Sunday 29 November 2020

छत्तीसगढ़ी को आठवीं अनुसूची म दर्जा कइसे मिलय*


*छत्तीसगढ़ी को आठवीं अनुसूची म दर्जा कइसे मिलय*


छत्तीसगढ़ी पूर्वी हिन्दी के एक हिस्सा आय जेला लगभग दू करोड़ मनखें मन बोलथें अउ समझथें। माने के छत्तीसगढ़ के महतारी भाषा हरय छत्तीसगढ़ी। छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य राज्य आय अधिकांश मनखे मन स्थानीय भाषा छत्तीसगढ़ी के अलावा अउ दूसर भाषा ले परिचित नहीं हें, अउ अइसने मन ला जब सरकारी आफिस म जाना होथे तौ भाषायी अनभिज्ञता के सेती अपन बात ला सही ढंग ले नइ रख पाय अउ हताश होके सरकारी व्यवस्था के प्रति नकारात्मक विचार बना लेथें; जबकि सबो जगह इखरो बात ला समझइया होना जरुरी हे। छत्तीसगढ़ मा शिक्षा के प्रतिशत 70% के आसपास हे तौ भाषायी समस्या के शिकार मनखे मन के संख्या लगभग 60 लाख हो जाथे जे हा बहुत बड़े संख्या आय। 

छत्तीसगढ़ी भाषा सबो दृष्टि ले समपन्न हे। व्यवहार करे म कोनों बाधा नइहे। जब कोनों मनखे हिन्दी के सँघरा म अंग्रेजी बोलथे त ओला हुशियार समझथें, लेकिन कोनों हिन्दी बोलत बोलत स्थानीय भाषा के प्रयोग करथे तौ ओला गँवार समझथें; अइसन मनोदशा ल घलो बदलना पड़ही।

जेन ल अपन हा सम्मान देथे ओला दुनिया सम्मान देथे। छत्तीसगढ़ी ल स्थापित करे बर अउ आठवीं अनुसूची म दर्जा देवाय बर हम छत्तीसगढ़िया मन ल ही आघू आना पड़ही। "हमला काहे, होबे करही" जइसन तुच्छ भाव के सेती हमर छत्तीसगढ़ी भाषा महतारी अपन उचित दर्जा ल पाय ले चूक गेहे। पढ़े लिखे अउ उच्च पद म बइठें स्वार्थी छत्तीसगढ़िया मन के सेती हमर गाँव के रहइया अल्पशिक्षित या अनपढ़ भाई बहिनी मन भाषायी समस्या के सेती आज दुखी हवँय। *आठवीं अनुसूची म छत्तीसगढ़ी ल शामिल करवाय बर हर छत्तीसगढ़िया ल अपन-अपन हिस्सा के लड़ाई लड़ना परही तभे बात बनही।*


विरेन्द्र कुमार साहू "प्रवीर"

बोड़राबाँधा (राजिम)

छंदसाधक सत्र - 9, "छंद के छ"

छत्तीसगढ़ी भाषा ला जन जन के भाषा बनाए बर मोर सूझाव

 छत्तीसगढ़ी भाषा ला जन जन के भाषा बनाए बर मोर सूझाव


कोनो भी चीज ह जब हमर द्वारा सरलग बउरे जाथे त ओ ह हमर बर घसेलहा असन हो जथे हम ओ चीज के आदी हो जथन अउ ओ ह हमर दिनचर्या म शामिल हो जथे। छत्तीसगढ़ी भाषा ला जन जन के भाषा बनाए बर ओखर बउरे के जतेक भी माध्यम हे उहाॅं उहॉं ओखर बउरे के उदीम करे जाना चाही, व्यवस्था म स्वेच्छा के संगे संग बाध्यता घलो राहय।सरकारी, सहकारी, अउ निजी क्षेत्र के सबे विभाग के नौकरी पाय बर छत्तीसगढ़ी विषय के साथ वाले अंकसूची अउ छत्तीसगढ़ी भाषा ल जाने समझे के अनिवार्यता होवय। नौकरी बर रिक्त पद मनके विज्ञापन हिन्दी अंग्रेजी के साथ साथ छत्तीसगढ़ी म घलो प्रकाशित होवय छत्तीसगढ़ी म भरे फार्म ल साथ म स्वीकारे जावय, कुल मिला के कहन त छत्तीसगढ़ी ल काम काज के भाषा बनाय जाय।  मनोरंजन के जम्मो संसाधन के रूप म छत्तीसगढ़ी भाषा ह लोगन तक सरलग पहुॅंचत राहय। भाषा ल प्रायमरी स्तर तक शिक्षण के माध्यम बनाय जाय। मिडिल स्तर से उच्चतर माध्यमिक स्तर तक छत्तीसगढ़ी ह एक अनिवार्य विषय राहय अउ स्नातक स्नातकोत्तर स्तर म वैकल्पिक विषय होवय। विधानसभा के कार्यवाही आदेश निर्देश आदि ह हिन्दी अंग्रेजी अउ छत्तीसगढ़ी तीनों भाषा म प्रकाशित होवय।कोर्ट के जजमेंट मन घला तीनों भाषा म प्रकाशित होवय। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के बजट ल बढ़ाय जाय।जादा से जादा धनराशि भाषा ल समृद्ध करइया साहित्यकार अउ साहित्यक गतिविधि मन ल प्रोत्साहित करब म खर्च होवय।प्रोत्साहन स्वरूप जे सम्मान दिए जाथे तेन मा फलनवा बॉंटय रेवड़ी अपने अपन ल देय वाले बात ह चरितार्थ झन होवय। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के महत्त्वपूर्ण पद मन म अपन चहेता अउ चापलूस मन ल बइठारे के मोह ह राजभाषा के उन्नति समृद्धि अउ विकास बर घातक अउ बाधक हे सरकारन ल अइसन कृत्य करे ले बॉंचना चाही बल्कि अइसन व्यक्ति के नियुक्ति ओखर द्वारा होवय जे हर जमीनी स्तर म भाषा बर दृश्य योगदान देवत हे जेन ल चार आदमी देखत हें अउ परखत घलो हें।

छत्तीसगढ़ी भाषा बर नेक नीयत होना अति जरूरी हे नेक नीयत बिना सब कहना सुनना जइसे अकारथ जान परथे।


-सुखदेव सिंह''अहिलेश्वर''

Friday 27 November 2020

पुरखा के सुरता--भावांजलि-चोवाराम वर्मा बादल

 *पुरखा के सुरता--भावांजलि-चोवाराम वर्मा बादल


  *व्याकरणाचार्य हीरालाल काव्योपाध्याय*

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छत्तीसगढ़ महतारी ह वीर प्रसूता लो आयेच एकर कोरा म गुरुघासीदास जइसे संत महात्मा ,कालीदास जइसे महाकवि ,कतको महामानव अउ अमर कलाकार ,कवि ,साहित्यकार मन तको जनम लेये हें।

    आदि कवि बाल्मीकि, श्रृंगी रिसि अउ शबरी दाई के तपोवन भुँइयाँ , जगत वंद्य भगवान श्रीराम के महतारी माता कौशिल्या के  मइके ए भुँइयाँ बड़ जागरित अउ पावन हे।

   इही पावन भुँइयाँ म महामानव साहित्यकार,महतारी भाखा छत्तीसगढ़ी के, वो समे जब खड़ी बोली के व्याकरण तक नइ बने रहिसे, व्याकरणाचार्य हीरालाल 'काव्योपाध्याय' ह जन्म लेये रहिन हें।


*जीवन परिचय*-- श्री हीरालाल 'काव्योपाध्याय'जी के जन्म सन् 1856 म ग्राम--राखी(भाठागांँव), तहसील-कुरुद,  जिला--धमतरी म होये रहिस। पिता जी के नाम--श्री बालाराम चंद्राकर अउ महतारी के नाम--श्रीमती राधा बाई रहिस हे। श्री बालाराम चंद्राकर जी रायपुर म गल्ला के व्यपार करयँ।

       'काव्योपाध्याय' जी ह अपन आठ भाई बहिनी म सबले बड़े रहिन।

  हीरालाल जी के दू बिहाव होये रहिस।बिहाता के अल्पमृत्यु के बाद दूसरइया बिहाव होये रहिस उहू ह अल्प काल म स्वर्ग सिधार गिन। जेकर सेती उन संतान सुख ले वंचित रहिन।


*शिक्षा दीक्षा अउ कार्य*-- 'काव्योपाध्याय' जी के प्राथमिक शिक्षा दीक्षा रायपुर म होये रहिस। उन मन मेट्रिक के परीक्षा सन 1874  म जबलपुर केंद्र ले पास करे रहिन।

     उनकर रूचि पढ़ाये अउ खुदे पढ़े म बहुत जादा रहिसे। स्वाध्याय के बल म उन ला अंग्रेजी, बंगला, मराठी ,संस्कृत आदि भासा मन म अधिकार होगे रहिस।

     सन् 1875 म उन ला 19 बरस के उमर म 30 रू० महिना वेतन म रायपुर के जिला स्कूल म सहायक शिक्षक के नौकरी मिलगे। 

  उन अपन विद्यार्थी, साथी शिक्षक अउ पालक मन म बहुत लोकप्रिय रहिन हें।

   बीच म जिला स्कूल बिलासपुर म तको पढ़ाईन तहाँ ले  सन 1882 म हेडमास्टर म पद्दोन्नत होके ,60 रू मासिक वेतन म अपन गृह जिला मुख्यालय धमतरी म आगें अउ उहें बसगें।

      'काव्योपाध्याय' के पिताजी ह अपन चंद्राकर समाज के मुखिया रहिन हे। ओकर प्रभाव श्री हीरालाल जी उपर बने परे रहिसे। तेकर सेती समाज सेवा म आपो लगे राहव। आप धमतरी डिस्पैंसरी समिति के सभापति अउ नगरपालिका के अध्यक्ष के रूप म जन सेवा करेव।

*साहित्यिक परिचय*--

'काव्योपाध्याय' जी ह आशु कवि रहिन । उन कर प्रमुख कृति हें--

*शाला गीत चंद्रिका*--सन्1881 म लखनऊ के नवल किशोर  प्रकाशन ले प्रकाशित।

*गीत रसिक*

*अंग्रेजी रीडर भाग 1,भाग 2*

      उपर के कृति मन ल पढ़इया लइका मन बर लिखे रहिन हें।

*नवकांड दुर्गायन*--ये ह उनकर 'दुर्गा सप्तशती' के आधार लेके लिखे बहुतेच प्रसिद्ध छंद अउ मात्रा म बंँधे रचना आय।

   इही कृति म 11 सितम्बर 1884 म एक समारोह म 'बंगाल अकादमी आफ म्यूजिक 'के महाराजा सर सुरेंद्र मोहन ठाकुर ह *काव्योपाध्याय* के उपाधि अउ सोन के बाजूबंद(स्वर्ण केयूर) दे रहिन।


*छत्तीसगढ़ी व्याकरण*-- भगवान जाने -काय बात ये ते। अधिकांश महान रचनाकार मन अपन अमर, कालजयी कृति के रचना अपन जीवन के अंतिम काल म करे हें। 'काव्योपाध्याय' जी ह घलो अपन जीवन के छेवर काल म सन् 1881 ले सन्1885 के चार साल म जगत प्रसिद्ध ग्रंथ  छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रथम व्याकरण *छत्तीसगढ़ी व्याकरण* के रचना करिन जेला वो समे के प्रसिद्ध भाषा शास्त्री  सर जार्ज ग्रियर्सन  ह अंग्रेजी म अनुवाद करके  'जर्नल आफ एसियाटिक सोसायटी आफ बंगाल ' म जिल्द तीस भाग 1 म सन्1890 म प्रकाशित करवाइस।

    ए प्रकाशन ले 'काव्योपाध्याय' के प्रसिद्धि सरी दुनिया म फइल गे।

  श्री ग्रियर्सन ह आभार व्यक्त करत लिखे हें- हीरालाल जैसे विलक्षण महापुरुष के कारण ही हम भिन्न-भिन्न भाषाओं के बीच सेतु बनाने के अपने प्रयास में सफल हो पाते हैं

*मृत्यु*-   प्रणम्य हीरालाल 'काव्योपाध्याय' जी ह   ये जगत म अपन भूमिका निभाके सिरिफ 34 साल के उमर म  उदर रोग ले पिड़ित होके सन्1890 म स्वर्ग सिधार गिन।

    उन आज भले नइये फेर अपन कृति ले सदा अमर रइहीं।


चोवा राम  'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

पुरखा साहित्यकार के सुरता... ओमप्रकाश साहू


 पुरखा साहित्यकार के सुरता... ओमप्रकाश साहू 

कविता के लगइस सुग्घर थरहा : विश्वंभर यादव "मरहा "

   हमर छत्तीसगढ़ मा जउन समय 

 मा हिन्दी लिखइया साहित्यकार मन के गजब जोर रीहिस हे।अइसन बेरा मा घलो कुछेक छत्तीसगढ़िया रचनाकार मन साहित्य साधना ले अपन एक अलग चिन्हा छोड़िस वोमा 

पं. सुन्दर लाल शर्मा, कोदू राम दलित, पं. द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र , मेहत्तर राम साहू, विमल कुमार पाठक, दानेश्वर शर्मा, लक्ष्मण मस्तुरिया,  संत कवि पवन दीवान ,  मुकुन्द कौशल, रामेश्वर वैष्णव, सुरेन्द्र दुबे ,विश्वंभर यादव मरहा शामिल हवय ।दलित जी जइसे मरहा जी हा घलो हास्य व्यंग्य के जमगरहा कवि रिहिस हे । कवि सम्मेलन के मंच मा छा जाय ।जइसे दलित जी के सही मूल्यांकन नइ हो पाइस वइसने मरहा जी के घलो उपेक्षा करे गिस । जउन ढंग ले मान सम्मान के हकदार रिहिस वोहा नोहर होगे. मात्र एक हफ्ता स्कूल जवइया मरहा ला तो कुछ बड़का साहित्यकार मन कवि घलो नोहे कहय । लेकिन ये जन कवि हा अपन छत्तीसगढ़ी कविता के माध्यम ले जउन पहिचान बनइस वोहा काकरो से छुपे नइ हे ।

     छत्तीसगढ़ के दुलरवा बेटा विश्वंभर यादव मरहा के जनम दुर्ग शहर के तीर बघेरा गाँव मा  6 अप्रैल 1931 मा पहाती 4 बजे होय रिहिस । वोकर ददा हा सुग्घर भजन गावय ।साधारण किसान परिवार मा जनम लेवइया विश्वंभर 

हा चन्दैनी गोंदा के संस्थापक दाऊ रामचंद्र देशमुख जी के घर काम करे के संगे संग चन्देैनी गोंदा मा अभिनय करके अपन लोहा मनवाइस । वोहा 1944 ले रचना लिखे के चालू करिस ।दाऊ रामचंद्र देशमुख ले वोला लिखे के प्रेरणा मिलिस ।

  ले देके अपन नाव लिखे बर सीखे मरहा हा सैकड़ों छत्तीसगढ़ी कविता रचिस । कतको कविता वोला मुँहखरा याद रिहिस ।अपन रोजी रोटी बर मरहा हा बढ़ई के काम करे अउ सुग्घर ढंग ले कविता के सृजन करे ।शरीर ले वोहा भले दुबला पतला रिहिस पर वोहा अपन कविता पाठ के समय गजब सजोर लगय । धोती कुर्ता अउ गांधी टोपी पहन के  वोहा 

बुराई, भ्रष्टाचार, अत्याचार करइया मन ला ललकार के समाज सुधार अउ देश प्रेम ला जगाय के काम करय ।छत्तीसगढ़िया मन के शोषण करइया अउ छत्तीसगढ़ी भाखा के हीनमान करइया मन बर अलकरहा बिफर जाय ।सादा जिनगी जियइया अउ उच्च बिचार रखइया मरहा हा संत कबीर के समान कोनो शासक अउ नेता के सामने नइ झुकिस ।

    सबले पहिली मरहा ला मेहा सुरगी के तीर मोखला गाँव मा रामचरित मानस प्रतियोगिता मा काव्य पाठ करत देखे रेहेंव ।वो समय मँय हा हाईस्कूल मा पढ़त रेहेंव ।मरहा के कविता ला सुनके हजारों नर- नारी के मन हा गदगद हो जाय । घंटा भर कविता पाठ करे के बाद जब वोहा बताय कि ले अब मेहा बइठत हंव तब श्रोता मन चिल्ला के कहय कि मरहा जी 

अउ सुनाव । तो अइसन वोकर कविता के जादू राहय ।मरहा हा साल भर कवि सम्मेलन, कवि गोष्ठी अउ सभा मा व्यस्त राहय ।वोहा  365 दिन मा मात्र 65 दिन घर मा रहय ।छत्तीसगढ़ राज्य आंदोलन अउ छत्तीसगढ़ी ला राजभाखा बनाय बर आयोजित कार्यक्रम मा घलो जोशिया के भाग लेवय ।


  मरहा उपनाम अइसन पड़िस 


जब मेहा 6 मई 2005 मा बघेरा मा वोकर घर जाके साक्षात्कार लेंव ता "मरहा " नाम कइस पड़िस पूछेंव ।तब वोहा बतइस कि एक बड़का कार्यक्रम मा माई पहुना दाऊ रामचंद्र देशमुख हा रिहिस अउ पगरईत संत कवि पवन दीवान जी हा करत रिहिस ।

मंच संचालन के काम ला श्याम लाल चतुर्वेदी जी हा करत रिहिस ।विश्वंभर जी के शरीर ला देखके दाउ जी के मन मा बिचार अइस अउ अपन बात ला पवन दीवान जी ला बताइस कि "मरहा " उपनाम कइसे रही । जमगरहा हाँसत दीवान जी हा येकर समर्थन करिस । उही दिन ले यादव जी हा अपन उपनान" मरहा " रख लिस ।


काव्य शिरोमणि ले सम्मानित होइस 

एक घांव बिलासपुर के राघवेन्द्र भवन मा राष्ट्रीय कवि नीरज जी के सम्मान मा "नीरज नाईट "आयोजित करे गे रिहिस ।इही समय डॉ. गिरधर शर्मा जी ला मरहा जी के प्रतिभा के बारे मा पता चलिस ता वोहा एक हफ्ता बाद उही राघवेन्द्र भवन मा" मरहा नाईट " के आयोजन रख दिस ।एमा लोगन मन के एकदम भीड़ उमड़ गे । मरहा जी हा घंटों काव्य पाठ करके सबके दिल जीत लिस ।मरहा के सम्मान मा उच्च न्यायलय बिलासपुर के न्यायधीश रमेश गर्ग जी हा किहिस कि " पहिली संत कबीर जी के बारे मा सुने रेहेंव, पढ़े रेहेंव ।आज वोला मेहा मरहा के रुप मा साक्षात सुनत हंव ।"ये कार्यक्रम मा मरहा जी ला "काव्य शिरोमणि " के उपाधि ले सम्मानित करे गिस । गिरधर शर्मा जी हा मरहा के कविता के संकलन करके प्रकाशित करवइस अउ कविता ला जन जन तक पहुंचाय के सुग्घर उदिम करिस ।जब सुरगी मा कवि सम्मेलन होइस तब मरहा जी हा महू ला अपन दो ठन कविता संग्रह भेंट करे रिहिस ।ये दूनों कविता संग्रह ला एक झन मोर संगवारी हा पढ़े बर मांगिस तउन हा आज तक मोला नइ लहुंटइस ।

