सोशल मीडिया अउ साहित्य लेखन
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होत बिहान ले सोशल मीडिया के दुआर मं पहुंच गयेंव ...काबर के न तो कोनो मकर संक्रांति के दान मंगईया दिखिन , न बाम्हन देवता के दरसन मिलिस । तिल गुड़ मिला के चीला बनाएवं ..दुआर मं ठाढ़े रहि गयेंव ..न तो गाय दिखिस न कुकुर ...। मरन होगे भाई ...नहा डारे हंव त कुछु खाये के मन लागत हे फेर सियान मन कहयं ...तिल गुड़ के संग सामरथ अनुसार दान देहे बिना मुंह मं कुछु डारना नई चाही ..।
गुनेवं ...सोशल मीडिया मं तो आनी बानी के तिल लाड़ू , गुझिया , खिचड़ी सजे थारी के फोटो दिखत हे , उही ल महूं एती ओती भेज देववं न ...आधुनिक दान इही ल कहत होहीं तभे तो लोगन धरा रपटी भेजत हें ...अउ मकर संक्रांति के बधाई घलाय तो लिखे लिखाए मिल जावत हे ...फेर का ..मन भर के भेज देहेवं । फेर गुनत हंव ...सोशल मीडिया मं कोनो मकर संक्रांति के महत्ता , कथा , वैज्ञानिक कारण , उत्तरायण सूर्य , बिहू , भोगी पोंगल , खिचड़ी उपर लिखत काबर नइये ..। जब लिखहीं तभे तो सोशल मीडिया मं प्रासंगिक साहित्य लेखन होही ...मन मुताबिक गद्य , पद्य , कविता , कहानी लिखे जाही तभे तो हम पढ़बो , नवा जुन्ना जानकारी पाबो , हमू ल कलम धरे के मौका , प्रेरणा मिलही ।
वर्तमान सन्दर्भ मं लिखना हर साहित्यकार बर जरूरी होथे ,आज तो ये सुविधा हे के रोज के रोज लिखव तुरते सोशल मीडिया मं आ जाही । फेर सामयिक प्रसंग उपर लिखे के समय , पहिली , आज अउ अवइया दिन के तारतम्य ल बनाये राखे बर परही । कोनो के लिखे ल काट छांट के झन लिखव , खुद के विचार , भाव ल शब्द देहे ले सोशल मीडिया के लेखन हर भी सुग्घर साहित्यिक रचना बन सकत हे । एक फायदा एहू हे के लिखइया के अपन पहिचान बनही । आज के साहित्यकार मन बर सोशल मीडिया हर बरदान आय जेकर बने उपयोग करना सीखना होही , नहीं त भस्मासुर तो आय ...।
चिटिकन ध्यान ल आने डहर ले जावत हंव ...उही सोशल मीडिया के लाभ लेवत हंव ....
आज पंडित शेषनाथ शर्मा 'शील ' के जयंती आय ...14 जनवरी मकर संक्रांति ...
पंचांग के मुताबिक पूस दूसर पाख दुआस दिन इतवार ...जनम स्थान जांजगीर ..
उनला आखऱ के अरघ देवत हंव ....🙏🏼
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