Friday 17 December 2021

चोर ले मोटरा उतियइल

 चोर ले मोटरा उतियइल 

                    फकीर राम बड़ ईमानदार मेहनतकश मनखे रिहिस । गरीब लचार असहाय अऊ बीमार मनखे मन के कठिन समे म मदद करे बर , टांग पुरत ले अपन धन सम्पति ले मदद रहय । जब अपन धन दोगानी के औकात समाप्त हो जाये तब , जरूरतमंदी के आवसकता अनुसार चोरी घला कर डरय । दू लांघन एक फरहर करके अपन दिन ला पोहावत रहय । फेर अपन खातिर काकरो चीज ला हाथ नइ लगइस कभू । जे मनखेमन दुनिया ला लूटत खसोटत रहय तेकरे घर के धन दोगानी म अइसे हाथ मारय के कभू धरावय घलाव निही । ओकर एक झिन चेला रिहिस । देहें ले नानुक बौना फेर आदत बेवहार म ओकरेच कस । जस गुरूजी करय तस वहू करय । एके संघरा रहाय एके संघरा उठय बइठय एके जगा जाय । चोरी के माल म कभू दावा नइ करिस । फेर चेला म एक ठिन बुरई रिहिस ओहा अम्मट देखय तँहले लार टपकना सुरू हो जाय । 

                       एक बेर गाँव के अमीर मनखे मन राजा साहेब ला शिकायत करिन के फकीर राम हा चोर आय । ओला पकड़ के जेल म डारे बर गोहनइन । राजा सबूत मांगिस त एक झिन बड़का मनखे किथे - मोर घर में आजे चऊँर दार के चोरी होये हे । फकीर के घर म जाके खोजे जाय , जतका अकन समान लेगे हे तेला एके दिन म नइ उरका सकय । तुरते सिपाही भेज के खाना तलासी लेईन । चऊँर दार के एक ठिन दाना नइ अमरइन । तभो ले फकीर राम ला सिपाही मन पकड़ के राजा तिर लेगिन । राजा पूछिस - तैं सही म चोरी करथस रे ? फकीर राम जवाब देवत किहिस - हव राजा साहेब में चोरी करथँव । राजा किथे - तैं जानत हस के का कहाथस ? फकीर किथे - में लबारी नइ मारँव राजा साहेब । मे सहीच म चोराथँव अऊ काली घला चोराये हँव । राजा पूछिस - चोरी के माल ला तैं कहाँ करे ? फकीर किथे - इही ला झिन पूछव राजा साहेब । में नइ बतावँव । राजा किथे - तोला दंड परही । फकीर किथे - काके दंड राजा साहेब । तुँहर कानून म सच बोले म घला दंड के प्रावधान होही त में ओकरो बर तियार हंव । न्यावधीस कती देखिस राजा साहेब हा । न्यावधीस किथे - हमर दंड संहिता म सबूत मिले ले दंड के प्रावधान हे । येहा कहि दिस के चोरी करथँव ततकेच म येहा चोर नइ हो जाये । जब तक कनहो येला चोरी करत नइ अमराही अऊ आके आपके अदालत म गवाही नइ दिहीं तब तक येहा चोर नोहे । अमीर मनके दाँव फेल होगे । फकीर बाइज्जत बरी होगे । 

