*"छत्तीसगढ़ के गाँव मन मा प्रयोग मा आनेवाला मशीन औजार अउ सामान के नाम, विवरण अउ उपयोगिता-
*कलारी*- लकड़ी के बने औजार जे धान कोड़ियाये,पैरा अलगाय के काम मा उपयोग आथे। चना, गहूँ,अरसी अउ अन्य फसल ला घलो मिन्जे के बेरा कलारी उपयोगी होथे। ये लम्बा बांस मा कठखोलवा चिरई के मूड़ी बरोबर कोकवानी होथे।
*दॅतारी*- एक ले अधिक दाँता वाले लकड़ी के पाटा। कोदो मा दॅतारी मारे जाथे। छोट/हरु दॅतारी मा धान मिंजत बेरा पैरा ला घलो अलगाये जाथे। एक ठन बाँस मा एक लकड़ी फिट रहिथे,जेमा 7,8 ठन दाँता रहिथे। भारी ला बइला खेत मा बइला तिरथे, छोट हरु ला मनखे खुदे खिचथे।
*कोप्पर*- कोप्पर लकड़ी के बने रहिथे जे धान, कोदो ला कोपराय के काम आथे। किसान मन कोप्पर ला नेवरिया बइला बछवा ला रेंगें बर सिखाये, खेत/ भर्री ला बरोबर करे आदि काम मा लाथे। एखरे कम वजनी रूप बख्खर कहिलाथे।
*ईरता*- ईरता बाँवत अउ बियासी बेरा उपयोगी होथे। खेत जोतत बेरा नांगर मा लेटा चिपकथे तेला ईरता के उपयोग ले निकाले जाथे, ये छोट लोहा के फरसा बरोबर बइला खेदारे के लउठी के नीचे जोती जुड़े रहिथे।
*आरी/तुतारी*- बइला खेदे के लउठी मा गड़े छोट खीला आरी कहिलाथे, एखर उपयोग बइला भइसा ला कोचे बर करे जाथे।
*चामटी*- बइला खेदारे के लउठी मा बंधे चमड़ा के रस्सी जेमा बइला ला नइ रेंगें ता मारे जाथे।
*खूँटा*- कोठा अउ दुवार मा गाय बाँधे बर भुइयाँ मा गड़े लकड़ी।
*पहुरा*- गाय गरवा बाँधे के अइसन छोट लकड़ी जेखर मुड़ी मा गरवा के गला के रस्सी अउ पूछी मा खूँटा मा फँसाय के रस्सी रथे।
*कोटना*- गरवा मन के पानी पीये के आयताकार पथरा के पात्र।
*धोनाही*- मिट्टी के गोल छोट गगरी जेमा धोवन फेके जाथे।
*गरदेवा/केनउरी*- गाय गरवा के गला मा परमानेंट बंधे डोरी।
*खड़खड़ी*- गाय गरवा के गला मा बंधे लकड़ी के घण्टी
*लांहगर/लादका*- हरहा गाय गरु जे गला मा बंधे भारी लकड़ी।
*बिंधना*- लकड़ी ला मनवांछित आकार देय, छेद करे बर, काटे पीटे बर बिंधना उपयोगी होथे। चौड़ा नोक वाले पटासी बिंधना अउ पतला नोक वाले सुल्लू बिंधना कहलाथे। कई प्रकार के धार वाले बिंधना होथे।
*बसुला*- ये लकड़ी ला छोले के काम बर उपयोगी होथे।
*लोहाटी तारा/ताला*- करिया लोहा के जुन्ना ताला जेखर चाबी स्क्रुनुमा रहय।
*सँकरी*- दरवाजा/कपाट मा ताला देय बर लामे लोहा जे साँकल
*टँगिया*- लकड़ी काटे के औजार।
*खुरपी*- बन कांदी निकाले के औजार।
*रापा*- माटी जोरे संकेले के औजार।
*कुदारी*- माटी कोड़े के औजार।
