Sunday 3 January 2021

बछर दू हजार बीस मा का पाएन,का गँवाएन*

 *बछर दू हजार बीस मा का पाएन,का गँवाएन*


कहे गे हे समय के चक्का घूमते रहिथे वो कभू एक जगा ठहरे नइ राहय। ए समय के धारा म बहुत कुछ बोहाके अथाह काल-सागर म समा जथे। एक पल नाहकिस तहाँ ले दूसरा पल आ जथे।दूनों म कोनो मेल नइ राहय। हाँ, अतका जरूर हे--गुजरे पल हा अपन पिछू कुछ चिनहा अइसे छोड़ देथे जेमा कुछ ल घेरी-बेरी सुरता करे के मन होथे त कुछ ल तुरते भुलाये के मन करथे। बादर कस उमड़त-घुमड़त कुछ सुरता मन मीठ-मीठ त कुछ जहर करुवा लागथे।

    असनेच कहानी चंद दिन के मेहमान बछर दू हजार बीस के हाबय ।एकर पन्ना ल पलटे  म उपलब्धि के तथाकथित बड़े बड़े कहानी जइसे कश्मीर ले अनुच्छेद 370 अउ धारा 35 A के हटना, तीन तलाक कानून, राम मंदिर निर्माण बर सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसला अउ ओकर बिना खून-खराबा,बिना दंगा फसाद के आम भारतीय मन के सहर्ष स्वीकार करना आदि संगे संग कोरोना काल म तको कुछ राज्य म सफलता पूर्वक चुनाव ,चंद्र अउ मंगल अभियान, अटल टनल के निर्माण, अनेक पूल ,बाँध ,सड़क, भवन के निर्माण के कहानी लिखाये मिलथे। ए सबके गिनती बछर दू हजार बीस म पाये जिनिस कोती करे जा सकथे।

 समाजिक रूप ले देखन त बछर दू हजार म आये कोरोना संकट ह  दया,मया अउ सहयोग के भावना ल जगाये अउ बढ़ाये के काम करिस। देश प्रेम अउ एकता के भावना ल बढ़ाइस। कई महिना के लाकडाउन बखत अभाव म जिये ल सिखाइस। डाक्टर, पुलिस मन अपन जान के बाजी लगा के सेवा के उत्कृष्ट उदाहरण प्रस्तुत करिन। परिवार म मेल जोल बढ़िस। 

  ए तो निर्विवाद रूप ले कहे जा सकथे कि दू हजार बीस म पर्यावरण  बनेच सुधरिस हे।

    अब अगर खोये का हन म बिचार करे जाय त गुनत गुनत माथा फट जही फेर खोये के गिनती नइ करे जा सकय। सबले पहिली नम्बर म विश्व व्यामी कोरोना संकट ह आही जेन ह लाखों मनखे मन ला मार डरिस।  मजदूर-गरीब मन जीते जी मरे बरोबर होगें। हजारों हजार मनखे मन के रोजी-रोटी छिनागे ।कतको परिवार ,देश अउ उद्योग धंधा चौपट होगे। राजनैतिक रूप ले मजदूर गरीब के सेवा के डंका पिटइया मन के ढकोसला टकटक ले देखे ल मिलिस।  बड़े बड़े हत्या, लूट अउ घृणित बलत्कार के दाग , जात-पात अउ धर्म के नाम म  अत्याचार तको होइस।

     कुल मिलाके हमर विचार ले ये दू हजार बीस के बछर ह अइसे अइसे चोट दे हे के सुरता करके जी घबरा जथे।


चोवा राम 'बादल'

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