Friday 3 December 2021

छत्तीसगढ़ी में पढ़े - नाचा गम्मत छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य गम्मत

 छत्तीसगढ़ी में पढ़े - नाचा गम्मत

छत्तीसगढ़ के लोक नाट्य गम्मत 

दुर्गा प्रसाद पारकर 

छत्तीसगढ़ म दू राज, जेमा अट्ठारा-अट्ठारा गढ़। दूनो राज ल मिल के छत्तीसगढ़ नाव परे हे। रतनपुर राज म- रतनपुर, मारो, विजयपुर, खरोद, कोटगढ़, नवागढ़, सौथी, ओखर, पडरभट्ठा, सेमरिया, चांपा, लाफा, छूरी, केड़ा, आतिन, उपरिया, पेंड्रा, फुरकुट्टी अऊ रायपुर राज म - रायपुर, पाटन, सिमगा, सिंगारपुर, लवन, अमेरा, दुर्ग, सारड़ा, सिरसा, मोंहदी, खल्लारी, सिरपुर, राजिम, सिंगनगढ़, सुअरमाल, टेंगनागढ़ अऊ अकलवारा ह आवय। छत्तीसगढ़ म मध्यप्रदेश के दक्षिण पूर्वी जिला रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़, सरगुजा, दुर्ग, राजनांदगांव अऊ बस्तर ह आथे। छत्तीसगढ़ी ह छत्तीसगढ़िया मन के चिन्हारी कराथे। इहें के प्रसिद्ध लोक कृति नाचा म छत्तीसगढ़ के झांकी देखे बर मिलथे। अइसे माने जाथे कि नाचा के पीकी गड़वा साज ले फूटीस होही। कोई कथे नाचा के शुरुवात चैंका ले होइस होही। जइसे भी हो। गड़वा साज ल गुदुम साज घलो भाखे जाथे। गाड़ा जात के मन दफड़ा, डमऊ (डमरु), मोंहरी, तासक, मंजीरा, गुदुम (सींघ) बजावय तेखरे सेती ए बाजा के नाव गड़वा बाजा परिस। अब गड़वा बाजा ल कोनो भी जात के मन बजाथे। तभे ए बाजा ल समाजिक बाजा के नाव ले जाने ल धर ले हे। गांव-गांव म बजनिया मन के साज रथे। छत्तीसगढ़ म प्रमुख रुप ले तीन साज हे- (1) गड़वा साज (2) खड़े साज (3) बइठक साज। गड़वा साज के चलते चलत खड़े साज (चिकारा, तबला, मंजीरा, परी अऊ मशालची) ह चलन म अइस होही। खड़े साज म मसाल (सीसी बोतल के) ले अंजोर के बेवस्था करय। जोक्कड़ ह तार म चेंदरी ल बांध के माटी तेल डार-डार के भपका बार-बार के कतको अकन खेल तमासा देखवत जनता जनारदन ल मोहे रहिथे। अब तो खड़े साज ल मसाल धर के खोजबे त ले दे के दुए चार ठन नेंग बर मिल जही। खड़े साज म खड़े-खड़े बजइया गवइया मन ओरी-पारी मंच म चघथे। देवी-देवता के वंदना करके कार्यक्रम के शरुआत करथे-

गाइए हो गनपति जगबन्दन

स्ंाकर सुअन भवानी जी के नंदन

पति जगबंदन, पति जगबंदन

गाइए हो गनपति जगबंदन

छत्तीसगढ़ म मानदास टण्डन (सेमरिया) अऊ समे दास बंदे (डूडेंरा) के खड़े साज ह जादा प्रसिद्ध हे। जऊन मन ए साज ल जिंदा राखे हे। खड़े साज म एक झन गाथे तेन ला बाकि मन झोंकथे। खड़े साज म रास गीद के बानगी एदइसन हे-