*गैंती*- माटी कोड़े के काम अवइया कुदारी के बड़े रूप।
*हँथौडी*- ये खीला ठोंके के काम आथे, कुछु चीज ला फोड़े फाड़े बर घलो उपयोगी होथे।
*घन*- हथौड़ी के बड़े रूप,जे लकड़ी चीरे, लोहा लक्खड़ काटे बर काम आथे।
*धूम्म्स/धम्मस*-माटी कुचरे या दबाये के लोहा के बड़का पाटा असन औजार।
*छिनी*-लकड़ी फाड़े जे बड़का खीला, ये छोट, मोठ कई प्रकार के होथे।
*रोखनी/रेंदा*- लकड़ी ला प्लेन करे के काम मा आथे।
*भाँवरी/भँवारी*- लकड़ी मा छेदा करे के काम आथे। यहू आकार प्रकार के कई किसम के होथे।
*गिरमिट*- लोहा के औजार जेला घुमा घुमाके लकड़ी ला छेदा करे जाथे।
*हँसिया*- धान,कांदी, बन, दूबी लुवे तोड़े के काम आथे। साग भाजी घलो सुधारे जाथे।
*पैसुल*- सब्जी काटे के काम आथें।
*सब्बल/साबर*- भुइयाँ ला गड्ढा करे के लोहा के औजार।
*आरा/आरी*- लकड़ी चीरे के औजार।
*टेंवना*- लोहा धार करे के पथरा
*ठीहा*- लोहार, बढ़ई के घर गड़े लोहा या लकड़ी के टुकड़ा जेमा रखके लोहा ला पीटे जाथे अउ लकड़ी का काटे छाँटे जाथे।
*निहई*- टेंडग़ाय लोहा ला सोझ करे या मनचाहे आकार देय बर उपयोगी औजार।
*सुम्बा*- सुल्लू जघा मा ठोंकाय खीला खूंटी ला बरोबर करे बर उपयोगी।
*गुनिया*- कोन ला बरोबर मिलाय बर, खिड़की चौखट बनाए बर उपयोगी
*पेन्चिस*- खीला तिरे के काम आथे।
*सुजियारी*- खीला के अनुसार छेद ला बड़े करे के काम आथे।
*कनाछी*- लोहा ला धार दे के काम बर उपयोगी
*धमेला*- घर निर्माण बर उपयोगी लोहा के पात्र
*कौंचा*- घर निर्णाण में गारा मिलाये के काम बर उपयोगी
*फंटी/पाटा*- गारा सीमेंट ला बरोबर करे के काम आथें
*गोली*- ईंट जोड़त बेरा सोझ मिलाये बर काम आथें
*नकवार*- नाक के बाल आदि निकाले के चिमटा
*नाहनी*- नख काटे के औजार
*छूरा*- दाढ़ी बनाये के औजार
*चिमटा/ चिमटी/लोचनी*- आगी बूगी, काँटा खूंटी निकाले के बड़े छोटे लोहा के औजार
*सरोता*- सुपारी काटे के, बड़े हा आमा काटे के काम आथे।
*धुकनी*- लोहार घर रहय जेमा लोहा ला गरम करे।
*चाक*- कुम्हार घर के घड़ा/माटी के समान बनाए के मशीन
*घानी*- तेल पेरे जे मशीन
*टेड़ा/रहट*- पानी पलोये के मशीन।
*मंगठा*-कपड़ा बुने के मशीन।
*चरखा*- सुत काते के मशीन।
*मूसर*- धान/ कोदो छरे के लकड़ी के औजार जेखर तरी मा लोहा लगे होथे।
*बहाना*- बाहना मा ही धान कोदो ल रख के मूसर मा छरे जाथे।
*खलबट्टा/ओखली*- कूटे पीसे के काम बर उपयोगी, लोहा के ओखल।
*डंगनी/ अकोसी*- ऊपर के चीज ला अमरे बर बने बॉस।
*खलिहा*- आमा टोरे के झोला बंधे डंगनी।
