Monday 26 September 2022

व्यंग्य- गनपति उवाच


व्यंग्य- गनपति उवाच

-----------------


सपना म का देखथँव के गनेश विसर्जन होये के पाछू गनपति महराज ह अपन घोसघोस ले मोटाये वाहन मुसवा म बइठे

अपन घर कैलाश कोती जावत हे। कैलाश ह एकाध कोस बाँचे रहिसे तइसने अचानक मूसक ह वापस तुरतुर पल्ला भागे ल धरलिस। गनपति महराज ह अकचकागे के एला काय होगे --- पलटूराम बनत हे---सोजबाय कैलाश कोती नइ जाके जिंहा ले आवत हन तेने कोती जावत हे। गनपति जी ह अरे रुक--अरे रुक कहिते रहिगे फेर मुसवा ह कहाँ रुकने वाला हे? त जइसे बइला गाड़ी वाला ह काँसड़ा ल कसके इँचके गाड़ी ल खड़ा करथे तइसने वोहा मुसुवा के दूनों कान ल जबेड़  के धरिस अउ कस के गुमेटिच त जइसे हमर गाँव शहर म बने सरकारी गौठान ल छोड़के---छोड़के का ,उहाँ कोनो रखइया रइही तब न ?---- बीच सड़क म अघोषित ब्रेकर कस  बइठे गाय-गरुवा मन ल देख के, फटफटी वाला ह कसके ब्रेक मारथे त फटफटी ह चीं चा चूँ करत ठाढ़ हो जथे तइसे मुसवा ह चीं चीं चीं नरियावत खड़ा होगे। गनपति महराज ह लकर-धकर उतरिस अउ डाँटत कहिस-- कइसे --तैं पगला होगे हच का? वोती बर उल्टा फेर कहाँ लेगत हच? मुसवा ह अपन कान ल सहलावत कहिस--हे देवा गुसियावव मत । वो काय हे--- गाँव -शहर ,गली-गली म जिंहाँ-जिहाँ तोला लोगन मन बइठारे रहिन हें उहाँ आनी बानी के खाये ल मिलत रहिसे।पंडाल म एती वोती लोगन मन परसाद ल झोंक के आधा खायँ, आधा बिछयँ  तेला महीं ह पोगरी झोरत रहेंव। संगे संग भक्त मन तोला जेन भोग चढ़ावयँ तेनो ह मोरे अंगत लगत रहिसे काबर के तैं ह तो एको कौंरा चिखत तहाँ ले छोड़ देवत रहे। फल फूल ल तको हाथ नइ लगावत रहे।मोदक ह तको थार-थीर माढ़े रइ जावत रहिसे। बस सब ल मही ह सपेटवँ।देख तेकरे सेती मोर हेल्थ बाढ़गे हे अउ तैं दुबरागे हच।तोर पेट घलो ओसकगे हे। काबर नइ खावत रहे देवा? 

       मूसक के बात ल सुनके गनपति जी हा लम्बा साँस लेके कहिच--मैं अपन मन के दरद ल का बताववँ तोला। वो जतका मोदक चढ़त रहिसे न वो सब मिलावट वाले बेसन के बने राहयँ।घीव तको मिलावट वाले अशुद्ध।एके घंटा म महके ल धर लय। लोगन मन तेल के भाव अब्बड़ बाढ़गे हे कहिके डड़हेल तेल म बना के पूड़ी चढ़ावत रहिन हें। ये मनखे मन ल भला कोन समझावव ,दारू के भाव कतको बाढ़ जवव --ब्लेक म तकों ले के पी लेहीं ।वोकर बर मँहगाई नइ जनावय।बस चिल्लाय भर बर--ओड़हर करे भर बर  मँहगाई हे। मंत्री ल लेके संतरी तक मन के तनखा उपर तनखा---डी ए उपर डीए बाढ़त हे तेला त नइ गोठियावयँ।मुँह सिला जथे। मोर जानबा म मँहगाई डायन ह सिरतो म गरीब मजदूर अउ किसान बस मन ल चूहकथे -बाँकी मन ल बड़े ददा मानथे। हूँह---खीर तको मिलावटी दूध म चूरे सिट्ठा के सिट्ठा। फल-फूल तको रसायन म पके वाला। तोला पता नइये का बइठकी के दिन भुँखाय रहेंव त भोग ग्रहण कर परेंव तेन दिन ले पेट अँइठत हे।मोला कब्ज होगे हे अउ तोला हरियर सूझे हे---चल लहुट अउ जल्दी चल कैलाश कोती।गनपति जी ह थोकुन गुसियावत कहिस।