ठगनी का नैना चमकाए

कद्दू काट मिरदंग बनाए 

लीमू कांट मंजीरा

पांच तरोई मिल मंगल गावें

नाचे बालम खीरा 

ठगनी का नैना चमकावै

गाना के सरा देवाते भार जोक्कड़ मन गम्मत ल नापे ल धरथे। खड़े साज ह बइठका साज (हारमोनियम, ढोलक, तबल, जोक्कड़, परी, जनाना, बेंजो क्लारनेट) म विस्तार पइस। नवा-नवा म बइठक साज ह देखनी हो गे रीहिस हे। बइठक साज बर गियास (पेट्रोमेक्स) ले अंजोर के बेवस्था होय ल धर लीस अऊ अब बिजली बत्ती ले। सन् 1952 के आसपास जंजगीरी (नैला), रिंगनी-रवेली पार्टी (मंदराजी मदन), दुरुग पार्टी (सीताराम) मन ह नामी नाच पार्टी रीहिन। बिजली अऊ रेडियो आय के बाद तो नाचा के रौनक बाढ़ गे। जिंहा बिजली के बेवस्था नइ राहय उहाँ बड़े पार्टी मन अपन संग जनरेटर घलो लेगत रीहिन हे। जऊन ह गांव-गंवई म देखनी हो जय। डाॅ, बल्देव कथे- “गम्मत नाचा ह छत्तीसगढ़ी लोक नाट्य संस्कृति के निर्मल दरपन आय। एमा एक तनी देहाती जीवन के संघर्ष, जटिलता अऊ विसंगति मन के दुखद चित्रण रहिथे त दूसर तनी देहाती (ग्राम्य) जीवन के सरलता, सादगी, अल्हड़, सौंदर्य अऊ भोलापन के झांकी देखे बर मिलथे।“ इही झांकी के पहिचान हबीब तनवीर ह देस-बिदेस म करइस। नाचा कलाकार मदन निषाद, मदरा जी, ठाकुर राम, बुलवा अऊ फीता बाई ल छत्तीसगढ़ कभू नइ भूलावय। पहिली कलाकार मन संवाद ल किकिया-किकिया के बोलय। पोंगा रेडियो (लाऊडिस्पीकर) के उद्गरिस होए ले नाचा के प्रस्तुति म चार चांद लग गे। नाचा कोनो विधा नोहे बल्कि नाचा म कतनो विधा ह समाए हे। लोक रंजन अऊ लोक शिक्षण के माध्यम नाचा छत्तीसगढ़ के आत्मा हरे। नाचा ले जुड़े थोर बहुत जानबा एदइसन हे- 

बियाना - कोनो उत्सव के उपलक्ष्य म नाचा लगाए खातिर गांव म बइठक सेकलाथे। बइठक म ये तय करे जाथे के कतका बजट के नाचा लगाए जाय अऊ एखर बर कतका बरारे जाय। नाचा लगाए खातिर बइठक म दू-तीन झन मनखे जोंग के दू चार ठन मन पसंद नाचा पार्टी के नाम ल जना देथे। गांव के प्रतिनिधि बन के नाच पार्टी के मनिज्जर करा पहुंचथे। मनिज्जर ह बियाना (अनुबंध राशि) झोंके के पहिली एक बात के खुलासा कर लेथे के नाचा ह मोंजरा के होही के बिगन मोंजरा के। त का दू गम्मत के बाद मोंजरा लेवन देहू? कतको नाच पार्टी मन पहिली मोंजरा भर म घलो नाच देवत रीहिन हे। बिन मोंजरा के नाचा अऊ सार्वजनिक नाचा बर जादा भाव लेथे जबकि व्यक्तिगत अऊ मोंजरा वाले नाच बर थोकिन कम भाव म मान जथे। सीजन म नाच माहंगी रहीथे। पहिली समे म नाचा के भाव बियाना मुअखरी तय हो जय अऊ इन्कावन रुपिया बियाना दे के बात ल पक्का मन लेत रीहिन हें कतको जघा धोखा खाए के बाद अब नाचा पार्टी वाले मन लिखित म बियाना ल झोंकथे। कतको पार्टी वाले मन तो कार्यक्रम के दिन मंच के पहिली पूरा रुपिया झोंक लेथे। 

