संत रैदास(रविदास)
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हमर भारत देश आदिकाल ले साधु-संत, महात्मा मन के जन्मस्थली आय। इहाँ अनेक महापुरुष मन अवतार ले हावयँ।
इहाँ सदा संत परंपरा रहे हावय।इही संत परंपरा मा सदगुरु ,संत शिरोमणि रैदास जेला संत रविदास,रुइदास,रोहिदास आदि नाम ले पुकारे जाथे--तको आथें।
संत रैदास के जन्म माघ पूर्णिमा रविवार, संवत 1433 (1376 ईस्वी) के वाणारसी शहर के तीर के गाँव गोबर्धन पुर मा होये रहिस। वोकर पिता के नाम संतोख दास(रग्घु) अउ माता के नाम कर्मा देवी( कलसा, घुरविनिया) रहिस। संत रैदास एक गृहस्थ संत रहिन।वोकर पत्नी के नाम लोना अउ सुपुत्र के नाम विजयदास बताये जाथे। संत रैदास के जन्म चर्मकार कुल म होये रहिस।वोहा जूता- चप्पल बनाये के काम करत रहिस। संत रैदास दीर्घ जीवी रहिन। उन संवत 1540 ( 1518 ईस्वी ) म वाणारसी शहर म अपन नश्वर देह ल तियाग के स्वर्गवासी होये रहिन। आजकल वो जगा म संत रैदास के मठ अउ भव्य मंदिर बने हे जेकर दर्शन करे बर सरी संसार के श्रद्धालु मनखे मन आथें। एक मान्यता अइसे भी हे के उनकर देहावसान चित्तौड म होये रहिस ।उहाँ राणा सांगा के पत्नी रानी झाला जेन ह संत रैदास के शिष्या रहिन के बनवाये छतरी हावय।
संत रैदास हा साधु-संयासी, महात्मा मन के संगति ले व्यवहारिक ज्ञान पाये रहिस। वो ह वैष्णवाचार्य रामांनद जी के शिष्य रहिन। जगत प्रसिद्ध प्रात: स्मरणीय संत कबीर दास जी ह उनकर गुरुभाई रहिन।भक्तिन मीराबाई ल संत रैदास के शिष्या माने जाथे।मीराबाई ह अपन एक पद म कहे हे--
*गुरु रैदास मिले मोहि पूरे,धुरसे कलम भिड़ी*
*संत गुरु सैन दई जब आके, जोत रली*।
संत रैदास बहुतेच परोपकारी अउ दयालु हिरदे के रहिन हे। उनकर नजर म जात-पाँत अउ ऊँच-नीच के कोनो भेदभाव नइ रहिस।उनकर शिष्य मन मा जम्मों जात-धरम के नर नारी रहिन। संत कुलभूषण रैदास ह कर्म ल पूजा मानय अउ अच्छा कर्म करे के उपदेश देवयँ।उन काहयँ के मनखे अपन कर्म ले ऊँच या नीच होथे।
*रैदास जनम के कारने, होत न कोई नीच।*
*नर कूँ नीच करि डारिहैं,ओछे करम के नीच।*
ऊँचा कुल म जनम लेये भर ले मनखे महान नइ हो जय। मनखे ल महान अउ पूजनीय तो वोकर कर्म ह बनाथे।उन एक पद म कहे हें---
*ब्राह्मण मत पूजिए, जो होवै गुणहीन।*
*पूजिए चरण चंडाल के, जो होवे गुण प्रवीन।*
संत शिरोमणि रैदास ह लोगन ल काम,क्रोध ल फेंक के ईश्वर के भक्ति करे के शिक्षा देंवयँ।उन काहयँ के जेन भक्त के हिरदे म भगवान बसथे वो भक्त तको भवगान जइसे हो जथे---
*रैदास कहे जाके हदै, रहे रैन दिन राम।*
*सो भगता भगवंत सम, क्रोध न व्यापै काम।*
परम भक्त रैदास ह एकदम निर्मल मन वाला रहिस हे। उन लोभ, कपट, छल-छिद्र ल चिटको नइ जानत रहिस हे। मन के निर्मलता के शिक्षा देवत उन कहे हें---
*मन ही पूजा मन ही धूप।*
*मन ही सेऊँ सहज सरूप।*
सत्य वचन हे मन ल सहज होना चाही।भक्ति काल के जम्मों संत कवि मन इही सार बात ल कहे हें। कबीर दास जी अपन साखी म कहिथें---
*मनका फेरत जुग भया, गया न मन का फेर।*
