Wednesday 31 August 2022

सुन मोर सुवा ना -सरला शर्मा

 सुन मोर सुवा ना -सरला शर्मा

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   हमर छत्तीसगढ़ के लोकगीत मन मं सुवा गीत हर नारी मन के सुख दुख के जनारो देवइया अकेल्ला गीत आय जेमा बाबू लइका मन के कोनो भूमिका नइ रहय दूसर बात के एहर समूह नृत्य घलाय आय तीसर बात के एकर प्रस्तुति मं कोनो किसिम के   बाजा ( वाद्य यंत्र ) के उपयोग नइ करे जावय । 

     एक ठन चरैहा ( टुकनी ) नहीं त दौंरी मं चाउर भर के दू ठन सुवा बैठारे जाथे जेला शिव पार्वती के प्रतीक माने जाथे काबर के गौरा गौरी बिहाव के समय ही सुवा गीत सुनाथे । पारा मोहल्ला के बहिनी भौजी मन टुकनी के चारों मुड़ा गोल घेरा बना के सुवा नाचथें । कोनो कोनो गीत हर सवाल जवाब शैली मं घलाय होथे त आधा झन मन निहुर के नाचत रहिथें , आधा झन मन खड़े खड़े रहि के सवाल करथें जेकर जवाब निहुर के नचइया मन देथें । विशेषता ए हर आय के हांथ के ताली अउ गोड़ के थाप दूनों एक संग परथे " तरी नरी नहना मोर तरी नरी नहना रे सुवा ना " शीर्षक  डांड़ रहिथे । 

     राम कथा , कृष्ण जन्म , शिव पार्वती बिहाव ,राजा हरिश्चंद्र कथा असन जुन्ना पुराण कथा मन के प्रसंग सुवा गीत मं गाये जाथे । समय बदलत गिस धीरे सुस्थे समाज मं घटित प्रासंगिक घटना मन घलाय एमा जघा बनाए लगिन विशेषकर महात्मा गांधी के चरखा , ललमुंहा अंगरेज त आजकल के साक्षरता अभियान असन घटना मन । संगवारी मन ! अब चिटिक पाछू डहर चलिन के कोन परिस्थिति मं सुवा गीत के जनम होए रहिस होही । अईसे लागथे के दुलौरिन नोनी गवन पठौनी के बाद जब ससुरार आवत रहिस होही त उंहां तो सबो झन अनचिन्हार रहंय , दूसर बात के लइकन चल देवयं खेले कूदे त सियान मन खेती किसानी मं लग जावयं , बपुरी नवा बहुरिया घर मं अकेल्ला काकर  तीरन बोलय बतरावै त परछी मं नहीं त अंगना के ओरवाती के पिंजरा मं बइठे सुवा संग सुख दुख गोठिया लेवत रहिस होही ...। सास ननद के बोली ठोली , देरानी जेठानी के हिजगा पारी , त धनी के प्रेम पिरीत अतके भर नहीं मइके के सुरता दाई ददा के मया दुलार , संगी जंवरिहा मन के हांसी ठठ्ठा काकर तीर कहय सुनय , काला बतावय त सुवा ल सुना के जी जुड़वा लेवत रहिस होही ...उही हर सुवा गीत के रूप मं उजागर होइस होही । 

     सुवानाच के ओढ़र मं नोनी लइका मन ल चिटिक घर ले बाहिर निकले के मौका मिल जाथे अतके नहीं नाचे गाये के अपन गुन ल बताए के रस्ता मिल जाथे । इही नहीं पारा परोस के नोनी लइका मन ल जुर मिल के उदिम करके गौरा गौरी बिहाव करे बर चार पैसा घलाय मिल जाथे , परभरोसी नोनी लइकन के मन मं अपन बल बूता मं चरियारी काम करेके मौका घलाय मिल जाथे जेहर उंकर संगठन शक्ति अउ प्रबंधन के जब्बर उदाहरण आय । 

    कोनो कोनो सुवा नाच मंडली मं टुकनी मं बड़े हीरामन सुवा के चारों मुड़ा पांच ठन छोटे छोटे सुवा राखे के रिवाज हे जेहर आत्मा अउ मनसे के पांचों इन्द्रिय के प्रतीक होथे । अईसे भी तो  सुवा ल आत्मा राम घलाय कहिथें , दूसर बात के आत्मा ही हर तो पांचों इन्द्रिय ल बस मं करके परमात्मा ल पाए के उदिम करथे एई हर सुवा गीत के दार्शनिक पक्ष  आय । 