  मरहा जी ला काव्य साधना बर रायपुर, बेमेतरा, राजनांदगांव, सुरगी, कुम्हारी, जेवरा सिरसा, भिलाई, गुण्डरदेही, मगरलोड, मुजगहन, बालोद के कई ठन सभा समिति मन सम्मानित करिस । साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव द्वारा मरहा जी ला साल 2008 मा साकेत साहित्य सम्मान ले सम्मानित करे गिस । येहा मोर सौभाग्य रिहिस कि महू हा उही साल मरहा जी के संग साकेत सम्मान ले सम्मानित होयेंव ।मेहा मरहा जी के संग सात बर कवि सम्मेलन मा काव्य पाठ करे रेहेंव । वोकर कविता हा आकाशवाणी अउ दूरदर्शन मा प्रसारित होवत राहय ।

मरहा जी अब्बड़ अनुशासनप्रिय आदमी रिहिस । कोनो कार्यक्रम हा चालू होय मा देरी हो जाय नइ ते कोनो व्यवस्था ला कमजोरहा पाय ता आयोजक मन बर अब्बड़ भड़के ।


 शोषण करइया मन उपर गजब कविता लिखे हे -


  साबर -साबर जइसे चुराके, 

हक जमा लेव परिया मा ।

सुई जइसे दान करके, 

कोड़ा देव तरिया ला ।


भ्रष्टाचार ला देखके वोहा अइसन कलम चलइस -


सिधवा मन लुलवावत हावय, 

अउ गिधवा मन मेड़रावत हावय ।

कुकुर मन सुंघियावत हावय, 

अउ खीर गदहा मन खावत हावय ।

दुवारी मा रखवारी करथय कुसुवा मन, 

अउ भीतरे भीतर भीतरावत हावय मुसुवा मन ।

नवा नवा कानून बनाथे कबरा मन, 

अउ बड़े बड़े पद मा हावय लबरा मन ।

दिनों दिन बाढ़त हावय झगरा मन, 

भारत ला लीलत हावय दूसर देश के करजा मन ।

स्वार्थी मन के हाथ मा हावय, 

भारत के सब बड़े बड़े दर्जा मन ।

दलाल मन सब मजा उड़ावय, 

अउ भोगत हावय परजा मन ।

कब सुधरी हमर भारत के हाल हा, 

दलाल मन ला कब पूछहू, कहां जाथे माल हा ।


वोकर कविता मा जन जागरण के स्वर देखे ला मिलथे -


गजब सुते हव अब तो जागव ,

अब्बड़ अकन अभी काम पड़े हे ।

अंग्रेज मन चल दिहिन तब ले ,

अभी अंग्रेजी मन के भूत खड़े हे ।

    

 दिन अऊ रात इंहा भाषण देथय,

घुघवा मन ह बन के गियानी ।

हंस बिचारा लुकाय फिरत हे ,

देख- देख के उंकर मनमानी ।

 

मान मर्यादा नियाव ल छोड़ के ,

सब कटचीप मन सुख पावत हे ।

सत धरम म चल के सिधवा मन ,

जिनगी भर दुख पावत हे।


गॉव शहर म बंगला हे ,

घूसखोर बेईमान अउ गिरहकट के। 

हरिशचन्द्र हावय आज के कंगला ,

रखवार बने हे मरघट के ।


जगा - जगा बने हावय अड्डा ,

चोर फोर अऊ हड़ताल के ।

अइसन म हे कउन देखइया ,

दीन दुखी कंगाल के ।

भेदभाव ल छोड़, देश के काम म लगव ,

सुतत - सुतत रात बितायेव,  अब तो जागव।


मरहा ला अपन भाखा छत्तीसगढ़ी ले गजब लगाव रिहिस ।मरहा के कहना राहय कि -" हमन छत्तीसगढ़ मा बोलन, लिखन अउ पढ़न तभे हमर भाखा हा पोठ होही ।"

नवा लिखइया मन ला वोहा कहय कि -" रचना ला शब्द ले अतेक जादा झन सजावव के ओखर चमक उतर जाय ।जमीन मा रहिके जमीन के बात करना चाही ।"

 एक घांव सुरगी मा कवि सम्मेलन होइस ।येमा मरहा जी ला विशेष रुप ले आमंत्रण करे रेहेन ।कार्यक्रम शुरू होय से पहिली कवि मन के बइठक व्यवस्था मोर घर मा करे रेहेन ।ये कवि सम्मेलन मा डोंगरगॉव के तीर मा बसे गाँव माथलडबरी के आशु कवि तिलोक राम साहू बनिहार जी हा घलो आमंत्रित रिहिस ।बड़े भइया कवि महेन्द्र कुमार बघेल मधु जी (कलडबरी, छुरिया) के संग बनिहार जी हा हमर घर पहुंचिस । मरहा जी, निकुम के प्यारे लाल देशमुख जी अउ दुर्गा प्रसाद श्याम कुंवर जी हा पहिली ले हमर घर पहुंच गे रिहिन । मोर बाबू जी मेघू राम साहू जी संग सुग्घर ढंग ले कवि मन गोठियात बतात रिहिस ।इही बीच मा पहुंचे बनिहार जी हा आतेसात मोर बाबू जी ला देखते देखत कई ठक कविता सुना डारिस ।बाबू जी हा हाव हाव काहत सुनत गिस ।पर बनिहार जी हा कविता सुनाय के 

चक्कर मा अतिरेक कर डारिस ।ये बात हा मरहा जी ला पसन्द नइ आइस अउ कड़क अवाज मा बनिहार जी ला टोकिस ।

 अइसने साल 2009 मा मोखला मा आयोजित साकेत के वार्षिक सम्मान समारोह मा सोमनी के बस स्टेन्ड ले मोखला लाय के जिम्मेदारी मोर रिहिस हे ।मरहा जी हा बघेरा ले फोन करिस कि मेहा अब मोखला बर निकलत हंव । मेहा थोरकुन ये सोच के देरी कर डारेंव कि मरहा जी ला सोमनी आय मा समय लगही ।लेकिन वो दिन मरहा जी ला दुर्ग आतेसात सोमनी बर बस मिलगे ।जब मेहा अपन गाड़ी मा मरहा जी ला लेय बर पहुंचेव ता ये देख के मेहा दंग रहिगेंव के मरहा जी दंगर दंगर पैदल रेंगत भर्रेगॉव पुल के तीर पहुंच गे राहय ।मेहा अकबका गेंव । सबले पहिसी मेहा मरहा जी ला देरी मा पहुंचे बर मांफी मांगत पयलगी करेंव ।पर मरहा जी के रिस हा तरवा मा चढ़गे रिहिस ।वोहा मोर गाड़ी मा नइ बइठ के तुरतुर तुरतुर रेंगे ला धर लिस ।फेर मेहा मरहा जी के तीर मा जाके फिर से केहेंव कि ले बबा मोर गल्ती ला माफी देवव अउ गाड़ी मा बइठ जावव ।तहां ले मरहा जी हा गाड़ी मा बइठिस ।ऊंकर घर के हाल चाल पूछत अउ 

मोर घर के हाल चाल मरहा जी पूछिस ।मेहा मने मन सोचेंव बनिस ददा मोर काम हा ।काबर कि मरहा जी के रिस ला तो मेहा दू तीन बेर कार्यक्रम मा देख चुके रेहेंव ।


 गरीबी के बावजूद वोहा कभू अपन स्वाभिमान ला नइ बेचिस ।

आयोजन मा घलो नेता मन के बखिया उधेड़ के रख देय ।कतको विसंगति उपर जमगरहा कविता सुनाके सुधार के बात करय अउ लोगन मन मा जन जागृति फैलाय के काम करिन ।अइसन जन कवि हा सितंबर 2011 मा अपन नश्वर शरीर ला छोड़ के परम धाम मा पहुंच गे ।मरहा जी ला शत् शत् नमन हे ।


           ओम प्रकाश साहू" अंकुर"

   सुरगी, राजनांदगॉव (छ. ग.)


Thursday 26 November 2020

पुरखा के सुरता- मिनेश साहू


 *पुरखा के सुरता- मिनेश साहू

*प्रकृत कवि बद्री विशाल परमानंद*


अनाविल प्राण सिंगार सौंदर्य अउ भक्ति के प्रकृत कवि स्व.श्री बद्री विशाल परमानंद जी के जनम ग्राम छतौना (मंदिर हसौद) जिला रायपुर म ०३ जुलाई १९१७ होइस हे। आदरणीय श्री परमानंद जी के रचना मन जीत्ते जीयत लोकगीत के प्रसिद्धि पा गइन। उन सौकड़ो भजन अउ लोकगीत के रचना करे रहिन।जेमन ८० ठन मंडली म प्रचलित रहिन आदरणीय परमानंद जी के नाव ले। छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के अध्यक्ष श्री सुशील यदु के संपादन में उंकर पहिली संकलन *पिंवरी लिखे तोर भाग* प्रकाशित होइस जेन हा आज भी चर्चा के विषय हे। छत्तीसगढ़ी भाषा अउ साहित्य बर ये हर बड़ संजोग के बात आय कि ओला ओकर दूसर चरण म बद्री विशाल परमानंद जइसे रससिद्ध लोककवि मिलिस,जेमा ईसुरी के फाग जइसन रजकंता तो हे फेर भदेस पन नइये,जेमा रीतिकालीन सिंगार तो हे फेर रीति के आग्रह नइहे, फूहड़ता नइये।उंकर गीत मन छत्तीसगढ़ी साहित्य के धरोहर आय। ८६ वर्ष के उमर मा ११ मई सन् १९९३ म रायपुर म हो गीस।आवव ऊखर लिखे कुछ लोक गीत अउ कविता ल आप मन बीच मा रखत हंव।

    *लोक गीत* ०१


परगे किनारी मा चिन्हारी,

ये लुगरा तोर मन के नोहे।

लागे हावै नैना मा कटारी,

ये कजरा तोर मन के नोहे।।


लउका ह लउकत हे दांतन मा तोर,

मीठ बोलना बजा देते मांदर ल तोर।

अइसे लागे तोर खोपा मा गोई,

गुंजियागे हे करिया बादर ह वो।।


इंद्र राजा आगे धनुषधारी,

ये फुंदरा तोर मन के नोहे।


कोन बन बंसरी बजाये मोहना,

सुरता समागे सुरसूधिया।

जकर-बकर होगे रे लकर-धकर होगे रे,

कइसे परावत हे रधिया।।


जइसे भगेली कोनो नारी,

ये झगरा तोर मन के नोहे....


नाचत हे रधिया नचाये मोहना,

झूमर-झूमर बंसरी बजाये मोहना।

महर-महर ममहागे रितुवा बसंती,

वृन्दावन मुसकाये मोहना।।


मोर मन के फुलगे फुलवारी,

ये भंवरा तोर मन के नोहे।।


             ०२


का तैं मोला मोहनी डार दिये गोंदा फूल..२


रुपे के रुखवा मा चढ़ गिये तैं हा।

मोर मन के मंदरस ला झार दिए गोंदाफूल..

का तैं मोला मोहनी डार दिये ना..


ऊल्हवा पाना कस कंवल करेजा।

भूंज डारे तेला बघार दिये गोंदा फूल....


तोर होगे आती अउ मोर होगे जाती।

रेंगते रेंगत आंखी मार दिये गोंदा फूल....


           ०३

तैं हा पिरित लगाके घलो छोड़ देबे का रे,

मझधार मा डोंगा,मोला बोर देबे का ?


मैं हा फोरके करेजा ला,देखावंव तोला का वो

बिसवासी के मया जोर देबे का ?


टूरा के जात कहिथे भंवरा के जात रे,

दिन के गुलाब फूल कंवला फूल रात रे,

दूहापाही में लुल्हार के बिल्होर देबे का रे,

मझधार मा डोंगा मोला बोर देबे का रे...


गांव मा गोहार परही तोर मोर नाव रे,

ददा के दुवारी छुटही छूट जाही गांव रे,

मोला जुवानी के झोंका मा झंकोर देबे का रे,

मझधार मा डोंगा मोला बोर देबे का रे.......


     *कविता* ०१


कुहू कुहू कुहकथे कारी रे कोयलिया,

पिंवरी लिखे तोर भाग,आमा मउर।


फूले फूले गोंदा फूल,

झूले झूले मउहा फूल।

लाली लेबे परसा के फूल,

आमा मउर।।


टिहके नगारा राजा,

माते हे मदनपुर।

छतिया ला मारे,

फूल बान आमा मउर।।


बिरहा के बंसरी,

बजाये मनमोहना।

रधिया ला सुसकी,

भराय आमा मउर।।


             ०२ 

*पेट मा आगी सुलगे हे*


तोर हीरा के पीरा ला,

पीरा के हीरा ला।

कइसे भंजावव रे!

पिरोहिल काला बतावंव रे।


झांवा के लांवा जुवालामुखी हा उलगे हे,

भीतरे भीतर पेट मा आगी सुलगे हे,

भूख सेंकावय तावा मा रोटी कइसे खवांवव रे।

तोर हीरा के पीरा......


लहू खवावय लहू पियावय रक्सा मन,

बनगे पेटहा पेट लहू के पइसा मन,

जबरा मारे रोवन न देवय कइसे थेम्हाववं रे।

तोर हीरा के पीरा ला.....


दया मया के दुवार देवागे ठगई आगे,

दंवघतिया मनखर खाये खातिर मिठई आगे,

सच के रद्दा चिकनी पइसा कइसे चलाववं रे।

तोर हीरा के पीरा ला......


पुरखा के सुरता

सादर नमन जोहार

मिनेश कुमार साहू

Wednesday 25 November 2020

सुरता" सुशील यदु*- अजय अमृतांशु


 *"सुरता" सुशील यदु*- अजय अमृतांशु


                सहज,सरल,मृदुभाषी और मिलनसार व्यक्तित्व के धनी स्व. सुशील यदु के जन्म – 10 जनवरी 1965 के ब्राह्मणपारा रायपुर म होय रहिस। आपके पिता के नाम स्वर्गीय खोरबाहरा राम यदु रहिस ।  एम.ए.हिंदी साहित्य तक शिक्षा प्राप्त यदु जी मन प्राइमरी स्कूल म हेड मास्टर रहिन।  छत्तीसगढ़ राज्य बने के पहले ही छत्तीसगढ़ी भाषा ला स्थापित करे खातिर जेमन संघर्ष करिन वोमा सुशील यदु जी के नाम अग्रिम पंक्ति में गिने जाथे।  छत्तीसगढ़ी भाखा अउ साहित्य के उत्थान खातिर हर बछर छत्तीसगढ़ म बड़े-बड़े साहित्यिक आयोजन करना जेमा प्रदेश भर के 400-500  साहित्यकार मन ल सकेल के ओकर भोजन पानी के व्यवस्था करना अइसन काम केवल सुशील यदु ही कर सकत रहिन । छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलन के लोकप्रिय हास्य व्यंग्य कवि के रूप म उमन जाने जात रहिन। छत्तीसगढ़ी के उत्थान बर अपन पूरा जीवन खपा दिन अउ अंतिम सांस तक छत्तीसगढ़ी भाखा ल स्थापित करे के उदिम करत रहिन। 

                 सन 1981 में जब प्रांतीय छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के स्थापना होइस तब वो बखत कोनो सोंचे नइ रहिन होही कि आघू चल के ये संस्था छत्तीसगढ़ी भाखा ल स्थापित करे बर मील के पथरा बनही । सुशील यदु के अगुवई म ये संस्था छत्तीसगढ़ राज के 18 जिला म छत्तीसगढ़ी के विकास खातिर संकल्पित होके काम करिस अउ आज पर्यन्त उँकर 'बाना बिंधना" उठाए काम करत हवय । छत्तीसगढ़ी साहित्य परिषद रायपुर ले लगभग  500 साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी अउ रंगकर्मी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ेच रहय। सन 1994 म पहिली प्रांतीय सम्मेलन के आयोजन होइस जेन आज पर्यंत जारी हे। सन 2007 म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के रजत जयंती वर्ष मनाय गिस। यदुजी के उठाय हर कदम सराहनीय रहय । हर बछर ये संस्था के माध्यम से लगभग 8-9 सम्मान अलग-अलग क्षेत्र में उपलब्धि हासिल करने वाला मन के करे जाय। अपन संस्था के माध्यम ले उमन छत्तीसगढ़ के अनेक हस्ती ल सम्मानित करिन जेमा- साहित्यकार, लोक कलाकार, पत्रकार, फिल्मी कलाकार अउ रंगकर्मी आदि शामिल हे। छत्तीसगढ़ के लगभग हर बड़े साहित्यकार और लोक कलाकार के सम्मान सुशील यदु जी अपन संस्था के माध्यम से किया ।

                  महिला साहित्यकार मन ला प्रतिनिधित्व देना यदु जी के खासियत रहिस ।उँकर प्रांतीय साहित्य समिति के वार्षिक आयोजन की लोकप्रियता के अंदाजा आप इही बात ले लगा सकथव कि साहित्यकार मन ला साल भर ये आयोजन के इंतजार रहय। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण खातिर  स्वर्गीय हरि ठाकुर संग जुड़के आंदोलन ल गति दे के काम यदुजी करिन। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद छत्तीसगढ़ी भाषा ल राजभाषा बनाय बर कई बार प्रांतीय सम्मेलन के माध्यम ले आवाज ल सरकार तक पहुंचाइन। राजभाषा बने के बाद घलो उमन चुप बइठ के नइ रहिन अउ छत्तीसगढ़ी ला राजकाज के भाखा बनाय बर, छत्तीसगढ़ी ला आठवीं अनुसूची में शामिल करे बर आजीवन लड़त रहिन। 

                  छत्तीसगढ़ी म यदु जी कालजई गीत भी लिखे हवय जेमा कुछ के ऑडियो-वीडियो भी बने हे अउ फिल्म मा भी आ चुके हे। उँकर लिखे गीत अउ हास्य व्यंग्य के कविता के छाप आज भी जनमानस में देखे जा सकत हे । रायपुर के दूधाधारी मठ उँकर कई बड़े आयोजन के साक्षी हे । कवि सम्मेलन के मंच म- "घोलघोला बिना मंगलू नइ नाचय, अल्ला-अल्ला हरे-हरे, होतेंव कहूँ कुकुर, नाम बड़े दर्शन छोटे, कौरव पांडव के परीक्षा जइसन हास्य व्यंग्य कविता ले उन खूब वाह-वाही लूटिन । 

