Monday 5 October 2020

कोख तलासत गांधी -हरिशंकर देवांगन

 कोख तलासत गांधी -हरिशंकर देवांगन

                 मोर देस के हालत बहुतेच खराब हे , एक घांव कइसनो करके भारत म फेर जनम धरन दव , आंदोलन निपटाके तुरते लहुंट जहूं – गांधी जी हा सरग म गोहनावत रहय । चित्रगुप्त किथे - उहां अवइया हजारों बछर तक .... कोख के एडवांस बुकिंग चलत हे , कन्हो खाली निये , काकरेच कोरा म डारंव ? ब्रम्हाजी समाधान निकालत किहीन के - गांधी जी धरती म जाही , माने धरती के भला होही , एला अपन मन मुताबिक कोख पसंद करन दे , बाकी ल में बना लुहूं । गांधी जी खुस होके धरती म पहुंचगे , कोख के तलास म ।

                गांधीजी रेंगत रेंगत ठोठकगे – येदे घर हा बड़े जिनीस मनखे के आय कस लागत हे । आंदोलन बर पइसा के आवसकता परही , येकरे घर जगा मिल जतीस ते बने होतीस , काकरो करा स्वतंत्रता आंदोलन कस , हाथ लमाये बर नी परतिस । बनइया महतारी ला गांधी जी पूछे लागिस – दई , तोर कोख म , आना चाहत हंव । दई पूछथे - तैं कोन अस बेटा ? गांधीजी जवाब दिस - गांधी अंव दई । दई फेर पूछीस - कोन गांधी ? गांधी किथे - ये देस म अजादी लनइया गांधी अंव दई । दई फेर पचारिस - हमर देस तो अभू अजाद हे बेटा , तैं इहां आके काये करबे ? फेर , मोरे तीर काबर आथस बेटा ? गांधी बतइस - में तोर दुख दूर कर दूहूं दई , संगे संग गरीब मजदूर मन ला मुड़ी उचाके जीना सिखा दुहूं । दई किथे - मोला कहीं दुख निये बेटा । तोर ददा के अतेक अकन कारोबार हे , अतका पइसा , नौकर चाकर हे , मोला काके दुख । तें फोकट झिन आ । बलकी , तैं जब मोर कोख म आबे , त दुख हमर घर म , उही बेरा ले खुसर जही । गांधी अवाक होके पूछथे - कइसे दई ? दई किथे - तैं आबे तहन हमर अतेक बड़ कारोबार ल समहाले छोंड़ , गरीब मजदूर मन ला हक देवाये बर , हमरे खिलाफ भड़काबे , जगा जगा आंदोलन चलाबे , हमरे पइसा उड़ाबे , हमीं ल बरबाद करबे । सही सही टेक्स पटाबे , हमर पुरखा के कमाये चीज बस ल फोकटे फोकट एला वोला बांटबे , अऊ तैं तो चैन के नींद सुत जबे , तोर ददा के का होही , चार दिन के जिअइया तोर बबा , दूयेच दिन म ढलंग दिही , तैं दूसर कोख देख ले बेटा । 

                गांधी सोंचत हे - बड़े जिनीस कारोबारी घर जनम धरे म सहीच म , कहूं ओकर कारोबार म फंदागेंव , त वाजिम म मोर जनम धरे के मकसद पूरा नी हो पाही , भगवान मोला बचां लिस । येदे घर थोकिन छोटे कारोबारी वाला आय , इंहें देखथंव ........ । दई देखके गांधी पूछे लागीस - दई तोर कोख म जगा देबे का या....? मय गांधी अंव दई , तोर जम्मो दुख के निवारन कर देहूं । दई किथे – रहा , तोर ददा ल पूछन दे ... तंहंले बतावत हंव ....। थोरिक बेर म दई किथे - मोर सवाल के जवाब दे , तभे बता पाहूं । गांधी किथे - पूछ न दई पूछ । दई पूछिस - तोर ददा पूछत हे , हमरे असन , जनता ल मिलावटी अऊ नकली माल बेंच सकबे का ? गांधी निही किहीस । दई फेर पूछीस - झूठ गोठिया बता के टेक्स बचा सकबे का ? गांधी निही कहत , मुड़ी डोलइस । दई फेर पचारिस - पुलुस ल गलत सलत बता के अपन ददा ल बचाबे का ? गांधी किथे – में गांधी अंव दई , मोर से अइसन उम्मीद काबर......। दई किथे - बने करे बेटा , आये के पहिली पूछ ले , में तोर पांव परत हंव .......... , तैं दूसर गर्भ देख ले । 