*ढेंकी*- ढेंकी धान कूटे के काम आथे, येमा दू तीन आदमी एके संघरा काम करथे। कुछ मन ढेंकी के आघू भाग मा गोड़ ले अघाड़ी ला दबावत जाथे ता कुछ मन पाछू के बाहना मा धान ला डारे निकाले के काम करथें। ये देशी धनकुट्टी घलो कहिलाथे।
*घर लिपनी*- गोबर पानी भराय करसी जेमा घर ला लीपे जाथे, घर लीपे बर प्रयोग मा लाये चेन्द्रा पोतनी कहिलाथे।
*बाहरी*- घर दुवार बाहरे के झाड़ू।
*खर्रा*- कोठा/ बियारा बाहरे के राहेर काड़ी के गुच्छा।
*झंउहा*- गोबर कचरा हेरे, माटी फेके के काम बर उपयोगी बाँस के पात्र।
*सील-लोढ़ा*- चटनी हरदी मिर्चा पीसे बर उपयोगी पथरा।
*जाँता*- गहूँ, चना, अउ अन्य आनाज ला पिसान बनाये के हथ मशीन। कोदो जाँता, पिसान जाँता , ये बड़े छोटे प्रकार के होथे।, जेखर नाम घलो बदल जथे। जइसे जँतली, जँतुलिया,कोदो दरनी।
*पाउ*- जाँता मा लगे लकड़ी जेला धरके गोल गोल घुमाय जाथे।
*टिपली*- मिट्टी तेल रखे के डब्बा
*निसेनी*- चढ़े उतरे के लकड़ी के बने सीढ़ी
*चाँड़ी*- तेल ढारे के उपयोग मा लवइया टिन के नली दार पात्र
*कुप्पी*- साइकिल,मशीन मा तेल डाले बर ये उपयोगी हे।
*गाड़ा*- बइला गाड़ी, खेती किसानी बर उपयोगी।
*जुवाड़ी*-नांगर में जुड़ा के बीच के भाग जे मेर डाँड़ी आके मिलथे।
*नाहना*- चमड़ा के डोरी जे जुवाड़ी मेर बंधाय रथे, नाहना जुड़ा अउ डाँड़ी ला बाँधे रखथें।
*पंचारी*- जुड़ा के आखिर भाग के लकड़ी जे मेर बइला फंदाय रथे।
*जोंता*-नांगर जुड़ा के पंचारी मा बंधे डोरी जे बइला ला जुड़ा मा बाँधे रखथें। गाड़ा मा सुमेला मा बंधे रहिथे,अउ बइला ल सके जघा स्थिर रखथें।
*खाँसर*- गाड़ा के छोटे रूप,गांव गौतरी,मेला मड़ई जाय बर उपयोग मा लाये जाथे।
*घांघड़ा*- कौड़ी पट्टी युक्त बड़े घण्टी।
*कसेर गाड़ी*- टट्टा/ चापड़ बंधे गाड़ा।
*कोल्लर/लोदर*- बाँस के टट्टा जे खूँटा तक उठे रथे।
*चापड़ा*- गाड़ा मा लगे गोलाकार टट्टा
*नांगर*- हल
*जुड़ा*,- नांगर या गाड़ा के वो लकड़ी जेमा बइला फंदाय रथे, जुड़ा गाड़ा मा हमेशा बंधे रथे, जबकि नांगर मा जुवाड़ी कर नाहना मा बांधेल लगथे।
*बेलन*- अरसी, कोदो मिन्जे बर प्रयोग होवइया लकड़ी के भार युक्त गाड़ी।
*पटनी*- गाड़ा के डाँड़ी मा ठोंकाय पाटा।
*धोखर*- गाड़ा के चक्का के पहली वाले लम्बा पटनी जेमा माई खूंटा रहिथे,अउ बइला ला चक्का कोती आवन नइ देवय।
*खूँटा*- डाँड़ी अउ पटनी ला छेद जे गड़ाये गय बॉस या लकड़ी।
*अघाड़ी*- गाड़ा चक्का के आघू के पटनी।
*पिछाड़ी*- गाड़ा चक्का के बाद के पटनी।