                    सन 1993 ले 2002 तक दैनिक नवभारत म छत्तीसगढ़ी स्तंभ "लोकरंग" के लोकप्रिय लेखक रहिन । लोकरंग के माध्यम ले उमन छत्तीसगढ़ी के साहित्यकार अउ लोक कलाकार मन ला आघू लाय के प्रशंसनीय कार्य करिन। 

                   सुशील यदु जी अपन संपादन म वरिष्ठ और अभावग्रस्त साहित्यकार मन के किताब के प्रकाशन करे के सराहनीय काम करिन । हेमनाथ यदु, बद्री विशाल परमानंद, रंगू प्रसाद नामदेव, लखन लाल गुप्त, उधो झकमार, हरि ठाकुर, केशव दुबे, रामप्रसाद कोसरिया जइसन ख्यातिनाम साहित्यकार मन के रचना ल पुस्तक के रूप म प्रकाशित करवाइन। अपन संपादन म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के द्वारा अब तक कुल 15 पुस्तकों के प्रकाशन श्री यदु जी करिन जेमा- 1. हेमनाथ यदु के व्यक्तित्व अउ कृतित्व  2. बन फुलवा   3.पिंवरी लिखे तोर भाग  4. छत्तीसगढ़ के सुराजी वीर काव्य गाथा ,5. बगरे मोती  6. हपट परे तो हर-हर गंगे  7. सतनाम के बिरवा 8. छत्तीसगढ़ी बाल नाटक 9. लोकरंग भाग -1 ,  10. लोकरंग भाग -2  11. घोलघोला बिना मंगलू नहीं नाचय, 12. ररूहा सपनाय दार-भात  13. अमृत कलश  14. माटी के मया  15. हरियर आमा घन मँउरे, 16. सुरता राखे रा सँगवारी हवय।

                 छत्तीसगढ़ी के दिवंगत साहित्यकार मन के सुरता म उमन "सुरता" कड़ी के शुरुआत करिन जेमा - सुरता हेमनाथ यदु, सुरता भगवती सेन , सुरता डॉ नरेंद्र देव वर्मा , सुरता हरि ठाकुर, सुरता कोदूराम दलित , सुरता केदार यादव,सुरता बद्री विशाल परमानंद ,गणपत साव, मोतीलाल त्रिपाठी मन ल सोरियाय के अनुकरणीय काम करिन। प्रांतीय साहित्य समिति के बैनर म बड़े-बड़े छत्तीसगढ़ी कवि सम्मेलनों के आयोजन घलो करिन। उँकर स्वयं के पांच कृति प्रकाशित होय हवय । वर्ष 2014 म प्रकाशित उँकर कृति हरियर आमा घन मउँरे  (सन 1982 ले 2012 तक उँकर द्वारा लिखे गीत अउ व्यंग्य कविता कुल 51 रचना के संग्रह) प्रकाशित होइस जेन खूब लोकप्रिय होइस।

                   कार्यक्रम आयोजन अउ संयोजन करे के गजब के क्षमता यदु जी म देखे बर मिलिस। उँकर संग मोर लगभग 18 बछर के साथ रहिस उन खुले दिल के व्यक्ति रहिन । बातचीत के दौरान  कभू कभू उमन कहि दय कह -*अब आघू के काम तुम युवा मन ला ही करना हवय अपन अपन कमान ल संभाल लव*  तब हमन कहन कि  आपके रहत ले का चिंता है भैया ? फेर हमन उनका इशारा नइ समझ पायेन । मैं कभू नइ सोंचे रहेंव कि अतका जल्दी हम सब ल छोड़ के उँमन चल देही। उँकर अगुवाई म छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति के अंतिम सम्मेलन 14 और 15 जनवरी 2017 के तिल्दा म होय रहिस। कई साहित्यकार मन आज भी इही बात ल बार-बार कहिथे कि उनला नइ मालूम रहिस कि ये सम्मेलन हा उँकर जीवन के आखिरी प्रांतीय सम्मेलन होही ओकर बाद यदु जी से कभू मुलाकात नइ हो पाही।  

                   यदुजी के पूरा जीवन संघर्षमय रहिस । अंतिम समय म कुछ दिन आईसीयू म रहिन, उँहा ले छुट्टी होके घर आ गे रहिन फेर नियति के लिखे ल को टार सकथे। 23-09-2017 के रात 9:30 बजे मोला खबर मिलिस कि यदु जी नइ रहिन । कुछ देर तो मोर हाथ-पांव सुन्न होगे। अइसन व्यक्तित्व के सुरता आज भी रहि रहि के आथे अउ आँखी आँसू ले बरसे लगथे। 

                  सुशील यदु के नाम लोक साहित्य, लोक कला अउ लोक संस्कृति के पर्याय बनगे रहिस । उँकर जाय ले छत्तीसगढ़ी साहित्य के एक अध्याय समाप्त होगे । भाषा के उत्थान बर जूझने वाला, लड़ने वाला अउ दिन रात एक करइया व्यक्तित्व नइ रहिन। छत्तीसगढ़ी ल स्थापित करे के दौर म उँकर चले जाना छत्तीसगढ़ी साहित्य  बर अपूर्णीय क्षति हे जेकर भरपाई नहीं हो सकय।       


*अजय अमृतांशु*,भाटापारा

🙏🙏🙏

पुरखा के सुरता - ओमप्रकाश साहू अंकुर


 पुरखा के सुरता - ओमप्रकाश साहू अंकुर


 पवन नइ आंधी रिहिस ...



जउन मन मा हा छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान ला जगाय के गजब उदिम करिस वोमन मन मा श्रद्धेय खूबचंद बघेल जी, कृष्णा रंजन जी, लक्ष्मण मस्तुरिया जी, अउ संत कवि पवन दीवान जी के नांव अव्वल हवय । दीवान जी हा बाहरी आदमी मन के शोषण के विरोध कर छत्तीसगढ़िया मन के हिम्मत ला बढ़ाय के नीक काम करिस ।

  

दीवान जी के जनम किरवई गांव मा 1 जनवरी 1945 मा होय रिहिस । वोकर कर्मभूमि राजिम के संगे संग पूरा छत्तीसगढ़ रिहिस ।

वे एक भागवत प्रवचनकार के संगे संग साहित्यकार अउ राजनीतिज्ञ रिहिस । विधायक, सांसद अउ अविभाजित मध्य प्रदेश के मंत्री घलो बनिस । गौ सेवा आयोग छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष बनाय गिस । 

दीवान जी के  भागवत प्रवचन मेहा पहिली बार राजनांदगांव जिला के गांव भर्रेगांव मा सुने रेहेंव ।वो समय मेहा मीडिल स्कूल मा पढ़त रेहेंव ।वो समय वोहा जवान रिहिस हे । वोकर भागवत प्रवचन सुने बर अपार जन समूह उमड़ पड़े । वोकर जोरदार ठहाका ला भर्रेगांव मा सुने रेहेंव । जब वोहा हंसय ता सब ला हंसा के छोड़य । अइसने बुचीभरदा (सुरगी) मा घलो वोकर प्रवचन के लाभ उठाय रेहेन ।बीच बीच मा अपन कविता सुना के मनोरंजन करे के संगे संग लोगन मन मा जागरुकता लाय । अपन हक बर आगू आके लड़े के प्रेरणा देवय ।

सौभाग्य  से हमू मन ला माई पहुना के रुप मा दीवान जी के दर्शन होइस   वोकर सुग्घर बिचार 

सुने के संगे संग हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी कविता ला सुनके धन्य होगेन ।

 जब साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव द्वारा 10 जून 2007 मा होवइया आठवां वार्षिक सम्मान समारोह बर निमंत्रण छपवायेन ता सुरगी के संगे संग आस पास के गांव के लोगन मन ला एको कनक बिश्वास नइ होय कि पवन दीवान जी हा इंकर कार्यक्रम मा आही! 

ये सब संभव हो पाय रिहिस आदरणीय डॉ. नरेश कुमार वर्मा जी के कारण । मूलत : भाटापारा (बलौदाबाजार) निवासी वर्मा जी उस समय दिग्विजय कालेज राजनांदगांव मा हिन्दी के प्रोफेसर रिहिस । अभी गजानन अग्रवाल महाविद्यालय भाटापारा मा पदस्थ 

हे ।वर्मा जी अउ हमर साकेत साहित्य परिषद् सुरगी के संरक्षक आदरणीय कुबेर सिंह साहू जी के वरिष्ठ कहानीकार डॉ. परदेशी राम वर्मा जी से बढ़िया संबंध बन गे रिहिस । एकर से पहिली डॉ. वर्मा जी हाै हमर वार्षिक समारोह मा दो तीन बार पहुना के रूप मा पहुंच चुके रिहिस ।ये प्रकार ले साकेत परिषद् ले अपना संबंध बन गे रिहिस ।डॉ. परदेशी राम वर्मा जी कृपा ले पवन दीवान जी के सुरगी आगमन होय रिहिस ।संगे संग हमर छत्तीसगढ़ के मुखिया आदरणीय भूपेश बघेल जी हा घलो पहुना बन के आय रिहिस । वो समय बघेल जी हा विपक्ष मा दमदार नेता रिहिस ।

ये कार्यक्रम मा दीवान जी के हाथ ले छत्तीसगढ़ी साहित्य समिति राजनांदगांव के अध्यक्ष आदरणीय आत्मा राम कोशा अमात्य जी अउ साकेत के सचिव भाई लखन लाल साहू लहर जी ला साकेत सम्मान 2007 प्रदान करिस ।

  इहाँ दीवान जी हा अपन बिचार रखिस तेमा छत्तीसगढ़ी भाखा ला राजभाषा बनाय के मांग रखिस ।येकर बर डॉ. परदेशी राम वर्मा जी के साथ मिलके अभियान घलो चलाइस ।अपन उद्बोधन के माध्यम से छत्तीसगढ़िया लोगन मन ला जागरुक करिस ।बीच बीच मा अपन जोरदार ठहाका ले लोगन मन ला गजब हंसाइस ।दीवान जी हा किहिस - "हमर छत्तीसगढ़ हा माता कौशल्या के मइके हरय तेकर सेति भगवान राम हा इहां के भांचा कहलाथे ।तेकरे सेति हमर छत्तीसगढ़ मा भांचा भांची ला गजब सम्मान देय जाथे । आगे किहिस  कइसे सुग्घर ढंग ले कहिथन - कइसे भांचा राम । सब बने बने भांचा राम । कोनो हा कैसे भांचा कृष्ण नइ काहय ।अउ कहइया हा अइसने कहि दिस ता वोहा का कहाही ।अइसन कहिके फेर जमगरहा ठहाका लगाइस अउ उपस्थित लोगन मन जोरदार ताली बजा के सभा ला गुंजायमान करिस ।ये कार्यक्रम हा 

सुरगी के शनिचर बाजार चौक के मंच मा होवत रिहिस ।दीवान जी हा किहिस कि मेहा पहिली बार कोनो साहित्यिक कार्यक्रम ला खुला मंच मा होवत देखत हंव।"अइसे कहिके परिषद् के लोगन मन ला प्रोत्साहित करिस ।

 साथ मा हमर गांव " सुरगी "

के सुग्घर व्याख्या घलो कर दिस " सुर " माने देवता अउ "गी " माने गांव ।

 एकर बाद दीवान जी हा" राख "  "चन्दा " अउ "तोर  धरती तोर माटी रे भइया "कविता सुनाके काव्यप्रेमी मन ला आनंदित कर दिस ।

तो ये किसम ले संत कवि पवन दीवान जी के कार्यक्रम हा यादगार बनिस ।हमर साकेत के कार्यक्रम मा पहुंच के परिषद् ला गौरवान्वित करिस । 10 जून 2007  हा हमर परिषद् अउ गांव बर ऐतिहासिक तिथि के रुप मा अंकित रही । 2 मार्च 2016 मा दीवान जी हा स्वर्ग लोक चले गिस । 

 संत कवि पवन दीवान जी ला शत् शत् नमन हे. 🙏🙏💐💐

                

ओमप्रकाश साहू अंकुर, संस्थापक सचिव एवं पूर्व अध्यक्ष साकेत साहित्य परिषद् सुरगी जिला राजनांदगांव 

        एवं 

    संयोजक, पुरवाही साहित्य समिति पाटेकोहरा विकासखंड छुरिया जिला राजनांदगांव

Friday 20 November 2020

रेखाचित्र-शशि साहू

 रेखाचित्र-शशि साहू


एकंगू गौटिया


जिनगी के गनित ला समझना बड़ मुश्किल हे। कभू कभू बड़े बात हर कोई शिक्षा नइ देवय अउ, कभू तो नानकुन बात हर आदमी के हिरदे ला लेवना कर देथे।

एकंगू गौटिया के बाप ददा हर बने पचास एकड़ जमीन के जोतनदार रिहिस। तीर तखार के गाँव  मा कोनो अइसन पोठ किसान नइ रिहिस।... नून तेल साबुन अउ कपड़ा ओनहा भर ला बिसाय ल परे, लक्ष्मी सउहत बिराजे रहय।... गउ लक्ष्मी होय चाहे धन लक्ष्मी, सकेले नइ सकलाय। हा... फेर सरसती हर वोकर घर मुहाटी ले दुरिहा राहय। घर भर मा न एक ठन न किताब रहय न रमायन गीता।

       बबा पढ़े ना बाप

        बेटा घलो अगूँठा छाप।


 ओकर मन हर कचोटे घलो। बिसनी अउ प्रभात  के नांव ला स्कूल मा लिखवा देतेव का।..सोचे लागे। फेर धन हर जोर मारय त बुद्धि घलो  कमजोर हो जाय।.. गउँटनिन हर केलौली करय, लइका मन ला  स्कूल भेज देतेन हो.. उँकरो बड़ मन हे स्कूल जाय के। फेर गौटिया सोंचे कोन से साहेब मुन्शी बन जाही पढ़ लिख के।हमर करा अतका सम्पत्ति हे सात पुरखा के खाय ले नइ सिराय। 

सभा पंचायत म कभू पढ़हई लिखई के बात चले त एकंगू गौटिया हर थोरिक कमजोर परे  ला धरे। विरोधी मन वोकर कमजोर नस ला जानय अउ बेरा कुबेरा चपक घलो दे।

... गौटिया हर तरमरा जाय। अउ ये मुखिययी हर अबिरथा लागे।

जइसे जइसे साक्षरता के जोर बाढे़ लागिस। गुरूजी मन गौंटिया के छाती मा मूँग दरय।.. गौंटिया कोनो ल निरक्षर नइ रहना हे.. परभात अउ बिसनी के भर्ती होय के उमर निकल गे हे, तभो ले हमन बड़े कक्षा मा बैठार के पढ़ाबो। 

.. का धरे हे जी पढ़ई लिखई मा, हमर तीर धन दोगानी के कमी हे का। का करही पढ़ लिख के..। 

हेडमास्टर अपन चढ़त पारा ल उतारत कहँय.. कस गा गौटिया पढ़ लिख के का करही कथस। अरे भई चिट्ठी पत्री ला बाँचही, अखबार गजट ला पढ़ही, बेरा कुबेरा पंच सरपंच बनगे, त चार झन के बीच मा बोले के कला कौशल आही..। 

मास्टर मन के तरवा के पछीना हर गोड़ मा चुँचवागे। फेर वो दिन शिक्षा के लड़ई जीते कस लागिस बपुरा मन ला।... बड़ केलौली करे मा गौटिया हर कलथी मारे रिहिस... ।  

परभात अउ बिसनी ला तो जइसे पंख लगगे। बड़ सुग्घर सुभाव के गौंउँटनिन ह, अपन नोनी बाबू के स्कूल जाय के बात ल सुन के  तुरते देवता खोली मा जाके  दीया बारिस। अउ हाथ जोर के कथे,... सदा मोर घर मा बिंदिया के अँजोर  बगराये रबे भगवान। बिंदिया धन सबले बड़े धन होथे ओकरे कमी हे ये घर मा।... मालिक। 

 गौटिया घलो अपन हिरदे के थाह लेवत सुरता करत हे वो दिन के। जब सभा पंचायत मा गाँव के  बी.ए. - एम.ए. करे, जवान छोकरा मन हबर जातिस त, गौटिया भड़क जाय।.. इहाँ तुँहर का काम हे रे सारे हो.. कहूँ नाच पैखन होथे का। तुँहर बाप मन आय हे ना इहाँ। 

टूरा मन मने मन गारी दे..... अँगूठा छाप गौंटिया.। थोथा चना बाजे घना.. कइसे बाजत हे घना घन। 


बात के पूँछी ला गउँटनिन हर बने धरथे।गौंटिया ला एकंगू काबर किथे तेखरो एक ठन किस्सा हे। हाँसत बताथे गउँटनिन ह,रोज चरबंजी लोटा धर के निकल जाय गौंटिया ह। एक दिन मुधेरहाँ एक ठन पेड़ तरी, पेड़ के छइहाँ जान के बैइठ गे। कहाँ के छइहाँ वो हर तो गाँव के महादेव जब्बर गोल्लर आय। गौंटिया ला उठा के पटक दिस घुरवा मा। वो तो बने होइस गोल्लर हर घुरवा मा नइ उतरिस

,पारेच मा भुँकर भुँकर के रहिगे। गौंटिया  के चिल्लई नोहे... बचाव रे.. अरे कोनो हव का रे... ।

आरो सुनके दूसर लोटा डब्बा वाले मन पहुँचिन अउ वोला घुरवा ले निकालिन। खाँध मा जोर के घर पहुँचाइन। पाछू पता चलिस गौटिया के एडी़ फेक्चर हो गे हे। दू महीना मा ठाड़ होइस गौटिया हर,फेर आज ले बने तनिया के नइ रेंग पाय। थोरिक चाल मा फरक आ गे हवे। तब ले गाँव भर के मन एकंगूच कथे। ओकर पलटू नांव के सुरता कोनो ला नइये।


उही साल परभात अउ बिसनी बढिया नंबर ले पास हो गे। गउँटनिन के गोड़ नइ माडे़। जे आय तेला तिखार के बताय। अउ गौटिया हर..... सबले नजर बचाँवत, अपन पुरखा मन ला सुमरत,आँखी के कोर ला पोछत रहय । 

गौटिया अउ गौंटनिन ल लगे लागिस।.. झक पड़रा उज्जर लुगरा पहिरे हाथ मा बीना धरे। माथ मा सोनहा मुकुट लगाये, सरसती हर देवता कुरिया कोती खुसरत हे। 


