Sunday 26 December 2021

शनीचराहा-कहानी

 : कहिनी------


       ===शनिचराहा===        


        भगवान सेवक ला बने सुन्दर गढे हे। रॅग रूप गुन सबो अच्छा हे। अपन चाल चलन सुभाव ला घलो सेवक हा सहुंराय के लाईक बना के राखे हे ।गाॅव के लोगन मन ओकर बड़ाई करत  नइ थकय। कतको झन मन अपन लोग लइका ला खिसियाथे बखानथे तब कहि घलो देथे--------वो सेवक ला देख अउ तुम्हला देख,,,,,,,वोला देखके थोरिक तो सिखव रे,,,,,,,,।जइसने वोकर नाम ओइसने वोकर काम अउ बिचार । गाॅव के छोटे बड़े कोनों काहीं बूता तियार देथे त बिना संकोच सुवारथ ले जाके फट ले कर देथे । बिना छल भेद के गाॅव के सब नाता रिस्ता के आदर करथे। दू चार दिन कोनो ला नइ देखे अउ दिख जाथे त पूछ घलो डारही अउ टुप टुप पाॅव परके कही ---------कोन गाॅव चल दे रेहे बड़े ददा,,, नइ दिखत रेहे । आजी दाई डोकरी दाई के लागमानी सॅग  मा तो बिजरी असन लाग के हॅसावत रथे । अउ अइसन लइका  काकरो घर फोकटिया पुछत चल देथे त बिना चाहा पिये आवन घलो नइ देय । फेर सेवक घलो अभिच पिये हवॅ बड़े दाई नइ लागे कहिके भाव जीत लेथे । सबो गुन आगर सेवक असन लइका ला ही सोन के सीथा कहत होही। भाग प्रबल होय के सॅगेसॅग संस्कार हर घलो लइका ला अलगे पहिचान देथे ।ओकरे असर हा घलो सेवक उपर दिखथे ।

          फेर वो रंभा ला अइसे का अनख बैर घेरे हे , कि सेवक ला फूटे आॅखी नइ देखय। महिना भर पहिली के बात आय। शनिच्चर के दिन राहय। उही दिन गाॅव मा हप्ता के हटरी बजार घलो रिहिस। सेवक अउ रंभा के घर एके पारा मा तो हे । ओहू मा एक दुसर के मॅझोत मा। माने घर ले बइठे बइठे एक दुसर के घर अउ मनखे सबो दिखथे । बजार जाय बर रंभा हर झोला धरके निकलत रिहिस। ओतकेच बेरा मा सेवक हर घलो बजार जाय बर निकलिस। गाॅव के नता मा रंभा हर सेवक के बड़े दाई लागे। देखत भार पूछ डारिस-----------बजार जावत हस का बड़े दाई,,,,,? रंभा हां किहिस ना निहीं कलेचुप चल दिस। बजार मा सॅघरगे तब सेवक मुसकी सकल बनाके कथे------------बड़ लघिंयात साग भाजी ले डारे बड़े दाई,,,,,। रंभा मुहूं टेंड़गात दूसर पसरा कोती घुमगे। अब संजोग अइसे बनगे कि बजार ले निकलती फेर भेंट होगे । रंभा हर साग भाजी के भरे दू ठन झोरा ला तनियात तनियात धर के लानत रहय। तब सेवक हर कथे------दे बड़े दाई एक ठन झोरा ला मयॅ धर लेथवॅ। घर मा छोड़ देहूं। रंभा अपन सुभाव मा करकस भरे कथे--------------नइ लागे मयॅ लेग जहूं,,,। किहिस अउ कुरबुर कुरबुर करत मुंह बनात जाय मा लगगे।

           आज रंभा के सुभाव ला देख के सेवक मने मन मा बहुत दुखी होगे। घर के आवत ले गुनत रिहिस कि बड़े दाई मोर ले काबर अतका अनख राखथे। मोर ले अइसे का गलती होय हे। मयॅ तो वोला अपन महतारी असन मानथवॅ। वो मोला नान्हे पन ले जानथे  अतकेच निहीं वो मोर जनम दिन के नेंरवा घलो काटे हे।  बड़े दाई निच्चट पथरा चोला हे अइसनो तो नइये। काकरो घर भी जचकी निपटाय बर होथे त रंभा आधा रात के चल देथे । अइसन काम के रंभा ला बने परख हे ओकर सेती गाॅव के मन ओला मानथे घलो । ओकर ज्ञान अतका  हे कि नाड़ी ला छू के बता देथे कि नोनी तयॅ महतारी बनइया हस। अउ अपन समझ के पुरत ले सेवा जतन घलो करथे । रंभा सेवक के  घलो छट्ठी उठाय हे सेवक के महतारी के जचकी निभाय हे। तब रंभा हर जानत रिहिस कि सेवक के जनम शनिच्चर दिन के हरे तेला। 