   सुवा च हर सबो पंछी पंखेरू मन मं ऐसनहा जीव आय जेहर मनसे के बोली सुनथें , समझथे , बोलथे । थोरकुन अउ पीछू चलिन त पाबो के महाभारत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास गुनी मानी मनसे रहिन त अपन बेटा के नांव शुकदेव काबर राखे रहिन ओहू वो बेटा के जेहर अपन बाप ले जादा गुणधर रहिस , ज्ञानी ध्यानी रहिस । मन मं सवाल उठथे के भाषा के जानकार , बुधियार व्यास मुनि ल आउ कोनो नांव नइ मिलिस के शुक ( सुवा)  नांव धरिन ? जवाब मिलथे के सुवा ज्ञानी ध्यानी जीव आय , आत्मा के प्रतीक आय तभे तो आत्मज के नांव सुकदेव राखे रहिन । रामायण के लिखइया वाल्मीकि के आश्रम तुरतुरिया के पिंजरा मं झूलत सुवा  लव कुश संग रामायण गान करय , सीता के सिखोये राम राम रटय । 

   श्रीमद्भागवत पुराण मं सुक सनकादिक ऋषि मुनि मन के ज्ञान सभा के वर्णन मिलथे जिहां इहलोक परलोक , गति मुक्ति , आत्मा परमात्मा के बारे मं गहन गम्भीर चर्चा चलय । बड़े बड़े सन्त महात्मा ये सभा मं सत्संगति लाभ लेवयं । 

  संस्कृत के विद्वान साहित्यकार बाणभट्ट के उपन्यास ' कादम्बरी ' मं वैशम्पायन नांव के सुवा के प्रसंग आथे जेहर बुधियार मंत्री असन राजा ल सलाह मशविरा देवय । अतके नहीं रानी के सुघराई के वर्णन करय , गति मुक्ति के गोठ बात करय , समझावय । 

      " शुकनासोपाख्यान" के सुवा हर तो बड़े बड़े गुरुजी असन  सिखौना देवय जेहर इहलोक परलोक दूनों बर संजीवनी बूटी के काम करय । अतके नहीं " शत सहस्त्र रजनी " मं नारी घाती राजा ल उचित शिक्षा देहे बर मंत्री के बेटी अपन जीव प्राण ल होम के राजा संग बिहाव करथे त छोटे बहिनी अउ सुवा ल माध्यम बना के हजार ठन कहानी राजा ल सुनाथे ..विशेषता ये आय के सबो कहानी मंगला चरण ले शुरू होवय फेर सबके कल्याण होवय संग खतम होवय । इहां सुवा हर कल्याण करइया , साखी रहइया पखेरु के भूमिका निभावत दिखथे । 

            तइहा दिन ले आज तलक सुवा ल सबो झन कल्याणकारी , उचित शिक्षा देवइया , सुख दुख के साखी अउ परमात्मा संग भेंट कराने वाला , संदेश वाहक पाखी समझथें , मानथें । 

      सुवागीत के लौकिकता अउ पारम्परिकता ऊपर कोनो किसिम के उजर आपत्ति नइये फेर एकर दार्शनिक , पारलौकिक पक्ष उपर घलाय ध्यान देना चाही । सुवा लोकगीत , लोकनृत्य के पारम्परिकता , ऐतिहासिकता अउ लोकमंगल के भावना उपर विचार करे के , संरक्षण , संग्रहण  अउ विकास बर ठोस कदम उठाए जाना चाही त शासकीय संरक्षण के संगे संग एला राजकीय लोकनृत्य के सम्मान मिलना चाही । छत्तीसगढ़ महतारी के दुलौरिन बेटी मन के लोक नृत्य ल सम्मान देना छत्तीसगढ़ के माटी के  वंदना होही । 

  साभार **** 'आखर के अरघ ' लिखइया ....सरला शर्मा 

   प्रस्तुति 

सरला शर्मा ( दुर्ग )

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