*आरा*- चक्का के मूड मा गुथाये लकड़ी।
*पाठा/पुट्ठा*- आरा मा लगे लकड़ी, पुट्ठा जुड़के गोल बनथे।
*पट्टा*- पाठा के ऊपर लगे गोल लोहा।
*चीपा*- पाठा अउ पट्टी के बीच गेप ला भरे बर ठोंके गय बॉस के टुकड़ा।
*मुड़*- चक्का के बीच के गोल लकड़ी।
*गुर्दा*- मुड़ मा फिट लकड़ी जेमा असकुड़ लगे रहिथे।
*असकुड़*- दोनो चक्का ला जोड़े बर बने लोहा।
*पोटिया*- असकुड़ ऊपर के बड़े खोल वाले लकड़ी।
*बैसकी* पोटिया ऊपर मा लगे लकड़ी जेमा डाँड़ी माड़थे।
*खीला* - असकुड़ के आखिर मा लगे रॉड, जे चक्का ला छेंके रखथें।
*धुरखिली*- पोटिया पटनी के मुख्य खीला।
*बरही*- डाँड़ी अउ जुड़ा के बंधना।
*धूरा*- गाड़ा के आघू के भाग जेमा दोनो डाँड़ी अउ जुड़ा बंधाय रथे।
*सुमेला*- जुड़ा के छेद मा लगाइया लोहा जेमा बइला फन्दाथे।
*सांकड़/ काँसड़ा*- बइला के गला के डोरी जे नाथ अउ केनवरी ले जुड़े होथे, जेला गाड़ा हाँकइया बइला ला काबू मा करे बर धरे रहिथे।
*केनवरी*- बइला के गला मा बंधाय डोरी।
*नाथ*- वो डोर जेमा बइला नँथाय रथे।
*टेकनी*- गाड़ा के धूरा मा टेकाय जाने वाला लकड़ी। ये गाड़ा ला खड़े करे बर उपयोग मा लाये जाथे।
*ओंगना*- गाड़ा के गुर्दा मा अण्डी तेल/ चिट ला चिकनाहट बर डारे जाथे।
*कंडील*- माटी तेल ले जलइया, काँच के गोल छेंका मा बरत बाती।
*चिमनी/ढिबरी/भभका*- सीसी मा माटी तेल भरके ढक्कन मा बाती लगाके जराय जाथे।
*गियास*- देवारी तिहार बर कुछु प्लेट ला सजाके दीया ला बार के ऊँच आगास मा टांगना।
*तेल कुप्पी*- साइकिल या मशीन मा तेल डारे के छोटे डब्बा।
*गोरसी*- आगी तापे या आगी का रात भर छेना मा सिपचा/दगा के रखे बर उपयोग मा आने वाला माटी के टोकरी।
*पउला/फूला*- अनाज धरे बर बने माटी के छोटे पात्र
*कोठी*- अनाज धरे के बड़े पात्र
*ओंगना*- कोठी मा धान निकाले बर बने छेदा।
*पर्रा*- बॉस के बड़का पर्री।
*पर्री*- भात पसाये या तोपे बर बॉस के बने तोपना।
*तर्री*- जर्मन के तोपना
*बिजना*- बाँस के बड़े टुकना।
*सुताइल/रोखनी*- छिले के काम बर उपयोगी।
*चन्नी/चलनी* - पिसान छाने के, चाउर चाले के काम बर।
*कोदई धोना*- कोदई धोय के काम बर उपयोगी,ये टिन के होथे।
*झेंझरी*- कनकी,कोदई धोय बर बॉस के टुकनी।
*चरिहा*- बॉस के बड़े टुकनी, धान पान नापे भितराये के काम
*सूपा*- छँटाई, निमराई,धान ओसई के काम बर उपयोगी।
*पउवा*- धान चाँउर नापे के पाव भर डब्बा।
*पैली*- एक किलो के डब्बा।
*काठा*- लगभग चार पैली धरउ लकड़ी या टीना के पात्र।
