*विमर्श के विषय-- समीक्षा अउ कुंजी मा अंतर*
समीक्षा अउ कुंजी मा साहित्य के दृष्टिकोण ले बहुते अंतर हावय।
समीक्षा अउ कुंजी मा ओइसने फरक हे जइसे चलनी अउ चाबी(कुची) म होथे। दूनो के राशि भले एक हे फेर गुण अउ काम म भारी अंतर हे। चलनी ह गोंटी- माटी अउ चाँउर ल चाल के अलग- अलग कर देथे वइसने समीक्षा ह कोनो रचना के साहित्यिक गुण -दोष ल पाठक के आगू म फोरिया के रख देथे। हाँ अतका जरूर हे कि जेन म चाहे कोनो कारण ले होवय केवल गुण या केवल दोष के चर्चा हे त वो ह बस नाम के समीक्षा आय ।वोकर ले साहित्य के भला नइ हो सकय। ए तो अइसे होगे के चलनीच म उटपुटांग छेदा हे जेमा दाना सँग गोंटी तको बुलकगे।
समीक्षा ह एक प्रकार ले सूपा आय जेन फोकला अउ दाना ल अलगिया देथे।
साहित्य म समीक्षा के अबड़े महत्व हे। ए हा पाठक ल नँवा दृष्टिकोण देथे। कुशल समीक्षाकार ह कुछ अइसे बात बताथे जेला शायद पाठक ह सोचे तक नइ राहय अउ इही चीज ह आनंद के अनुभूति कराथे, साहित्यिक रस देथे।
समीक्षा के तुलना म कुंजी निचट फोसवा होथे। एहा साहित्यिक रस के दृष्टिकोण ले चुहके खुशियार कस निचट छोइहा होथे। कोनो परीक्षा रूपी ताला ल खोले बर ककरो बनाये चाबी आय कुंजी ह। प्रश्न अउ उत्तर। कुछु सोचे विचारे के बात नइये ।पाठ म जेन लिखाये हे तेकरे प्रश्न बनाले अउ उही में के उत्तर।
आनंद के जगेच नइये उल्टा बोरियत जादा हे। ओकर ले अच्छा तो खुद उत्तर खोजे म आनंद आ सकथे।
चोवा राम "बादल"
हथबंद, छत्तीसगढ़
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