      जइसे कोनो चमचा ह अपन स्वारथ सिधोय बर नेता के अउ चेला ह गुरु के पालिश मारथे ओइसने मुसवा ह दूनों हाथ ल जोड़के कहिस--- हे स्वामी बुरा झन मानबे। अभी तो  कतेक भक्त मन तोर मूर्ति के विसर्जन नइ करें यें।अभी तीन-चार दिन अउ लागही।वो बेचारा मन के भावना के तको ध्यान रखना रहिसे। तैं तो लकर-धकर लहुट गेच। चल भइ लहुट के उँहचे जाबो अउ जब तक पूरा पूरा विसर्जन नइ हो लेही वापस नइ आवन। रंग रंग के कार्यक्रम तको देखे ल मिलही, हास्य व्यंग्य के नाम म एको ठन फूहड़ कवि सम्मेलन तको सुने ल मिल जही।

मुसवा के बात ल सुनके गनपति जी भन्नागे अउ कहिस---वाह रे मूसक बने गुरुमंतर देवत हस। वोमन महिना भर ले विसर्जन करत रइहीं त मैं सबके ठेका ले हँव का ? वो तो माता श्री ह जबरदस्ती भेज दिच त आगे रहेंव। अउ लोगन के भावना के कद्र करे बर जगा जगा प्राण प्रतिष्ठित होगे रहेंव।रहिस बात कार्यक्रम के त दिन रात उसनिंदा के मारे मोर आँखी झप झप करत हे--माथा फटे बरोबर लागत हे। बइरी मन ल भक्त काहत तोला लाज तको नइ लागय---वो मन मोर भावना के कभू ख्याल रखिन का? रात दिन पोंगा में आनी बानी के गीत लगाके ---कतको झन दारू पीके कइसे नाचत राहयँ।न तो कोनो लाज शरम न तो ककरो लिहाज। अउ वो मेचकी नान नान टूरी मन बिच्छी मार दिच वो वाला गाना म कइसे फूहड़ डाँस करत रहिन हें।अइसने होथे सांस्कृतिक कार्यक्रम ह---का बताववँ -मोर हालत ह तो मूँद ले आँखी तोप ले कान वाले होगे रहिस हे।बइठारिन हे तेन दिन अउ विसर्जन करिन हे तेन दिन देखे हच---कतका ऊँचा अवाज म डीजे ल बजावत रहिन हें। उँकर भडंग-भडंग म मोर हिरदे धक धक धक धक धड़के ल धर लेवत रहिसे।मोर जम्मों नाक कान ह बोजागे हे।भैरा होगेंव तइसे लागत हे। का बताववँ ---सोंड़ म लपेट के जम्मों झन ल कचार देतेंव तइसे लागय।फेर का करबे मोर असली भक्त वो छोटे छोटे लइका मन के मया के मारे कुछु नइ करेंव।

   गनपति महराज के बानी बरन ल देख के मुसवा सकपकागे अउ कहिस--ले चल बइठ भइ। गनपति महराज बइठिस तहाँ ले मूसक ह सीधा कैलाश गुफा के मुँहाटी म आके रुकिस। गनपति महराज ह अपन महतारी ल अवाज लगाइस---माता श्री--माता श्री--माता श्री। वोकर टोंटा ले बने अवाज निकलतिस तब तो सुनतिस माता पार्वती ह। टोंटा ह गुलाल के रिएक्शन म भँसिड़ियागे राहय। माता श्री ह नइ सुनत ये कहिके  वोहा गुफा के भीतर चलदिस। माता पार्वती ह  बइठे मोदक बनावत राहय। गनपति ल देख के खुश होगे अउ दूनों बाँह म पोटार के वोकर माथा ल चूमे ल धरलिस तहाँ ले अपन गोदी म बइठार के पूछिस--अउ सब बने बने न लाला? ओतका ल सुनके गनपति के आँसू टपकगे---कहाँ बने बने माता श्री। देखत नइ अच मोर हाल  बेहाल हे। हाथ गोड़ मनमाड़े खजवावत हे।गला बइठगे हे।

  हाय!हाय!! ये कइसे होगे बेटा? माता पार्वती ह दुलारत पूछिस।

कइसे होगे---कइसे नइ होही ---आज विसर्जन के बेरा कुंटल-कुंटल गुलाल ल उड़वायें हें दुष्ट मन। जम्मों मोर नाक कान अउ सोंड़ म भरगे हे। साँस लेये म तको दिक्कत होवत हे। उपर ले तरिया, नरवा नदिया के गंदा, बजबजावत पानी म मोला मनमाँडे चिभोरे हें। ये देख मोर पूरा शरीर म बड़े-बड़े डोमटा होगे हें जेन मनमाड़े खजवावत हे। कोनों दवई होही त लगा दे--अउ हाँ पेट गडबड़ हे वोकरो दवई दे --गनपति ह कहिस।

