Saturday 23 January 2021

कागज के महल -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

 कागज के महल -हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

                    अम्बेडकर के पुतला के आघू म , डेंहक डेंहक के रोवत रहय वोहा ... । तिर म जाके , ओकर खांद म हाथ मढ़हा के , कारन पूछत चुप कराहूं सोंचेंव फेर , हिम्मत नी होइस , को जनी .... रोवइया हा महिला आय के पुरूस ...... ? एकदमेच तोप ढांक के बइठे रहय , का चिन्हतेंव जी ......। चुप कराये खातिर , धूरिहा ले जइसे गोठियाये बर धरेंव , ओहा महेला कस अवाज म , चिचिया चिचिया के , गारी बखाना करे लगिस । मोला थोकिन अच्छा नी लगिस । थोकिन अऊ तिर जाके , गारी बखाना ले बरजे बर , ओकर खांद म , जइसे अपन हाथ मढ़हाये बर धरेंव , ओला को जनी मोर छुये के का अभास होइस , पल्ला दऊंड़िस । बिगन बात के , काबर नंगत दऊंड़त हे कहिके , मोरो मन म , शंका उपजगे । पिछू पिछू महू दऊड़ेंव । मोला पिछू पिछू , सरपट दऊड़ंत देखिस त , ओकर गति बाढ़गे । मे चिचिया के केहे लगेंव ‌- मोला गलत झिन समझ , में तोर पीछा नी करत हंव , में तोला कन्हो नकसान नी करंव , काबर अतेक दऊंड़त हस तैंहा .........। मोर बात समझ , उही तिर ठाढ़ होगे । अतेक दऊंड़े के बावजूद , मुड़ी कान कस के तोपायेच रहय , अऊ तो अऊ हाथ गोड़ तको , नी दिखत रहय । भूत परेत मरी मसान होही कहिके , में डर्रा गेंव ......। अब के दारी , में पिछघुच्चा होयेव , पलटेंव अऊ पल्ला छांड़ दऊंड़ेव .......। अपन परान बचाये के फिकर म , हपटत गिरत , तरिया नदिया जंगल पहाड़ , कहींच ला नी घेपेंव । कन्हो पिछू म आये के अहसास सिराये ले , एक कन थिराके , पिछू कोती लहुंटेंव , पीछा करे के कन्हो निसान नी पायेंव । उही रसदा म फेर लहुंट गेंव .. जेकर छोंड़ के ओला आये रेहेंव , ओहा उहीच मेर आके बइठे रहय , अऊ रोवत गावत , गारी गल्ला देवत रहय ....... । 

                    में पूछेंव – काबर रोथस जी तेंहा अऊ काबर , गारी बखाना करत हस .. ? काये दुख हमागे तेमा .....? ओ किथे – जेमन मोला बियइन , तेमन मोर ठीक से बेवस्था नी करिन , तेकर सेती , उही मनला बखानत हंव । मे केहेंव – अपन दई ददा ला कन्हो अइसने बखानथे तेमा ...... ? ओ किथे – अपन ला देख तैंहा ......। मोर कस अबेवस्था करतीस तोरो दई ददा मन , तब तैंहा तो , ओमन ला जिंदा गड़िया देते ....। में पूछेंव – कायेच अबेवस्था कर डरिन होही तेमा .....। अतेक सुंदर , तोला धरती म जनम दिस , पालिस पोसिस , बड़े होगेस तहन भुला गेस अऊ बखांने लगेस.....। ओ किथे – में नी भुलायेंव , बियाये के पाछू , ओमन मोला भुलागे । में अचरज म पर गेंव , अऊ केहे लगेंव – नलायक निकलगे होबे तभे भुलइन होही ...... ? ओ केहे लगिस – में नलायक नोहंव , मोला जनम देके अइसे जगा म राखिन के , में नलायक अऊ नकारा होगेंव ..... । मोला ओकर गोठ बिलकुलेच समझ नी आवत रिहीस । ओ मोर मुहुं ला देखके समझगे अऊ अपने अपन , अपन राम कहानी बताये लगिस –  मोर नाम लोकतंत्र हे बाबू .......... मोला जनम देवइया मन , मोर बर बाइस हिस्सा ( संविधान के 22 भाग ) म , बड़े जिनीस महल बनइस , जेमा तीन सौ पंचानबे खोली ( 395 अनुच्छेद ) रिहीस । मोर महल म , रंग बिरंग के दीवार म , आठ प्रकार ( आठ अनुसूची ) के , महंगा महंगा पथरा लगे हे , फेर दुख सिर्फ अतके हे के , मोला उहां ले कन्हो निकलन नि देवय , मोर आवसकता पूरा करे बर समे समे म , कतको अकन खोली म नावा नावा टाइल्स ( 101 संविधान संशोधन ) लगा डरिन , चार प्रकार के अऊ नावा दीवार म पथरा लगाके ( चार नावा अनुसूची ) , मोर महल ला गजब चमका दिन , फेर बैरी मन , मोला बाहिर निकलन नी दिन । में काकरो से मिल नी सकंव , काकरो ले गोठिया नी सकंव .....। में हाँसेंव अऊ केहेंव –  काबर लबारी मारथस यार , मोर से मिल डरे , गोठिया घला डरे । ओकर आंसू के धार नदिया कस बोहाये लगिस ......। ओ किथे – जेकर ले मिलथंव , संगवारी समझ , अपन दुखड़ा सुनाथंव , तिही मोला , काबर निकले कहिके , मारथे पीटथें । में केहेंव – बड़ बिचित्र बात करथस जी .... मोर से मिलेस .... फेर मेंहा तोला हांथ लगायेंव का .... ? वो किहीस – तोला मौका नी मिलीस बाबू .... निही ते तिहीं नी छोंड़ते .... । तोला यदि एक भी बेर गलती से कहि पारतेंव के .... तिहीं मोर पालनहार अस .... तिहीं मोर रक्षक अस .... तिहीं मोर संगवारी अस ..... तहन तिहीं मोर उपर चइघ जते .... । तैं मोला झन अमर सकस उहीच डर म भागत रेहेंव .... ।

