Monday 5 December 2022

एकठन लंबा कहिनी -रामनाथ साहू: -



 


एकठन लंबा कहिनी -रामनाथ साहू: -



                   *कलाकार*

                    ---------------


        -रामनाथ साहू      



                     *(1)*



           पानी हर पोठ बरसे रहय।सबो कोती हर  गिल्ला... पलल- पिया करत रहय। मनखे मन कन्हरहा माटी के पैडगरी म,  खोभ के पांव मढावत ,रेंगत रहिन।



              जगदीश घर कोती ल तिंवरा कउले के कहर हर जबरदस्ती नाक म पेलत रहय। सलोनी के महतारी हर लखाड़ी तिंवरा म बने नुन- पानी  ल मोय के घाना म ओइरे होही । अतका गुनतेच रहिस हर नारायण के, वोकर  नाक म अब मूंगफली कउले के कहर पेले लागिस।



            चल हटा..तिंवरा रहय के मूंगफली ,के वो दुनो मन ।वोहर सलोनी अउ वोकर सियान- जगदीश के ही पुरता आय।



      नही ...नही  ...अइसन बात नइ ये !कभु घर पहुंच जाबे तब बराबर एक एक मुठा सबो जिनिस हर मिलही ।फेर वोला अभी तो  नाक अउ जीभ के सुवाद ल छोड़ के, यह दे कान  के सुवाद ल पूरा करे बर जाय बर हे। कान अउ कान ल कहुँ जादा मन ।अउ मन ले जादा  कहुँ हृदय।अउ हृदय ल कहुँ जादा आत्मा के आनन्द ल पूरा करे बर वोहर जावत हे।



          भजनहा, हर सरपंच- दाउ बहादुर सिंग के बैठक -खोली म अपन तमुरा ल बजावत -रंग रंग के भजन गावत हे  ।


सरपंच दाउ मतलब बहादुर सिंग हर गांव के गौटिया - दाउ तो पहिलीच ल हे।अउ कइसनों भी करके- डरा के धमका के पइसा म खरीद के जीत जाथे तब जितीच जाथे अउ तीन पंचवर्षीय होंगय गांव म एक छत्र राज करत हे।


वोकर कहना हे-



गउँटी गिस तब    लउठी गिस


फेर हमर कुछु नइ  बिगडिस ।



अब तो-



सील आ गय ठप्पा         आ गय


कौरा गिस  त अब गप्पा आ गय ।



         पूरा गांव म वोकर  दबदबा हे।दिन म कम से कम दु पइत ,वोहर अपन ढक... ढक ... करत बुलट -फटफटी म गांव के चक्कर जरूर लगा लेथे। कुछु भी करथे ,फेर एक घरी भजनहा  के भजन  घलव सुन लेथे।



          फेर पानी गिरे हे आज।सब कोती नरवा पूरा -संय... मोय ...संय ...मोय करत हें।अइसन म ब्लॉक जनपद जिला के चक्कर लगाना तो नइ बनय।तेकर सेथी आज घर म है।



      अउ भजनहा हर तो अपन तम्बूरा ल धर के घरों- घर किंजरत हे। पानी गिरे के करा... !वोला फरक नइ पड़ना  ये।वोहर मांगे -जांचे बर नइ जाही तव फेर...?



         सरपंच...माफी सरपंच दाउ- बहादुर सिंग हर वोला अइसन झक्खर म घरो -घर भटकत देखिस तब हुकुम देय रहिस के आज इहाँ बइठ तीर म अउ तम्बूरा बजावत बढ़िया ...बढ़िया भजन सुना कहके।ये पाय के,आज भजनहा  हर दाउ के बैठकी खोली म ही बइठ के भजन गावत हे।वोकर भजन हर  बनेच धुरिहा ल सुनावत हे।



          अउ  नारायण हर वोइच भजन मन ल सुने के नाव म सरपंच खोली कोती सरनटावत जात रहिस-ये चिखला माटी म लटपटात ।



          सरपंच खोली म अउ बनेच झन मनखे ठुलाय रहंय।ले दे के नारायण घलव एक ठन कोनहा म ठउर पाइस।


नारायण के आंखी म कुछु तो नइ दिखिस ।फेर नाक हर तो बतात रहिस के अभी अभी ये जगहा म बम भोले  चले हे।गांजा के कहर हर पूरा बैठकी भर गमगमात रहे।


" चल भजनहा, अब ब्रम्हानन्द के एको ठन भजन जान दे।"बहादुर सिंह के ठनकत आवाज निकलिस।


"मोला ब्रम्हानन्द के भजन मन बने लागथें ,बिहारी..!"वो अब तीर म बइठे बिहारी ल साखी देवत कहिस।



'नारायण जिनके परिपालक


तिनको कोउ दुखाय सके रे।


प्रह्लाद भक्त को डारा अगन में


रोम न एको जलाय सका रे।


          


