Friday 3 December 2021

लालच के फल* (छत्तीसगढ़ी लोक कथा)

 *लालच के फल*  (छत्तीसगढ़ी लोक कथा)

एक गाँव मा एक झन मरार डोकरा अउ मरारिन डोकरी रिहिस ।दुनो झन बखरी मा साग-भाजी बोंय अउ बेंचे।मरार डोकरा ह रोज बखरी ल राखे बर जाय । इन्द्र भगवान के घोड़ा ह डोकरा के बखरी मा रात के बारा बजे रोज आय अउ साग-भाजी ल चर देय।

मरार डोकरा अपन डोकरी ल बताथे - काकर गरवा ह आथे वो अउ बखरी ल चर के चल देथे।

मेहर पार नइ पावौ।

डोकरी कथे-डोकरा तैंहर आज दिन भर अउ रात भर बखरी मा रबे ।डोकरा हव काहत बखरी मा चल देथे।रात के बारा बजे इन्द्र के घोड़ा आइस अउ चरे लागिस,डोकरा उनिस न गुनिस अउ वोकर पुछी ल रब ले धरिस।घोड़ा उड़ावत डोकरा ल इन्द्र लोक ले जथे।

इन्द्र लोक मा बइठे डोकरा ल सैनिक मन पूछथे -ए डोकरा इहां ते काबर आय हस?तब डोकरा कथे-जा तोर मालिक ल बता देबे अन्नी लेय बिना मेहर इहां ले नइ जावव ,काबर कि तोर मालिक के घोड़ा हर मोर बखरी ल चर देय हे।

सैनिक,इन्द्र भगवान ल जाके सब बात ल बताथे अउ कथे मृत्यु लोक ले एक झन डोकरा आय हे तेहर अन्नी लेय बिना नइ जावव काहत हे।इन्द्र भगवान कथे -अरे सैनिक, डोकरा ल एक काठा हीरा मोती देके घोड़ा ल पहुंचाय बर भेज दे।

घोड़ा डोकरा ल मृत्यु लोक पहुंचा के चल देथे।डोकरी ह डोकरा के रद्दा देखत रथे,ओतकी बेरा डोकरा घर पहुंचथे,अउ अपन खोली के कोनहा मा काठा के हीरा मोती ल रख देथे।

हीरा मोती चमके लागिस ।मरार डोकरा ,डोकरी नइ जानै कि येहर हीरा -मोती आय।डोकरी कथे -ए तो चमकत हाबे डोकरा ।

डोकरी कथे-जा दू ठन ल धर ले अउ साहूकार के दूकान मा दे देबे कहूं खाये पीये के  समान दे दिही ते।साहूकार के दुकान मा डोकरा जाथे अउ देखाथे।साहूकार देख के जिन डारथे कि ये तो हीरा -मोती आय।साहूकार झट ले डोकरा ल पूछथे -काय-काय लागही ग।डोकरा खुश हो के खाय पीये के समान ल मांग डारथे।सामान ल धरके डोकरा ह घर मा आथे अउ डोकरी ल बताथे।डोकरी सुनके खुश हो जथे।अइसने -अइसने दिन बीतत गीस।

एक दिन साहूकार डोकरा ल पुछथे- कस ग तेहा  येला कहां पाय हस?

डोकरा ह सब बात ल बता दिस ,त साहूकार कथे महूं जातेंव जी तोर संग ।डोकरा कथे चल न भइ मोला का हे।

साहूकार ह अपन घरवाली ल बताथे कि मे हा डोकरा संग जावत हंव,एक काठा हीरा -मोती हमरो घर आ जही।साहूकारिन कथे-साहूकार महूं तूंहर संग जातेंव ते दू काठा आ जतिस।ये सब बात ल सुनके साहूकार के बेटा कथे- महूं जातेंव ग तीन काठा आ जही।ओकर बहू कथे-महूं जाहूं तुंहर मन संग ,चार काठा आ जही ।हमन मंडल हो जबो,पूरा गाँव ल बिसा डारबो।चारो झन डोकरा संग गइन।डोकरा कथे ठीक अधरतिया के बेरा घोड़ा ह आथे,मेहा आही तंह ले रब ले घोड़ा के पुछी ल धरहूं अउ साहूकार मोर गोड़ ल धरबे,तोर गोड़ ल तोर घरवाली धरही ,तोर घरवाली के गोड़ ल तोर बेटा धरही ,वोकर गोड़ ल तोर बहू धरही।अइसे तइसे करत रात के बारा बजिस अउ घोड़ा आइस तंह ले रब ले डोकरा ह पुछी ल धरिस।येती साहूकार,वोकर घरवाली ,वोकर बेटा ,वोकर बहू सब एक दूसर के गोड़ ल धरिन।अब घोड़ा ह उड़ाय लगिस साहूकार पुछथे,- तोला देय रिहिस ते काठा कतका बड़ रिहिस डोकरा ?

डोकरा साहूकार के बात ल सुन के कथे-अतका बड़ रिहिस साहूकार कहिके घोड़ा के पुछी ल छोंड़ परिस।सबों के सबों भड़भड़ ले भुइंया मा गिरिस।डोकरा ह साहूकार के उपर लदागे अउ सब झन खाल्हे मा चपकागे।साहूकार के संग वोकर घरवाली ,बेटा,बहू सबों झन मर जथे,डोकरा भर बांच जथे।

येकरे सेती केहे गेय हे,फोकट के चीज बस के लालच नइ करना चाही।जादा लालच करई ह जिव के काल होथे।

दार भात चुरगे मोर कहिनी पुरगे


*भोलाराम सिन्हा डाभा*

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