श्रीमतीशशि साहू ।

आलेख: परिवार(पोखनलाल जायसवाल

 *आलेख: परिवार(पोखनलाल जायसवाल

     'मनखे समाजिक प्राणी आय,जेन मनखे समाज म नी रहे, वो या तो भगवान हरे, नइ त जानवर हरे।' ए कहना रहिस हे, प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तू जी मन के। मनखे ले मिलके परिवार बनथे अउ दू या दू ले जादा परिवार के मिले ले समाज बनथे। परिवार एक इकाई के रूप म होथे तव कुछ मनसे मन एक छत के छाँव म एके चूल्हा के भोजन ले पेट भरथें अउ सुख-दुख बाँटत जीथें। आने-आने चूल्हा के भोजन करैया कई परिवार ह मिलके समाज बनाथे। समाज ह एके रीतिरिवाज, परंपरा, सँस्कृति अउ सँस्कार ल मनइया मनखे मनके हो सकत हे अउ आने आने परंपरा, रीतिरिवाज के मनसे मन के भी हो सकत हे। आज समाज म परिवार एकल परिवार के रूप म जादा देखे म मिलत हवै। अइसे परिवार जिहाँ सिरीफ दाई ददा अउ लइका बस रहैं, एकल परिवार कहाथे। बहुत होगे त दादा दादी शामिल करे जा सकथे।

        एक समय रहिस जब समाज म परिवार समिलहा (संयुक्त) परिवार देखे म मिलै। जेन परिवार म दाई-ददा, दादा-दादी के संग कका-काकी, बड़े दाई-ददा अउ उँखर लइका मन रहिथे। ए परिवार के अपन आनंद अउ मजा हे। अब तो समिलहा परिवार सपना होगे हे। चार ठन बरतन रही त बाजहीच, कहनउ दू झन बहू आइच तहां ले घर म खटपिट शुरू हो जथे। मया परेम कोन जनी कति भाग जथे। कभू भाई-भाई म तारी नइ पटै, त कभू सास-बहू म, त अउ कभू देरानी जेठानी म। परोसी-परोसिन मन कहूँ कान फूँक दिस त अउ मत पूछ। चार महीना बीते नइ पाय। चूल्हा अलग हो जथे। अँगना खँड़ा जथे।

        एकल परिवार म नवा पीढ़ी के जोड़ी मन कोन जनी का सोचथे। हमर कमई घर भर म काबर बँटै। हमर कमई हमरे जगह राहै। काबर भुला जथे इही समिलहा परिवार म उँखर पालन पोषण होय हे। काबर भुला जथे कि काली ओकरो संग अइसना हो सकत हे। समय बने बने बीतथे त कछु गम नी लगै। आज के महँगई म दूनो परानी ल कमाना जरूरी होगे हवै। अइसन म नान्हें लइका के चिंता करही कोन। राम अउ माया दूनो सँघरा कब मिले हे। दादी-दादा के संग रहे ले ए बात के चिंता नइ रहै। काम बूता के खोज म गाँव ले पलायन घर परिवार ले पलायन के बहाना घलो लगथे। चार पैसा कमा के घर परिवार के बीच रहना अउ संतोष नइ करना। दू पैसा आगर कमाय बर घर परिवार ल छोड़ना, आने जगह म किराया भाड़ा म रहना, का एकल परिवार म रहे के शौक पूरा करना नोहै? नौकरी के बात आने आय। कुछ झन मन तो गँवई रहन-सहन ल ए नाँव ले छोड़ देथें कि उँखर भावी पीढ़ी पिछवा जही। अइसन केउ ठन कारण हे जे समिलहा परिवार के टूटे के कारण बनथे। मोर अकेल्ला के ठेका थोरे हे, घर दुआर ल चलाय के। हिजगा-पारी करन त बने जिनीस के, फेर कोन करथन अइसन हिजगा।

       एकल परिवार म लइका मन ल दाई ददा के डाँट फटकार के पाछू उन ल सँभलइया कोनो नइ राहैं, अइसन बखत घर म दादा-दादी अउ आने मनखे के कमी साफ देखे म आथे। बाल सुलभ मनोभाव बस्ता के बोझ म दब के दब्बू हो जथे। नइ त कुंठित होवत एकदम उद्दंड घलो हो जथे। दाई ददा के सपना के आगू उँखर सपना मर जथे।

         आज भीड़ सबो कोति हे। घर गिरहस्थी के सामान जुगाड़त मनखे थक जथे, त गुस्सा लइका मन ऊपर उतरथे। लइका लइकई मति म जिद करबे करही। ओला का पता कोन कब काबर गुस्सा जही। घर गिरहस्थी का होथे? 

       जिनगी म हरदम हमर तबीयत बढ़िया राहै जरूरी नइ। कभू मौसमी त कभू अउ कुछु कारण ले तबीयत डोले म  समिलहा परिवार के महत्व सबो ल समझ म आथे। तब अउ जब अस्पताल म भर्ती होय बर पड़ जथे।

    कभू-कभू दूनो के कामकाजी होय अउ एक झन के ट्रेनिंग लगे के बाद छोटे लइका मन के का हाल राहत होही अंदाजा लगाए जा सकत हे। आजकल बाढ़त तरह तरह के अपराध मन ए चिंता ल अउ बढ़ा देथे।

        एकल परिवार म भीड़ अउ चार झन के भावना के झमेला नइ राहय। जब चाह तब कहूँ चल दे, एकर आजादी रहिथे। अपन हर इच्छा ल पूरा करे के आजादी रहिथे। रिश्तेदार मन ले मनमुटाव बर जगह नइ बाँचै।

       एकल परिवार ले जादा समिलहा परिवार म लइका ल आनंद मिलथे, उँखर मनके शारीरिक, मानसिक, चारित्रिक निर्माण जादा हो पाथे। एक दूसर के प्रति सोच, समर्पण, मया दुलार ल जाने समझे के अवसर मिलथे। एकल परिवार म विवाद ल सुलझइया नइ राहै, जे कभू-कभू जिनगी बर भारी पड़थे। संबंध टूटे के कगार म आ जथे त कभू आत्मघाती कदम घलो उठाय बर मजबूर कर देथे। टीवी सीरियल मन के आभासी जिनगी कतेक सिखा पाही।

        हम ल प्रयास करना चाही कि जतेक अवसर मिलै अपन परिवार सहित अपन भरे पूरा परिवार के बीच समय बितावन। परिवार के महत्तम ल जानन अउ लइका मन ल जाने के मौका देवन।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार)

सुरता डॉ नरेंद्र देव वर्मा -सरला शर्मा

 सुरता डॉ नरेंद्र देव वर्मा -सरला शर्मा

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    " अरपा पैरी के धार , महानदी हे अपार 

      इंद्रावती हर पखारे तोर पैंया ..

  जय हो , जय हो छत्तीसगढ़ मइया ..। " 

        एहर हमर छत्तीसगढ़ के राज गान घोषित करे गए हे त बड़े बात एहू हर तो आय के बहुत पहिली ले छत्तीसगढ़िया मनसे के मन मं रच बस गए रहिस हे । 

डॉ नरेंद्र देव वर्मा छतीसगढ़ी भाषा के नींव के पोट्ठ पथरा कहे जाथें , मानें जाथें । उन हिंदी अउ छत्तीसगढ़ी दुनों भाषा के सामरथ , अध्ययनशील साहित्यकार रहिन । 

कृतियां .....1..अपूर्वा ( गीत संग्रह ) 2 ...सुबह की तलाश ( उपन्यास )  3 ..छत्तीसगढ़ी भाषा का उद्विकास  4 ..हिंदी स्वच्छंदवाद 5 ..प्रयोगवादी कविता 6 ..नई कविता सिद्धांत अउ सृजन 

7 हिंदी नवस्वच्छंदता वाद आदि ..।

      साहित्य के इतिहास मं उन कवि , नाटककार , उपन्यासकार , कथाकार , समीक्षक , भाषाविद , के रूप मं जाने , माने जाथें । साप्ताहिक हिंदुस्तान मं " सुबह की तलाश " उपन्यास सरलग छपे बर शुरू होइस त पाठक छत्तीसगढ़ के संस्कृति ल चीन्हे , जाने लगिन । 

  " मोला गुरु बनाई लेबे " प्रहसन ओ समै बहुत लोकप्रिय होये रहिस । एकर अलावा उन संगीत मर्मज्ञ गायक भी रहिन , लोक कला , लोक मंच " सोनहा बिहान " ल तो कभू भुलाए नई सकय । उन एकर उद्घोषक रहिन । 

अनुवाद के रूप मं मोंगरा ल प्रसिद्धि मिलिस , दूसर डहर श्री मां की वाणी , ईसा मसीह की वाणी , मोहम्मद पैगम्बर की वाणी   सफल अनुवाद आय । उनला " शब्दों के जादूगर " कहे रहिन डॉ . पालेश्वर प्रसाद शर्मा । 

  शब्द मन के ऊंच ऊंच लहरा देखे लाइक हे उंकर गद्य - पद्य , हिंदी छत्तीसगढ़ी सबो रचना मं । 

स्वामी विवेकानन्द के दर्शन से प्रभावित रहिन त कबीर के अवधूत सुभाव के प्रशंसक रहिन ।

 " दुनिया हर रेती के महल ए ओदर जाही , 

   दुनिया  अठवारी बजार ए उसल जाही । " 

       संसार के चार दिन के चहल - पहल , परिवर्तन शीलता , निस्सारता के सच्चा वर्णन करे हें । 

जीवन के चौथइया दशक पूरा करे बिना धरा रपटी सरग के रस्ता धर लिहिन फेर ओतके कम समय मं साहित्य , संस्कृति , लोक कला , लोक मंच बर जौन काम कर गिन तेला कभू भुलाए नई जा सकय । आज उनला आदर सहित सुरता करत , उनला सादर स्मरणाजंलि देवत हंव । 

   सरला शर्मा

डॉ. नरेंद्र देव वर्मा : जनम जयन्ती के अवसर मा-अरुण कुमार निगम

 डॉ. नरेंद्र देव वर्मा : जनम जयन्ती के अवसर मा-अरुण कुमार निगम


छत्तीसगढ़ी लोककला के मर्मज्ञ, कवि, कहानीकार,उपन्यासकार, नाटककार, समीक्षक, भाषाविद, लोक संस्कृति अउ छत्तीसगढ़ी भाषा साहित्य ला पोठ करइया डॉ. नरेंद्र देव वर्मा के जनम 04 नवम्बर 1939 के होए रहिस। नरेंद्र देव जी के पिताजी स्व.धनीराम वर्मा जी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी अउ शिक्षक रहिन। पाँच भाई मन मा अकेला गृहस्थ जीवन बिताइन। स्वामी आत्मानन्द जी इनकर बड़े भाई रहिन जिन मन ला वो अपन आदर्श मानत रहिन। नरेंद्र देव जी के अन्तस मा  विवेकानंद भावधारा अउ रामकृष्ण मिशन के गहरा प्रभाव रहिस तेपाय के उनकर रचना मन मा दर्शन के दर्शन होथे। 


दाऊ महासिंह चंद्रकार के सोनहा बिहान के कुशल संचालक रहिन। उनकर गीत "अरपा पैरी के धार" ला गा के ममता चंद्रकार एक गायिका के रूप मा स्थापित होगे। अपन गीत के स्वरलिपि उनमन खुदे तैयार करत रहिन। एक अच्छा गायक घलो रहिन। उनकर लिखे छत्तीसगढ़ी प्रहसन "मोला गुरु बनई लेते" बहुत लोकप्रिय होए रहिस। 


नरेंद्र देव जी के बड़े बेटी के बिहाव भूपेश बघेल संग होइस। आदरणीय भूपेश बघेल जी वर्तमान मा छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री हवंय। उँकर छत्तीसगढ़ के महिमा कविता के कुछ पंक्ति देखव - 


सतपूड़ा सेंदूर लगावय। दंडकारन, महउर रचावय॥

मेकर डोंगर करधन सोहय। सुर मुनि जन सबके मन मोहय॥

रामगिरि के सुपार पहड़िया। कालिदास के हावय कुटिया॥

लहुकत लगत असाढ़ बिजुरिया। बादर छावय घंडरा करिया।

परदेशी ला सुधे देवावय। घर कोती मन ला चुचुवावय॥

भेजय बादर करा संदेसा। झन कर बपुरी अबड़ कलेसा॥

बारा महिना जमे पहाड़ी। नवा असाढ़ लहुट के आही।

मेघदूत के धाम हे, इही रमाएन गांव। अइसन पबरित भूम के, छत्तीसगढ़ हे नांव॥'


अइसन महान साहित्यकार, वक्ता, विचारक, भाषाविद के मात्र 40 बछर के आयु मा महाप्रयाण छत्तीसगढ़ बर बहुत बड़े क्षति आय। उनकर निधन 08 सितम्बर 1979 के होइस। आज डॉ. नरेन्द्रदेव वर्मा जी के जनम जयन्ती मा छत्तीसगढ़ लोकाक्षर परिवार अउ छन्द के छ परिवार अपन श्रद्धा-सुमन अर्पित करथे। 

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*अरुण कुमार निगम*

छत्तीसगढ़िया के ठिकाना -हरिशंकर गजानन्द प्रसाद देवांगन

 छत्तीसगढ़िया के ठिकाना  -हरिशंकर गजानन्द प्रसाद देवांगन

                         गुजरात म गुजराती रहिथे , पंजाब म पंजाबी , महाराष्ट्र म मराठी अऊ तमिलनाडू म तमिल , फेर छत्तीसगढ़िया मन कतिहां रहिथे पापा .........? एक लइका के सवाल , पहिली बहुतेच सरल लागिस अऊ तुरते उत्तर देवत ओकर ददा किथे - छत्तीसगढ़ म रहिथे छत्तीसगढ़िया मन , अऊ कहां रहि बेटा ? ओहा सोंचिस के ओकर लइका ओकर बात ला समझ जही अऊ खेले खेल म भुला जही ...... । फेर ओहा प्रतिप्रस्न करिस – नही पापा , तैं मोर बात ला समझेस निही ........ में तोला पूछेंव के , जइसे बाकी प्रदेस म , नाव मुताबिक लोगन रहिथे , तइसने सिरीफ हमरेच प्रदेस म , नाव मुताबिक लोगन काबर नी दिखय ? ददा किथे – इहां घला प्रदेस के नाव मुताबिक लोगन रहिथे बेटा ........ , छत्तीसगढ़िया मन रहिथे इहां तभे तो ये प्रदेस ला छत्तीसगढ़ कहिथे बेटा । लइका किथे – उहीच ला तो पूछत हंव के , इहां छत्तीसगढ़िया दिखय निही तभो ले छत्तीसगढ़ काबर किथे ये जगा ला ....... अऊ दू चार झिन छत्तीसगढ़िया , सहींच म धरती म जियत होही , त ओमन कतिहां रहिथे .......? ददा हाँसिस अऊ ओला बताइस – दू चार झिन निही बेटा , इहां अढ़ई करोड़ छत्तीसगढ़िया रहिथे । बेटा किथे – उहीच ला तो पूछत हंव पापा , अढ़ई करोड़ छत्तीसगढ़िया रहिथे कहिथस , त ओमन कतिहां रहिथे ..........? ददा थोकिन खिसिया गिस – इंहे रहिथे अऊ कहां रहि , काबर फोकट उलटा सिधा सवाल करके समे खराब करथस जी । लइका किथे – कती मनखे हा , छत्तीसगढ़िया आय पापा .........? हमर घर के बगल म रहवइया छत्तीसगढ़िया आय का ? का ओकर बाजू म रहवइया हा छत्तीसगढ़िया आय ? हमर कालोनी म कती मनखे छत्तीसगढ़िया आय ....... ? ददा किथे – येमन छत्तीसगढ़िया नोहे बेटा । लइका पूछिस – त कती आय छत्तीसगढ़िया , कालोनी के बाहिर निकलथन त , कती तिर छत्तीसगढ़िया ले भेंट होथे .......? ओकर बात अऊ सवाल सुन के , ददा सुकुरदुम होंगिस । लइका फेर पूछिस – येमन छत्तीसगढ़िया नोहे , त येमन अढ़ई करोड़ जनसंखिया म सामिल नी होही , त अढ़ई करोड़ छत्तीसगढ़िया आखिर रहिथे कती ..........? ओकर सवाल झकझोरे लगिस । अतेक बेर तक ओला .... ददा हा सिरीफ लइका समझत रिहीस ..... ओहा सियान निकलगे । ओकर बात सुनके ..... ददा हा सन खाके पटवा म दत गिस अऊ संझाती बताहूं कहत डिवटी निकल गिस । 

                         संझाती बेरा सवाल धर के फेर खड़ा होगे लइका हा । कतेक ला टारय । ददा केहे लगिस - हमर गांव म रहिथे बेटा छत्तीसगढ़िया मन । बेटा किथे – का ..... गांव म रहिथे कहिथस का पापा ? ददा हा हव कहत मुड़ी डोलाइस । लइका किथे – बीते देवारी म घर गे रेहेन , त घर के आगू के गौरा चौंरा सुन्ना रिहीस पापा , तब तहीं बताये रेहे के , अभू ये तिर छत्तीसगढ़िया नी रहिगे हे बेटा तेकर सेती , गौरा चौंरा के कन्हो साफ सफई अऊ माटी महतारी के कन्हो इज्जत नी करय , तेकर सेती गौरा गौरी के स्थापना नी होइस , तभे ये तिर सुन्ना हे । ददा तिर कहींच जवाब नी रिहीस । तभो ले , किहीस – हमर पारा म नी रहय बेटा , राजा पारा म रहिथे छत्तीसगढ़िया मन , तभे ओ पारा म गौरा गौरी मढ़हाये रिहीन , ओकर पूजा पाठ करत रिहीन । बेटा फेर पूछिस – त असन म हमूमन छत्तीसगढ़िया नी होबोन पापा ....? ददा हाँसत किहीस – हमन छत्तीसगढ़िया आवन बेटा । बेटा किथे – त हमन गौरा गौरी के स्थापना काबर नी करेन ........ ? ददा किथे - हमन गोंड़ नोहन बेटा , गौरा गौरी अऊ माटी महतारी हा सिरीफ ओकर मन के देवता आय तेकर सेती उही मन मानथे अऊ परब ला मनाथे । बेटा किथे – अरे , माटी हा सिरीफ गोंड़ मनखे के आय तेला नी जानत रेहेंव पापा । त असन म , बाकी जात के मन , इहां के माटी म काबर फसल उपजाथें जबकि ओहा तो ओकर नोहे का .........? ओकर सवाल झकझोरे बर धर लिस । मुड़ी पिरावत हे काली बताहूं कहिके  , बिगन खाये सुतगे ददा .. । 

                         दूसर दिन सांझकुन ..... । पापा , काली बताहूं केहे रेहे तेकर सेती तिर म आये हंव – लइका के अवाज सुनई दिस । आपिस ले आके सोफा म ढनगे रिहीस , लइका फेर आगे । ददा किथे – हमर तिर खेत खार निये बेटा , तेकर सेती हमन माटी महतारी के अलग से पूजा पाठ नी करन अऊ गौरा गौरी नी मढ़हावन । बेटा – त हमर घर हा दूसर देस के माटी ले बने होही न पापा ? ओकर प्रस्न ला अनुत्तरित करे के अलावा ददा तिर कहीं चारा नी बचिंस । 