                     फकीर काबर चोरी करथे तेला , अमीर मन घला जानय । तभो ले ओमन हा फकीर ला पकड़े के दाँव खोजत रहंय । फकीर के गाँव म एक झिन बड़ गरीब मनखे रहय । ओकर बेटी सग्यान होगे रिहिस । रिसता तै होगे रहय फेर , गरीब मनखे अकाल दुकाल के मारे अतका पस्त हो चुके रहय के सग्यान बेटी के तै होय बिहाव , नइ मढ़हाये सकत रहय । दूसर कोती लड़का के घर वाले मन , बिहाव जलदी करे बर पदोवत रहय । अब तो ओमन धमकी घला देना शुरू कर दिन के , एसो बिहाव नइ माढ़हिस ते रिसता टूट जही । जेकर घर खाये बर दाना निही तेहा कइसेच बिहाव रचा डरही ? गरीब के घर चिंता खुसरगे । फकीर ल पता लगिस । ओला बिहाव रचाये के सलाह अऊ मदद करे के बचन दिस । बिहाव के दिन तिथि निच्चित होगे । गरीब घर बेटी के बिहाव के तैयारी होये लागिस । खाये पिये , दे ले बर , जइसे तइसे फकीर हा अपन धन दोगानी ले जुगाड़ जमा डरिस , फेर बेटी के गला बर , सोन के मंगलसूत्र कहाँ ले पाये । बेटी ला सोन के नाव म कम से कम इही देना जरूरी रहय । येकरे जुगाड़ के फिकर म फकीर ला धुकधुकी धर लिस । एती अमीर मन फकीर के एकेक गतिबिधि ला परखत रहय .. ओमन जान डरिन के फकीर हा सोन चांदी वाले घर सोन के चोरी करे बर जवइया हे । राजा साहेब ल इतला कर दिस के फकीर हा कोरी करइया हे .. रंगे हाथ पकड़े के बढ़िया मौका हे । राजा हा दिन रात चार चार झन सिपाही मनला चौकीदारी म लगा दिस । एती जेकर घर म चोरी के योजना बने रहय ते सेठ हा सोंचिस के , सोन चांदी ला अलमारी म लुकाके राखिहँव त राजा के सिपाही मन , फकीर ल रंगे हाथ पकड़ही तहन हमर अलमारी ला खोजत खोजत .. हमर सरी धन दौलत ला जान डरहीं अऊ जाके राजा साहेब ल बता दिही के हमर तिर अतेक माल खजाना हाबे .. तब ....... मोरो पोल खुल जही । तेकर ले एक ठिन सोन के पुतरी ल पिछू कोति के दुआरी तिर जगजग ले दिखय तइसने जगा म रखवा देथँव । चोर जइसे दुआरी करा आही तहन पुतरी ला उचाबे करही ... तब चारों डहर लुकाये सिपाही मन ओला बाहिरे म रंगे हाथ धर लिहीं । सरी रात बीतगे फकीर नइ अइस । दूसर दिन ... दिन भर चोर ला अगोरिन .. चोर आबेच नइ करिस । दूसर रात पोहाये के पाछू सेठानी ला शंका होइस । ओहा बिहिनिया बिहिनिया उचके जइसे पिछू डहर के कपाट ला हेरिस .... साँप साँप चिचिअइस । अमीर सेठ हा भागत भागत तिर म गिस तब ओहा देखथे के , सोन के पुतरी के जगा म सहींच म नानुक मरे साँप माढ़हे रहय । घर के भीतरी म पहुँचके अलमारी के सरी गहना गूठा ला हाबे के निही कहिके खंगाले लगिस । गहना गूठा के एक ठिन पोटली म सोन के उही पुतरी ला देख सेठ मुहूँ ला फार दिस ... ये उही हार आय जेला फकीर चोराही कहिके दुआरी म फेंक दे रिहिस । ये पुतरी हा पोटली म कइसे अइस तेला बिचारत बइठे रहय तइसने म ओकर बेटा बतइस - काली दुकान बढ़होये के समे एक झिन मनखे हा इही जुन्ना पुतरी के बदला म , नावा मंगलसूत्र लेगिस हे ........ । 

                      वास्तव म होइस ये के , फकीर बिचारा हा गुनताड़ा म लगे रिहिस के , अतेक कड़ा पहरा म चोरी करे बर कइसे खुसरँव । ओहा सेठ घर के आगू जुन्ना पीपर के तरी म दिन भर भजन करत चेला संग बइठे रिहिस । तभे एक ठिन बाज हा उड़ियावत उड़ियावत अंगना के दुआरी म माढ़हे सोन के पुतरी ल खाये के समान समझ , मुहूँ के मरे साँप ल छोंड़ दिस अऊ उड़ियावत उड़ियावत पुतरी ला फकीर के आगू म गिरा दिस । सिपाहीमन पहिली रात अऊ दिन भर तो सहींच म सोन के पुतरी के रखवारी करिन फेर दूसर दिन संझा अऊ दूसर रात , मरे साँप ला सोन के पुतरी समझ रखवारी मा लगे रिहिन अऊ दूसर दिन , दिन बुड़े के पहिली , दुकान बंद होये के आगू , पुतरी ला उही सेठ के दुकान म बदलके , फकीर अपन बूता कर दिस । फकीर फेर बांचगे । राजा हा सेठ मनला बलाके जबरदस्ती फकीर के चोर नाव धरे के सेती बहुतेच फटकारिस ।

                    एक दिन फकीर के परोसीन ला जुड़ीताप धर लिस । बाढ़त बाढ़त बीमारी हा मोतीझीरा के रूप धरके ओकर देंहें ला चुँहके बर धर लिस । अइगा बइगा देवता धामी सरी के चक्कर लगगे । चार महिना म बपरी के देंहें म सिर्फ हाड़ा बाँचे रहिगे । खाये पिये के चीज सुहाबे नइ करय । बईदराज के दवई ले बिचारी हा बने तो होगे फेर देंहें म मास नइ भरावत रहय । बईद तिर अन्न जल सुहाये के दवई सिरा चुके रहय । ओकर घरवाला हा बहुतेच परेशान रहय । खेत खार के दिन म कमई धमई ला छोंड ... बई के सेवा म लगे रहय । एक दिन बईद किथे - लिमऊ म भूंजे जीरा के भुरका गोद के पियाये म , हो सकत हे खाये के इच्छा जागही । जब खाये के इच्छा जागही तभे येकर देंहे भराही अऊ येहा ठीक होही । मोर तिर होतिस तब दे देतेंव । चौमासा बीतत ले कतेक अगोरबे । कहाँचों ले जीरा खोज .. मिल जही त उपाय बन सकत हे । 