          अब उप्पर वाले के नजर कहव या फेर संजोग। पीछू साल माघी पुन्नी के मेला देखे बर रंभा अपन मइके जाय बर घर ले  निकलत रिहिस। ओतके बेरा  सेवक हर पूछ पारिस-----------कहां जावथस बड़े दाई बने नवा नवा पहिर के  ?  रंभा घलो गाॅव जवथो रे कहिके चल दिस। गाॅव मा मोटर बस नइ चले। कोस भर दुरिहा दूसर गाॅव मा मोटर मिले। रंभा हर खेतहा अउ मेंड़ पार वाले रसता मा रेंगत जावत रहय। ओकर दुरभाग ये होगे कि एक ठन गोड़ के साॅटी हर टुटके गॅवागे। ओइसे भी साॅटी हर खियाके टुटहा हो गेय रीहिस। टुटहा जगा ला धागा मा बाॅध के पहिरत रीहिस। फेर तीन तोला के साॅटी गॅवाय ले रंभा के जीव सुखागै। गोसइंया के गारी खाय के डर ले आॅखी बटबटागे। अउ लगगे अपन भाग ला कोसे बर त दिन ला कोसे मा । दिन तिथि हप्ता  सबला असगुन समझे लगगे। उही बेरा मा रंभा ला सुरता आगे कि, घर ले निकले के बखत वो शनिचराहा टुरा सेवक हर पूछे रिहिस।ओकरे मुंहूं ला देख के निकले रेहेंव। रंभा टोटकाहिन हे अइसन नइये वो कभू टोटका टोना ला नइ माने। सबला झारा फूंका के जगा डाक्टर के तिर इलाज कराय के सलाह देथे। खियाय साॅटी ला धागा मा बाॅध के पहिरे रेहिस । जेहर सर घलो गेय रिहिस तेकर सेती टूटगे ।ये बिचार ला छोड़ के सेवक उपर सबो दोष ला खपल दिस । शनिचराहा टुरा के पूछे ले ओकर मुंह देखे ले ही सब अलहन होय हावे । आज ले ओकर मुंह नइ देखव । बस ओ दिन ले रंभा के मन मा सेवक बर अनख भरगे। 