                         लइका के महतारी किथे – पापा डिवटी ले आये हे थोकिन अराम करन दे बेटा , सुते के बेर पूछबे । सुते के बेर लइका फेर धमकगे अऊ पूछे लगिस – पापा , हमन सहींच म छत्तीसगढ़िया नोहन का ? ददा पूछथे – कोन कथे बेटा , हमन सहींच के छत्तीसगढ़िया आन जी । बेटा किथे – आज स्कूल म हमर मेडम हा , छत्तीसगढ़ही के एक ठिन सब्द के अरथ पूछिस । कन्हो बता नी सकिस , महूं नी सकेंव । मेडम मोला किहीस .... तैं छत्तीसगढ़िया नोहस का रे , अपन मातृभाखा ला घला नी जानस । में उठके अपन आप ला छत्तीसगढ़िया बताये के कोसिस करेंव , तइसना म मोर संगवारी मन केहे लगिन के , येहा सहींच म छत्तीसगढ़िया नोहे मेडम , येहा काला जानही । में बिरोध करेंव त ओमन केहे लगिन , पंजाबी लइका हा अपन टिफिन म सरसों के साग लानथे , गुजराती हा खम्मन ढोकला , मराठी हा कढ़ही भात धरके आ जथे अऊ बंगाली हा बिगन रसगुल्ला के एको दिन नी आवय । तैं हा एको दिन न बासी लाने , न फरा मुठिया .........। ओकर सुवारी हाँसत किहिस – अई तोरो संगवारी मन घला बड़ बिचित्तर हवय रे , तोर टिफिन ला झांकत रहिथे , ओकरे सेती तो मेंहा , तोला दूसर के आगू लजाये बर झिन परय कहिके , रंग रंग के बना के डारथंव । रिहीस बात बासी , फरा मुठिया के , त येहा केवल गरीब मनके खाना आय बेटा , हमन गरीब थोरे अन गा ........। बेटा पूछथे – येकर मतलब , छत्तीसगढ़िया का सिरीफ गरीब होथे पापा .........? ददा सीरियस होके केहे लगिस - इहां के मनखे मन एक कनिक पइसा पा जाये म , अपन आप ला छत्तीसगढ़िया बताये म लजाथे बेटा .... तेकर सेती अइसन खाये के समान ला , कभू देखे नियन या कभू खाये नियन कहि देथे । लइका किथे – अऊ मेडम किहीस के , इहां के महतारी भाखा के एको अक्षर के अरथ नी जानस , त कइसे छत्तीसगढ़िया हो सकत हस .... एमा कतेक सचाई हे ...? ददा लाजे काने केहे लगिस – मेडम किहीस ते सच आय बेटा । बेटा किथे – तैं हा छत्तीसगढ़ही भाखा म लिखथस , पढ़थस अऊ गोठियाथस , त हमन ला काबर नी सिखावस .......? ददा किथे – येला दूसर के लोग लइका मन बर लिखथन बेटा , जेला आगे जाना हे तेकर मन बर नोहे हमर लिखई हा । येला लिखथन ओकर बर ...... जे पढ़ नी सकय । जे पढ़ लिस ते ..... समझ नी सकय । जे समझगे तेहा ……. पढ़के घुरुवा म फेंक देथे । लइका किथे – त असन म काबर लिखथव अइसन भाखा म अऊ काबर राजभासा के मंच ले बोमबियावत रहिथव के , पहिली ले बारहवीं तक के सिक्षा ला छत्तीसगढ़ही म देना चाही ? ददा बतइस – सिरीफ नाव कमाये बर , अपन नाव ला , अपन साहित्य ला थाती राखे बर लिखथन । रिहीस राजभासा के मंच ले बोमबियाये के ...... तोला सच बतावंव बेटा , राजभासा हा छत्तीसगढ़ी भाखा बेंचे के सिरीफ दुकान आय , कतको के रोजी रोटी इही म चलथे बेटा । येमा बोमबियइया कतको मनखे के घर के मनला , छत्तीसगढ़ही नी आवय । ओमन अपन घर के लोग लइका मन छत्तीसगढ़ही सीख के पिछवाये झिन सोंचत रहिथे रात दिन । जेकर लोग लइका मन थोक बहुत जानथे ते लइका मन , भाखा के बैपार म लगे रहिथें । छत्तीसगढ़ही भाखा के परचार परसार म लगइया मनखे मन , बहुत अच्छा से जानथे के , येला सीख के वोकर लइका दुनिया के कम्पीटीसन म पिछवा जही तेकर सेती , दिन भर छत्तीसगढ़ही के परचार करथे , सनझा कुन रोजी पाके अपन लइका अऊ नाती ला , अंगरेजी इसकूल ले लाने बर जाथे । ददा के बात सुनत सुनत , लइका के नींद परगे । 

                         दूसर दिन लइका फेर अपन ददा तिर म बइठगे अऊ पूछथे – काली जे बात बतावत रेहे तेहा , मोर समझ म नी अइस । फेर का अइसे नी हो सकय के , हमन छत्तीसगढ़िया कुनबा ला बंचाये बर , अपन अपन घर ले उपाय सुरू करन । ददा किथे – बढ़िया बात आय । एक दूसर ला देख के सीखहीं त , छत्तीसगढ़ ला वापिस ओकर गंवाये गौरव अऊ संस्कृति मिलही । बेटा किथे – काली ले आपिस , धोती कुरता पहिर के जाये बर परही पापा । दूसर दिन – सहींच म ददा हा ... धोती कुरता मार आफिस चल दिस । आफिस के सुरक्षा गार्ड नी चिनहीस अऊ पहिचान पत्र देखाये के बाद भी ओला डेनियाके निकाल दिस । ओ सोंचिस , अइसे तो छुट्टी मिलय निही , आज अइसने छुट्टी जान , राजभाखा के कार्यक्रम म सामिल होय बर चल दिस । उहां कन्हो डेनियाके निकालिन तो निही फेर , मंच तिर पहुंचिस त गलत जगा पहुंच गेंव कस लागिस । मंच म बिराजित सिरीफ कोट अऊ पेंठ वाला मनला देख के भरम होगे के , अंगरेजी राजभाखा के कार्यक्रम तो नोहे ........। मंच के खालहे म , दरी बिछावत धोती सलूखा पहिरे मनखे मनला देखिस तब तसल्ली होइस के , छत्तीसगढ़िया मन बर कार्यक्रम आय । कार्यक्रम के आनंद लेहे बर दरी म बइठ गिस । सिरीफ उहीच बात आवत जावत रिहीस के छत्तीसगढ़ही के बिकास बर हमर सरकार बहुतेच करत हे । अब तब आठवीं अनुसूची म संघरइयाच हे । जेहा बोले बर आवय तिही हा , भाखा के पहिली सरकार के गुन गावय अऊ समापन घला सरकारी भजन स्तुति सुना के करय । आखिरी म सरकार के नंबर अइस । सरकार किहीस - ये दारी हमर भाखा ला आठवीं अनुसूची म आये ले कन्हो रोक नी सकय । हमर परयास निर्रथक नी होवय । अइसन बोल के , पांच बछर बर बिसा डरिस सुनइया मनला । वहू खुस होके घर निकल गिस । सुवारी पूछथे – आज जलदी कइसे आगेव ? धोती कुरता पहिर के रोज जाहू त रोज जलदी आये बर मिलही । बपरा हा अभू ओला कइसे बतावय के , कोट पेंट नी पहिरे के सेती , आफिस म निंगन नी दिस अऊ जिंहा छत्तीसगढ़िया ड्रेस के इज्जत होवत होही सोंचे रिहीस , तिंहा दरी म बइठे के जगा मिलीस । 

                         सांझ कुन लइकामन फेर पाछू परगे । ओ कुछु बतातिस तेकर पहिली उही मन केहे लगिस – आज हमन हमर इहां ... सहींच के एक झिन छत्तीसगढ़िया देखेन पापा ? ओहा अपन परिवार सम्मेत ओवर ब्रिज के तिर म झोफड़ी म रहिथे । ददा पूछिस – तूमन कइसे जानेव के ओहा छत्तीसगढ़िया आय ? लइका किथे – अतेक अभाव दिखत म घला ..... ओमन आपस म .... अतेक परेम से , छत्तीसगढ़ही म गोठियात रिहीन के , हमन ला लगिस के हमर तलास पूरा होगे । हमन देखेन पापा के , ओकर बेटा हा बाहिर डहर के अंगना म .... बटकी म गोंदली डार के बासी खावत रिहीस हे । उही तिर डोकरी दई हा , गोरसी म अंगाकर रोटी डारे रिहीस अऊ सिल लोढ़हा म पताल के चटनी घसरत रिहीस हे अऊ बतांवव पापा , ऊंकर बातचीत से लगिस के , ओकर मन तिर दूसर टेम खाये के बेवस्था नी रिहीस , ओकरे जुगाड़ म भरे तिहार म घला ..... घर के कमइया सियान हा , पटका अऊ सलूखा पहिर के , अपन बई संग ... कमाये बर जावत रिहीस हे । फेर एक बात समझ नी अइस पापा के , उहू कइसे छत्तीसगढ़िया आय जेकर तिर , अतेक बड़ अपन प्रदेस म बोंये खाये बर , नानुक जगा भुंइया के टुकड़ा निये ...... कहूं अइसे तो निही के , उहू छत्तीसगढ़िया नोहे । बड़का लइका किथे – उहीच हा छत्तीसगढ़िया आवय भाई , ओहा छत्तीसगढ़िया नी होतिस त , ओकरो तिर इहां कतको एकड़ जगा भुंइया होतिस ...........। मेंहा उनला पूछेंव तब डोकरी दई बतइस के ...... न ओकर तिर दू रूपिया किलो म चऊंर मिलइया रासन कारड हे , न सरकारी अवास । ओहा जरूर छत्तीसगढ़ियाच आय भाई । 

                        छत्तीसगढ़िया खोजत खोजत , दुनों लइका ला बचपना म जवानी मिलगे । ऊंकर बात सुन , ददा ला लगिस , छत्तीसगढ़िया कतिहां रहिथे तेला बताये के सही समे अब आगे । ओहा बताये लगिस - जेला तूमन देख के आये हव , सचमुच म उहीच मन , छत्तीसगढ़िया आय । जेकर तिर खाये बर बासी पेज , रेहे बर छितका कस कुरिया , तन ढांके बर चिरहा फटहा कपड़ा , बिछाये बर गोदरी ओढ़हे बर कथरी अऊ जिनगी के बेफिकरी हे , उही मन छत्तीसगढ़िया आय बेटा । छत्तीसगढ़िया अइसे संस्कृति आय ..... जेला ..... पइसा अऊ पद आय के बाद एकाएक बिलुप्त करे के उदिम करे जा सकथे । 

                         ओकर सुवारी बड़ भावुक होके केहे लगिस – जिंहा भूख रहिथे , गरीबी रहिथे , बेकारी रहिथे तिही जगा म छत्तीसगढ़िया रहिथे बेटा । जिंहा अपन सोसक ला संरकछन अऊ अपन बैरी तको ला , ऊंच पिढ़हा देके संस्कार हे , तिंहे छत्तीसगढ़िया रहिथे बेटा । जिंहा लचारी हा धरम आय , जिंहा इमानदारी हा करम आय , जिंहा मेहनत हा पूजा आय , जिंहा सेवा हा ब्रत आय , जिंहा परेम हा स्वभाव आय , जिंहा इज्जत हा परभाव आय , तिंहे छत्तीसगढ़िया मन रहिथे बेटा । चरचा म सियनहिन पहुंचगे । ओहा पूछे लगिस , त अइसन म हमर प्रदेस म बहुतेच कम छत्तीसगढ़िया रहिथे बेटा , त अढ़ई करोड़ जनसंखिया कहिके काबर भरमाथे बैरी मन ? बपरा हा केहे लगिस – जेमन अढ़ई करोड़ , अढ़ई करोड़ छत्तीसगढ़िया हाबन कहिके चिचियावत हे , तेमन जानत हे दई , अढ़ई करोड़ सिरीफ बोट आय , छत्तीसगढ़िया नोहे । वाजिम म , पूरा भारत म , अढ़ई करोर ले जादा जनसंखिया हे छत्तीसगढ़िया मनके । जिंहा जिंहा , लूट खसोट बईमानी अऊ भरस्टाचार के सिकार , सोसन झेलत मनखे रहिथे , तिंहे तिंहे छत्तीसगढ़ अऊ छत्तीसगढ़िया रहिथे । 

                     सियनहिन पूछथे – अइसन म छत्तीसगढ़िया के कन्हो बने ढंग के ठिकानाच निये कस लागथे बेटा ? ओ किथे – हव ..... तैं सहीच कहत हस मोर महतारी ! छत्तीसगढ़िया के ठिकाना ला कन्हो ठिकाना ले नी रहन देना चाहे ..... ओकर ठिकाना ल कतको झिन ....... ठिकाना लगाये बर उमड़े हे ! अइसन म बपरा छत्तीसगढ़िया के का ठिकाना ...... ! वाजिम म देखा जाय तो ...... जिंहा भूख हा मनखे के पोसन करथे .... गरीबी हा इमानदारी सिखाथे .... जिंहा बेकारी हा मेहनत ला पूजा बनाथे .... जिंहा सोसन हा सेवा के सकती देवाथे .... जिंहा अत्याचार के बदला उपकार के बेवहार होथे .... तिंहा तिंहा छत्तीसगढ़िया रहिथे  ........ ! 

     हरिशंकर गजानंद प्रसाद देवांगन , छुरा . ‌

मोर सुरता मा चँदैनी गोंदा-शशि साहू

 *मोर सुरता मा चँदैनी गोंदा-शशि साहू


7 नवम्बर 1971 चँदैनी गोंदा के पहली मंचन, सुरता धुमलाय कस हे। न मोला तारीख याद हे ना सन। काबर की मँय तब बहुत छोटे रेहेव 9-10 बछर के। धन का सोंच के बाबू जी मोला बघेरा ले गें। चारो कोती सइमो - सइमो ।

मनखेच मनखे, मंच के आघू मा राहेर काड़ी के बड़े जन झिपारी रहे, जेमा चँदैनी गोंदा खोंचाय रहे। उही ल निकाल निकाल के गुच्छा कस बना डारे रहँव। अउ धरे रहँव। कार्यक्रम के उद्घाटन विद्याचरण जी शुक्ला करे रिहिन। तब तक मँय मंच मा रेहेव,मोर बगल मा एक झन फकफक ले पड़रा गजब ऊंचा आदमी खड़े रहय। मोला सुरता हे, वोला ध्यान से देखे रेहेव मुड़ी उचा के।


 बाद मा बाबू जी बतइन, वो विद्याचरण शुक्ला ये। कार्यक्रम शुरू होते ही बाबू जी मोला मंच के नीचे गद्दा मा बैठारिन।अउ वो दू झन  मनखे मन ला किहिन मोर नोनी के ध्यान रखहू। अउ मंच के पीछू चल दिन। मय वो दुनो पहुना मन संग बैठेव। अउ जब भी बाबूजी मंच मा आय त एक झन गजब हँसैया पहुना हर कहय. देख तोर ददा ला.. ।

देख देख... ।अउ एक झन हर मंद मंद मुस्काय। मँय कलेचुप रहँव।


वो दुनो महान हस्ती कोन ये, जेखर संग बैइठ के  चँदैनी गोंदा के प्रथम प्रर्दशन ल देखेव। गंज हाँसे तेन पवन दिवान

अउ मुसकात रहय तेन डॉ मनराखन लाल साहू जी।ये बात ल बाबू जी हर बहुत बाद मा बताइन। बड़ भागमानी मँय। वो दिन कला अउ साहित्य के भागीरथी संगम मा  डुबकी लगाय हँव, अउ मोला पता नइ।


रात आँखीच मा पहात हे। वोती मंच मा बबा हर भारत के नक्शा ल देखत पूछत हे. .. शिव हमर छतीसगढ़ कहाँ हे रे..  शिव कथे ये दे तो हे बीच मा।.. भारत के हिरदे हरे  बेटा छतीसगढ़ हा.. । ये प्रसंग के सुरता हे। 


दूसर प्रसंग जेन मोर मन मा जइसे छ्प गे हे।.. किसान खलिहान ले धान ला घर लाय  हे।

ओती चाँद बी घलो खेत ले सिला बिन के लाय हे। अतके मा जमीदार अपन  नौकर चाकर संग पहुँच जथे, अउ अपन नौकर मन ला धान ला उठाय बर किथे। चाँद बी के बिने सिला ला घलो झटक ले थे। घर के जवान बेटा के गरम खून खौलथे। वोहा  जमीदार के विरोध करथे। त जमीदार हर शिव के गर ला कलारी मा खिंचथे।

मार्मिक  संवाद चलथे। छतीसगढ़ के शोषण गरीबी लचारी के जीवंत तस्वीर ल शायद पहिली बार आम जनता हर मंच मा देखे होही। मोर लिए बहुत पीड़ादायक रिहिस। मँय रो डरेव। चाँद बी के सिला झटके वाले दृश्य हर बहुत मार्मिक रिहिस। 


बहादुर चाचा जमीदार के रोल मा गजब फँभे। फेर बाबू जी के गर ला कलारी मे उँखर खिंचई हर मोला एको अच्छा नइ लगिस। बहुत दिन ले मने मन उँखर से नाराज रेहेव। 

आज कहूँ करा मिल जतिन त ये बात ल उनला जरूर बताय रतेव। पर वो मन तो बहुत जल्दी निकल गे। 


आज कहत हँव। चँदैनी गोंदा  सिर्फ सांस्कृतिक संस्था

 नइ रिहिस। वो हर एक विचार रिहिस। दर्शन रिहिस।चँदैंनी गोदा छतीसगढ़ के चिन्हारी रिहिस। वोखरे सेती जन जन के हिरदे मा आज ले जीवित हे।

छतीसगढ़ी अउ पत्रकारिता -सरला शर्मा

 छतीसगढ़ी अउ पत्रकारिता -सरला शर्मा

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     पत्रकारिता कहिथें पत्र - पत्रिका मं समाज , राजनीति , शिक्षा , साहित्य , संस्कृति के बारे मं खबर लिखना त खबर देवइया / लिखइया ल पत्रकार  कहिथें । 

पत्रकारिता के चलते ही आम आदमी ल देस , राज , समाज , संसार के जानकारी मिलथे । 

जनमत ल स्वतंत्र अभिव्यक्ति मिलथे कहि सकत हन पत्रकारिता हर जन मन के आवाज होथे। 

रहिस बात रोज के अखबार मं तो खबर ही छपथे फेर कोनो एक दिन के परिशिष्ट मं साहित्य ल जघा मिलथे जेहर साहित्यकार मन ल रुचि अनुसार गद्य - पद्य मं लिखे के मौका देथे इही ल साहित्यिक परिशिष्ट कहिथें , साहित्यिक परिशिष्ट मं पत्रकारिता के उपयोग साहित्यिक कार्यक्रम के खबर देना होथे अगर पत्रकार आयोजित कार्यक्रम के सफलता - असफलता , नफा- नुकसान , अवइया दिन मं अइसन आयोजन के साहित्य संसार ल जरूरत , कोनो विशेष विधा , विषय या साहित्यकर के रचना उपर अपन विचार लिखथे त ओहर पत्रकारिता के उत्तम रूप होथे  जेमा पत्रकारिता अउ साहित्यिकता मिंझरे रहिथे । 

   " हमर विशेष संवाद दाता द्वारा " ये वाक्यांश हर पत्रकार के ओहदा बढ़ा देथे त सम्पादक खबर के उत्तरदायित्व से मुक्त भी हो जाथे , खबर के सच , झूठ के जिम्मेदारी पत्रकार उपर आ जाथे , सफ़ल पत्रकार के जिम्मेदारी समाज , साहित्य , पाठक सबके प्रति बढ़ जाथे । 

इही सब ल सोच के आजकल विशेष समाचार मन ल विवादास्पद बने ले बचाये बर " हमर विशेष संवाद दाता द्वारा वाक्यांश के प्रयोग करे के चलन बढ़ गए हे । 

एडमिन अरुण निगम जी अपन पोस्ट मं लिखे रहिन पत्रकारिता विधा ल चिटिक अउ जाने , समझे के जरूरत ल ध्यान मं रख के । 

   पत्रकारिता के लक्षण माने तो प्रकार होही ..फोरिया के कहिन त पत्रकारिता कोन कोन तरह के होथे , कोन कोन विषय के खबर पत्रकारिता मं शामिल माने जाथे ? 