                गांधी मने मन सोंचत हे , बैपारी मन मोर ले नराज हें कस लागथे । अंग्रेज मन बयपार करे बर इहां आय रिहीन , उही मन ला भगा देन , त ओकर संगवारी मन के नराज होना वाजिब आय । में जनम धर तो लंव , जम्मो ठीक हो जही । बड़े अधिकारी के , बंगला म खुसरके दई देखके पूछिस - तोर कोख म आहूं या ? मय गांधी अंव गांधी । दई सवाल उठइस - तैं काये करबे बेटा ? ये देस म अभू कहींच समस्या निये । अऊ जे हे भी , तेकर बर हमर साहेब हे न । बड़का ले बड़का समस्या ल चुटकी म निपटा देवत हे । तोर आवसकता निये । तैं आबे , ईमानदारी जताबे , करिया धन सकेले बर मना करबे , भरस्टाचार करन नी देबे , त देस म समस्या अऊ कतको गुना बाढ़ जही । अऊ हमरे कस हो जबे अऊ करिया धन कमा कमा के बिदेस म कोठी भरबे … तब इही चक्कर म परेसान होवत रहिबे । तोर आय ले कहूं हमीं मन बदल गेन , त हमन परेसान रिबो , हमरे सुख ल गरहन तिर दिही । नानुक फरिया पहिर के , गमछा लपेट के देंहे देखावत किंजरबे , तोला कोन हांसही , हमन ल हांसही , हमर नोनी मन के कमती कपड़ा पहिरे के अधिकार ल नंगाबे । तेकर ले , कन्हो दूसर दरवाजा देख ले बेटा......... । 

               गांधी सोंचिस , बड़का साहेब मन , समस्याविहीन हे । करमचारी के घर खुसरहूं , उही मन रात दिन समस्याग्रस्त रहिथें । पूछतेच साठ दई केहे लागीस - सरकार हमन ला , अतेक तनखा नी देवय बेटा के , तोर जइसे बड़े आदमी ल पढ़ा लिखा पाल पोस सकन । गांधी किथे - दई , मय देस के बेवस्था सुधारे बर आहंव , पढ़हे लिखे खाये पीये बर निही । दई पूछथे - बिन खाये पीये , बिन पढ़हे लिखे का कर डारबे ? हमर ताकत , तोला सरकारी स्कूल म पढ़हाये के हे , जिंहा , न कहींच सीख सकस , न जान सकस , त कायेच आंदोलन खड़ा कर सकबे ? प्राइवेट स्कूल म भेजीच देबो , त खाबो कामे , काये पहिरबो ? दू चार पइसा एती वोती ले कमातेन , तहू ल तैं नी कमावन देबे , त तोर डोकरी दई के दवई कइसे आही ? तैं दूसर दुवारी देख , जिंहा तोर शिक्षा दीछा बने होये ... अऊ आंदोलन चला सकस..... ।  

                गांधी रेंगत रेंगत सोंचत हे , इहां के मनखे मन कतेक समझदार होगे हे , दई बपरी , ठीके कहत हे , कस लागथे.... । महल कस खइरपा , फेर ललचा दीस गांधी के मनला । सुरू के अनुभौ के सेती झिझकीस घला , फेर अपन काम बर धन के समस्या के सुरता आतेच भार खुसरगे । पहिली सोंचिस , बिन पूछे खुसरहूं , पूछथंव त मना कर देथे । फेर , मन नी मानीस , पूछ पारिस - दई तोर कोरा म आतेंव का या ....? दई किथे – तैं मंगइया गांधी अस का बेटा .......। हमन सरी दुनिया ल चंदा बांटथन , तैं एती वोती चंदा मांगत किंजरके , हमन ल बदनामी देबे । तोर ददा ल ठेकेदारी के नावा नावा तरीका सिखाबे , घर बनाबे ते टूटही निही , सड़क बनाबे तेमा खंचका नी होही , बांध बनाबे ते बोहाही निही । अतका ईमानदारी देखाबे , त एके बछर म हमर घर टूट जही , हमी मन सड़क म आ जबो । हमन बेंचा जबो , त तोर बर काये बचा पाबो , तैं किरपा कर , दूसर गर्भ देख ले बेटा । 

