Saturday 23 January 2021

सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन-पोखनलाल जायसवाल

 *सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन-पोखनलाल जायसवाल


       अभी के समे ह सोशल मीडिया के समे ए। जे मनखे सोशल मीडिया ले दूरिहा रही, वो आगू चलके के माथा पीटही। चलनी म दूध दुहै, अउ भाग ल दोष देवै। समे के संग नइ चले ले मनखे सबर दिन बर पछुवायच रही। प्रचार-प्रसार बर सोशल मीडिया ले जादा सस्ता अउ पोठ साधन अउ नइ हे। ए प्रचार-प्रसार चाहे चुनावी होय, चाहे दूकानदारी होय। सरकारी होय, चाहे प्राइवेट। सबो सोशल मीडिया के मुँह ताकत रहिथे। मुँह ताकही काबर नहीं, जब मनखे नींद टूटतेच बेरा दसनाच म मोबाइल झाँकथे।आजकाल प्रचार-प्रसार बर जेन विज्ञापन होथे, वो म साहित्य के झलक देखे जा सकथे। 

      अभी के समे म सोशल मीडिया ले बाहिर रही पाना मुश्किल होगे हे। अभियो मनखे तिर किताब खोल के बइठे के बेरा नइ हे। ......किताब पढ़ना नइ चाहत हे। 

      एक समय रहिस जब सरी दुनिया ह रेडियो अउ टीवी म मोकाय रहिस। कोनो भी होनी-अनहोनी के जानबा अउ मनोरंजन एकरे ले होवय। रेडियो दूरदराज के गँवई-गाँव म घरोघर सुने जाय। टेलीविजन बिजली के अंजोर के संग सँघरा घर-कुरिया म खुसर के पाँव जमा डरिस। फेर समाचार पेपर, टीवी अउ रेडियो के पहिलीच जम्मो जानबा छिन भर म जंगल के आगी कस चारों मुड़ा बगर जथे। ए बगराय के बूता ल करथे सोशल मीडिया। कभू-कभू इही ह आगी म घींव डारे कस बूता घलो कर डारथे। काबर के एकाध खबर अइसे रहिथे, जेकर मुड़ी-पूछी के पता ए नइ रहै। कउआ कान लेगे कहिके ओकर पाछू दउड़ परथे। सोशल मीडिया ले समाज ल सावचेत रहे के जरुरत हवै। सोशल मीडिया आज एक ठन नशा होगे हे। जे ह थोरको चूके ले नवा पीढ़ी ल भटकावत ले पीछू छोड़बे नि करय। बाहिर निकल के गली चउँक म चार झिन मनखे ल देख लव, तिर म बइठ के चारों झन मोबाइल म गर डार कोचकते मिलही। 

*सोशल मीडिया के साहित्यिक अवदान* 

        सोशल मीडिया ह पुरखा साहित्यकार मन के रचना ल जन-जन तक पहुँचा दे हे। जब चाहे तब उन मन ल इहें पढ़े जा सकत हे। समकालीन साहित्य के दिशा अउ दशा ल घलव रोजेच देखे-सुने जा सकत हे। स्थापित साहित्यकार मन के साहित्यिक आयाम अउ अवदान ल समझे जा सकत हे। अपन साहित्यिक यात्रा ल आगू बढ़ाय बर सीख घलो ले सकत हन। कोन विषय म कइसन साहित्य लेखन करे के जरुरत हे, यहू समझे म सहूलियत होही। जे पढ़ही, उही लिखही।

       तीज परब म बधाई देवत बेरा मनखे के विचार कविता बनके फुट परथे। ...अइसनेच पढ़त लिखत तो लेखन के शुरुआत होथे।

       साहित्य के जम्मो विधा म सरलग नवा-नवा जतन अउ उदीम सोशल मीडिया म होतेच हवै। जेकर फायदा साहित्य ल ही मिलना हे।

*सोशल मीडिया प्रचार-प्रसार के मंच*

         अभी के बेरा म सोशल मीडिया प्रचार-प्रसार के सबले अच्छा मंच हे। लइका सियान सबो के हाथ म मोबाइल हे। अइसन म एकर ले बढ़िया प्रचार-प्रसार के कोनो दूसर माध्यम नि हो सके। सोशल मीडिया म फेसबुक, ट्वीटर, यू-ट्यूब के छोड़ व्हाट्सएप के हजारों समूह हे, जिहाँ साहित्यिक गतिविधि सरलग चलथे। जेमा कार्यशाला के आयोजन ले साहित्य सही दिशा म जावत दिखत हे।

