Thursday 18 August 2022

व्यंग्य- महाभारत

व्यंग्य- महाभारत  


          द्वापर युग के जीव मन चौरासी लाख योनि म भटके के पाछू अपन नावा पोस्टिंग के अगोरा म ब्रम्हाजी के कार्यालय के परछी म बइठे गोठियावत रहय । ब्रम्हाजी के आफिस के बड़े बाबू चित्रगुप्त ला चपरासी संग आवत देख .. बुता हो जाये के उम्मीद हो गिस । अर्दली हा थोकिन बेर म .. जीव मनला चित्रगुप्त के आफिस म हाजिर होय बर नाव लेके बलाये लगिस । महाभारत काल के सबले सीनियर जीव भीष्म पितामह हाजिर होइन । ओला चित्रगुप्त हा किहिस – तोर पुण्य ला देखत .. मोर मन तोला वापिस धरती म भेजे के नइहे फेर .. हमर नियम कायदा झन टूटय तेकर सेती .. तोला जाये बर परही । भीष्म पितामह पूछिस – ये पइत मोर काये बुता अऊ भूमिका रइहि ? चित्रगुप्त किथे – दुनिया म जतका जीव हे तेकर भूमिका पहिली ले तय रहिथे । एक बेर ओकर बर जे नियम बांध दिये जाथे तेला .. निभाये ला परथे । भीष्म किथे – एकर मतलब मोला फेर भीष्म बने बर लागही अऊ कलेचुप कौरव के गुनाह म भागीदार बने बर लागही तहन .. चौरासी लाख योनि म भुगते बर लागही । चित्रगुप्त हा .. हाँ कहत मुड़ी हलइस । भीष्म किहिस – मोला जाये के मन नइ होवत हे । मोर भूमिका ला बदलहू तभे उहाँ जाहूँ .. गलती कोनो अऊ करथे अऊ सजा मय भुगत थँव । ऊँकर सेती न बर कर सकँव न बिहाव । मानुष तन पाके .. जिनगी के तनिक मजा नइ मिलय । फकत येकर ओकर सेवा बजावत रहव । भले मोला ये पइत उहाँ चपरासी बना दव फेर मोला भीष्म बनाके झन भेजव । मोर ले प्रतिज्ञा करवाथव अऊ मोला बांध देथव । चित्रगुप्त हा किहिस – तैं जब पहिली बेर जीव बनेस तभे तोर इही भूमिका तै होय रिहिस अब बदल नइ सकय .. चाहे तैं कुछ कर । भीष्म किहिस – मोला ब्रम्हा साहेब ले मिलन दव । चित्रगुप्त हा ओला ब्रम्हाजी से मिलवाये बर मना करिस अऊ पोस्टिंग बर नोट शीट बनाके ब्रम्हाजी तिर भेज दिस । भीष्म के इच्छा तको ला नोट शीट म लिखदे रिहिस । ब्रम्हाजी हा नोट शीट पढ़के चित्रगुप्त ला बलवइस । ब्रम्हाजी हा चित्रगुप्त ला किहिस – ओकर भूमिका ला ये पइत बदल दे । बपरा हा बिगन गलती करे चौरासी लाख योनि म सजा पावत भुगतिस हे । चित्रगुप्त हा स्वर्ग के संविधान के धारा देखावत ओकर उल्लंघन होय के हवाला देवत सुझाव देवत किहिस - येला जावन देथन फेर ये पइत .. येला देंहे नइ देवन । येहा कागज बनके जाही अऊ रइहि । ब्रम्हाजी हाँसिस अऊ किहिस – अइसे कइसे सम्भव हे ? चित्रगुप्त बतइस – ये पइत येला भारत म संविधान बना देथन । जेहा चाहे कुछ भी हो जाये कलेचुप सत्तापक्ष के रक्षा करही । न ओला बोले ला परय न सुने ला .. न देखे ला परय ... । ब्रम्हाजी हा भलुक स्वर्ग के सबले बड़े अधिकारी आय फेर वहू ला बड़े बाबू के बात राखे बर परथे ... । नोटशीट म दस्तखत होगे । भीष्म संविधान बनके भारत के सदन म बिराज दिस । अब ओहा बोलय सुनय देखय निही । ओकर तनि ले सरकार बोलथे .. जनता सुनथे अऊ विपक्ष हा देखथे ।