                गांधी सोंचे लागिस के , देस म कानून बेवस्था ठीक रहितीस , त समस्या अइसने खतम हो जतीस । चल नियावधीस के घर । दई ला पूछीस - दई मोला जनम देबे या..... ? दई किथे - हव बेटा तोला खत्ता म जनम देहूं , फेर ...... । गांधी ल पहिली बेर कन्हो हव किहीस , वो खुस होतिस , तेकर पहिलीच , फेर शब्द ओकर माथ ल ठनका दीस । गांधी पूछथे – काये , फेर दई ..... ? दई बतइस - अइसे कन्हो दिन नी होय , जब तोर ददा ला , कन्हो नी धमकाये या पइसा के लालच नी देवय । तैं धमकी सुन नी सकस , पइसा लेवन नी देवस ? तोर ददा हा , नियाव करथे त , सरग के रसता खुल जथे , जमीर बेचथे त , धरती म सरग बन जथे । तैं धरम के , नियाव के रद्दा म रेंगइया अस , जेला पहिली जनम म घला सिरीफ ओकरेच सेती , मार दे गे रिहीस । एक घांव फेर , कन्हो महतारी के कोरा सुन्ना झिन होय , कन्हो सोहागन के मांग झिन उजरे , तैं मोर कोरा म झिन आ बेटा । अपन जान म खेल के , नियाव के रद्दा अख्तियार करी लेबोन , त देस चलइया , सायदे कनहों मनखे , जेल के बाहिर रहीं , तब ये देस ल कोन चलाही....... , तैं अकेल्ला चला डरबे ? तोर ईमान ल घरिया , अऊ मोर गर्भ म खुसर या मोर गर्भ के रसता छोंड़ , अऊ दूसर बर रसता बना । कलेचुप निकलगे गांधी जी...... । 

               गांधी सोंचे लगिस .... मोर सोंचना गलत हे का .... ? एकर माने देस के बेवस्था के गड़बड़झाला के पाछू कन्हो अऊ हे , ठीक हे , महूं गांधी अंव , हार नी मानो । पुलुस के घर जनम धरहूं , इंहे पता चलही , कोन धमकाथे । दरोगिन महतारी ला गांधी किथे पूछे लगिस - दई , में गांधी अंव , तोर कोरा म जनम धरतेंव या .... जदि तोर आज्ञा होतीस ते ... ? दई किथे – वा ..... , अतेक बड़ मनखे..... , कहूं बने घर नी देखते बेटा । तोला जनम दे म , कते महतारी गरब के अनुभौ नी करही । गांधी किथे - दई , में भरस्टाचार , अत्याचार अऊ व्यभिचार ल मेटाये करे बर आये हंव या..... । मनखे मन कतेक ससता म बिकत जावत हे , ऊंकर असली किम्मत बताये बर आये हंव । जमाखोरी , हरामखोरी अऊ नशाखोरी ल जर ले मेटाये बर आय हंव । दई किथे – वा .... तोर ददा घला , अइसनहे सोंचथे बेटा । वाह , मोर तलास पूरा होगे कस लागत हे – गांधी मने मन खुस होवत केहे लागीस – त में खुसरत हंव दई । दई किथे - गोठ ल पूरा होवन दे तहन , आबेच निही गा ..... , फेर , तोर कस मनखे ल , ये देस म , लुका के रेहे बर परही । गांधी पूछिस - काबर दई ? मय कन्हो अपराधी थोरेन अंव । दई बतइस - बेटा तैं अपराध करबे तभे तोर नाव उजागर होही । गांधी पूछथे - त अइसनेहे , कन्हो नाव कमाही या ....... ? अइसने मनला धर के जेल म नी डारे का हमर ददा हा ..... ? दई बतइस - इहीच मन ल संरक्षन देना , ऊंकर बूता अऊ करतव्य आय । गांधी मुहुं ला फार दीस – का..... ? दई किथे - तिहीं केहे न अभीच्चे के , मनखे ल ओकर सही किम्मत पहिचाने बर आना चाही , तोर ददा एमन ले अपन सही किम्मत वसूलथे । गांधी किथे - ये तो गलत हे दई .. ? दरोगीन भड़कगे - का गलत अऊ का सही तेला , तेहा सिखाबे रे ....., निकल मोर दरवाजा ले , निही ते , अभीच्चे अंदर करा दूहूं । 

