Thursday 7 January 2021

कलम अउ हथियार"-ग्यानु

 "कलम अउ हथियार"-ग्यानु


                            आदिकाल ले लेके अभी तक वर्तमान ( आधुनिक काल) ल देखलव। जब- जब मानव समाज उपर संकट आए हे। असामाजिक लोगन मनके अत्याचार अउ आतंक हा बढ़े लगथे। तब उँखर नाश करे बर हथियार उठे हे। अउ कतको सिधवा मनखेमन उँखर डर म चुपचाप उँखर अत्याचार ल सहत रहिथे। अइसन मन ल जगाये के काम कलम करथे। धर्म अउ संस्कृति के संरक्षण कलम अउ  रक्षा हथियार करथे।

       अभी तक अक्सर ये देखे अउ सुने बर मिलथे कलम अउ हथियार अन्यायी मनके खिलाफ उठे हे। पहिली घलो कोनो शासक अपन प्रजा उपर अत्याचार या बेवजह सताये अउ प्रजा बपरामन असहाय ओखर आतंक ल सहय। अइसने म कोनो आशा के दीप जलइया अपन गीत अउ कविता के माध्यम ले अपन कलम के धार ले प्रजा मन ल सावचेत करय। अउ शासक के अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करे बर हौसला दय। वो बखत होय या अभी के अइसनो भी देखे बर मिलथे कखरो कलम राग दरबारी त कखरो कलम ले आगी सुलगथे।

           आज भी इहाँ शासन- प्रशासन अपन मनमानी करथे जनभावना के साथ खिलवाड़ करथे त सबले पहिली कलम चलथे। जब कलम के बात या आवाज शासन- प्रशासन नइ सुनय तब आंदोलन करे बर या हथियार उठाए बर आमजन मजबूर हो जथे।

             हथियार जहाँ विनास के रस्ता अपनाथे वही कलम शाँति, समझौता अउ आत्मचेतना के बीज बोथे। हथियार ले होय घाव प्रत्यक्ष होथे तेखर सेती भर जथे। फेर कलम ले मिले घाव मनखे ल झकझोर देथे अउ अप्रत्यक्ष होथे। कलम ले हमर आत्मसम्मान अउ हथियार ले प्रान के रक्षा होथे।


जहाँ काम आथे कलम, का करही हथियार।

समता, सुमता लानथे, बाँटे मया दुलार।।


          अंत म अतका जरूर कहूँ कलम के धार; हथियार के धार ले ज्यादा तेज होथे। कभू- कभू अइसनो होथे जेन काम ल हथियार नइ कर सकय वो काम ल कलम कर देथे।


बखत परे मा ये कलम, बन जाथे हथियार।

दीनन दुखी गरीब ला, देवाथे अधिकार।।


ज्ञानुदास मानिकपुरी 

ग्राम- चंदेनी ( कवर्धा)

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