          दूसर जीव मन के पारी अइस । पहिली मौका द्रौपदी ला महिला होय के सेती मिलिस । ओहा जाते साठ केहे लगिस – चाहे कुछ भी हो जाय ... मोला ये पइत स्त्री पात्र झन देहू चित्रगुप्त जी । चित्रगुप्त हा चश्मा ले ओला झाँकत किहिस – बदलना मोर बस के बात नइहे । पोस्टिंग आर्डर म दस्तखत करवाये बर ब्रम्हाजी तिर चल दिस । पिछू पिछू बरपेली खुसरगे द्रौपदी हा । ब्रम्हाजी हा किहिस – हमर स्वर्ग म जे नियम धरम बन चुके हे तेला हम धरती कस .. न तो घेरी बेरी टोर सकन न बदल सकन । तोर भूमिका पहिली बेर तैं जीव बनेस तभे ले तै हे .. तोला जाये ला परही । द्रौपदी किहिस – ब्रम्हा सर .. आपके बात मय नइ मानव .. अइसे नइ कहत हँव .. फेर मोला स्त्री बनाके भेज देथव .. मोर लुगरा पाटा ला मोर देंहे ले उतारे बर धरे रिहिस तब ओ पइत तो भगवान हा मोर रक्षा करे रिहिस ... का ये पइत घला ओहा आही का .. ? ब्रम्हाजी किहिस – अब ओला मय कइसे बताहूँ .. ? ओ कहाँ आही .. कहाँ जाही .. कोन ला बचाही .. कोन ला डुबाही .. तेला उही जाने । द्रौपदी हा रोय लगिस । ब्रम्हाजी के अर्दली हा ओला बाहिर निकले के इशारा करिस । चित्रगुप्त हा सुझाव दिस – सर .. येला उहाँ लुगरा पाटा के संगे संग कुछ भी पहिरे के इजाजत दे देथन । ब्रम्हाजी हाँसिस – अइसे कइसे सम्भव हे .. ? मईलोगिन होके अऊ कायेच पहिर डरही तेमा .. ? चित्रगुप्त किहिस – सम्भव हे सर .. मोर तिर एक उपाय हे .. जेमा हमर कायदा कानून नइ टूटय अऊ बपरी दौपदी के बात माढ़ घला जही । भारत म येकर लिंग परिवर्तन नइ होवन देन .. येला जनता (स्त्रीलिंग) बना देथन .. उहाँ चाहे ओहा जे पहिरे ... । लुगरा पहिरे चाहे फुलपेंठ ... हमला काये करना हे । रिहिस बात ओकर इज्जत उतरे के ... ओ तो होबेच करही ... अऊ ओला बाँचे बर खुदे अपन जुगत जमाये बर परही .. । बपरी द्रौपदी के नावा पोस्टिंग होगे .. बिगन लिंग बदले ... धरती म जनता ( स्त्रीलिंग ) बनके पहुँचगे । 

          कौरव मन ब्रम्हाजी तिर एके संघरा पहुँचगे । ओला गोहारे लगिन – कौरव मन ये पइत कौरव नइ बनन कहय । चित्रगुप्त तिर येकरो उपाय रिहिस । ओहा ओमन ला समझावत किहिस – यहू पइत तुम सत्ता म रइहू अऊ तुँहर रक्षा बर भीष्म हा संविधान बनके रहि । तुँहर उपर जादा आँच नइ आवय । कुछ जीव मन प्रश्न करिन – येकर मतलब ये आय के यहू दारी केवल दुर्योधन हा राज करही .. दुशासन ला कब मौका मिलही .. । चित्रगुप्त बतइस – न अकेल्ला दुर्योधन राज करय ... न दुशासन .. राज करही उही ... जे अंधरा रहि .. । धृतराष्ट्र भड़कगे । मे नइ जाँवव .. मोला अंधरा बना देथस अऊ राज करे बर कहिथस .. । जिनगी के कुछ मजा नइ ले सकँव । चित्रगुप्त किहिस – अंधरा तो तोला बनेच ला परही फेर ये पइत तोर आँखी सही सलामत रहि । तोला उही दिखही जेला देखे के तोर इच्छा रहि । फेर चाह के घला .. न तोला जनता के दुख दिखय ... न अपमान दिखय .. । तोला दुख दिखही दुर्योधन के .. दुशासन के अऊ ओकरे मनके संगवारी के । जेन मन तोर संग छोड़ही ... तेकर तकलीफ तोर आँखी ले धूर हो जहि । फेर तूमन ला एके देंहे म थोरेन रहना हे .. जेला सत्ता मिलही तेकरे देंहे म खुसरना हे । धृतराष्ट्र हा अपन परिवार सुध्धा पहुँचगे अऊ इहाँ हरेक जगा म शासन सम्हलइया मनखे के दिल म खुसरके जगा बना डरिस । तबले जे सत्ता म बइठथे .. तेहा धृतराष्ट्र हो जथे अऊ ओकर बेटा मन ... जनता दौपदी के चीर हरण करत बिगन रोक टोंक भुकरत किंजरत हे । 

