Thursday 25 August 2022

धान के फसल ल सधौरी खवाए के उत्सव - पोरा तिहार*




*धान के फसल ल सधौरी खवाए के उत्सव - पोरा तिहार*



*- दुर्गा प्रसाद पारकर*



छत्तीसगढ़ म बारो महीना तिहार बार मनाए के परम्परा हे। सबो तिहार ह इहां के लोक जीवन के कहानी कहिथे। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन के आराध्य श्रम आय। श्रम ले सराबोर कृ़षि कार्य के अलग चिन्हारी हे। छत्तीसगढ़ म कृषि संस्कृति अउ रिषी संस्कृति दुनो हे। कृषि संस्कृति म मुख्य फसल धान आय। तिही पाय के छत्तीसगढ़ ल धान के कटोरा केहे जाथे | जउन किसम ले बेटी के गर्भवती होय ले मइके वाले मन सात महीना म सधौरी खवाए बर आनी बानी के व्यंजन बनाके ओकर ससुराल जाथे उही किसम ले धान के गर्भ धारण करके ले ओला सधौरी खवाए बर किसान खेत म चिला चघाए बर जाथे। 

     पोला पर्व भादो महीना के अमावस्या के मनाए जाथे। पोला ल पोला पाटन , कुशागृहस्थी, कुशा पाटनी घलो केहे जाथे। महाराष्ट्र म पोरा तिहार ल पिठौरी केहे जाथे।

    पोला तिहार के उपर विद्वान मन कतनो  व्याख्या करे हे फेर तुलसी देवी तिवारी के मुताबिक पोरा तिहार मनाए के इतिहास ह भविष्य पुराण म मिलथे। बहुत पहिली के बात आय एक झिन देवधर नाव के ब्राम्हण रिहिस। अपन गोसइन बेटा शंकर अउ बहू बिदेहा के संग राहय। सब बने रिहिसे फेर बिदेहा के लइका ह नइ नांदत राहय। छै झिन लइका मन जनम के बाद जब यमराज घर चल दिन। पंडितिन ह अपन नाती - नतरा के मुंह देखे बर तरसत राहय। बिदेहा ह अपन आप ल दोषी मानत रिहिस। बिदेहा (बहू) के कोख ले एको झिन लइका नांदत नइ हे | वंश परम्परा ह कइसे आगू बढ़ही कहिके ओला घर ले निकाल दिस। छै झिन लइका ल गंवाए के बाद बिदेहा दुख ले उबरे नइ रिहिस उपराहा म ओला घर परिवार वाले मन घर ले निकाल दिन। दुब्बर बर दु अषाढ़ कस होगे। अब तो रोवत - रोवत बिदेहा ह जंगल डाहर निकल गे। जंगल म एक ठिन ठीहा असन दिखिस , ठीहा करा जाए बर आगू बढ़त रिहिसे | साधु मन ओला देख के बिदेहा ल उहां जाए बर स रोकिन, ओती  जोगिन दाई के रहवासा हे ,जान डरही ते तोला खा डरही।

बिदेहा किहिस मय ए संसार ल छोड़ना चाहत हवं, बने होही जोगिन दाई मोला खा डरही ते। बिदेहा उही ठीहा करा जा के लुका गे। रात कन जोगिन दाई मन अइन त मनखे के गंध ल पा के जान डरिन कि हमर अलावा ये मेर कोनो अउ हवय। बिदेहा के दुख ल सुन के जोगिन दाई मन ल दया आगे। ओकर बाद उमन ओकर छैवो लइका ल जिया दिन। घर आए के बाद देवधर पंडित ह बड़ा उत्सव मनाए गिस। बहिनी बेटी, सगा, सोदर मन आन खेल खिलौना लाइस ताहन लइका मन खेलिन। बाबू मन नांदिया बइला मन संग खेलिन त नोनी मन चूकी पोरा संग खेलिन इही दिन ले पोरा तिहार मनाए के परम्परा चले आवत हे।

पोरा तिहार के दिन बेटा मन माटी के बइला संग खेलथे अउ बेटी मन चूकी पोरा संग खेलथे | एकर यहू उद्देश्य हो सकत हे कि बेटा जात मन ल बड़े होय के बाद खेती किसानी करना हे अउ बेटी मन ल रंधनी खोली के बूता करना हे। खेल खेल म घर गृहस्थी के जिम्मेदारी ल ननपन ले जनवा दे जाथे। 

सुधा वर्मा के मुताबिक नंदी ह एक दिन उदास रिहिसे, शिव जी ह कारण पूछथे तब नंदी ह कहिथे कि सबके पूजा होथे फेर मोर पूजा नइ होवय | शिव जी ओकर दुख ल समझ के कहिथे कि चल एक दिन तोला देथंव। भादो  महीना के अमावस के दिन तोर पूजा होही। उही दिन तंय अस्तित्व म घलो आये रेहे। नंदी बहुत खुश हो जथे। शिव जी के संग ओकर स्थापना मंदिर म घलो होथे।

पोला के दिन नंदी मने नांदिया बइला के पूजा होथे। नंदी शिव के वाहन आय। नंदी ल ही छत्तीसगढ़ म नांदिया बइला केहे जाथे। नंदी शिव के वाहन आय। छत्तीसगढ़ के पूरा लोक जीवन ही शिव ले परिपूर्ण हे। आदिकाल ले शिव अर्थात शंकर भगवान ह छत्तीसगढ़ म बड़े देव , बूढ़ा देव, दूल्हा देव आदि के रूप म पूज्य हे। इहां जुन्ना मंदिर म ही नही बल्कि गांव , टोला अउ मुहल्ला म घलो शिव मंदिर के अधिकता हे। छत्तीसगढ़ म शिव सबले जादा लोक पूज्य देव आय। छत्तीसगढ़िया मन बर शिव भगवान देव ही नही बल्कि भोले बाबा आय। ओइसने जइसे भोले बाबा सीधा-सादा निष्कपट अउ निश्छल हे |जेकर आराध्य निश्छल होही ओकर आराधक घलो निश्छल होथे। एकर ले छत्तीसगढ़ के लोक जीवन प्रभावित हे । तभे तो सब झिन छत्तीसढ़िया सबले बढ़िया कहिथेे।

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