1... बाजार उपर आधारित समाचार जेन हर अर्थ व्यवस्था के उतार - चढ़ाव बताथे ।

2 ...गांव गंवई के समाचार जेला ग्रामीण पत्रकारिता कहिथें ।

3.... शिक्षा सम्बंधित ...

4 ....खेल जगत के समाचार उपर लेख , खबर 

5 ...घटना क्रम ...समसामयिक घटना 

6 ...अनुसंधान , विश्लेषण , विवेचन सहित समाचार 

7 ..... साहित्यिक , सांस्कृतिक समाचार 

8 ... फ़िल्म पत्रकारिता ..फ़िल्म समीक्षा , अभिनय कर्ता से सम्बंधित समाचार 

9 ...विज्ञापन पत्रकारिता ...

10 ...रेडियो अउ दूरदर्शन पत्रकारिता भी आजकल चलागत मं हे । 

     सोशल मीडिया मं मिलत खबर / समाचार प्रस्तुति हर आधुनिक पत्रकारिता ही आय जेहर अभी के दिन मं  तुरते -  ताही बगरथे ,प्रतिक्रिया देथे त एकर पाठक संख्या भी दिनोंदिन बढ़त जावत हे , प्रिंट मीडिया ले जादा  पत्रकारिता के सक्रियता इहां देखे बर मिलत हे । 

   एडमिन अरुण निगम जी लिखे रहिन अउ कुछु जिज्ञासा होही त ये मंच मं रखव फेर अभी तक अउ कोनो किसिम के जिज्ञासा पटल मं पढ़े बर नई मिले हे ते पाय के अभी कलम ल थिराये देवत हंव । 

  

छत्तीसगढ़ी लोकक्षर संग सरला शर्मा

छत्तीसगढ़ी अउ पत्रकारिता-नीलम जायसवाल

 *छत्तीसगढ़ी अउ पत्रकारिता-नीलम जायसवाल

     सबले पहिली पत्रकारिता का हरे ये जानना जरूरी हे। सीधा-सीधा कहँव त समाचार के संकलन, प्रसारण, विज्ञापन के गुर अउ समाचार के व्यवसाय हर पत्रकारिता आय। पत्रकारिता हर एक कला आय,ये हर व्यवसाय के संगे संग जनसेवा घलो आय। अउ जेन हर पत्रकारिता करे वो हर पत्रकार आय।

   पत्रकारिता हर  एक साहित्यिक काम हरे। अधिकतर देखें जाथे कि पत्रकार मन साहित्यकार घलो होथें, या साहित्यकार मन पत्रकारिता बने ढंग ले करथें। 

   पत्रकारिता केउ किसिम के होथे,  जइसे खोजी पत्रकारिता, आर्थिक पत्रकारिता, ग्रामीण पत्रकारिता, व्याख्यात्मक पत्रकारिता, राजनीति या संसदीय पत्रकारिता, खेल पत्रकारिता, रेडियो पत्रकारिता, दूरदर्शन पत्रकारिता, फोटो पत्रकारिता आदि आदि,अनेक किसिम के होथे।

  भारत म पत्रकारिता नारद मुनि के समय ले होवत हे,उन हर एक संवाददाता के रूप म पत्रकारिता करत रहिन। ओखर बाद राजा मन के समे म शिला लेख,सूचना पत्र,अथवा हाका के माध्यम ले खबर दिए जाय यहू मन पत्रकारिता के प्रकार आय। आधुनिक भारत म गुलामी के समय ले देशभक्ति के रूप म क्रान्ति जगाए बर, शुरू होइस, ओ समय पत्रकारिता करना बहुते कठिन की साहस वाले काम रहय।

  वर्तमान म पत्रकारिता ल अधिकार प्राप्त हे। येहर समाज के लोकतांत्रिक व्यवस्था म चौथे स्तंभ के रूप म स्थापित हवय। पत्रकारिता जनजागरण बर उपयोगी होथे। कोनो प्रकार के वैचारिक क्रांति म सहायक होथे। एखर साथे साथ मनोरंजन के क्षेत्र म घलो पत्रकारिता के योगदान हावय।

      पत्रकारिता कई चरण म पूर्ण होथे, जइसे कि समाचार संकलन, लेखन, मुद्रण, प्रसारण आदि। पत्रकारिता मुख्य रूप से समाचार पत्र के रूप म होते किंतु आजकल प्रिंट मीडिया ले ज्यादा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के ज़माना है। पत्रकारिता म विज्ञापन के महत्त्वपूर्ण भूमिका रथे। 

   पत्रकारिता के अनेक सम्बंधित विषय ल जानना भी जरूरी हे, जइसे कि संपादकीय, रिपोर्ताज या रिपोर्ट्स। साथ ही साक्षात्कार ह पत्रकारिता के अहम हिस्सा होथे। साथ ही अनुसंधानात्मक पत्रकारिता के महत्व भी कम नइ हे। आजकल फालोअप पत्रकारिता यानी अनुवर्तन समाचार संकलन के चलन बाढ़ गे हे।

   हर आम आदमी ल सूचना के अधिकार प्राप्त हे, त पत्रकारिता के दायित्व,अउ अधिकार घलो व्यापक हवय। पत्रकारिता के स्वतंत्रता अधिकार बर कानून बने हवय।

  छत्तीसगढ़ी म पत्रकारिता के संभावना ले इनकार नइ करे जा सकय।ये संभावना छत्तीसगढ़ी भाषा के प्रयोग के संगे संग बढ़ही घलव। ये हर रोजगार बर अच्छा विकल्प हे।


नीलम जायसवाल, भिलाई, छत्तीसगढ़।

पत्रकारिता-नीलम जायसवाल

पत्रकारिता-नीलम जायसवाल

 *फालोअप पत्रकारिता या अनुवर्तन समाचार संकलन* - 


फालोअप या अनुवर्तन के शाब्दिक अर्थ आय - पीछा करना।

   आजकल जब एक समाचार ल पाठक पढ़थे, या दर्शक समाचार देखथे। त कोनो घटना के बाद का होइस ये जाने के साध बाढ़ जथे। अउ आगे के समाचार ल  जानना चाहथे। पत्रकार मन ला बने बनाए विषय मिल जथे। तो उहू मन के समाचार के आदि से अंत ले पीछा करथे,अउ ओखर पल पल के जानकारी जनता ल देवत जाथे। जइसे कोनो चोरी-डकैती या हत्या काण्ड के घटना के बाद पुलिसिया कार्रवाई के जानकारी, अपराधी पकड़ाइन कि नहीं, ओखर जानकारी।ओला हवालात लेगिन कि कोर्ट लेगिन ओखर जानकारी,जमानत होइस कि सजा ओखर जानकारी।अइसना सरलग समाचार देवत जाथें। अइसना करके समाचार के सीरियल जनता बर बाँध के रखें के काम करथे। ये हर उत्तम पत्रकारिता के उदाहरण हरय। कुछ दिन पहिली,घटे आरुषी हत्याकांड एखर एक उचित उदाहरण हरे। जेखर, रिपोर्टिंग या कहें जाय समाचार संकलन सभे मीडिया म सरलग चलिस। चाहे ओ दूरदर्शन होय या समाचार पत्र। अउ अभी के ज्वलंत उदाहरण बर मुंबई के सुशांत सिंह राजपूत के समाचार ल ले सकथन जेमा हर पत्रकार,ओखर बारे म हर पल के समाचार देवत रहय अभी भी ओ केस के पत्रकारिता जारी हवय। 

  ये मन कुछ फालोअप जर्नलिज्म या अनुवर्तन पत्रकारिता के उदाहरण हवँय।

 सादर।🙏

नीलम जायसवाल, भिलाई, दुर्ग, छत्तीसगढ़।

छत्तीसगढ़ी अउ पत्रकारिता-पोखनलाल जायसवाल

 *छत्तीसगढ़ी अउ पत्रकारिता-पोखनलाल जायसवाल

     

      जउन संबंध किसान अउ किसानी म हे तउने संबंध पत्रकार अउ पत्रकारिता म हाबय। किसान परहित बर सोचथे। किसानी बूता ल सेवा के बूता कहे जाथे।वइसने पत्रकारिता एक व्यवसाय तो हरे फेर जन सेवा ले जुरे हावय। ए व्यवसाय बर रेडियो, टीवी के सरकारी अउ निजी चैनल, समाचार पत्र अउ आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ह उपयुक्त जगह हाबय। जेन ए व्यवसाय करथे, उही ला पत्रकार कहे जाथे। आज पत्रकारिता के कतको क्षेत्र हाबय जेकर चर्चा ऊपर करे जा चुके हाबय। सबो पत्रकार सबो प्रकार के पत्रकारिता नइ कर पावय। सब के अपन एक शैली अउ क्षेत्र के संगेसंग विषय के प्रति रुचि होथे। अइसे बात नइ हे कि पत्रकार ल पूरा/जम्मो पत्रकारिता नइ आय। जब पत्रकारिता के अध्ययन करथे त सबो विषय अउ क्षेत्र के जानबा पत्रकार मन ला रहिथे। जब पत्रकारिता के क्षेत्र म पाँव रखथे त अपन रुचि के मुताबिक क्षेत्र के चुनाव करथे। आज पत्रकारिता विशुद्ध व्यवसाय के रूप म स्थापित होगे हावय। जेकर ले रोजगार के संभावना देखत आज के युवा ए दिशा म आकर्षित होवत हे। छत्तीसगढ़ म घलो एकर बहुते संभावना हे। आज के पीढ़ी के ए क्षेत्र म आकर्षण के तीन ठन कारण हावै, एक उँखर जोश, जे वर्तमान व्यवस्था ले लड़ना चाहथे, दूसर अपन आप ल रेडियो टीवी चैनल अउ समाचार पत्र म स्थापित करे के सपना अउ तीसर बड़े कारण रोजगार के नवा संभावना।

       पत्र पत्रिका अउ समाचार पत्र के प्रकाशन ले शुरू पत्रकारिता अब नवा आयाम पागे हावै। समाचार पत्र म आसपास के सबो प्रकार घटना-दुर्घटना के जानकारी पढ़े बर मिलै अउ मिलथे। ए जानकारी मन ल समाज अउ क्षेत्र ले बटोर के अपन लेखनी ले रोचक अउ तथ्यात्मक प्रस्तुत करे के काम पत्रकार करत आवत हें। समाज म चेतना के सुर जगाय खातिर ए ला लोकतंत्र के चौथा स्तंभ कहे जाथे।व्यवस्था के खिलाफ समाज ल संगठित करे अउ समाज म नवचेतना लाय के ताकत पत्रकारिता म होथे। एकर ताकत ले सत्ता घलो सोचे धर लेथें। सच्ची पत्रकारिता बर पत्रकार ल सच्चाई बर लड़े अउ अपन जान ल हाथ म लेके चले परथे। आजादी के लड़ाई म भी पत्रकारिता के आने आने स्वरूप के जानकारी मिलथे। एक ठन स्वरूप *रोटी अउ कमल फूल* पहुँचे के अपन मायने रहिस, जे सिरीफ क्रांतिकारी मन ल संदेश पहुँचाय के काम करिस। मोर नजर म यहू एक तरह के पत्रकारिता रहिस।

      पत्रकारिता के मूल उद्देश्य जनमानस तक संदेश पहुँचाना हरे। जे वैचारिक होथे। आज भारत म कतको विचारधारा चलत हें। ए विचारधारा के संगठन हे। सबो संगठन अपन विचारधारा ल लेके पत्रकारिता करत हावय। सब अपन आप ल श्रेष्ठ बताय म तुले हाबय। सब विचारधारा एक प्रकार के राजनीति ले प्रभावित हाबय। आज कोनो भी राजनीति के प्रभाव ल अछूता नइ हे। कहूँ न कहूँ ओकर से पाला पड़े ले कोनो दल के विरोधी बने हे त कोनो अउ दल के समर्थक। अइसन म आज पत्रकारिता ऊपर ऊँगली उठना नवा बात नइ रहिगे।

        आज राजनीतिक दल मन अपन पार्टी के समाचारपत्र प्रकाशित करथे। अपन विचारधारा  ल लेके पत्रकारिता करना अउ अपन राजनीतिक उद्देश्य ल हासिल करना, पत्रकारिता के दिशा भटकाना आय। स्वतंत्र पत्रकारिता जउन आज निजी चैनल मन ले चलत हाबय, वहू सत्ता के डर अउ लोभ भटकत नजर आथे। चैनल मन म आजकाल डिबेट के नाँव म पत्रकारिता के कालम पूर्ति होवत हे अइसे लागथे। पत्रकार अउ प्रवक्ता मन के संवाद ले आखिर म कोनो निष्कर्ष नइ निकलना इही बात के इशारा करथे।

     पत्रकारिता म नवा पीढ़ी व्यवस्था ऊपर प्रहार करत सत्ता ल ठेंगा दिखा अपन निर्भीकता अउ सच्चाई बर पत्रकारिता करही। छत्तीसगढ़ म घलो एक दिन नक्सली समस्या, बेरोजगारी, छत्तीसगढ़ी ल राजभाषा के बराबर दर्जा देवाय, नाना प्रकार के भ्रष्टाचार ले उबरे बर पत्रकारिता होही के आशा हाबय।

*पोखन लाल जायसवाल*

*पलारी बलौदाबाजार*

पत्रकारिता के खेल-शोभामोहन श्रीवास्तव

 पत्रकारिता के खेल-शोभामोहन श्रीवास्तव

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पत्रकारिता उपर अनुभव के बात आय सन् २००२मा माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल ले इलेक्ट्रॉनिक मिडिया पर्सन के कोर्स करे के बाद मैं अपन आपबीती अनुभव ला आप सबके आगू रखत हँव ताकि आप सब झन असली पत्रकारिता कइसे होथे तेला जान सकव ।


पत्रकारिता हर समाज मा एक प्रतिष्ठित पेशा के रूप मा स्थापित हे, जेन समाचार पत्र मा छपथे अउ जेन समाचार चेनल मन देखाथे वो हर सत्य घटना होथे अइसे लोगन के मानना हे फेर बहुत दुख के साथ कहे बर परत हे कि ओमा के ७०% समाचार ला न्यूजरूम मा 

बइठे संपादक मन डिजाइन करथे कि अमुक समाचार ला कइसे  देखा के चैनल ला या अपन गिरोह ला का फायदा देवाना हे ।  

समाचार पत्र अउ समाचार चैनल ऊपर आँखी मूँद के भरोसा कभू झन करौ । ये सब समाचार एजेन्सी अउ चैनल मन नेता मंत्री के विज्ञापन अउ उँकरे चेला चँगुरिया मन के मिलीभगत ले चलाय जाथे । पत्रकारिता मा सीधा सरल सच्चा ईमानदार के कोई कीमत 

नइ हे, पत्रकारिता मा ग्लेमर अउ तामझाम बहुत हे फेर ओ ग्लेमर अउ उपलब्धि के फिलिंग तक पहुँचे के बाद मनखे अपन संग नजर नइ मिला सकै ।  


मैं दू महीना बड़ मुश्किल से एक न्यूज चैनल मा काम करेंव ।  पत्रकार हर कोनो ठउर ले कइसनो रिपोर्ट बना के लाने , साँझ के ओ समाचार के चीफ एडिटर हर ए. सी. आफिस मा बइठे बइठे नरेशन बदल देथे । समाचार बनाय के पइसा लेहीं अउ समाचार नइ बनाय के घलो पइसा लेहीं । 


सिद्धांतवादी अउ सज्जन मनखे पत्रकारिता मा कभू नइ टिक सकै, आज पत्रकारिता लोकतंत्र के चौथा स्तंभ नइ रहिगे हे, एक लुटेरा लुटियन गिरोह बनगे हे जेकर सफाई होना समाज अउ देश के हित बर बहुत जरूरी हे ।


शोभामोहन श्रीवास्तव

१०/११/२०२०

देवारी तिहार, जन मान्यता अउ वैज्ञानिकता-पोखनलाल जायसवाल

 देवारी तिहार, जन मान्यता अउ वैज्ञानिकता-पोखनलाल जायसवाल

      भारत भुइँया ल तीज-तिहार के देश कहे जाथे। अपन सँस्कृति, संस्कार अउ मान्यता ले हमर देश संसार भर अपन अलग चिन्हारी राखथे। ए भुइँया ऋषि-मुनि अउ तपस्वी मन के भुइँया आय। ए धरतीपूत किसान घलो कोनो तपस्वी मन ले कम नइ रेहे हे, न कम हावै। अपन मेहनत ले ए धरती ला सदा दिन सजाय अउ सिरजाय के बूता करे हे अउ करते हे। दिन रात खेत म गड़े रहिथे। कभू सुरताय के नाँव नइ लै। एक बूता पूरा होइस, त दूसर बूता के जोखा माढ़ जथे। अभीच देख लौ, धान-पान ल बटोरत हे अउ ओनहारी उतेरे अउ बोय के जोखा करत हावै। ओनहारी सियारी सकेले के पाछू थोरकेच दिन म खातू-पाला पालथे। इही बीच मेड़ पार म ढेलवानी घलो दे डारथे। ए तरह ले देखन त किसान मनखे मेर फुरसुदहा बइठे बर बेरा बाँचबे नइ करै। उन ला कोनो दिन छुट्टी नइ मिलै।