          पांडव मन के बारी अइस – ओमा किहिन हम जाबो फेर हमन ला शुरू से सत्ता चाहि । नइते इँहींचे ठीक हन । चित्रगुप्त किहिस – उहाँ द्रौपदी पहुँच चुके हे .. ओला जीत के दूसर मन झन हथिया लेवय । तुँहर जइसे मर्जी .. । पांडो मन के पोटा काँपगे । तुरत फुरत आये बर तैयार होगे । ये पइत अपन भूमिका पूछिन ? चित्रगुप्त हा सबो के खाका तैयार कर डरे रहय । ओहा बताये लगिस – तुम विपक्ष म रहू । धर्मराज किहिस – मय नइ जाँव । चित्रगुप्त किथे – जाये ला तो परही । आदेश म साइन हो चुके हे । फेर तुम घला देंहे बदलत रहू । जे सत्ता नइ पा सकही अऊ जनता के जेला दुख दर्द अपमान हा जब तक दिखही .. तब तक ओकर देंहे म तुँहर जगा रइहि । अर्जुन पूछिस - अइसन म कतको संघर्ष कर .. सत्ता मिलबेच नइ करे अइसे लागत हे ? चित्रगुप्त किहिस – सच बात आय । जेकर देंह ले सत्ता छूटही तिही देंह तुँहर निवास के जगा बनही .. । अर्जुन पूछ पारिस – त येकर मतलब भगवान हा जाबेच नइ करय का .. ? चित्रगुप्त किहिस – भगवान जाही अऊ सत्ता पाये बर तुँहर सहायता घला करही । पांडो मन भगवान के ताकत ला बहुत तिर ले देखे रिहिन । आगू कुछु अऊ प्रश्न करे बिगन .. खुश होवत ... यहू मन आदेश धरके निकल गिन । 

          तभे भगवान पहुँचगे अऊ केहे लगिस – महूँ ला जाये ला परही का जी ? चित्रगुप्त किथे – भगवान तैं जाबे फेर रेहे बर नइ जावस .. पाँच बछर म एके बेर जाबे .. । भगवान हाँसिस – तहूँ अच्छा अस जी । मोरो बर बंधन कर देथस .. । चित्रगुप्त किथे – तैं पाँच बछर म एक बेर जनता के देंहे म खुसरके ओला भगवान बना देबे अऊ पांडो ला सत्ता म बइठारे बर साथ देबे फेर .... । भगवान किथे – अऊ काये फेर जी .. ? चित्रगुप्त किहिस – तैं पांडो मनला सत्ता देवा तो देबे भगवान फेर जइसे सत्ता उँकर हाथ म आही तइसे ... सत्ता पवइया के देंहे के जीव बदल जही .. ओमा कौरव मन खुसर जहि अऊ पांडो मन वापिस संघर्ष करत .. दूसर देंह म नजर आही अऊ तोला रोज रोज झन जूझे बर परय तेकर सेती जनता के देंह ले बिदाई लेहे बर परही अऊ उहाँ फेर जाये बर पाँच बछर के अगोरा करे बर लागही .... । 

          भगवान समेत सरी जीव के भूमिका तै होगे । ब्रम्हाजी के कार्यालय ले आदेश निकलगे । सब धरती म पहुँचके अपन अपन कार्यभार सम्हाल लिन । हरेक पाँच बछर म भारत म महाभारत के खेल फेर शुरू होगे । 


हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

No comments:

Post a Comment