आवत हे। कुल मिला के महतारी भाखा ल सत्यानाश करना हे। कोई-कोई मन गुरुजी के छत्तीसगढ़ी गोठियाई ल घलो देहाती पन समझथे,गुरुजी मन हिन्दी, अंग्रेजी म बात करे त लइका मन घलो सिखही।फेर अपन भाखा म गुरुजी मन लइका मन संग झन गोठियाय। जबकि महतारी भाखा ले लइका मन जल्दी समझते अउ उँकर मन  ले जादा लगाव होथे,ये बात ल समझे नहीं।



पालक मन के सोच--

एक बार एक झन पालक ल अपन लइका ल मारत देखेव त मोला अब्बड़ दुख होइस,कि तेहा हिंदी म काबर नई बोले,छत्तीसगढ़ी म काबर गोठियाय। वो लइका अपन घर आय सगा सन छत्तीसगढ़ी म गोठियात रहय। इहा फोकट सेखी मरैया के कोई कमी नई हे अस्पताल में एक झन पालक ल अपन लइका सन हिन्दी में दिखावटी गोठियाय,रहय गांव के। बाद म घर जाय के समे समझ आथे कि लइका ह कथे-बाबू धर न तोर मोबाईल ल। मने सबके सामने छत्तीसगढ़ी म बात करही ते वोला शरम आहि। इहि पाय के हिंदी झाड़त हे बीचारा ह। त अइसनो घलो डींग मरई कोई काम के नोहे। जेला अपन भाखा ल लाज आवत हे वो का अपन भाखा के मान सनमान करही। हमन खुद अपन भाखा के अपमान करे के जिम्मेदार हन।



आठवीं अनुसूची में शामिल होय--

समे समे राजनीति डहन ल घलो येला आठवीं अनुसूची में जोड़े बर अब्बड़ परयास होत रथे। पर जब जुड़ही तभे भाखा ह अउ बिकास के गति ल पकड़ही। हमर 2 करोड़ जनता के भाखा जेला आधा ले जादा आदमी मन बोलते,समझते अउ लिखे बर तो गिनती के संख्या होही। लोगन मन लिखे बर कठिन हावे कथे। हिज्जा करके तो लते-पटे पड़थे। येकर रूप क्षेत्र बिसेस म थोड़ बहुत बदल जाथे।पर आत्मा के भाव वोइसने हावे हे। हमर भाखा म गीत,कविता,साहित्य के घलो भंडार भरे हे। राजभाषा आयोग के काम म जादा तेजी लाय के जरूरत लगथे। जेकर ले भाखा के बिकास बर नवा रद्दा बनाये के जुगाड़ करे। हम सब झन ल हमर महतारी भाखा के मान-सनमान बर आगू आये ल पड़ही। स्कूल म तो एक बिषय छत्तीसगढ़ी के जरूर होना चाहि। जब पंजाब, बिहार, महाराष्ट्र, ओडिसा,केरल,कर्नाटक जइसे राज म अपन महतारी भाखा म पढ़ई-लिखई हो सकत हे, त हमर छत्तीसगढ़ म काबर अउ कइसे नई होही। बड़े-बड़े विकसित देश में के शुरुआती पढ़ई अपन महतारी भाखा म ही कराथे। जेकर ले लइका मन ल जल्दी समझ बनथे। येकर बर जम्मो झन ल आगू आय ल पड़ही।


                 हेमलाल सहारे

               मोहगांव(छुरिया)


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