      तइहा जुग म थके-हारे मनखे मन अपन आप ल आराम दे हे खातिर उपाय करे रहिन। मुहाचाही गोठियाय बतियाय बर अउ सुरताय बर उदीम करिन। इही उदीम अउ उपाय हर तीज तिहार आय। जे मा एक बूता ल करे के पहिली अउ करे के बाद मन म नवा उछाह अउ उमंग ले बूता ल शुरु करे के सोचिन हे, कहे बानी लगथे। उछाह शब्द उत्साह के छत्तीसगढ़ी रूप कहे जा सकथे। इही उत्साह ले उत्सव शब्द के उत्पत्ति विद्वान मन माने हें। कोनो भी उत्सव के आय ले काम बूता ले छुट्टी मिल जथे। छुट्टी याने छूट मतलब दू छिन काम नइ करे के बखत। फेर हमर पुरखा मन अइसन बखत के चुनाव करें हावैं कि कोनो बूता म बाधा होबे झन करै। आप गुनान करके देख लौ, कोनो तिहार आप ल अइसन नइ मिलै, जे काम बूता म बाधा बनै। बहुत अकन तिहार म आप ल वैज्ञानिक आधार भी देखे म मिलही। ए आधार आप खुदे खोजे के कोशिश करौ।

      तिहार मन म अइसने देवारी तिहार घलो हे। जेन म लक्ष्मी दाई के पूजा, गोवर्धन पूजा अउ भाईदूज प्रमुख माने जाथे। धनतेरस घलो शामिल होथे।

     लक्ष्मी जेन ल हिन्दू रीति-रिवाज ले धन के देवी कहे या माने जाथें। धन के नाँव लेते साठ मन म संपत्ति, दौलत, जमीन जायदाद अउ धान-पान के भाव आथे। धरती पूत के मेहनत ले उपजे खेत के लक्ष्मी के घर म स्वागत ही लक्ष्मी पूजा ले जाने जाथे। इही स्वागत म दीया बारे जाथे। ए दीया कुम्हार ले बिसा के उँखर अँधियार जिनगी म अँजोर बाँटे के उदीम होथे। ए दिन के एक मान्यता ए हवै कि इही कातिक अमावस्या के दिन भगवान राम चौदह बछर के वनवास ले लहुटे रहिन। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम आसुरी शक्ति मन के नाश करिन, जन कल्याण करिन। ते पाय के राम जन-जन के पूज्यनीय बनिन। ओकरे स्वागत म अयोध्या नगरी म ओरी-ओर दीया बारे गे रहिस। एकरे सेती एला दीपावली कहे जाथे। छत्तीसगढ़ राम के ममियारो आय, ते पाय के छत्तीसगढ़ म अपन भाँचा के जिनगी म अच्छा दिन लहुटे के खुशी अउ राज मिले के आस म घरोघर अँजोर बाँटथे। सुरहुति दिया बारथे। दूसर मान्यता यहू हवै कि धन के देवी लक्ष्मी ए रात के धरती के विचरण करथे। अपन कृपा प्रसाद ले कतको मन ल तारथे। जेकर ऊपर कृपा बरसथे, ओकर घर समृद्धि आथे। इही पाय के साफ-सफई के जतन घरोघर करे जाथे। साफ-सफई ले रहे ले जिहाँ तन बने रहिथे, उहें बने बने बिचार आय ले दिल अउ दिमाग के पोषण होथे। जेकर ले समृद्धि के दुआर खुलथे। ए दिन ल लेके अउ कतको मान्यता अउ विश्वास जुड़े हावैं।

         दूसरइया दिन देवारी जेला अन्नकूट या गोवर्धन पूजा के नाँव ले जानथन। ए दिन कतको परिवार नवा खाय बर अपन कुलदेवता ले असीस लेथे, उन ल नवा चाउँर के बने रोटी-पीठा (रोंठ)चढ़ा के पूरा परिवार हली-भली ले नवा खाथे। नवा खाना मतलब नवा फसल के अनाज/अन्न ल पका के भरपूर आदर भाव ले सपरिवार उपभोग करना आय। अइसे मान्यता हवै कि आज के दिन ही कृष्ण भगवान गोवर्धन परबत ल उठा के गोकुल वासी मन के रक्षा करे रहिन हे। तिही पाय के एला गोवर्धन पूजा घलो कहे जाथे। ए दिन गाँव-गाँव म साँहड़ा देव चौक म गोबर के गोवर्धन बना के राउत बंधुमन कोति ले पूजा करे जाथे, जेमा गाँव के सबो समाज के मनखे जुरियाथें अउ एक दूसर ल बधाई देथे, शुभकामना देथे। 

      आज के बदलत समय म कतको विचार धारा इहाँ पनप गे हे। जेन मन दीपावली देवारी के अपन ढंग ले व्याख्या करथें। इही नवा विचारधारा ले प्रेरित एक वर्ग हे जउन मन देवारी तिहार ल गरीब मजदूर अउ किसान ल लूटे के षड़यंत्र बताथे। बैपारी वर्ग के षड़यंत्र हरे कहिथें। ए मन वैज्ञानिकता के नाँव ले गरीब अउ अशिक्षित मन के आस्था ल भटकाय के बूता करथे। बने होतिस कि संस्कार, संस्कृति, अउ रीति रिवाज के वैज्ञानिक पक्ष खोजतिन अउ उन ल बाँटे के साजिश नइ करतिन। मैं अतका जानथौं कि जेन लुटाना चाहथे तेने ल कोनो लूटथे। आज कतको धोखाधड़ी होवत हे, सुनत हें, पेपर म पढ़त हें, तभो ले मनखे लालच म पड़ के लुटेरा मन के चंगुल म फँस जथे। आज जमाना अइसे होगे हवै कि फोकट म कोनो ल एक रूपया देवइया नइ मिलै, त इनाम अउ लाटरी के नाँव म कोन दानी ह हम ला दान दिही? सोचे के बात हे। बैपार के मतलब सोज-सोज कहन त लेन-देन आय। ए तो तब ले चले आवत हें, जब ले मानव जीवन के विकास यात्रा शुरु होय हे। बजार-हाट अउ मँड़ई-मेला बैपार ल बढ़ाय के जगह आय। मँड़ई-मेला अउ हाट-बजार के जानकारी पुरातत्व वेत्ता मन देथे। सिरपुर म घलो खनन के बाद ए बात के प्रमाण आजो देखे जा सकत हे। बैपारी दू पइसा कमाबे करही। ए अलग बात आय कि आज मनखे के सइता नइ रहिगे हे। सकेलो-सकेलो होगे हे। इही चक्कर म जादा मुनाफा कमाय धर ले हे। आबादी बाढ़े पाछू बैपार घलो बाढ़े हे। आज बजार म सबो जाति अउ वर्ग के बैपारी हवै। अइसन म तिहार-बार ल बैपारी मन के षड़यंत्र बताना समाज ला तोड़े के प्रयास मानथौं। हमर सियान मन के सियानी गोठ हे, पाँव ओतके पसार जतका लम्बा चद्दर हे। मैं तिहार के आड़ म उदाली मारत जादा खरचा करिहौं त नुकसान तो मोरे होही। करजा बोड़ी करहूँ त छूटे ल मुही ला परही। अब *पर भरोसा तीन परोसा*, के जमाना नइ हे। ए सबो जाने धर ले हे। 

       तीज-तिहार के आय ले परिवार अउ समाज जुरमिल के उछाह मनाथे, मनखे एक दूसर ले सुख-दुख ल बाँटे के मौका पाथे। ए तीज-तिहार के पाछू के मरम मनखे ल नैतिक रूप ले अच्छा चरित्रवान बनाथे। काम-बूता के हरहर-कटकट ले थोकिन आराम करे अउ खुश होय के मौका लाथे। जेन ल ए सब नी भाय ओमन रंग मा भंग डारे खातिर नवा-नवा उदीम खोज तइहा के चलागन ला फालतू बताय के कोशिश करथे। तीज तिहार मन घर-परिवार अउ गाँव मा एका के कारण बनथे।  जे मन नी चाहे कि गाँव अउ समाज म सुमता अउ एका राहै, ओमन कतको मनगढ़ंत गोठ बना भेंगराजी डारथे अउ अपन काम निकालथे।

       मौसम/ऋतु परिवर्तन के बाद चिखला माटी सूखा जथे। घर-अँगना, बारी-बखरी अउ तीर तखार के साफ-सफाई जरूरी हो जथे। ए सब तिहार के नाँव लेके हो पाथे। एक तरह ले देवारी तिहार स्वच्छता ले  तइहा के जुड़े हावै। आज स्वच्छता के महत्तम ला सबो जाने धर ले हें। साफ-सफई रहे ले बेमारी के फैलाव नइ होय। जेकर ले तन ल कोनो कष्ट नी मिलै। धन के बचत घलो होथे। मन चंगा घलो रहिथे। अइसन मा समृद्धि घर म आथे। ए बात के जानबा हमर पुरखा मन ल रहिन हें तभे देवारी तिहार मा साफ-सफई, लिपई-पोतई के नेंग राखे रहिन। इही ए तिहार के वैज्ञानिक आधार आय कहे जा सकत हे। 

        भाई-दूज देवारी तिहार के आखिरी दिन आय। जेन भाई-बहन के प्रेम के उद्गार आय। भाई-बहन एक-दूसर के हित बर सोचथे। ए जग कल्याण के भावना ले भरे परब आय। हो सकत हे हमर पुरखा मन अज्ञानता ले जेन ल भगवान के दरजा देइंन उन ल हम भगवान नइ मानन। भगवान जइसे कोनो जिनीस नइ होय काहन। फेर ओकर पीछू के मंगल भावना जग कल्याणकारी हे। ए ल जरूर सोचे के जरूरत हे। 

       हाँ! समय के संग बदलाव जरूरी हे। बदलाव प्रकृति के नियम ए। जे बदलाव जिनगी मा खुशी भरै। जिनगी मा रंग भरै। वो बदलाव होना चाही। बदलाव के नाँव म आँखीं मूंद के अपन पुरखा मन के रीति-रिवाज ल छोड़े नइ जा सकै। ए बात के खियाल राखे ल परही।


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी बलौदाबाजार

9977252202

मोर देवारी-चोवाराम वर्मा"बादल"

 मोर देवारी-चोवाराम वर्मा"बादल"


रेल्वे स्टेशन के सुविधा अउ बने बड़े स्कूल म परिवार के लोग लइका मन ल पढ़ाये के लालसा म लगभग 35 बछर होगे हे अपन जन्मभूमि ले लगभग 12किमी दूरिहा कस्बानुमा गाँव हथबंद म घर बनाके राहत। इहाँ बसे के अबड़ फायदा होइस काबर के संयुक्त परिवार के जम्मो भतीजा-भतीजिन मन ल उच्चशिक्षा मिलिस।मोरो लइका मन पढ़िन-लिखिन।

 बसे बर हथबंद म भले बस गेंव फेर एको तिहार आज तक इहाँ नइ मनाये अँव। छोटे ले लेके बड़े तिहार तको ल अपन छोटे से जन्मभूमि गाँव जेन सिरतो म सरग ले बढ़के लागथे उहें मनाथँव। बाहिर म कतको मान सम्मान  मिल जथे फेर अपन जन्मभूमि के संगी संगवारी मन ले , सियान मन ले,दीदी दाई ,बहिनी भाई मन ले मिले निश्छल प्रेम मया-दुलार,आशिर्वाद के बाते निराला होथे।जन्मभूमि के चंदन कस धुर्रा के मोल हीरा मोती ले आगर होथे। मन के पठेरा ले कोनो सुरता निकल के जब आँखी म झुले लगथे,कोनो ह गुदगुदाये हँसवाये ल धर लेथे अउ कोनो कोनो ह चिटिक रोवा तको देथे त वो आनंद के वर्णन नइ करे जा सकय। 

   इही सब कारण मन ल सोंच के मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी ह कहे रहिस होही---जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी--

    जइसने कोनो तिहार लकठियाथे ओइसने मन ह गाँव घर जाये बर दू चार दिन पहिली ले तुकतुकाये ल धर लेथे। इहू साल सुरहुत्ती के एक दिन पहिली ले तैयारी होगे रहिस। भइया अउ संगवारी मन के फोन आये ल धर ले रहिस। हथबंद के घर म संझा 7 बजे पूजापाठ करके पारा परोस म परसाद बाँट के अउ परोसी सियान कका ल चार दिन बर दियबाती अउ रखवारी के जिम्मेदारी देके पहुँचगेन अपन जन्मभूमि।

   उहाँ के आनंद ल का कहिबे ।पूरा बस्ती म चारों खूँट रिगबिग रिगबिग दिया के जोत।रहि रहि के दनाका फटाका के जयघोष। रात भर चहल पहल। गौरी गौरा के बिहान के होवत ले बिहाव ।तहाँ ले नहा धोके दस बजे ले दू बजे तक विसर्जन। संझा बेरा गोवर्धन पूजा। गोबर के टीका लगा के एक दूसर ले मेल मिलाप।

  बिहान भर मातर तिहार। उमंगे उमंग। चार दिन कइसे पहाइच पतेच नइ चलिस। 

   ए साल के देवारी तिहार म एक फरक देखे ल मिलिस कि कुछ मनखे मन कोरोना के डर म मास्क लगाये रहिन फेर अधिकांश मन पालन नइ करिन। मातर के दिन खीर के परसाद बँटय तेन ए साल कोरोना के सेती नइ बाँटे गिस।राउत नाचा म आधुनिकता के रंग चढ़े दिखिस त ए साल पिछू साल ले जादा पिये खाये लड़भड़ावत मनखे मन ल देख के बहुत दुख तको लागिस।

      

चोवा राम 'बादल' 

हथबंद, छत्तीसगढ़

जेठवनी ले जुड़े लोक मान्यता के वैज्ञानिक पहलू- पोखनलाल जायसवाल

 जेठवनी ले जुड़े लोक मान्यता के वैज्ञानिक पहलू- पोखनलाल जायसवाल

     

       अइसे कोनो मनखे नइ हें, जेन कार्तिक महीना के महत्तम ले  परिचित नइ होहीं। छत्तीसगढ़ म दशराहा माने के बिहान भर ले कार्तिक नहाय अउ रामधुन के संग प्रभात फेरी के रिवाज तइहा ले चले आवत हें। आज के नवा पीढ़ी के रामधुनी पार्टी ले नइ जुड़े से ए नँदावत हे। अब कतको गाँव म प्रभात फेरी नइ होवय। महीना भर कार्तिक स्नान करे के पाछू पुन्नी स्नान के संग आँवला छाँव तरी खीर पका के प्रसाद बाँटे जाथे। लोक मान्यता हवै कि कार्तिक स्नान ले कुँवारी कन्या ल मनवांछित वर के प्राप्ति होथे। ए स्नान के बहाना बेरा उए के पहिली जागे के आदत बनय। जउन पढ़इया लइका मन बर बने रहिथे। मुँधरहा शांत वातावरण म पढ़े ले पाठ के तियारी बने होथे माने जाथे। मन एकाग्र रहिथे तभे कोनो भी बुता म मन रम थे अउ बुता सफल होथे। बिहनिया के नवा किरण नवा ऊर्जा के संचार करथे।मन म नवा उत्साह भरथे। तभे सूरज ल प्रकृति के पोषक माने गे हे। इही धरती बर ऊर्जा के मूल स्त्रोत आय।

       कार्तिक अमावस के दिन दीपावली अउ बिहान भर देवारी माने जाथे। अँजोरी पाख के एकादशी के दिन जेठवनी/देवउठनी परब  माने जाथे। ए तरह ले कहे जाय त कार्तिक महीना तीज परब अउ बड़ महत्तम के महीना होथे।

      जेठवनी के दिन खुसियार के मँड़वा सजा के तुलसी महरानी अउ शालीग्राम के बिहाव रचाय जाथे। इही दिन ले खुसियार खाना शुरुआत करे जाथे। लोक मान्यता के मुताबिक ए दिन ल मंगल कारज बर-बिहाव के नेंग जोग,भवन निर्माण के पूजा-पाठ जइसे जम्मो नवा काज के शुरुआत बर उत्तम माने जाथे। ए दिन ल देवउठनी एकादशी के नाँव ले घलो जाने जाथे। देवउठनी मतलब देवता  धामी मन के जागरण के दिन। एक अउ मान्यता के अनुसार आसाढ़ शुक्ल एकादशी ल देवसुतनी एकादशी कहे जाथे, जेकर अनुसार ए दिन ले चार महीना देवता धामी मन धरती म विचरण नइ करे। विचरण नइ करना मतलब आराम करना अर्थात् सुतना/सो जाना आय। ए तरह ले ए एकादशी देवसुतनी एकादशी कहाथे। तब ले जेठवनी एकादशी तक कोनो भी काम के शुरुआत के मनाही रहिथे। देवता धामी मन के आशीर्वाद नइ मिलय जान के जम्मो नवा काम ल कुछ दिन बर स्थगित कर दे जाथे। ए समय के मौसम ऊपर धियान दे जाय त पता चलथे कि ए चार महीना ह चउमास के महीना होथे। जेमा खेती-बाड़ी के बड़ बुता रहिथें अउ सावन-भादो के बरसा ले घर-दुआर रोहन-बोहन रहिथें। तइहा के बेरा म गली-खोर म माड़ी भर गैरी माते राहय। आवाजाही बड़ मुश्किल हो जाय। कोनो भी कार्यक्रम करे म पहुना मन बर रहे-बसे के बेवस्था गड़बड़ात रहिन। पानी-काँजी म सबो के खान-पान के बरोबर बेवस्था नइ करे जा सकत रहिन, अइसे प्रतीत होथे। आज घलो एकर सहज कल्पना करे जा सकत हे। संगेसंग यहू विचार करे जा सकत हे कि बछर भर के खाय बर अन्न उपजाना अउ ओकर चिंता करना ले, बड़का अउ कोनो काम हो नइ सकय। इही कारण रहिन होही जे चउमास भर कोनो भी काम के शुरुआत करना ल तइहा म अच्छा नइ मानिन होही। आज सबो मौसम ले बाँचे बर नवा-नवा तकनीक आगे हे। सबो प्रकार के बेवस्था हो सकत हे। गली-खोर म चिखला-माटी नइ राहँय। बारहमासी आवाजाही के बेवस्था हे। कोनो प्रकार के दिक्कत के सवाले नइ हे। चउमास के बीते ऊपर ले चारों मुड़ा सुक्खा जउन रहिथे।

      खार के लक्ष्मी घर म पाँव धर डरे रहिथे...पाँव धरे के अगोरा रहिथे। नवा काज करे खातिर सबके हाथ कच्चा रहिथे। अजम हो जथे कि असो अमुक बुता ल करे म कोनो दिक्कत नइ होय। नोनी-बाबू के हाथ पिंवराए जा सकत हे। रहे-बसे बर छाँव के बेवस्था ल सुधारे जा सकत हे।

        जेठवनी के दिन कतको घर गाय ल सोहई बाँधे जाथे। सोहई बँधइया राऊत भाई ल अपन तरफ ले भेंट स्वरूप कपड़ा, धान, पैसा जउन बने दे के सुग्घर परंपरा चले आत हे। जेला पाके राऊत मन असीस देथें...अन्न धन ले भरे रहय भंडार। ए असीस म राउत जिहाँ किसान के भंडार भरे रहे के कामना करथे, उहें अपन पेट के चिंता घलो करथे। ए रीत ह किसान अउ राऊत के आपसी संबंध ल सजोर बनाथे। दूनो के खुशहाली के प्रतीक घलो बनथे। 

       अपन लोक संस्कृति, लोक परम्परा अउ लोक मान्यता मन ल अँधविश्वास, रूढ़िवादिता ए कहिके एक सिरा ले खारिज करे के पहिली सोचन। वोकर पाछू का भेद हवय?  तब अउ अब म जरूरत के जिनीस के उपलब्धता अउ पर्याप्तता म फरक ल समझन। समय के संग बदलाव जरूरी हे। फेर बदलाव के अर्थ ए नोहय कि पूरा के पूरा बदले जाय। विकास के नाव म जइसे कोनो भी वैज्ञानिक खोज म संशोधन कर परिष्कृत करे जाथे, वइसने लोक मान्यता, परम्परा अउ संस्कृति ल समय प्रासंगिक बनाना ही सही बदलाव रही। अइसन बदलाव के स्वागत भी करना चाही।


*पोखन लाल जायसवाल*

पलारी (बलौदाबाजार)

दू ठन उपराहा-चोवाराम वर्मा 'बादल' (कहानी)

 दू ठन उपराहा-चोवाराम वर्मा 'बादल'

(कहानी)


मातर के बिहान दिन बिहनिया-बिहनिया पारा के माई लोगिन मन बोरिंग मेर पानी भरे बर जुरियाये साग-भात, रोटी-पीठा ,खाना-पीना , कपड़ा-लत्ता अउ तिहार के चिनहा गाहना गूठी ले लेके गाँव म होये झगरा-झंझट ल गोठियाये म मगन रहिन उही समे रामबती ह तको हँउला धरे पहुँचगे। वोकर गोड़ के नवाँ साँटी ल देख के परोसिन काकी ह कहिस- ए वो बहुरिया तोला साँटी अब्बड़ फभत हे वो। तिहार के चिनहा आय तइसे लागत हे। कब लेहव वो?