मंच - नाचे के पुरतीन जघा राहे अइसे अन्दाज के चार कोन्टा म गड्डा खान के लकड़ी नही ते बांस ल गड़िया के धांस दे। ऊपर म बांस बांध के चांदनी छा दे। सफेद कपड़ा म लाल रंग के कपड़ा लटकत रहिथे इही ल चांदनी (पाल) कहिथन। मंच के बीचो-बीच डग्गा माइक ल बांध दे अऊ लकड़ी के बने बाजुवट ल मंच के कोरियाति मढ़ा देथन। बाजुवट मढ़ाए के बेरा ए बात के खियाल रखे ल परथे के देखइया मन ल बाजुवट के सेती नाचा देखे बर अड़चन झन होवय। 

मेकअप - नाचा पार्टी के गांव म पहुंचते भार खुशी के लहर दऊंड जथे। ऊंखर बर मेकअप कुरिया दे जाथें मेकअप के तीन चैथाई सराजाम के बेवस्था पारटी वाला मन करथे। गम्मत के मुताबिक बड़े जिनीस (मोरा, खुमरी, चरिहा, झऊंहा, कुकरी, फूल कांछ के लोटा आदि) आयोजन मन ल दे बर परथे। मेकअप (सम्हरे बर) बर तेल पानी, मुरदार संख, घेरु, अभरक, छूही, गुलाल, लाली, काजर,कोइला आदि जिनीस के जरुरत परथे। नाचा पार्टी वाले मन जनाना अऊ परी मन बर माईलोगन सिंगार के बेवस्था कर के रेंगथे। माईलोगन के अभिनय ल बेटा जात के मन निपटाथे। ऊमन मेहला बानी के दिखे ल धर लेथे। लम्बा लम्बा चूंदी, चाल-ढाल, गोठ-बात ले जनाना (लोटिहारिन) ल चिन्हे जा सकत हें पहिली तो मेकअप रुम कोठा ल दे देत रीहिन फेर अब दसा ह थोकिन सुधर गे हे। 

नाचा के शुरुआत - दर्शक मन नाचा देखे बर सरकी, बोरा जठा के अपन-अपन बर जघा पोगरा लेथे। आन गांव के मन घलो नाचा देखे बर जुरियाथे। देर रात बाजा-गाजा के मंच म आते भार दार्शक मन के हिरदे ह कुहकी मारे ल धर लेथे। बजनिया मन पान चबा के बन ठन के मंच म पांव धरथे। मनिज्जर के मुताबिक तबला, ढोल, बेंजो वाले मन सुर मिलाथे। एक दू ठन भजन गाए के बाद नचकाीरन (परी) मन मंच (कुंज) म पहुंचथे। ताहन मंच ह गरु-गरु लागे ल धर लेथे। परी मन मंच म चघते भार वाघ यंत्र के पलागी करथे। टोनही टम्हानी के नजर डीठ झन लागे, सोच के पांव के धुर्रा ल मुड़ी म भारथे। ओइसे तो नाचा पार्टी के बइगा ह पहिलीच ले मंच ल बांध डरे रहिथे। परी मन सरसती दाई के बंदना करके नाचथे-

सरसती ने स्वर दिए

गुरु ने दिए गियान

मातु-पिता ने जनम दिए 

रुप दिए भगवान

म्ंाच म आए के बाद ओखर नाव के बखान करथे-


बड़ नीक लागिस हे मोला, बुधारु भइया के गोठ या

पास म बुला के दिस हे, मोला दू के नोट या 


बंदना के बाद नचकारिन मन एक-एक करके ओरी-पारी गीत गा के समा बांधथे। एक परी के मोंजरा झोंक के आवत ले दूसर परी ह मंच ल सम्हालथे। परी ह इसारा ल समझ के मोंजरा ठऊर म जाथे। गाना गा के नाचथे। ताहन खुश हो के मोंजरा देवइया ह रुपिया ल पोलखा नही ते खोपा म खोंच के फरमाइस घलो करथे। परी ह मोंजरा देवइया के नाव गांव ल पुछ लेथे--