                     में केहेंव – हमन नानमुन मनखे आवन .... हमर ले तोला डर्राये के कोई आवश्यकता निये । ओ किथे – जे मोर तिर अमरथे न तिही हा अपन आप ला सबो ले छोटे बताथे .... अऊ कतका बेर मोर मुड़ म सवार होके नकसान पहुंचाथे .... तेला आज तक गम नी पाये हंव .... । मोला बाहिर निकालही सोंचके ..... एक बेर इही देस के चौथा खंभा नाम के एक झन ला अपन हितवा समझ .... ओकरे तिर ओधेंव , त ओहा , तैं देखे बर अऊ सुने बर धर लेहस कहिके , मोर आंखी ला फोर दिस अऊ कान ला काट दिस । उहां ले भागत भागत तीसर खम्भा ला अपन हितवा समझ तिर म चल देंव , त ओहा , तोर दिमाग बहुतेच तेज चलत हे कहिके , मोर दिमाग ला नंगा के राख लिस । ओकर संगवारी मन , मारे पिटे ला धर लिन , जेल म डारे बर धर लिन । दूसर खंभा करा अपन दुखड़ा गोहनाये बर सोंचेंव , त ओहा , मोला काम धंधा झिन कर सकय कहिके , मोर हाथ गोड़ ला टोर के बइठार दिस । तभे मोला पता चलिस के पहिली खंबा हा मोर असली रक्षक आय .... उही मोर रक्षा करही ..... फेर वारे मोर किस्मत .... उही हा सबले जादा खतरनाक निकलगे , ओकर संग मोला सबले महंगा परिस । ओहा मोर नाक ला काट दिस , जब मऊका मिलथे मोर पेट म लात मारथे ...... , येमन तो केऊ बेर , सरेआम नीलाम घला करे बर , बजार म खड़ा करे बर धर लेथें ......। येमन मोला बंधक बनाके राखे के घला प्रयास करिन .... ।  

                    में हाँसत केहेंव – तोर बर , तोर जनक मन , अतेक बड़ महल बना के , तोला सुरछित राखे हे , त तैं हा काबर , होसियारी मारे बर , बाहिर निकलथस यार ...... । ओ किथे – में तुंहंर कस सहींच के नानुक मनखे मन बर जनमे हंव , महल म धंधाये बर निही । में बाहिर आहूं , तब तहूं मनला बताहूं के , तुंहर बर , मोर डहर ले , कतका सुभित्ता के बेवस्था हे । में हाँसत केहेंव – मोला कन्हो अइसने महल म रेहे बर कहितीस न , आंखी मुंद के अपन जिनगी ला बिता देतेंव , कभू मार खाये बर बाहिर नी निकलतेंव । ओ किथे – मोर महल सिरीफ कागज के आय बाबू , जेमा अतका अकन कचरा बगरे हे के , ओकर दुर्गंध म , नाक दे नी जाय । जनता के बीच जाहूं त , अऊ जनता मोला जानही तब , मोर कागज के महल , पक्का बनही अऊ जनता के जिनगी के महल घला , सुघ्घर बन सवंर जही  , तेकर सेती घेरी बेरी निकले के हिम्मत करथंव । 

                    में केहेंव – जनता के फिकर करइया , बहुत झिन जनम धर डरे हे हमर देस म .... । तैं कागज म रहिथस लोकतंत्र , त बड़ सुंदर दिखथस , भुंइया म पांव देके , अपन सरीर ला , काबर बिगारत हस । रिहीस बात जनता के , तैं जनता ला , फोकट भरमा झिन , फकत गोठ के , तैं कुछ कर नी सकस......। मोर बात , को जनी ,  ओकर हिरदे म चुभगे ..... के ओला भा गे ............ , उही दिन ले , बाहिर नई निकले के , कसम खाके बइठे हे लोकतंत्र हा , अपन संवैधानिक कागज के महल म ....। 

     हरिशंकर गजानंद देवांगन , छुरा .

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