अउ गाॅव भर सेवक असुगहा हे कहिके बगरा डारिस। घाट घठौंदा मा सेवक ला बखानय।

           महिना दिन पहिली रंभा घुरवा ले कचरे फेंक के आवत रिहिस। गाॅव के सकेल्ला कोलकी असन गली मा बइला मन लड़ई खेलत रहय। रंभा भागे नइ पाइस अउ बइला मन वोला रमजत खुंदत भगागे। रंभा के माड़ी कोहनी फुटगे। अउ चक्कर खाके गिरगे। अब यहू संजोग बनगे कि सेवक हर अपन घर के गाय गरू ला गउठान मा खेद के आवत रहय। सेवक के नजर परगे। भागत गीस अउ रंभा ला हला डोला के पूछे लागिस-------बड़े दाई,,,,,,,,,ए बड़े दाई,,,,,,,,। बड़े दाई बेसुध होगे अतका तो सेवक जान डारिस। अउ सेवक रंभा ला चिंगिर चाॅगर खाॅध मा अकेल्ला टाॅगके गाॅव के सरकारी अस्पताल मा लेगे लागिस। गाॅव के अउ पारा के मन घलो जान डारिन कि रंभा ला बइला मन रमॅज दिस। अउ बहुत अकन आइन घलो। अउ सेवक के पीछू पीछू अस्पताल डहर जाय लागिन। सेवक अस्पताल जाके डाक्टर ला  कथे -----------देख तो डाक्टर साहेब मोर बड़े दाई कइसे होगे । एकर कपार ले लहू बोहात हे । बइला हुमेंले हे काते ,,,,,,,,,,। सेवक कभू नर्स मन के तिर जावय त कभू डाक्टर के तिर । लकल धकर आके रंभा ला हला डोला के देखे। ओकर बोहाय लहू मन ला अपन पटकू मा पोछय । मन नइ माने त नर्स मनके हथजोरी करके कहे लागिस ----------जल्दी देखव ना दीदी हो मोर बड़े दाई ला,,,। रंभा गाॅव के नामी अउ कामी नारी आय ।तेकर सेती गाॅव के अड़बड़ अकन पूछ परख करइया आगे। वोमन रंभा ला कम अउ सेवक के सेऊकाई ला जादा देखय। रंभा के दू झन बेटी हे जेमन बिहाव होके ससुरार चल देय हे ।  रंभा के गोसइंया एक झन रइपुर वाले बेटी तिर दू दिन बर गेय रहय । अइसन बेरा मा रंभा अकेली घर मा रिहिस।तब सेवक अपन सबो काम बूता ला छोड़ के रंभा के सेवा करत ओकर खटिया खाल्हे मा बइठ के एक दिन एक रात ला बिता दिस। मरहम पट्टी दवा सूजी देके दूसर दिन डाक्टर छुट्टी कर दिस। सेवक हा रंभा ला अपन बाॅहा के सहारा देके धीरे धीरे घर लानिस। पारा के मन देखके चार छै झन माई लोगिन मन घलो आगे। अपन बड़े दाई ला  खटिया मा कलासू  सुताके लकर धकर अपन घर चल दिस। गाॅव के सकेलाय जम्मो नारी परानी मन रंभा ला कहिन ------------सेवक के सेऊकाई ले बाॅचगेस रंभा। सेवक नइ रतिस त तोर का होतिस जान सकथस।बिचारा ला शनिचराहा कहि कहिके रोज बखानत रथस। ओकर असन लइका ए गाॅव मा नइये।भाग मना तयॅ कि सेवक के सेती बाॅच गेस। ओतके बेरा खबर पाके रंभा के गोसइंया मनोहर  घलो रायपुर ले आगे। सेवक अपन घर ले रंभा ला दवई खवाय बर तात पानी धरके आइस। सेवक ला भनक तो लगि गेय रहय कि रंभा हर वोला शनिचराहा कहिके बखानत रथे । फेर कभू अपन अंतस मा ये बात ला नइ बइठारिस। मनोहर ला देखके कथे----------तयॅ आगेस बने होगे बड़े ददा ।येदे तात पानी बड़े दाई ला अपन हाथ ले दवा खवादे गा,,,,,।मोर हाथ सकल असुगहा हे । शनिचराहा आॅव न गा ।कहिके मुसकाय लागिस। ताना तो नइ मारिस फेर भाव मा मजकिहा असन जरूर रिहिस।बात ला सुनके रंभा सेवक ला पोटार के भरभराय गला मा रोवाॅसू असन होके कथे----------बेटा सेवक तोर कोनो दोष नइये रे ।दोष मोर बिचार मा झपाय रिहिस तेकर सेती तोला बखानत रेहेंव। तोर साहीं बेटा भगवान सब झन ला देय रे,,,,,,।रंभा पोटारे पोटारे कथे---------तयॅ शनिचरहा निहीं मोर बर तो तयॅ इतवार अउ गुरूवार आवस बेटा सेवक,,,,,,,,,,,,।


राजकुमार चौधरी

टेड़ेसरा राजनादगाॅव🙏

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समीक्षा---पोखनलाल जायसवाल:


 तरा-तरा के अंधविश्वास समाज म अपन जड़ी अइसे खोभे हे कि बुधियार मन के मति घलो फेर देथे। समाज म सेवक जइसन कतको मनखे हवँय जेन मन पूरा समाज अउ मनखे हित म जिनगी भर सेवा धरम निभाथें। 

           समाज म अंधविश्वास के फइले अंधियार अतेक हे कि रंभा जइसन सुजानिक सुईन दाई भटक जथे। मति फेर के जाला म फँसे रंभा टोटकहिन होगे। 

      सेवक कहिनी के प्रमुख पात्र आय, जेन रंभा के अनख ल नजरअंदाज कर  सेवाभाव ल नइ छोड़िस अउ अपन धीर धरे रहिथे । सेवक के इही सेवा भाव ह ओला रंभा के हिरदे बदले के मउका दिस। 

       कहिनी के कथानक समाज म फइले अंधविश्वास ऊपर हे अउ उद्देश्य समाज ले अंधविश्वास ल मेटे के हे जउन म कहिनीकार सफल हे।

       भाषा शैली मनभावन हे, मुहावरा के प्रयोग ले भाषा के प्रवाह सुग्घर होगे हे। पात्र मन के हिसाब ले संवाद / मुँहाचाही पाठक ल अइसे जनाथे कि ए गोठबात उँकरेच तिरतखार के आय। 

        कोनो रचना के शीर्षक अइसे होना चाही कि शीर्षक पढ़े म पाठक के मन रचना पढ़़े करय अउ रचना के भाव शीर्षक ल सार्थक बनाय। ए दृष्टि ले शीर्षक सोला आना सही हे। 

       राजकुमार चौधरी के लिखे ए कहिनी पाठक मन ल जरूर पढ़ना चाही। संदेश परक कहिनी लिखे बर राजकुमार चौधरी जी ल बधाई अउ भविष्य बर शुभकामना।



पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

1 comment:

  1. कहिनी के संग मोर लिखे समीक्षा ल जगा देहे बर धन्यवाद गुरुजी

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