Thursday 18 August 2022

निबन्ध-*रसा*

 निबन्ध-*रसा*


जीवन मा आनंद हे, यानि रस हे। तनधारी जीव के जनम ले मरन तक रस हे। रसपान तो हर जीव करथे, फेर ये बात अलग हे कि जीव जगत मा मनखे जात भर ला अपन भावना ला व्यक्त करे के शक्ति मिले हे।

संसार मा रस हे। रस हे तभे जिनगी हे अउ जिनगी हे तब तक रस हे।नवजात के किलकारी सुन महतारी अपन प्रसव पीरा भूला के वात्सल्य रस मा भर जाथे। परिवार आनंद के अनुभूति करथे। वइसने कोनों जीव अउ मनखे के मरना हर करुण रस के कारण बनथे। यानि मनुष्य ला अपन जनम -मरन के अंतराल मा रस के अनेक रूप देखे सुने अउ अनुभव करे बर मिलथे।तभे तो काव्य शास्त्र मा ग्यारह प्रकार के रस समाहित करे गए हे। जिनगी के कई रंग हे, हर रंग के अपन एक रस हे। अउ रस के बिना जिनगी अधूरा हे। 

                  रस ला छत्तीसगढ़ी मा *रसा* घलो कहिथे।कुछु खाय पिये के चीज ला देख के मुँह पनछा जथे यानि रस हे, रसा हे।

   साग-भाजी के बात हे तो कतको झन भुँजवा मा रस लेथे अउ कतको ला चपचपहा-रसावाला चाही।  कतको साग - भाजी मन बिना रसा के मिठाबे नइ करै। अउ बिना रसा के बनै घलो नहीं। बफौरी, बटकर डुबकी, इड़हर, कढ़ी मन के कल्पना बिना रसा के नइ किये जा सकै। अइसन अम्मटहा साग मन ला चुहक-चुहक के खाय के अपन मजा हे। मैं जानत हँव पढ़त-पढ़त मुँह मा लार आ गे होही, वहू एक प्रकार के रस ही आय जउन हर मुँह ले टपके बर धरत होही।

                  हमर घर गौटनींन हर पीठ ला खजवा-खजवा के  उकाल डरे रहिस।खर्-रस खर्-रस खजवायले मार नख के चिन्हा पर गए रहिस। तभो ले खजवायच परत रहिस, काबर परिणाम के संसो नइ रहिस,आनंद के वसीभूत रहिस।नतीजा बाद मा देखे जाही, अभी तो खजरी ला खजवाय मा आनंद के सीमा नइ हे, काबर जो रस मिलत हे, ओ ला वोकर सिवा कोनों नइ जान सकै। 

                छत्तीसगढ़ी मा अउ भी कई प्रकार के रस हे जउन हर वो शब्द मा प्रकट होथे। खर्रस-खर्रस यानि खजरी ला खजवाय के रस, झर्रस-झर्रस झरफर-झरफर यानि अपन सुर मा लकर-धकर रेंगे के रस, हर्रस-भर्रस यानि कोनों ले बिना सोचे समझे अन्ने-तन्ते गोठ, झगरा-झंझट, गाली-गलौच, उल्टा-पुल्टा करे के रस अउ चर्रस-चर्रस यानि मारे अउ मार खाय के रस। 

               फर यानि फल हा रसालू होथे रसदार होथे, तभे मजा आथे, फेर निरस आदमी ले सब दुरिहा भागथे।एकर सेती मनखे ला सहज अउ सरस होना जरूरी हे। आदमी ला जब काकरो  उपर तरस आथे तो उपकार घलो करथे, अउ कतको मनखे अपन गलत करम ले  घर परिवार ला तरसे बर मजबूर कर देथे। वक्त-बखत मा अइसन आदमी उपर फेर कोनों ला तरस नइ आवय।

आदमी रसिक अउ रसिया घलो कहाथे।फेर मनखे के प्रकृति के आधार मा एकर सही अउ गलत दूनों अर्थ निकलथे। जिनगी ला रसमय होना जरूरी हे। तभे मजा हे।काम-धाम अउ जीविकोपार्जन के साथ-साथ शौक बर समय निकाल के जीवन मा रस लाये जा सकथे। गाना-बजाना, नाचना, खेलना-कूदना, कलाकारी, बागवानी, पढ़ना-लिखना, सीखना, कुछु-कुछु बनाना अइसन सैकड़ों चीज हे जेन हर जीवन ला रस देथे, खुशी देथे।अउ तभे तो जीवन हे।तभे तो जीवन के आनंद हे। 

           ये हमर शरीर बर खून घलो एक रस आय। धरती बर पानी-बादर रस आय। हमर काया के पाँचों इंद्रिय अनुभूति के रसपान करथे तभे हमर मगज काम करथे। 

ए प्रकार ले जीवन में रस के बहुत महत्व हे। रस के बिना जीवन निरस ही कहाथे। रंग अउ रस के डेरा हे संसार मा। रसदार बने रहे मा ही आदमी हर आदमी ए। नकारात्मकता ला त्याग के सकारात्मकता के तरफ बढ़ते रहना चाही।राग अउ रंग के ये दुनिया मा रस बचा के रखौ, इही मा सब कुछ हे।काबर राग, रंग अउ रस, ये तीन चीज ही प्राण-शक्ति के पहिचान आय। 


-बलराम चंद्राकर भिलाई

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