  रामबती कुछु बतायेच नइ पाये रहिस--एक झन अउ पूछ डरिस---के तोला के हाबय बहिनी?बने रोंठ-डाँट दिखत हे।

वोकर बात पूरेच नइ रहिस एक झन ह अपन दुखड़ा रोवत कहे ल धरलिस --हमर घर नोनी के बाबू ह असो के देवारी म माला पहिनाहूँ कहे रहिस फेर का करबे बहिनी धान नइ बेंचाये कहिके नइ लेइच ।ले देके कर्जा बोड़ी करके लइका मन बर अलवा जलवा कपड़ा लत्ता अउ तेल गुड़ ल बिसाइस हे। तुँहर धान बेंचागे का वो रामबती बहिनी?

    हमर धान तो अभी लुयाये नइये दीदी, बेंचाही कहाँ ले। ये पानी-बादर म खेते म परे हे।बाबू के ददा ह चेत नइ करत हे।रामबती ह कहिस।

   हँ--- तुमन काम बुता करके पइसा सकेले रहे होहू तेकर ले होहू न वो बहुरिया--काकी ह पूछिस।

     कहाँ के काम बूता चलत हे काकी तेमा धन जोर डरबो। कइसनो करके पेज-पसिया म जिनगी चलत हे तेने बड़े बात हे। रामबती ह चिटिक नराज होवत कहिस।

 अतका ल सुनके कई झन एक सूर म कहि डरिन---त ए नवाँ साँटी कहाँ ले आगे वो। 

  नइ बताना हे त झन बता बहुरिया। हमन नँगा थोरे लेबो वो। जरे म नून डारे कस काकी कहिस।

   बेचारी रामबती ल नवाँ साँटी के किस्सा ल लाजे-काने बताये बर परगे। 

वो कहिस--बाबू के ददा ह सुरहुत्ती के दिन तीस -चालीस हजार जुआ म जीते रहिसे त ए दे बीस तोला के मोला साँटी पहिनाये हे।

     बने करिस भौजी फेर जुआ चित्ती खेलना अच्छा नइ होवय। आज जितही-काल हार जही। सियान मन कहे हें--जुआ किसी का न हुआ। जुआरी मन के मारे खेत-खार, गाहना-गूठी, बर्तन-भाँड़ा ,इहाँ तक धोये चाँउर तक नइ बाँचय कहिंथे। ताश के नशा म सब बेंच-भाँज के खुवार कर डरथें।पाँडव मन अपन रानी दुरपती ल हारगे रहिन--सुने तो होबे। बरज वो--भइया ल बने बरज--ताश झन खेलन दे। एक झन पढ़े लिखे पानी भरे ल आये नोनी ह समझावत कहिस।

      सच काहत हस  नोनी। अब्बड़ बरजतथँव फेर तोर भइया मानय नहीं। जेठौनी पुन्नी के जात ले कर्जा  ले ले खेलथे तहाँ ले साल भर कमा कमाके छूटत रहिथे। साल पुट खेत घलो बेंच देथे।

        बोरिंग ल टेंड़-टेंड़ के गोठ-बात करत  सब झन पानी भरके अपन अपन घर आगें।

     अठुरिया बिते रहिस होही।एक दिन बिहनिया बोरिंग म पानी भरे बर रामबती गिस त उहाँ पहिली ले चार-पाँच झन महिला मन संग काकी तको पहुँचे राहय। वो ह रामबती ल देखिस तहाँ ले पूछे ल धरलिस---कइसे वो बहुरिया तोर साँटी कहाँ गै वो। गोड़ दुच्छा लागत हे। खिनवा अउ  ऐंठी ल तको नइ पहिने अस। दोंदवी कस दिखत हस?

 सुनके रामबती कलबलाबे फेर का काहय। बेचारी ह सुसकत कहिस--बाबू के ददा ह एक ठन साँटी पहिराये रहिस हे वोकर संग म मोर दू ठन उपराहा गाहना ल ताश म हार के बेंच दिस।

        

चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़

Tuesday 17 November 2020

मोर देवारी ...ओमप्रकाश साहू अंकुर


 संस्मरण 


मोर देवारी ...ओमप्रकाश साहू अंकुर


हमर छत्तीसगढ़ मा किसम किसम के तिहार मनाय जाथे. इहां के सबो परब हा कृषि ले जुड़े हवय. वोमा कृषि संस्कृति के दर्शन होथे. चाहे वोहा अक्ती  हरेली, पोरा  राहय चाहे देवारी. 

    देवारी हा भगवान राम के चौदह बरस के बनवास के बाद अयोध्या लहुटे के खुशी मा मनाय जाथे. राम जी हा भारत वर्ष अउ हमर छत्तीसगढ़ के नर नारी मन के रग रग मा रचे बसे हवय. वोहा बुराई अउ अंधियारी ला भगा के समाज मा अच्छाई अउ अंजोर बगराय के काम करिस हे. 


  हमर भारत वर्ष अउ छत्तीसगढ़ मा देवारी तिहार गजब उछाह ले मनाय जाथे. ये समय धान हा पक के कटाय के लईक हो जाथे. हरुना धान ला कांट घलो डारथे. अउ कतको झन मन देवारी बुता मा भुलाय के सेति तिहार ला मनाय के बाद धान लुथे. माई धान 

हा देवारी तिहार मनाय के बाद कांटे जाथे. जउन साल धान हा बने बने  रहिथे वो साल किसान मन हा देवारी ला अब्बड़ उछाह ले मनाथे. अउ जउन साल पानी बादर हा कमजोरहा रहिथे वो बरस किसान मन के देवारी मा घलो दम नइ राहय. खेती किसानी ले सब बेपार हा घलो जुड़े रहिथे. 

    जिंहा तक ये साल के देवारी के बात करन ता कोरोना बिमारी के घलो असर देखे ला मिलिस. कतको लोगन मन भीड़ भाड़ मा जाय ले घलो बचिस. 

 जिहां तक मोर देवारी के बात हे ता सबले पहिली कपड़ा लत्ता खरीदेन. लईका मन बर उठवा कपड़ा बिसायेन. मेहा मोर कपड़ा

के नांप देवाय बर  दर्जी कर गेंव  तब देवारी तिहार हा पांचे दिन बांचे रिहिस. दर्जी हा साफ बोलिस कि तुंहर कपड़ा ला देवारी के बाद ही  सील पाहूं !

 लाल बहादुर नगर(पाथरी,डोंगरगढ़) ले सुरगी(राजनांदगाँव) पहुंचेव ता माटी के घर ला साबे बर थोर कुन माटी मतायेंव. मोर गोसईन हा एक झन बनिहार तियारिस अउ लईका मन के सहयोग ले घर अँगना के लिपई पुतई करिस. धन तेरस के दिन तेरह ढक अउ नरक चौदस के दिन चौदह ढक माटी के 

दीया जलायेन. 

    सुरहोती के दिन सबले पहिली संझा कुन माटी के दीया बार के घर अँगना मा मढ़ायेन. फेर मेहा मोर भतीजा अउ बेटा के संग गाँव के देवता धामी करकाटोलिया, शीतला माता, शंकर भगवान, बजरंगबली, माता लक्ष्मी के मूर्ति के ठउर मा पहुंच के सुग्घर ढंग ले पूजा करके दीया , अगरबत्ती जला के हूम देके देवी देवता ला सुमरेन. बिनती करेन के हमर जिनगी के संगे संग गाँव मा घलो बने सुख शान्ति रहे. साकेत साहित्य भवन, माँ कर्मा सामुदायिक भवन अउ हाई स्कूल के दरवाजा मा घलो दियना के अँजोर बगरायेंव. फेर घर मा माता लक्ष्मी के पूजा करेन. वोकर बाद घर परिवार, अड़ोसी पड़ोसी मन घर प्रसाद पहुंचायेन. लईका मन हा फटाका फोड़िस. संगवारी अउ शुभ चिन्तक मन ला मोबाइल ले मेसेज कर देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना पठोयेंव. 

   गोवर्धन पूजा के दिन भाई मन घर खाय ला गेन अउ भाई मन हा सुग्घर ढंग ले खाय बर अईस. एक 

दूसरा ले मिल के सुख दुख के बात करेन .संगे संग देवारी तिहार के बधाई अउ शुभकामना देवत गेन. भाई घर जाके गोवर्धन पूजा करेन. गाय, बैला ला सुग्घर ढंग ले खिचड़ी खिलायेन. 

   फेर संझा बेरा पुराना बस स्टेन्ड मा पहुंचेन. ऊँहा गाँव वाले मन ले मुलाकात होइस. संगवारी मन ले मिल के बने बने गोठियाय ला मिलिस. बाहर नौकरी करइया अउ खाय कमाय ला गेय संगवारी मन ले मिलके गजब खुशी होइस. रिश्ता नाता अउ उम्र के हिसाब ले 

पायलागी अउ जय जोहार करेंव. 

    एकर बाद राऊत मन हा मड़ई ला  सुग्घर लहरात ,दोहा पारत अउ बिधुन होके नाचत चउक मा पहुंचिस. 

फेर महू हा संगवारी मन संग गोवर्धन चउक कोति आगू बढ़ेंव. राउत नाचा अउ मड़ई हा मन मा गजब उछाह भरिस. गाँव के लइका, सियान, जवान सबो मन मा अब्बड़ खुशी झलकत राहय. लईका, जवान मन हा रंग रंग के फटाका फोड़ के अपन खुशी ला देखात रिहिस. फटाका के आवाज ले पूरा गाँव हा गूँजगे. 

  फेर गौमाता ला गोवर्धन चउक मा ले जाके पूजा पाठ करके गोवरधन खुंदाय गिस. फेर लोगन मन हा गो धन ला एक दूसरा के माथ मा लगाके देवारी तिहार के गाड़ा गाड़ा बधाई अउ शुभ कामना देवत अपन अपन घर कोति जावत गिस. महू हा गोबर के टीका लगात, बधाई देवत अपन घर कोति पहुंचेंव अउ घर परिवार के संगे संग अड़ोस पड़ोस के लोगन मन के माथ मा गोबर के टीका लगा के  आशीर्वाद प्राप्त करेंव. 

तो ये प्रकार ले मेहा एसो के देवारी मनायेंव. 


                 ओम प्रकाश साहू अंकुर 

     सुरगी, राजनांदगॉव

Monday 16 November 2020

क्रातिकारी गीतकार : लक्ष्मण मस्तुरिया-अजय अमृतांशु


 

क्रातिकारी गीतकार : लक्ष्मण मस्तुरिया-अजय अमृतांशु


     "3 नवंबर पुण्यतिथि विशेष"

"जागो रे जागो बागी बलिदानी मन..
धधकव रे धधकव सुलगत आगी मन..."

अइसन गीत के एक-एक पंक्ति अउ एक-एक शब्द अन्तस् ल झकझोर देथे,अउ सीना चीर के सीधा अन्तस् मा उतरथे। छत्तीसगढ़ी गीत मा क्रांति के अइसन आह्वान करने वाला क्रांतिकारी गीतकार केवल लक्ष्मण मतुरिया ही हो सकथे कइहूँ ता गलत नइ होही। छत्तीसगढ़िया मन के स्वाभिमान जगइया मस्तुरिया जी के कलम ले क्रांति के चिंगारी निकलय। अन्याय,अत्याचार, जमाखोरी, बेरोजगारी, पलायन अउ नपुंसक राजनीति उपर उँमन निडर हो के कलम चलाइन ।

मस्तुरिया जी अपन गीत म कतेक गंभीर बात कहिथे :-
        "जागो रे जागो बागी बलिदानी मन..
परिवर्तन उही ला सकथे जेन जुझारू होथे,बागी होथे, लड़े अउ मर मिटे बर हमेशा तियार रहिथे। अउ बलिदान भी उही मन दे सकथे जेन अपन मूँड़ी मा कफ़न बाँध के निकलथे । तब अइसन गीत बागी अउ बलिदानी मन बर टॉनिक के काम करथे । मस्तुरिया जी जब कहिथें-
      "धधकव रे धधकव रे सुलगत आगी मन"
तब देह के रूवाँ रूवाँ खड़ा हो जाथे। अन्याय अत्याचार के खिलाफ़ खड़ा होने वाला युवा जेन परिवर्तन लाय के जज्बा रखथे अइसन एक आह्वान ल सुन के उमन मर मिटे बर उतारू हो जाथे। जब दानव मन ले देवता मन घलो हार जाथे तब आदि शक्ति माँ दुर्गा पापी मन के संहार करे बर अवतरित होथे। तब मस्तुरिया जी वीरांगना दुर्गावती सरिक मातृशक्ति मन ल आह्वान करथे :-
"महाकाल भैरव लखनी
 महामाया दुर्गा काली मन..। जागो रे...
             ओज ले भरे अइसन गीत ल सुनके काकर तन म आगी नइ लगही ? दमदार लेखनी के संग वजनदार प्रस्तुति म मस्तुरिया के कोनो मुकाबला नइ रहिस। जेन मनखे एक घव 
मस्तुरिया जी ल सुन लय आजीवन वोला नइ भुलाय। छत्तीसगढ़ी के अमर गीतकार लक्ष्मण मस्तुरिया शोषित वर्ग के प्रतिनिधि कवि/गीतकार रहिन। शोषक मन के खिलाफ जब उमन मुखर होके लिखथे तब खून मा उबाल आना स्वाभाविक हे :-
"लंद फंद वाले मालामाल हे
सिधवा बर रोजे अकाल हे
अउ गोहार परत हे नाचे
छानही चढ़ चढ़ पापी मन..."

नपुंसक राजनीति के खिलाफ खुल के लिखे बर करेजा चाही,मस्तुरिया जी निडर होके लिखिन- 
"भीख माँगे म जिनगी के 
अधिकार कोनो ल मिलय नही..
कुंडली मारे साँप सिंहासन
आगी आँच बिन हिलय नहीं...।"

अइसन बात ल लिखना अउ मंच म पढ़ना तलवार के धार म चलना हवय। फेर कबीर के रददा म रेंगइया मन ककरो परवाह कहाँ करथे । 

जमाखोरी तब भी रहिस अउ आज भी ये विकराल समस्या हे जेला जड़ ले उखाड़ना जरूरी हवय। जमाखोर मन के ख़िलाफ़ उँकर आक्रोश देखव-
"लहू ले माँहगी तेल गुड़ 
निर्दयी होगे बैपारी मन ..जागो रे.."

अपन फर्ज ले विमुख, देश अउ समाज के प्रति उदासीन केवल अपन म मस्त मनखे मन ला लताड़त मस्तुरिया जी कहिथें -
"मुर्दा जागव मरद बनव रे
छाती बाँख म गरब भव रे
देश धरम पुरखा पीढ़ी बर...
मरव खपव जीवदानी मन" जागो रे..

मस्तुरिया जी कालजयी गीतकार रहिन। उँकर गीत के प्रासंगिकता तब ले जादा आज महसूस होथे।सम्मान के साथ जीना ही उँकर फितरत रहिस। उँकर कृति "सोनाखान के आगी" के पंक्ति देखव :-  
"बिना सुराजी के जिनगानी
मुरदा हे तन मरे परान
बिना मान सभिमान के मनखे
गाय गरु अउ कुकुर समान"

सिधवा छत्तीसगढिया मन ला अपन स्वाभिमान के 
रक्षा करे खातिर मस्तुरिया जी आजीवन घेरी भेरी चेताइन :-
अरे नाग तैं काट नहीं त
जी भर के फुफकार तो रे
अरे बाघ तै मार नहीं त
गरज-गरज धुतकार तो रे

छत्तीसगढ़ के पावन माटी सब ला शरण दिस। अलग अलग राज के मनखे आके इँहे के होके रहिगे। फेर कुछ लोगन छत्तीसगढ़िया मन के अस्मिता अउ स्वाभिमान सँग आज घलो खेलत हवय। उँनला मस्तुरिया जी खुला चुनौती देथे :-
"एक न एक दिन ए माटी के
पीरा रार मचाही रे ..
नरी कटाही बइरी मन के
नवा सुरुज फेर आही रे।"

येहू कटु सत्य आय कि मस्तुरिया जी आजीवन अपन स्वाभिमान के साथ कभू समझौता नइ करिन। छत्तीसगढ़, छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़िया के पीरा ला जीवन पर्यन्त लिखिन। मनखे के सीना धधक जय,अपन माटी के खातिर मनखे मर मिटय, मुरदा घलो खड़े हो जय अइसन प्रेरणा देने वाला अमर गीतकार सदियों मा कोनो एक होथे। मस्तुरिया जी के पुण्यतिथि मा उन ला ला शत शत नमन ।

अजय अमृतांशु
भाटापारा (छत्तीसगढ़)