                    अब जीरा कहाँ ले मिले । ओ समे हमर देश म जीरा के फसल नइ होवत रिहिस । जीरा ला बाहिर ले मसाला बेंचइया मन लानय । महंगा रहय तेकर सेती फकत बड़े आदमी मन खावय । एक झिन अमीर घर , जीरा मांगे बर गिस । ओकर घर के मन ये कहत मना कर दिस के – तैंहा चोट्टा के संगवारी परोसी हरस .. तोला मांगे के का जरूरत .. संगवारी ला बोल के , चोरवा नइ लेतेस काकरो घर ले ...। फकीर ला जइसे पता चलिस तब , ओहा उही बनिया के रंधनी म सेंध मारे के सोंचिस । उही रात .. चेला संग कलेचुप रंधनीखोली म खुसरगे । मसाला के डब्बा खोजत खुल्ला अलमारी म चइघे चेला के नजर आमा के अथान उपर परगे । मुहूं पंछियागे । लार टपके लागिस । जीरा ला खींसा म धरत ले , चुचुवाये लार के सेती , ओ तिर गिल्ला होगे । उतरत बेर उही म हाँथ परगे .. फिसलके गिरगे .. गिरत समे पथरा के बारा म माथ परिस .. चेला बेहोश होगे । फकीर दुबिधा म फँसगे । न चेला ला छोंड़ के जाये सकय न धरके । कोशिस करिस चेला ला उठाके रेंगाये के , फेर प्रयास असफल रिहिस । तब तक बेरा घला पंगपंगागे । फकीर हा अपन मुड़ के पागा ला हेरिस अऊ चेला ला मोटरा कस बांध डरिस । मोटरा ला मुड़ी मा बोही के धरके जइसे बाहिर निकलिस ........... पकड़ागे । बिहिनिया ले गाँव भर हल्ला होगे । राजा के दरबार म , एक कोती फकीर ला सजा देवाये बर त दूसर कोती बचांये बर भारी भीड़ लगे रहय । राजा किहिस – तैं सेठ घर ले काये काये चोराये हस .. अतेक बड़ मोटरा म बांध के काये लेगत रेहे हस ... तैं अपन मुहुँ ले बताबे के जम्मो जनता के आगू म मोटरा ला हेरवांवव .. । तैं कहस ना के , सबूत बतावव अऊ सजा देवव ... आज सबूत सुध्धा रंगे हाथ पकड़ाये हस । तिहीं बता तोला का सजा देवन ? फकीर चुप रहय कहींच नइ बोलय । एक कोती फकीर ला फाँसी दे के मांग उठे लागिस । दूसर कोती ओला बचइया मन .. राजा साहेब फकीर अच्छा मनखे आय .. ओला छोंड़ देवव .. कहिके गोहनावत रहय । 

                    चारों डहर ले होवत , मनमाने जोर जोर के कलल कलल म , मोटरा म बंधाये चेला के मुरछा टूटगे । ओ सुन के जान डरिस के ओमन पकड़ा चुके हे अऊ ओकर गुरू ला सजा होवइया हे । हकीकत बताये बर खुसमुसाये लागिस । बहुत बेर होगे , फकीर हा अपन बचाव म न हुँके न भुँके । राजा घुस्सा होके फकीर ला भरे बजार म तुरते फाँसी चइघाये के हुकुम सुना दिस । पूरा दरबार कलेचुप होगिस । शांत दरबार म मोटरा ले अवाज निकलिस - हमन कहींच नइ चोराये हन राजा साहेब । फैसला ला ठीक से बिचार लव अऊ घटना के पूरा तफतीस कर लेवव । अऊ फाँसी के सजा देना ही हे त मोला फाँसी पहिली दव । मोर सेती मोर गुरू पकड़इस हे आज । आवाज कती ले आवत हे पता नइ चलत रहय । फकीर राम मुड़ी गड़ियाये राजा के निर्णय के आगू कलेचुप खड़े हे । तभे मोटरा उंडत उंडत राजा तिर पहुंचगे । मोटरा कइसे उलंडथे , पूरा दरबारी मन डर्रागे । हिम्मत करके मोटरा खोले गिस । मोटरा ले बाहिर निकलतेच साठ बौना किथे - फाँसी देना हे त मोला देवव । राजा ला पूरा घटना के बिबरन अऊ चोरी के कारन बतइस अऊ अपन धराये के कारन घला बतइस । तलासी म सहींच म फकत जीरा के अलावा कुछ भी नइ मिलिस । ऊँकर ईमानदारी अऊ समाज सेवा उपर राजा प्रसन्न होगे । दूनो झिन ला राज कोष के कर्मचारी बना दिस । सेठ मनला समे म काकरो मदद नइ करे के सेती जमके फटकार लगावत किहिस - तुँहर सेती कन्हो भले मनखे ल गलती करे बर मजबूर होये ला परिस । सेठ मन माफी मांगिन । उही दिन ले अन्याय या दोष या सजा  ले बाँचे बर , सियान ले पहिली , असल बात ला देश अऊ समाज के आगू लनइया मन बर , चोर ले मोटरा उतियइल .. हाना बनगे । 

                                                            हरिशंकर गजानंद देवांगन  छुरा .

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