  हहो दवई लगा देहूँ---दवई खवा पिया देहूँ फेर तैं हा भक्त मन ल उल्टा पुल्टा काहत काबर हच।उँकर आस्था ल ठेंस पहुँच जही।

 अउ मोर आस्था के का होही महतारी।हम ला कतका ठेंस पहुँचे हे तेला हमी जानबो। मोर पूजा करनेच हे त अपन घरो घरो बइठार के शांति पूर्वक पूजा कर लेतिन।मोर अतेक बड़े बड़े मंदिर बने हे तिंहा जाके पूजा कर लेतिन।उहू नइ हो सकतिच त मानसिक पूजा कर लेतिन।मैं हँसी खुशी पावा मान लेतेंव।  एक दू जगा बइठा लेतीन त का होतिच।गली-गली, पारा-पारा पचासो जगा आडंबर करे के का जरूरत हे।सब चंदा के चक्कर आय तइसे लागथे मोला।दर्शन कम हे अउ प्रदर्शन जादा हे।जेने मेर पाइन तेने मेर--मंडप गाड़ देथें --नाली के तीर म--अद्दर कच्चर तरिया पार म------काला बताववँ मैं-- 

   ओहो बड़ दुख के बात हे लाला फेर का करबे हमन ल भक्त अउ भगवान के रिश्ता ल निभाये ल परथे। भक्त मन बर थोड़ बहुत कष्ट सहे ल परथे--माता ह समझावत अउ शांत करावत कहिस।

  ले ये मैं दवई देवत हँव तेला सरी अंग म चुपर लेबे ---सुखाही तहाँ ले मानसवोर म रगड़-रगड़ के नहाँ के आबे--जम्मों फोड़ा-फुंसी अउ खुजली ह तुरते मिटा जही --अउ एक ठन शीशी म दवई देहूँ तेला एक कप पी लेबे -पेट के जम्मों बीमारी दूर हो जही। अइसे कहिके महामाया ह आँखी ल मूँद के ध्यान धरिस तहाँ ले एक झँउहा गोबर  अउ एक बोतल लाली द्रव हाजिर होगे।

 गनपति ह पूछिस--ए काये माता श्री?

इही मन तो दवई आय ग ---देहा गोबर ये अउ देहा गोमूत्र ये।छत्तीसगढ़ ले मंत्रशक्ति म मँगाय हँव।ले आव गोबर ल चूपर देथँव ।ये ह एकदम खाँटी हे।मुँड़मिंजनी माटी ल मिलाके बेंचे वाला नोहय।अउ एला एक कप तुरते पीले--एकदम ताजा अउ शुद्ध हे ,कुँआ बोरिंग के पानी म माखुर पानी मिलाके बेंचे वाला नोहय।अउ तहाँ ले झटकुन नहाँ के आजा।तोर बर छप्पन भोग बनावत हँव।

      गनपति ह नहाँ के अइस तहाँ ले पेट भर खाके डकारत कहिस---देख माता श्री तैं हा मोर तथाकथित भक्त मन ल बने समझा देबे नहीं ते मैं अगले बरस इहाँ ले गनेश उत्सव टेम म बिल्कुल नइ जाववँ ।भले वोमन ठकठक ले बेजान मूर्ति ल पूजत रइहीं। अउ हाँ तहूँ ह नवरात्रि म चल देथच त मोर बर अबड़े कस मोतीचूर के लाड़ू बनाके राख दे राह। 

माता पार्वती हा हव कहिस।

  तहाँ ले गनपति ह पूछिस--कइसे माता तोर नवरात परब म तको कार्यक्रम होथे का। 

 हाँ होथे ग। गरबा के धूम रहिथे। फेर उहू म अब---

फेर का माता---साफ साफ बता न? गनपति ह पूछिस।

अब गरबा म तको गड़बड़ी होये ल धर लेहे--माता पार्वती ह थोकुन उदास होवत कहिस।

अचानक नींद खुलिस तहाँ ले झकनाके उठ गेंव।घड़ी ल देखेंव त बिहनिया के चार बजत राहय। ये ब्रह्मबेला के सपना के बारे म अउ गनपति के जतका उवाच रहिस हे तेकर बारे म सोचत बइठे हँव।


चोवा राम 'बादल'

हथबंद, छत्तीसगढ़


No comments:

Post a Comment