               गांधी जी मने मन बिचारे लगिस ..... बुरई के जर , कहूं अऊ हे तइसे लागथे । धियान अइस , अपन संगवारी मन के लइका के । गांधी जइसे पहुंचीस , दई ओकर पांव परीस । गांधी सोंचिस - अब पहुंचेंव सही जगा म कस लागत हे । खुसी के मारे पूछिस – दई , मोला , तोर बेटा के रूप म जनम देबे या ..... ? दई खुस होके किथे - गांधी मोर संतान बने , एकर ले बढ़के , मोर बर का हो सकत हे । तोरे कारन तोर बबा , कतका बछर ले राज करीस । तोरे कारन , तोर बाबू , आज भी राज करथे , तोरे नाव के सेती , सात निही सत्तर पीढ़ही बर , धन दोगानी जमा कर डरे हाबन । तोर नाव ले कतको असम्भव बूता , छिन म हो जथे , चाहे हम पक्ष म रहन या बिपक्ष म । हम चारा खाथन , त नी पकड़ावन , तोप खाथन तभो नी उड़ावन , कोइला खाथन तभो मुहूं नी करियाये , स्प्रेक्ट्रम खाथन तभो नेटवर्क बने रहिथे – जम्मो तोरे नाव के परभाव आय । ते हमर हथियार अस बेटा , जलदी आ , तोर ददा एक ठिन घोटाला म फंसे हे , सेट नी होवत हे , ते आते त यहू हो जतीस , तंहंले तोर ददा के खुरसी अऊ सत्ता तोरेच ताय .... हमर काय , आज के रेहे काली के गे ...। खुरसी अऊ सत्ता के नाव ले गांधीजी के देहें कांपगे । अजादी के पहिली घला अइसनेच लालच देखइन , फेर सत्ता समहाले के दिन , गली गली भटके बर छोंड़ दीस । गांधी किथे – में सत्ता पाये बर , खुरसी म कुला मढ़हाये बर नी आथंव , भ्रस्ट मनला जेल म डरवाये बर आवत हंव । दई किथे - तैं सत्ता पाये बर नी आथस , त मोर कोरा म काये करे बर जनम धरबे ? सत्ताधारी के लइका सत्ताधारी नी बनही , त ओला ओकर घर जनमना नी चाही । समे के पहिली बता दे ठीक करे , तोर जइसे बेटा पायेके सपना देखे रेहेंव , फेर तें मोर आंखी उघार देस । हमर उन्नति बर तोर नावेच काफी हे , तैं कन्हो जनता के घर जा , उंहे तोर आवसकता हे । दई अपन गर्भ के मुहूं ल तोप दीस ...... । 

               हार खावत सोंचत हे गांधी के , जनता के घर जाहूं , कहूं उहू मना कर दिही तब ? सरग म कइसे मुहूं देखाहूं .... । आखिरी प्रयास करीच लेथंव । दई ला पूछीस - में गांधी अंव , तोर कोख म जनम धरतेंव या...... ? दई किथे - आ बेटा आ , पहिली बेर मोला पूछ के आवत हे मोर संतान , निही ते जेकर जब मरजी होथे चले आथे , हमन रोके के कतको उपई करथन तभो । गांधी पूछथे – का..... ? दई बतइस - हां बेटा , सरकारी असपताल म परिवार नियोजन करवाथन तभो , साल दर साल खसखस ले बिया डरथन । प्राइवेट म कन्हो गरभ निकालथें , कन्हो किडनी ...। फेर , तेंहा मोर घर आके काये करबे ? गांधी बतइस - अमीरी अऊ गरीबी के बीच के गड्ढा ल पाटे बर , आथंव दई ..। दई किथे - तब ते कुछू नी कर सकस बेटा , ये गड्ढा हमर लास म पटाथे , तहूं लास बनबे त हमर कस्ट कबेच मेटाबे ? मोर पहिलीच ले अतका औलाद हे जेला , पोसे पाले बर , कतका पापड़ बेलथंव । तोर इंतजाम कइसे होही ? तैं ठहरे बड़े आदमी । बड़े मन संग तोर दोसती । गरीबी , भुखमरी अऊ लचारी के संग रहिथन हमन , एमा वो ताकत निये जे तोला खड़ा कर सकय । हमरे कस तहूं गुमनामी म झिन सिरा जास , डर लगथे । तोर आये के बड़ खुसी हे बेटा , फेर तोर जनम के खुसी मनाना तो दूर , तोला बिहिनिया बियाहूं , संझा तोर दूध बर , कमाये बर जाहूं । तोला बियाना मतलब सिरीफ , नावेच कमाना हे बेटा । तोर नाव ले , मोर कस जनता के पेट नी भरय । में कमाहूं , तभे मोर रंधनी खोली ले कोहरा निकलही , तब तोर हाथ ले कउंर उठही । तोर कस कपड़ा पहिर के , तोर नाव ले खवइया बहुत नंगरा देखे हन हमन । तोर बर खाये के लानहूं त , तोर नाव ले यहू मन खावत हे कहिके , कन्हो बदनाम झिन करय । जदि ते सहींच के गांधी होबे त , तोला जनता के बेटा आस कहिके , तोर अगुवाई ल कोन स्वीकारही ? ओकर सेती तोला , मय अपन गर्भ म धारन जरूर करिहंव , फेर उहां ले बाहिर नी आवन दंव , अपन भीतर गांधीपन के अहसास करत जी लेहूं । गांधी पूछीस – जनम धरके बाहिर नी आहूं , त तोर तकलीफ ल कइसे मेटाहूं ? दई किथे - सच बतांवव बेटा , तोर पहिली , कतको झिन गांधी बनके , मोर गर्भ म अइन , फेर बाहिर आके नाथू बन गिन । घेरी बेरी गांधी बन के आथे , सपना देखाथें , फेर खुदे सपना हो जथें । हमन मुहूं फार के ताकथन , वो लात मार के निकल जथे । वो भुला जथे हमन ल , जब पंचइत अऊ संसद के देहरी म पहुंच जथे । में नी चाहंव , तहूं बाहिर आ , पंचइत अऊ संसद के हिस्सा बन अऊ भुला जा हमन ला..... । मोर सरत मनजूर हे त मोर गर्भ के दरवाजा तोर बर खुल्ला हे , तैं प्रवेस कर , में उही दिन ले , अपन गर्भ के मुहूं ल अइसे चमचम ले मूंदहूं के , तोला मोर ले कन्हो अलग झिन करे सकय । डर्रागे ..... गांधी जी , पल्ला भागीस........ । एक कोती दई समझिस के , गांधी आना नी चाहत हे , अऊ दूसर कोती , गांधी जान डरीस के , जनता , गांधी बियाना नी चाहत हे , तेकर सेती रात दिन दुख म डूबे परे हे । 