  दू चार ठन गीत होय के बाद मनिज्जर जोक्कड़ धुन ल बजाथे। सुन के जोक्कड़ मन पांव म घुंघरु पहिर के छमक-छमक करत पहुंचथे। जोक्कड़ मन बंदना करके गम्मत के मुहतुर करथे। जोक्कड़ मन साखी बोल के गाना गा के नाचथे। नाचा म तो छत्तीसगढ़ ल झांखे जा सकत हे। 

 जोक्कड़ मन के पहिनावा एदइसन हे- धोती, गमछा, सलूखा, कुरता, बंगाली, जाकिट अउ गाहना म रेसम के करधन हाथ म चांदी ढरकौउवा (मोट्ठा के, बिर्रे मन पहिरथे) टोटा (गर) म सोना चांदी नही ते तांबा के ताबीज अउ अंगरी म मुंदरी पहिरे रहिथे। पात्र के मुताबिक पहिनावा बदलत रहिथे। साखी निपटे के बाद जनऊला पुछी के पुछा होथे। इही बीच गम्मत के हिसाब से नता-रिश्ता तय हो जथे। एक जोक्कड़ ह कहिथे (कस भइया भउजी ह दिख तनइ हे?) त दुसर जोक्कड़ ह हांक पार के- ”ए ओ.........आना ओ” कहि के बलाथे। भाखा ल ओरख के जनाना ह फूल कांच के लोटा ल बोही के गीत गावत आथे। जनाना गीद ह कृष्ण अऊ पति ऊपर जादा अधारित रथे-

 अई हो....................................

 नारी बर पति सेवा हे ओ दाई 

 नारी बर पति देवता हे न

 पुरुष मन बर लाखन देवता हे ओ दाई

 नारी बर पति देवता हे न......

फूल कांछ के लोटा ल मंच म मड़ा के परन ताल (गोल घुम के) म जब नाचथे ते सब देखते रहि जथे। आजादी के बाद चीनी गम्मत बहुत प्रसिद्धी पाय रीहिसें चीनी गम्मत ह राष्ट्रीय बिचार धारा ले मुड़सुद्धा नहाए रीहिस हे। येखर बाद मोसी दाई, चरन दास चोर कोमिक ह लोगन मन के हिरदे म बस गे। कोनो भी नाचा देवार गम्मत बिना अधुरा रहिथे। देवार गम्मत ल हांस्य गम्मत के रुप म जाने जाथे। देवार गम्मत म हांसत हांसत पेट फूल जथे। कट्ठल जबे। देवार गम्मत ल नाचा के आंखरी गम्मत के रुप म घलो जाने जाथे। आज जऊन स्थिति देवार मन के हे उही स्थिति नाचा म देवार देवार गम्मत के। जेहा नंदाय ल धर ले हे। सरांगी, गोदना अऊ सुरा के अटकर नइ लगय। नाचा पार्टी मन एक से एक गम्मत बनइस, देखइन, संदेश दिन फेर ओखर रचनाकार के नाव अभी तक कलमबद्ध नइ हो पाइस। बस नाचिन कुदीन अउ सिरागे। नाचा ल अब चाब-चाब के चीथ डरीस टी.वी. संस्कृति ह। दु अर्थी संवाद ह अलहन होत जात हे। येखर ले परहेज करे बर परही। तभे स्वस्थ मनोरंजन के रुप म नाचा के सेहत ह बने रही। अब छट्ठी बरही म डेड़ दू सौ म विडियो आ सकत हे त हजार दु हजार म नाचा करवाए के झंझट कोन उठाही। अतेक होय के बावजूद नाचा के अपन महत्व ह बरकरार हे।

दुर्गा प्रसाद पारकर 


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