साहित्यिक तर्पण
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" जे बतावै सार जिनगी के उही ,
आज जिनगी ले अघा के रेंगदिस "
ओहर सुरता मं हमर रहिही सदा ,
जेहर ग़ज़ल अउ गीत गा के रेंगदिस । "
जनम छतीसगढ़ मं ते पाय के छत्तीसगढ़ अउ छत्तीसगढ़ी उंकर सांस मं महकत रहय , ओइसे तो उन गुजराती भाषी रहिन फेर हिंदी के आदर , सनमान मं रत्ती भर कमी नइ रहिस अतके नहीं उर्दू अदब के जब्बर जानकार रहिन । चित्रकला अउ संगीत उंकर कलम के संगे संग चलयं । हां ..आज हमन पितर पाख मं आखर के अरघ देवत हन मुकुंद कौशल ल ।
सबले पहिली उन लिखिन " लालटेन जलती रहे " ठीके लिखे रहिन तभे तो ए धरा धाम छोड़त तक लालटेन जलत रहिस उंकर जाए के बाद आखिरी किताब वैभव प्रकाशन रायपुर ले छप के आइस " ज़मी कपड़े बदलना चाहती है । " किताब मोर हाथ मं आइस त गुनेवं कपड़ा नहीं देंह बदले के बात कहे रहिन मुकुंद कौशल उही .....गीता के बात ..
" वासांसि जीर्णानि यथा विहाय ,
नवानि गृह्णाति नरोपराणि ,
तथा शरीराणि विहाय नन्या
नवानि गृह्णाति नवानि देही । "
बहुत दिन ले उंकर शरीर दुख देवत रहिस तभो चलत फिरत , लिखत पढ़त रहिन बल्कि पहिली ले बने हो गए रहिन ....भारी खिलंदड़ा सुभाव रहिस , कतको बीमार रहयं भेंट कर जवइया मन संग हांस के बोलतिन अतके नहीं साहित्य चर्चा करत दुख तकलीफ ल खुदे भुला जावंय , अवइया घलाय ल भुलवार देवयं ..।
छत्तीसगढ़ी ग़ज़ल ल परवान चढ़ाए के काम जनम भर करिन ...ग़ज़ल मं छोटे बहर होवय चाहे बड़े देश राज , समाज , संस्कृति , राजनीति , सामयिक घटना प्रसंग मन के चर्चा जरूर करयं ...जबकि ग़ज़ल हर मूल रूप से प्रेम परक रचना आय ।
बानगी देखव न " मोर ग़ज़ल के उड़त परेवा " , " बिन पनही के पांव " ....
" रहिजा पहिली जम्मो चूल्हा मं आगी सुलगावन दे ,
मनखे मनखे के चेहरा मां हांसी ला बगरावन दे । "
सबके भूख पियास , हांसी खुशी के सरेखा करइया कवि मुकुंद कौशल ...। फरेबी मन के चिन्हारी करवाथे त साहित्यकार के जिम्मेदारी के सुरता भी तो करवावत चलथें , अइसने मनसे अपन कलम ल हथियार बना के समाज के विसंगति मन से लड़े बर आघू आथे त गोहार पार के लोगन ल जगावत चलथे ...
" संगी संगवारी हो हमला ,जुरमिल आघू बढ़ना हे ,
कहिथे ते बात सियनहा के , पतियाना घलव जरूरी है । "
जीवन दर्शन छोटे बहर मं जगर मगर करत दिखथे .....ग़ज़लकार के कलम के रवानी देखे लाइक हे ..
" कर पारे गलती तेकर बर
थोरिक तो पछता ले बाबू । "
आगू आगू जीवन हे
पाछू पाछू काल हवै । "
" जे दिन आही , तोर बुलउवा ,
माढ़े रहिही , जंतर मंतर .। "
उन तो छांव मं जुड़ावत जिये के सपना न देखिन न हमला देखाइन ...जांगर टोर कमाये के उदिम सीखोइन ..तभे तो धान के कटोरा भरही किताब लिखे हें " घाम हमर संगवारी ।" गीत घलाय तो सुनावत हे जी ....
" धर ले रे कुदारी गा किसान ,
डिपरा ल खन के खचंवा पाट देबो ना ।। "
मुकुंद कौशल के रचना संसार मं किसिम किसिम के फूल महंमहावत हे उन लिखे हें " हमारी भाषा हमारी अस्मिता है , पहचान है , स्वाभिमान है । भारत जैसे बहु भाषी देश में हम किसी अंचल विशेष की भाषा , साहित्य , संस्कृति की चर्चा करके समग्र भारत का मूल्यांकन नहीं कर सकते । भाषाई औदार्य जनचेतना के विकास का प्रथम सोपान है । "
अपन अंतिम ग़ज़ल संग्रह के विस्तृत भूमिका मं अपन जन्म से लेकर जेन साहित्यिक , सांस्कृतिक संस्था मन से जुड़े रहिन , जेन मन से जौन भी सीखिन सबो के उल्लेख करे हें ...। भूमिका पढ़ के समझेंव के हिंदी ,उर्दू , छत्तीसगढ़ी , गुजराती के समकालीन लिखइया मन के नांव सहित कृतज्ञता जताए हें ...आज गुनत हंव उनला अपन जाए के दिन लकठिया गए के आभास हो गए रहिस का ? आप मन ए किताब के भूमिका ल पढ़िहव तभे पतियाहव । उर्दू सबो झन नइ पढ़ पांवय तेकरे बर उन ए किताब ल उन देवनागरी लिपि मं लिखे हें । उंकरे शब्द मं उनला सुरता करत हंव ....
" हिरदे के चौंरा मां सुरता के दीया ला बारत हे ,
मन के गहिरा , बांह पसारे , कब ले दोहा पारत हे । "
मुकुंद कौशल ..बड़े भाई कहत रहेंव ..त मुंह भर असीस पावत रहेंव । जानत , चिन्हत तो पचास साल पहिली ले रहेंव काबर के उन जांजगीर के कवि सम्मेलन मं जावत रहिन कभू विमल पाठक जी त कभू आंनदी सहाय शुक्ल त कभू मुस्तफ़ा हुसैन संग ..स्टेट बैंक परिसर के गणेश चतुर्थी कवि सम्मेलन के सुरता कभू भुलाए नइ सकवं । भिलाई के घर मं भैया संग भेंट करे आइन त कहे रहिन " कलम उठाओ सरला ! कुछ लिखना शुरु करो , शील जी की उत्तराधिकारी हो तुम । " तब तो नइ लिखे पाएवं फेर सन् 2003 / 04 मं मोर पहिली किताब " वनमाला " के विमोचन मं आइन त बहुत असीसिन उनला सदा दिन मोर से शिकायत रहिस के मैं कविता लिखे बर छोड़ काबर देहेंव उंकर शिकायत ल दुरिहाये बर ही उंकर एक ठन ग़ज़ल संग्रह के भूमिका लिखे के दुस्साहस करे हंव ...जानत हंव उंकर असन वरिष्ठ ग़ज़लगो के बारे मं लिखना सुरुज ल दीया देखाना आय ।
कमी बेशी हर आदमी मं होथे दूसर बात सबो लिखइया ,साहित्य के सबो विधा मं नइ लिखे सकय ।
का लिखवं , कतका लिखवं फेर आज तो पानी पितर के दिन ए ...त उन तो ...
" जे मया करही उही पाही मया ,
बात अतका भर बता के रेंगदिस । "
सरला शर्मा
दुर्ग
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