*झिपारी*- बरसात के पहली कोठ/ पर्दा ला पानी ले बचाये बर छिंद राहेर काड़ी अउ खदर मिलाके बनाये जिनिस। झिपार ले बचे बर घलो झिपारी के उपयोग होथे।
*मइरका*-पेंदी मा माटी छभाय करिया रंग के गगरी, जेमा आनाज आदि धरे जाथे।
*गगरी*- करिया रंग के माटी के बर्तन।
*गघरा गुंडी*- पानी भरके रखे बर ये उपयोगी होथे।
*कलौंजी*- साग राँधे के मिट्टी के बर्तन।
*ठेका*- दार चुरोये के माटी के छोटे बर्तन।
*गिरी*- गगरा, गुंडी ला बने मड़ाय बर जड़ या कपड़ा ला गोल गुरमेट के बनाय जाथे,एखर के गगरा गुंडी उंडे नइ।
*गूँड़ड़ी*- पानी लाने,माटी फेके के समय मूड़ ऊपर उपयोग मा अवइया कपड़ा, जे गोल गुरमेटाय रथे।
*बंगुनिया*- पीतल के छोट बर्तन।
*बटलोईया*- स्टील के छोटे मुंह वाले गोल बर्तन।
*गंज*- पीतल या स्टील के बड़े मुँह के बर्तन।
*गंजी*- पानी भरे,खाना बनाये के जर्मन के बर्तन।
*बॉल्टी*- कुँवा ले पानी निकाले के लोहा बर्तन, आजकल स्टील बाल्टी घलो पानी भरे के काम मा आथे।
*माली/कटोरी/कोपरी*- काँच/ स्टील के बर्तन
कुटेला-कपड़ा धोय या कोनो सुखाय फसल ल कुचरे के काम अवइया लकड़ी के गोल या चाकर पटिया
मुड़ेसा- कपड़ा ले बने मोठ छोट गोल चाकर गद्दा जेन मुड़ के तरी सोवत बेर उपयोग होय।
चुरोना - जादा या मोठ कपड़ा ल धोय बर निरमा म डुबोना।
टठिया-- खाय के थाली जेला थारी घलो कथन
मुड़सरिया-तकिया कोती, मुड़ कोती
गोड़सरिया- गोड़ कोती
ओढ़ना..ओढ़े के
दसना...बिछाए के, बिस्तर
कोपरा ..परात
बटुवा.... भात राँधे के बर्तन
हँउला....पानी भरे के गुंडी या गगरी
मलिया,थरकुलिया...प्लेट..
सइकमी/सइकमा- बासी खाय के बटकी
कुंड़ेरा....माटी के दूध चुरोय के बर्तन..
*सुपेती*....रजाई
*कईधोना*= चाउर धोय के
*होमाही*= हूम देके
*तखत*=बइठे के लकड़ी के बाजवट जेंन सोय के घलो काम आवय
*करची*-जर्मन के बर्तन जेन भात बनाए के काम आथे
*जांँता*-अनाज पीसे के चक्की
*ढकेल गाड़ी* -लइका मन के गाड़ी
*तख्ता*-जमीन में बिछाय वाला,जेमा पहिली दर्जी मन कपड़ा काटे
*कागज के टुकनी*- टुकनी
*मरपरई*- सिसली गोरसी,कम गहराई के
*कजरौटी* काजर धरे के
*सुराही*-पानी भरे के
*ढेरा*-रस्सी बनाय के
*भँदई*-चमड़े का सेंडिल नुमा चप्पल जेला अक्सर राउत मन पहिरे ।
*मोरा*- पाना या झिल्ली से बने हुए बरसाती जेला मुड़ी मा टाँग के ओढ़े जाथे।
*खुमरी*- पाना, कमचील या झिल्ली से बने हुए बड़का टोपी कस बरसाती
*संदूक*- पेटी
*धूसा*- बड़का साल जेला कंबल बरोबर ओढ़े जाथे।
