Saturday 23 January 2021

छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के बढ़ोतरी बर कोन तरह ले उदिम होना चाही।* (महेंद्र बघेल)

 *छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य के बढ़ोतरी बर कोन तरह ले उदिम होना चाही।*

                      (महेंद्र बघेल)


रचनाकार मन ला छत्तीसगढ़ी साहित्य के बढ़ोतरी बर गद्य के सबो विधा मा कलम चलाना परही।

गद्य के कोनो भी विधा मा कलम चलाय के पहिली छत्तीसगढ़ी साहित्य ला चेतलगहा पढ़ें ला  परही।साहित्य ला पढ़े ले ये पता चलही कि हमर पुरखा साहित्यकार मन कौन से अमूल्य धरोहर देके गय हवॅंय अउ अब हम सब ला का करना हे।

जब साहित्यकार मन जादा ले जादा छत्तीसगढ़ी साहित्य के अध्ययन करही त ओकर ले निसंदेह उत्कृष्ट छत्तीसगढ़ी साहित्य के सृजन भी होही।

छत्तीसगढ़ी के संगे संग हिन्दी के उत्कृष्ट साहित्य के अध्ययन, हिंदी मा साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त पुस्तक के अध्ययन, अउ कहूॅं संभव हो पाय तो ॲंग्रेजी साहित्य ला पढ़के नवा विचार  ला जानना पड़ही।

*हजार डाॅंड़ ला पढ़ त एक डाॅंड़ लिख* ये सूत्र ला आत्मसात करके छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य मा सृजन करे के उदिम होना चाही।

पंद्रह बीस साल पहली दू ठन छत्तीसगढ़ी गीत हर बड़ धूम मचाय रहिस, टूरा नइ जाने रे बोली ठोली माया के..., मोला झोलटू राम बना दिये ना...। ये दूनों गीत हर छत्तीसगढ़ मा रिकॉर्ड तोड़ बजे (चले) रहिस, लइका ला लेके जवान तक के जुबान मा ये दूनो गीत हर सिर चढ़के बोलिस ।ये गीत मन लोकलुभावन अउ मनभावन तो रहिस फेर कुछ दिन के मेहमान बस रहीस जे रफ्तार ले सबके जुबान में चढ़िस उही रफ्तार ले उतर घलव गय।

दूसर कोति *मोर संग चलव रे, मोर चलव जी...,*  *छईया भुईयां ला छोड़ जवैय्या तै...*

जइसन गीत काली अउ आज घलव सबके जबान मा हे अउ  हमेशा रही।

कहे बोले के आशय ये हवय कि विषय- वस्तु, कथ्य, शिल्प , शैली जइसे गद्य के आवश्यक तत्व के प्रस्तुति मा वजन रही त कोई भी कृति हर जरूर पढ़ें के लइक रही, अउ अइसन सृजन ले गद्य कोठी हर जरूर भरही ।

दमदरहा अउ जमगरहा सृजन ला पढ़े बर आन भाषा भाषी मन ला घलव छत्तीसगढ़ी सीखना पड़ही।जइसे चंद्रकांता संतति उपन्यास ल पढ़ें बर अंग्रेजी अउ कईयों आन भाषा भाषी मन ला हिन्दी सीखना पड़िस। आखिर ये लेखनी के कमाल तो हरे न।

धर्म ,जाति ,वर्ग भेद के संकुचित दायरा ले ऊपर उठके  भाईचारा,शिक्षा, स्वास्थ्य ,पर्यावरण  बेरोजगारी, विज्ञान- टेक्नोलॉजी ,उन्नत कृषि ल विषय बनाके ,संगे संग दहेज, नशा उन्मूलन, युवा पीढ़ी के भटकाव, वृद्धाश्रम जैसे सामाजिक कुरीति के उपर मुखर होके कलम चलाना पड़ही। 

डिजिटल विज्ञान के युग मा पारिवारिक , सामाजिक अउ धार्मिक मान्यता ला माने अउ मनवाय के पहली ओला जाने के महत्तम ला उद्घाटित करके सृजन करना पड़ही।

वर्तमान हर समकालीन साहित्य के दौर आय, अउ समकालीन साहित्य के विचारधारा हर विज्ञान सम्मत हे।जब तक  साहित्य मा वर्तमान समाज के सरोकार के बात नइ होही तब तक छत्तीसगढ़ी गद्य साहित्य हर समृद्ध कइसे हो पाही।


महेंद्र कुमार बघेल डोंगरगांव जिला राजनांदगांव

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