               पहिली बेर अतका हतास अऊ निरास रिहीस गांधी । अभू ओहा गर्भ निही बलकी शांति तलासे लागीस । तभे आश्रम के फुलवारी म ... एक झिन दई बने लइक दिखगे । सोंचिस , एक प्रयास अऊ ... । चुपचाप ओकर पिछू पिछू .... ओकर कुरिया म हमागे । उही दिन मौका मिलगे .... बिगन पूछे  गर्भ म खुसरगे .....। कुछ दिन पाछू .... दई ल जइसे पता चलिस के , वोहा पेट म हे , अब्बड़ेच रोये लगीस । पेट भितरी ले , गांधीजी केहे लगीस – दई ... तैं झिन रो , में आगे हंव , तोर दुख ल मेटा देहूं ..... । दई पूछिस – तैं कोन अस बेटा ? गांधी किथे – मय गांधी अंव दई । दई किथे - तोर आयेच के तो दुख हे बेटा । तैं .... अवैध सनतान अस गा ...... । गांधी किथे - अवैध कइसे दई ..। जे दाढ़ही वाला तोर तिर आथे , तउने मोर ददा आय का ....? दई बतइस - जेला ते ददा कहत हस ..... ओहा काकरो ददा मदा नोहे .... सिरीफ आश्रम प्रमुख आय बेटा । ओ नी चाहे के ..... तैं जनम धर । ओहा अऊ कतको लइका कस ..... तोला पेट भितरी म मार दिही बेटा .... । अन्याय देख .... गांधी अपन रंग देखाना सुरू करीस अऊ केहे लगीस - चल थाना , रिपोट करबो । पेट भितरी के मनखे ला मरइया ..... अइसन मन ला ....... चैन ले जियन नी देन । दई किथे - का कर लेबो बेटा । दू चार दिन जेल म रही ..... बाहिर आही ...... फेर कन्हो अबला के पेट ले खेलही । मोरे बदनामी होही , ओकर काये बिगड़ही । इंसाफ मिलत ले , तोर मोर पीढ़ी ... दुनिया ले चली दे रही । एती दाढ़ही वाला जान डरिस के , दई पेट म हे । उही रात , दई के भात म , दवई मिला के खवा दीस ................। पेट भीतरी म गांधी जी छटपटाये लगीस ..... पेट पीरा म दई रात भर तड़फीस .......  । बिहिनिया ..... जब दई ल होस अइस तब ...... गांधी जी ....... चौक म खड़े .... अपन पुतला म खुसरके सुसकत रिहीस । गांधी अब न सरग जा सकय , न ओला कन्हो बियाये बर तियार ...... । अभू घला ये सहर ले ओ सहर , ये गांव ले वो गांव , ये पारा ले वो पारा , ये चउराहा ले वो चउराहा , किंजरत हे , कन्हो कोख म जगा पाये के उम्मीद म .......। 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर सर जी

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  2. नवा सोच के स्वागत हे। सुग्घर व्यंग्य। बधाई आपला

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