Saturday 23 January 2021

सोशल मीडिया अउ साहित्य रचना / लेखन -सरला शर्मा

 सोशल मीडिया अउ साहित्य रचना / लेखन -सरला शर्मा

     विषय पढ़ के गुनान मूड़ उपर चढ़ के ताक धिना धिन बजाए लागिस .... ये लोकाक्षर मं लिखाई हर वार्षिक परीक्षा मं गणित के सवाल बनाए ले कम थोरको नोहय ....तेमा मोर असन गणित शत्रु बर तो हिमालय चढ़ाई आय । 

     सोशल मीडिया के कई ठन रूप हे तेमन मं ज्यादा करके व्हाट्स एप अउ फेसबुक के चलन ल बहुत झन अपनाए हें । इंस्टाग्राम , ब्लॉग , यू ट्यूब , लिंकेडन घलाय मं कोनो कोनो मन लिखथें । मूल बात ये आय के मनसे अपन मन के भाव ल लिखथे ...फेर मेरन चर्चा के विषय हे साहित्य लेखन जेमा गद्य अउ पद्य दुनों समाये हे ...। 

   बहुत खुशी के बात एहर आय के लेखक ल कोनो पत्र पत्रिका , किताब , विशेषांक के अगोरा करे बर नइ परय । सम्पादक के कैंची रचना के काट छांट नइ करय , बढ़िया बात ...। 

गुने बर पर गिस के बिना सुधार के , बिना समीक्षा के लेखक के गलती पकड़ मं कइसे आही ? 

भाव , भाषा , अभिव्यक्ति , लेखन शैली मंजाही कइसे ? 

सोशल मीडिया  मं गद्य , पद्य के सुनामी आ गए हे ...बने बात भाई ..मैं तो उबुक चुबुक होवत रहिथवं । मोर दसा ल बतावत रहेंव त एक  झन बुधियार साहित्यकार बड़ नीक सुझाव दिहिस ..".मैडम ! सब ल पढ़त काबर रहिथस , डिलीट कर देहे कर न मैं तो रोज डिलीट कर देथवं ।" आज सोचत  हंव बिन पढ़े डिलीट कर देहंव त आनी बानी के सुग्घर भाव भरे कविता , गीत के आंनद कइसे पाहौं ,समसामयिक प्रसंग के लेख , लघु कथा , दर्शन , धर्म के गम्भीर चर्चा वाला लेख कब , कइसे , कहां ले पढ़ पाहौं ? प्रिंट मीडिया चिटिक पिछुवाए धर लेहे हे ...दूसर कारण एहू हर तो आय के कतका कन पत्र , पत्रिका , किताब बिसाहौं ? 

   मानत हवं के सोशल मीडिया के साहित्य तुरते नहीं त एक दू दिन मं बिला जाथे ..त ओकरो तो उपाय हे के मनपसन्द , ज्ञानवर्धक साहित्य मिलय त ओला सुरु खुरु एक जघा संजो लेवन । 

जरुर अतकिहा रचना मन ल डिलीट करना भी जरुरी हे ..मोबाइल के पेट पिराये धर लेथे , नहीं त बिचारा मुंह फुलो लेथे उही जेला मोबाइल हैंग होना कहिथन । 

     थोरकुन दूसर डहर के बात गुनिन ...। सोशल मीडिया मं साहित्य लेखन करत खानी हड़बड़ी झन करिन ...अपने लिखे ल सम्पादक , समीक्षक के नज़र से दू तीन बेर पढ़ लिन । 

एकरो ले जरूरी बात के कुछ टिप्पणी ल अनदेखा करिन जइसे , अब्बड़ सुग्घर , वाह वाह , बढ़िया हे . अइसने.अउ हें ,ध्यान देवन के ये शब्द मन रचना के प्रशंसा नोहयं ...औपचारिकता निभाना आंय । सिरतोन के टिप्पणी ओहर आय जेन हर लेखन के करु -  कस्सा , गुरतुर-  नुनछुर , हित -अहित , भाव -भाषा  के विश्लेषण करथे । 

   अब रहिस बात के सोशल मीडिया के रचना मन से साहित्य के भंडार भरत हे के नहीं ? एकर जवाब एके ठन हे । साहित्य ल तो समाज के दर्पण कहे जाथे ...सोला आना सच बात आय इही देखव न किसान आंदोलन , सामाजिक विसंगति के संग साहित्यकार मन के सुरता के ओढ़र मं उन मन के व्यक्तित्व , कृतित्व के जानकारी , नवा जुन्ना साहित्यकार मन के रचना पढ़े बर मिलत हे , त सबो लिखइया मन नवा नवा विधा मं लिखना भी तो सुरू कर देहे हें । सोशल मीडिया मं साहित्य चर्चा के एहर बहुत बड़े फायदा आय । 

   छत्तीसगढ़ लोकाक्षर के इही पटल मं तो गद्य के सबो विधा मं लेखन होवत हे , नवा नवा कविता संग छंद बद्ध रचना घलाय पढ़े बर मिलत हे । मोर विचार मं सोशल मीडिया मं साहित्य लेखन हर साहित्य के भंडार भरत हे फेर थोर बहुत ऊंच -नीच , घटा -बढ़ी , उत्तम - 

मध्यम तो सबो काम मं होबे करथे एकर सेती लिखना छोड़े मं कइसे बनही ? अरे भाई चिल्हर के डर मं कथरी छोड़े मं थोरे बनही ?  

  तभे तो कहिथन लिखत चलव ..। 

कलम तोर जय होवय । 

   सरला शर्मा

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