*कर का मनका डार दे, मन का मनका फेर।*
गोस्वामी तुलसीदास जी ह रामचरितमानस म लिखथें---
*निर्मल मन जन सो मोहि पावा।मोहि कपट छल छिद्र न भावा।।*
मन के निर्मलता के उपर संत रैदास ले जुड़े एक ठन किवदंती हे।एक पइत कुछ संत मन संगम म गंगा स्नान करे बर प्रयागराज जावत रहिन।वो मन संत रैदास ल तको चले बर निवेदन करिन ,त रैदास ह कहिस--मैं ह अपन काम बूता ल छोड़ के नइ जा सकवँ काबर के जाहूँ त कतको झन के जूता-चप्पल नइ बन पाही अउ वोमन ल कष्ट होही। मोर बर तो इही कठौती के पानी ह गंगा माता के समान हे।अतका कहिके वोह कठौती ले जेमा चमड़ा ल कुँवर करे बर बुड़ोवय तेमा ले एक ठन सिक्का निकाल के दिस अउ कहिस--' येला गंगा मइया ले ये कहिके दे देहू के तोर भगत रैदास ह भेंट करे बर दे हावय। फेर अतका ध्यान रखहू के गंगा मइया खुद आके झोंकही तभे देहू, पानी म अर्पण झन करहू।'
अतका ल सुनके साधु समाज मन हाँसिन फेर एक झन ह वो सिक्का ल धरलिस अउ संगम म जाके संत रैदास कहे रहिस तइसने कहिस।वोकर अचरज के ठिकाना नइ रहिस --सिरतो म संगम के जल ले गंगा मइया के हाथ निकलिस अउ वो साधू ह उही हाथ म रैदास के देये सिक्का ल भेंट करदिस।वो दिनक्षले कहावत बनगे--- *मन चंगा तो कठौती में गंगा।*
संत शिरोमणि रैदास ह एक समाज सुधारक रहिन। उन राम ,रहीम, कृष्ण, करीम सब ल एके ईश्वर के अलग-अलग नाम बतावयँ ।उन छुआछुत, ऊँच-नीच के भावना अउ भेदभाव ल त्याग के आपसी भाईचारा, प्रेम अउ समरसता के शिक्षा देवयँ---
*ऐसा चाहूँ राज में, मिले सबन को अन्न।*
*छोट बड़े सब सम बसे रविदास रहे प्रसन्न।*
संत रैदास हिंदी साहित्य के स्वर्ग युग के भक्त , समाज सुधारक कवि रहिन।उनकर अनमोल वचन कालजयी हे। एक एक आखर म सत्य के दर्शन हे। सिख धर्म के पूज्य ग्रंथ "गुरु ग्रंथ साहिब' म संत रैदास के 40 पद ( 16 वीं शताब्दी म गुरु अर्जुन देव के संपादन करे) शामिल हे।
संत रैदास के साहित्य ह मानवता के अनमोल धरोहर हे। संत रैदास जी के वाणी के निकले मानवता के संदेश देवत भक्ति अउ अध्यात्म के पद मन मा ब्रज, अवधी अउ खड़ी बोली के प्रयोग दिखथे।
संत रैदास ह अमर पद मन के रचना करे हें।आत्मा ल तृप्त करइया ये कालजयी पद ल भला कोन भुला सकथे--
*अब कैसे छूटे राम नाम रट लागी।*
प्रभु जी तुम चंदन हम पानी,
जाकी अंग-अंग बास समानी ।
प्रभु जी तुम घन बन हम मोरा,
जैसे चितवत चंद चकोरा।
प्रभु जी तुम दीपक हम बाती ,
जाकी जोति बरे दिन राती।
प्रभु जी तुम मोती हम धागा,
जैसे सोनहिं मिलत सुहागा।
प्रभुजी तुम स्वामी हम दासा ,
ऐसी भक्ति करे रैदासा।
अइसन संत, मानवता के धरखंध,सर्वधर्म समभाव के उपदेशक, परोपकारी, निरहंकारी, दयालु जेन ह अपन आचरण ले सिद्ध करके देखाइस के मनखे ह जन्म या काम धंधा ले महान नइ बनय भलुक अपन कर्म ले महान बनथे---वो प्रातः स्मरणीय संत शिरोमणि रैदास ल कोटिक चरन वंदन हे।
*वर्णाश्रम अभिमान तजि,पद रज बंदहिं जासु की।*
*संदेह ग्रंथि खंडन निपन, बानी विमुल रैदास की।*
चोवा राम वर्मा ' बादल '
हथबंद, छत्तीसगढ़
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