Saturday 23 January 2021

तैहा के लिखइया बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव -सरला शर्मा

 तैहा के लिखइया बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव -सरला शर्मा

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      2 फरवरी 1894 के दिन जनमे लइका खेलत कूदत इलाहाबाद ले मैट्रिक पास होगिस ...सियान सामरथ मन कहिन बहुत पढ़ाई होंगे अब रोजी रोजगार नहीं निदान नौकरी चाकरी देख बाबू ..। लइका के नांव रहिस मावली प्रसाद श्रीवास्तव ....उन साहित्यिक रुचि वाला रहिन फेर ओ समय तो लोगन हिंदी च मं लिखयं .त उन्हूं कविताई करे लगिन । अनुवाद घलाय करिन , छत्तीसगढ़ दर्शन , निबंन्ध कुसुमाकर , किसानों की भलाई , कुलद्रोही कहानी संग्रह , उद्गार कविता संग्रह ...अउ कई ठन लेख , सम्पादकीय लिखत चलिन ..। कलम थिराइस सन 21 अगस्त 1974 के दिन काबर के साहित्य साधक बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव सरग चल दिहीन ..। 

    ओ समय जब छत्तीसगढ़ी हर बोली कहे जावत रहिस उन छत्तीसगढ़ी मं लिखत रहिन ...। 

" हमरे घर मं उत्तिम खेती , हमीं च देथन धान , 

  इहें भिलाई , इहें कोरबा , तभो ले मरे बिहान । 

       काहीं कहे नइ जाय ....

मुलुक मुलुक के मनसे खुसरिन , बिन रोजी बिन छांव , 

छत्तीसगढ़ बन गइस चरागन , बिन मालिक कस गांव । 

    आउ सहे नइ जाय ....। " 

        कवि के मन मं छत्तीसगढ़ के मनसे तनसे बर कतका संसो , कतका पीरा छलकत रहिस । 

सन 1933 मं खंडवा मध्यप्रदेश ले छपइया  अखबार मं मावली प्रसाद जी के लेख माला छपे रहिस " छत्तीसगढ़िया कोन " ...ये लेखन हर सुरता कराथे के उंकर मन मं छत्तीसगढ़िया मन  बर , इहां के रहन सहन , बोली बात , बाहिर ले आये मन ले ठगावत जात अपन भाई बहिनी मन बर कतका संसो हे । 

  सन 2014 मं लक्ष्मण मस्तूरिया लिखे हें " पचास बरिस पहिली छत्तीसगढ़ के जैन हालत रहिस ,वो ह आजो कमतर नइहे । बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव जी के लिखे " छत्तीसगढ़ के दसा ..." मं उंकर धरती के पीरा ल उदगारे के अद्भुत सामरथ के पता चलथे । 

     छत्तीसगढ़ी साहित्य के पढ़इया , लिखइया मन बर उंकर एके ठन गीत हर मसाल बनके रस्ता अंजोर करत हे त शासन के मुंह ताकत कलम चलइया मन ल उबारे बर इही एकलौता गीत हर काफी हे । कहि सकत हन के बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव के लेखन के मूल स्वर छत्तीसगढ़ी हे । बानगी देखव न ..

" मर मर मरे बदरवा ह , अउ बांधे खाय तुरंग , 

  अपने घर मं हमीं हेरौठा , सुन के दुनिया ढंग । " 

       

 कोन कतका लिखिस , कते कन किताब छप गिस एकर ले बहुते महत्वपूर्ण होथे काय  लिखिस , देश , राज , समाज , साहित्य , भाषा के कोन तरह ले बढ़ोतरी के बात , विचार लिखिस । 

      बाबू मावली प्रसाद श्रीवास्तव के सुरुआती योगदान ल कभू भुलाये नइ जा सकय । 

            सरला शर्मा

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