*खोल*- कथरी जे उपर जे कपड़ा/गद्दा रजाई में चढ़ाने वाला कवर।
*पार्खत*- तामा के बने नान्हे मलिया जेमा भगवान के मूर्ति ल नहवाय जाथे।
*नेवार*- पलंग मा गंथे नायलोन/कपड़ा
*मचोली/माची*- छोट खटिया
*भेलवा*- लकड़ी के *झूलना*
*खूँटी*- बाँस के लकड़ी जे कोठ मा गड़े रहे
*मोरा*- बरसात मा ओढ़े के पन्नी
*पौतरा*- प्लेट
*कोपरी*- गड्ढा वाले प्लेट
*कठौता*- लकड़ी के बर्तन
*फूलबहिरी/काँसी बहिरी/छीनबहिरी/खरेटा बहिरी/खरहेरा बहिरी/ झारिनि*- झाड़ू
*मोड़ा*- बइठे के
*ठप्पा*- चौंक चाँदन पुरे के छेदरहा डब्बा
*पिल्हर/ मुड़की*- भारन
*चौखट*- दरवाजा के आधार
*कुँदवा खुरा*- खटिया के कुंदाये खुरा
*पठेरा/खोलखा*-कोठ के भीतर बनाय आलमारी
*तुमड़ी* --खेत जाय तब पानी भर के ले जाय, ये तुमा के बने रहय, जब तुमा सूखा जाय तब वोला बनाय।
*खड़ाऊ*- लकड़ी के चप्पल
*अकतरिया* -खेत खार म कांटा खूंटी ले बांचें बर महतारी मन पहिरे सेंडिल नुमा चप्पल
अरगेसनी- घर मा कपड़ा टांगें अउ सुखोय बांस के लकड़ी के
*भंदई* - चमड़ा के बने सेंडिल जइसे चप्पल
*कांवर* - लगभग 4-5 फीट फिट लंबा बांस के दूनों छोर मा जोंति लगा के पानी लाये बर उपयोग करे जाथे
*सिंगार पेटी*- सिंगार के समान रखे के बॉक्स
*मर्रा*-मुड़ कोरे के ककवा/कंघी
*कुरो*=धान नापे के
*पटका*- टॉवेल
*अँगोछा*- पानी मा भींगो के पोछे जाय वाले फरिया/कपड़ा
*गोदरी /कथरी*- सूती लुगरा के मोटा बिछोना
*झाँपी*- बाँस के बड़े टुकना
【रँधनी खोली ले संबधित कतको अकन समान अउ हे जइसे,--*गोरसी (मरपरई),पीढ़ही/ पीढ़ा,माली(काँसा का छोटा प्लेट),फुलकसिया लोटा, फुलकसिया थारी,
बटकी,कोपरा,कोपरी,झारा,डुआ,डुई,पलटनी,सइतमा,थारी,लोटा,गिलास,भँवराही,बटकी,कसेली,दइहा,मइरसा,मथनी,घम्मर,सीका,गिरि,हँउला,मरकी,गगरा,गगरी,घैला,दोहनी,
दुहना,तउला,ठेकवा,लकड़ी,चिल्फा,झिटका,परइ,कनौजी,तोपना,सील,लोढ़ा,पर्रा,पर्री,टुकनी,फुँकनी,अथनहाँ,मरकी,सरकी,दरी,पिढ़वा,फुला,पठेरा,घनौची,एकमूँहा चूल्हा,दुमुँहा चुल्हा,अँगेठा,अँगरा,कोइला, खोइला,तउला, चाक-कनौजी के दूसरा किसम,चँदाही-सबो किसम के थारी,लेन्च-सबो किसम के बाल्टी-बाल्टा, गोड़ही लोटा-गोड़ा वाला लोटा,खूराही गिलास-खूरा वाला गिलास, गोड़ही बटकी-गोड़ा वाला बटकी, भँवराही बटकी-बिगन गूरा वाला,ढिबरी, चिमनी, चटिया-मटिया, कुड़ेरा, डेचकी, चन्नी,कोटना, फरिया, चेंदरा( कपड़ा), फोरन, सुखसी*】
संकलन
जीतेन्द्र वर्मा"खैरझिटिया"
बाल्को, कोरबा(छग)
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