Sunday 10 January 2021

गुलाम'

 'गुलाम'


               तइहाँ समय अउ अभी के समय ल देखथँव त जमीन- आसमान के फरक दिखथे। पहिली मनखेमन भले पढ़े- लिखे नइ रिहिन फेर अबड़ सिधवा रहय। भूख- गरीबी, कंगाली रहय फेर अपन ईमान- धरम, संस्कृति अउ संस्कार ल जियत ले नइ छोड़य। अपन के बड़े हमेशा मान- सम्मान देवय चाहे कोनो रहय। वइसने अपन ले छोटे ल अपन लइका सही खूब मया दुलार दय। भले संसाधन के कमी रिहिस फेर कतको बड़े दुख के पहाड़ इँखर हिम्मत के आगू म बौना लगय। जेन मेर पाँव रख देदिन पानी ओगरे बर पड़तिस। एक- दूसर के दुख- सुख ल अपन समझय। 

                 फेर आज के समय ल देखथँव त मनखेमन मोला मशीन बरोबर नजर आथे। मनखे जीवन म मशीन- संसाधन के अतका प्रभाव हे के इँखर बिन एको पग चलय नइ जाय न एको छिन रहय जाय। मनखे पढ़त- लिखत तो हे, देश- दुनिया के जानकारी रखथे फेर अपन संस्कृति अउ संस्कार ले कोसो दुरिहाँँ होवत जात हे। मनखे अपनआप म अतका मगन या भूले हे कखरो दुख- सुख बर बेरा नइ निकाल पावय।

                 तइहाँ समय मनखे अपन सबो काम ल अपन हाथ- पाँव ले करलय। कतको दुरिहाँँ पानी बर जावय। बड़े- बड़े कारखाना, सड़क-पुल, बाँध- नहर अउ महल- अटारी ल बनाए हे। खेती किसानी, नाँगर- बख्खर, गाड़ीबइला, खंती- कुदारी अउ बेलन- दँवरी के सुरता आ गे। मनखे ससन भर पसीना बोहावत ले कमावय अउ पेज- पसिया पी के भुइँया म खर्रा बिन दसना के चैन के बँसरी बजावत सोजय। न पंखा के जरूरत न सोफा-गद्दा के।  कहाँ गरमी अउ कहाँ जाड़। उँखर जीवन बिल्कुल 'सादा जीवन उच्च विचार' ल चरितार्थ करय। संसो- फिकर ले बाहिर तेखरे सेती उमर भर जियय अउ निरोगी रहय। लइकामन घलो उघरा अपनआप म मस्त रहय। आनी-बानी के  खेल खेलत रहय। 

           फेर आज देखथँव त मनखे ल सोफा म घलो नींद नइ आवय। नींद के गोली खाए बर परथे। एसी लगे हे रूम म तभो गर्मी लगत हे। बिसलरी पानी पियत हे तभो बीमार परत हे। एक कदम चले नइ जाय गोड़ पिराथे साँस फूले लगथे। लइका मन खेलकूद ल भुलागे। पढ़ई- लिखई सब सुख सुविधा मिलत हे।

                आज सबो बूता बर मशीन आ गेहे। खेतिबारी के बूता सड़क- पुल बनाना बाँध- नहर बनाना अउ कारखाना बनाना सब मशीन के द्वारा होवत हे।  इहाँ तक के लइकामन ल कुछु पढ़ना या जानकारी लेना हे त बटन दबावत आगू म मिल जथे।  आज के लइकामन खेलकूद का अपन बचपना ल भुलागे हे। गेम खेलई ले फुरसत नइये। अइसे- अइसे मशीन आ गेहे के मनखे के सबो बूता मशीन करत हे। मनखे आलसी होगे तेखरे सेती आनी-बानी बिमारी होवत हे अउ अपन उमर भर जी घलो नइ पावय।

            मनखे अपन सुविधा बर मशीन- संसाधन बनाए हे फेर आज देखथँव त ओखर गुलाम होके रहिगे।


ज्ञानुदास मानिकपुरी 

चंदेनी (कवर्धा)

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