          - भजनहा किल्ली गोहार पारत गावत रहय।फेर तमुरा हर वोकर पूरा साथ देवत रहय।  पाके तुमा के मुड़ बाँस के हाथ -गोड़ ।दु तीन तार के कसावट।फेर हाथ के घुंघरू बंधाय लोचनी म  छेड़े जाय, तब नाद ब्रम्ह हर साक्षात अवतरे भजनहा के हाथ ले।



      बिना कॉपी- कलम के सौ सैकड़ा पद मुँह जबानी याद।कतको बेरा -कनहुँ करा गवा ले।एको पद आन -तान नइ होय। बिना पढ़े -गुने घलव वोला राग- रागिनी मन के बढिया समझ।आन कनहुँ गवइया मन ल जरा भी येती- ओती बहकत सुनथिस तब वोला हाँस के सँवार लेय।अउ कंठ म तो सरस्वती साक्षात बइठे रहिस। असली सरस्वती रहिस वोकर रोज के गायकी।भले ही भीख -भवन मांगत हे, फेर ये बुता म हर रोज वोहर चार- छै घण्ठा कण्ठ साधना कर डारे। जाने अनजाने वोहर रियाज कर डारे।



"वाह.. भजनहा ! मजा आ गय...! चल तोर भीख पक गय एके घर म ।"सरपंच दाउ कहिस।


"गौटिन...!"वोहर घर कोती अवाज दिस,"ये भजनहा बर पव्वा दु पव्वा चऊर लांन दे।तिपो खाही अपन डेरा म।"



    अब दउ येती ठुलाय सुनइया मन ल सुनावत कहिस,"येला आज चिखला- पानी म लटपटात देखें ग ।तब मोला शोगासिन लागिस।चल कहाँ ....कहाँ भटकही सियान जात कहके मंय कहेंव,चल आज जुवार भर इहेंच बइठ अउ गावत रह ।तोर भीख के पुरता ल मंय अकेल्ला देवा दिहां तोला घर कोती ल।"


"का होइस बढ़िया करे सरपंच दाउ जी।" महेत्तर कहिस।


"ये दे अउ देवत घलव हंव।"सरपंच बहादुर सिंग कहिस,"गौटिन...!"


"हाँ...ये दे ले आने  हंव।" गौटिन दार -चाउर  ल मढावत कहिस।



       किलो अकन चाउर,एक ठोमहा दार, थोरकुन आन- आन तरकारी अउ पाँच सात आलू।


"अरे गौटिन ,तोला एको पव्वा चाउर लाने बर कहें रहंय।अउ तँय तो इहाँ गुरु बबा के चढोतरी असन जिनिस लांन के गदो देय न ।" सरपंच थोरकुन कंझात कहिस,"चल... चल ये तोर दार -आलू मन ल फ़िरो !"



    सरपंचीन कुछु नइ कहिस ।अउ वोकर देखउ म चाउर ल ना दिस, भजनहा के झोली म ।सरपंच अनते मुँहू करिस तब फेर वो सब  जिनिस ल भजनहा के झोली म रितो दिस।



          भजनहा अपन विदाग़री लेके विदा हो गय । फेर येती गउटिन चहा - पानी लानिस अउ वोकर आँखी हर येती ओती खोजिस-


"कोन भजनहा ल खोजत हावस ,गउटिन ..?"दाउ हाँसत कहिस ।


"हाँ...! जुवार भर ल गला के  नस ल टोरत रहिस।ये तिपत चहा हर वोहू ल बने लागे रइतिस ।"


"वोहर तो अब अपन घर पहुँच गय होही ।"


"बोपरा...!"


"गउटिन , छोटे मनखे ल जादा मुंड म नइ चढ़ाय...समझे। गउटिया घर के चहा -पानी बिहारी असन मन बर ये ।भजनहा बर तोर डेहरी ल बस दु मुठा भीख भर निकलत रहय ...सदाकाल।"दाउ हर खाली कप- प्लेट ल  टेबल म मढ़ावत कहिस ।



         गौटिन वापिस चल दिस फेर भजनहा ल अइसन झँखरहा म बने तिपत चहा नइ पिया पाये के मलाल वोकर चेहरा म परछर दिखत रहय ।



"बिहारी...!"गउटिया  तीर म बइठे बिहारी ल साखी देवत कहिस ।


" हाँ दाउ...!"


"ये साले भजनहा हर घलव बड़ विचितर हे ।"


"का हो गय वोला ...!"


"भले ही जान चल दिही फेर वोकर तमुरा ल कोई ल नइ छुवन देय ।"


"हाँ...येहर तो सच  गोठ आय ।" बिहारी घलव गौटिया के गोठ के समर्थन करिस।




                       *(2)*



             सरकार -दुआर ल अवइया जम्मो नावा जिनिस योजना मन दाउ सरपंच घर  म पहिली उतरथें ।सरपंच दाउ राखे के लइक बने -बने जिनिस मन ल राख लेथे वोमन  ल अउ निकलन नइ देय ।



              बड़े बड़े ग्यानी -गुनी कलाकार मन संघर्ष करिन तब सरकार हर गांव ग्राम के दुखी -भुखी कलाकार मन बर मासिक वृत्ति देय के घोषणा करिस हे।



              फेर अइसन सुपात्र  हक्कदार मनखे मन ल खोझे बर  - ये पंचायती राज वाले मन ल छोड़ के, अउ आन दूसर कौन हे ?



