Monday 5 October 2020

सुधर के का करबों-अजय अमृतांशु

 सुधर के का करबों-अजय अमृतांशु


अशोक ल हेलमेट लगाय देख के पूछ परेंव- तैं तो कभू हेलमेट नइ लगात रहेस जी फेर आज कइसे? अशोक - नइ लगात रहेंव गा फेर का करबे आजकल चौक-चौक म पुलिस पहरा देत रहिथे। हेलमेट नइ लगाय हस कहिके काली अड़बड़ झन ला तीन-तीन सौ फाइन करे हवय पुलिस हा। नइ लगाहूँ त जतका के हेलमेट नइ हे ततका के फाइन हो जहय। तेकर सेती येला आजे लाय हँव ड़ेढ सौ के आय। डेढ़ सौ म हेलमेट....? मतलब येहा आई एस आई मार्का नोहय का ? में पूछ परेव। अशोक ह झल्ला के कहिथे- मैं आई एस फाई एस ल नइ जानव मूँड़ म हेलमेट रहिना चाही बस ताकि पुलिस ह झन रोकय। मतलब तोला अपन जान के परवाह नइ हे ...तोला पुलिस के फाइन के चिंता हे। अरे बने असन मार्का के लेते त तोर प्रान के रक्षा घलो होतिस। कहूँ  दुर्घटना होगे ना त ये हेलमेट हा छर्री दर्री हो जाही तो मूँड़ी के तो बाते छोड़ दे । अशोक ह झल्ला के कहिथे- अब तैं जइसन समझ भाई अभी तो फाइन भरे ल बाँचव। रहिस बात दुर्घटना के जब के बात तब देखे जाही।


इही हाल मास्क लगाय के हवय । कोरोना अतेक बाढ़े के बावजूद लोगन सावचेत नइ हे। मास्क तो लगाबे नइ करय। अउ लगाही भी ता चौक चौराहा म उही पुलिस के डर मा कि फाइन झन करय, चिल्ल्याय झन, लाठी झन चलाय।  अपन प्राण के वोला कोनो चिंता नइ हे। कोरोना तेज रफ्तार ले बढ़त हवय, प्रशासन फेर लाकडाऊन करत हवय फेर हमन हन कि समझबे नइ करन,सुधरबे नइ करन। लाकडाउन म घलो निकालना हवय काबर बड़े बड़े काम अटके रहिथे जइसे- ककरो गुटका खतम होगे हवय, ककरो बीड़ी, कोनो ल मंजन चाही त ककरो राजश्री खतम होगे हवय। प्रशासन के भय हमर कुछु नइ बिगाड़ सकय। कुल मिलाके ये बाहिर घुमइयाँ मन यदि संक्रमित होगे तब तो फेर भगवाने मालिक हे। पता नहीं कोन कोन जघा फैलाही। अब अइसन मा कोरोना ह फ़इलही  कि काबू म आही ? 


मास्क लगाना या नइ लगाना हिदुस्तानी मन के जन्म सिद्ध अधिकार आय। सरकार के समझाय ले हमन नइ समझन। सुधरना हमर डिक्शनरी म लिखायेच नइ हे। फेर सुधर के का करबो? हमर पारा परोस के मन सुधरिस का.? अउ जेन सुधरगे तेन ल का मिलिस..?  हमरे भर सुधरे ले देश सुधर जही का ? अउ हमरे भर बिगड़े ले देश बिगड़ जही का..? तब फेर बेवस्था जइसे चलत हे वइसने चलन दे।


राजेश हा घर के कचरा ला नाली म डरवात रहय। पूछेव त मोरे बर खखवा गे- कचरा वाले गाड़ी ह 3 दिन होगे हे आयेच नइ हे अब ये कचरा ला घर मा बोज के रखँव। अब ये महात्मा ल कोन समझाय अरे 3 दिन होगे हे ता दू दिन अउ रुक आबेच करही, फेर कहाँ मानना हे। नाली भले बोजा जाय फेर कचरा डारे ल नइ छोड़य। पालिका ल दोष दे बर अइसने मन सबले आघू रहिथे कि पालिका ह सफाईच नइ करवाय। 


ईश्वर के टूरा ह केरा के छिलका म फिसल के उतान गिरगे, मूड़ीच ह फूटगे। अब वो फोर-फोर के गारी देवत हे कोन फलान ढेकान मन खा के ये मेर फेंके हवय आज मोर बेटा ह मउत के मुँह ले बाँचगे। अब वोला ऐना कोन देखाय? काली उही ईश्वर ह केरा खा-खा के छिलका ला रद्दा म फेंकत रहिस। आज अपन ऊपर आय हे ता बगियावत हे।  चलनी म दूध दुहय करम ल दोष दय। 


फेर एक बात हमर माने ल परही- हमन सुधार के उम्मीद ल कभू नइ छोड़न। देश मा चन्द्रशेखर आजाद अउ भगतसिंह के पैदा होय आस जरुर राखथन फेर दूसर के घर मा। अब समझ मे आवत हे कि बाहिर के मनखे मन काबर कहिथे हिदुस्तानी मन महान हे। 


अजय अमृतांशु

भाटापारा

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