       छत्तीसगढ़ी अउ छत्तीसगढ़ी छंद रचना बर प्रणम्य श्री अरुण कुमार निगम जी के द्वारा ऑनलाइन कक्षा के शुरुआत २०१६ म करे गिस। जउन सोशल मीडिया के उपयोग ल पहिचानिन। जेकर फल आय के छत्तीसगढ़ी म छंद लेखन आज मिशन बनगे हे।   छत्तीसगढ़ी साहित्य बर सोशल मीडिया बरदान बनगे हे, कहे जा सकत हे। छत्तीसगढ़ी छंद खजाना अउ गद्य खजाना के नाँव ले गूगल के मदद ले समकालीन छत्तीसगढ़ी साहित्य के दिशा अउ दशा ल समझे-परखे जा सकत हे। गुरतुर गोठ के रूप म छत्तीसगढ़ी साहित्य के विकास म श्री संजीव तिवारी जी के योगदान अविस्मरणीय रही।

              मोबाइल म डाटा चालू करत भर के देरी हे, व्हाट्सएप ग्रुप मन म पोस्ट अवई म कोनो देरी नइ होय। व्हाट्सएप फेशबुक ट्वीटर सब म अतका भीड़ लगथे, के मोबाइल सुरता सुरता के रेंगे लगथे।  सोचे ल परथे के एकर ले जरूरी अउ कोन्हों दूसरा बूता नइ हे का? सोशल मीडिया के चस्का अइसे लगे हे के एके छत के तरी म बइठे मनखे बर मनखे मेर समय नइ हे। दूरिहा के मनखे सुहाथे। तिर के मनखे के कोनो पुछारी नइ राहय। सोशल मीडिया म कुछु लिखे भर के देरी हे, ओकर लाइक अउ अनलाइक के कमेंट आय म ओतका बेरा नइ लगय, जतका ओला पढ़े म लगथे। लाइक के भूख अइसे हे के जतके खाबे ओतके बाढ़ते जाथे।

*कोरोना काल म सोशल मीडिया अउ साहित्य*

         कोरोना काल म लॉकडाउन के लगे ले मनखे घरखुसरा होके रहिगे। पाँव म बेड़ी बँधागे। त मनखे ल सोशल मीडिया के सहारा मिलिस। साहित्यकार मन बर सोशल मीडिया ऑनलाइन साहित्यिक संगोष्ठी, कविसम्मेलन, ई-पत्रिका साहित्यिक पत्रिका के नवा दुआर लेके आइस। ए साहित्य अउ साहित्यकार बर नवा आयाम होइस।

*सोशल मीडिया अउ साहित्यिक चोरी*

        सोशल मीडिया म कई घउ अइसे रचना आइस जेन अलग-अलग कई रचनाकार के नाँव ले पढ़े मिलिस। अइसन म मौलिकता अउ सर्वाधिकार के सवाल खड़ा होथे। कथासम्राट मुंशी प्रेमचंद जी के लिखे कविता घलो प्रचारित होइस।....... सोशल मीडिया म रचना मन के चोरी होना नवा बात नोहय। पाछू दू बछर पहिली *तिंवरा भाजी* ऊपर लिखे *कौशल साहूजी* के सार छंद खूब घूमिस। फेर उँकर नाँव कोनो जगा नी रहिस। 

       विज्ञान के वरदान अउ अभिशाप दूनो सरूप देखे मिलथे। बारुद जिहाँ गलत उपयोग करे ले बिनाश करथे, उहें सही उपयोग विकास के दुआर खटखटाथे। वइसने सोशल मीडिया ल घलो सोच समझ के उपयोग करे के चाही। जेकर ले समाज ऊपर बने प्रभाव पड़य। आन के तान झन होय एकर संसो करे ल पड़ही।


पोखन लाल जायसवाल

पलारी (बलौदाबाजार भाटापारा)

1 comment:

  1. गद्य खजाना म जगह देहे बर धन्यवाद गुरुजी

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