               दाउ सरकारी फरमान ल पढ़ीस । तुरतेच वोकर फैसला हो गय-


लोकगायक अउ लोकनर्तक पद बर  कोन - कोन फार्म भरिहीं।



" गउटिन, लोक गायक अउ लोक नर्तक कोन ...?"गउटिया रात के  गउटिन करा कहिस ।


"भजनहा अउ पीतर देवारीन... अउ कोन ।"गउटिन ,गउटिया के पांव म तेल मलत कहिस।


"तँय निच्चट भकर- भोली अस ।जिंदगी भर चार पइसा  मिले के गोठ हे। गांव के लोक गायक तोर बेटा उदयप्रकाश ...अउ लोक नर्तकी तोर बहुरिया कंचन समझे ...! बस ,अब चुप कर अउ सुत...! " गउटिया कहिस अउ घर्र... घर्र नाक बजावत सुत गय  ।



       येती  गउटिन के आँखी म नींद कहाँ...! वोकर आँखी के आगु म ब्रम्हानन्द के भजन ल जोर- जोर से गावत भजनहा हर कभु दिखे त कभु ...गौटिन तोर जुन्ना फेर बने साड़ी ल दे न  ओ ...कहत  पीतर देवारीन हर ।



        गौटिन बनेच नजर कर के  सुतत दाउ कोती ल देखिस-घर्र... घर्र नाक बजावत  मोठहा गरदन वाला बेडौल काया... जेकर रुंवा... रुंवा म ले  स्वार्थ के अमरवेल हर बगरत हे ।





                    *(3)*



"उदय प्रकाश...बेटा ,समझे न मंय का कहें तउन ल...!" सरपंच अपन पूत ल समझावत कहत रहिस।


"हाँ...। मंय समझ गंय बाबू जी ...।"उदय प्रकाश कहिस अउ शहर कोती चल दिस  अपन दुपहिया वाहन ले।



              दूसर जुवार जब वोहर वापिस आइस तब वोकर संग म  गरदन म आला- माला असन  कैमरा मन ल ओरमाय  एक झन फोटोग्राफर हर रहिस ।



               जेवन- पानी करत रात हो गय । अब फोटोग्राफर हर सरपंच दाउ करा गोठ- बात म मात गय ।


    


              येती उदयप्रकाश हर लुकात- छिपत निमगा चोरी -लुका सपटत ... सपटत भजनहा के कुरिया कोती जावत रहिस ।


"कइसे ननकी दाउ ...!आज रात ये पारा...!" कनक लाल वोला अइसन दबे सहमे येती आवत देखिस तब पूछिस।


"दाउ के हुकुम हे... गांव के पब्लिक के हाल -चाल देखे बर कभु कभु अइसन करे बर लागथे ।"उदयप्रकाश कहिस।



      कनकलाल हर दाउ के दूर -दृष्टि के कायल हो गय।दाउ हर ये जगह म अदृश्य रहिस, तभो ले वोकर  बर दुनों हाथ हर जुडिच्च गय ।



             येती उदयप्रकाश अपन मिशन म लग गय। योहर दबे पांव  भजनहा के डेरा म पहुंच गय। भजनहा तो कच्चा- पक्का चुरो- पको के नारायन अर्पन करत  परसाद पाके थिरा गय रहय ।


हाँ...तमुरा हर वोइच खूंटी म टँगाय रहिस।



             उदयप्रकाश के आंखी हर अंधियार म घलव चमक उठिस । वोहर कलेचुप जा के  वो तमुरा  ल  खूंटी ल उतार लानिस ।



                  अंधियार म चोरी -लुका वइसनहेच भागत अपन हवेली म आ गय। वोला सफल देख के दाउ हर मुचमुचाइस ।



           देखते -देखत उदयप्रकाश अउ  कंचन के  वेश हर बदल गय। सात दिन के  नइ खाय असन उदयप्रकाश..!


हाथ म तमुरा ...! पचासों रकम के पोज । ठीक अइसन कंचन ... अभिच्चे गली खोल म ल नाच के आवत हे।वोकर पोज पचास ले अउ भी जादा ।



          बुता छेवर हो गय ।उदयप्रकाश पुरा सावधानी ले भजनहा के तमुरा ल जे लोक ल ले के आय रहिस, सम्मान के साथ फेर वोइच लोक म छोड़  आइस ।



        सब करत धरत ल  बिहनिया पहागे फेर का होइस ...दुनों के एप्पलीकेशन फ़ाइल हर देखे के लाइक रहिस ।


         


            ये फ़ाइल मन, अब यात्रा  म आ गइन।पंचायत प्रस्ताव...सब सील- मुहर -दफ्तर- हस्ताक्षर एक्के झन करा हे । फ़ाइल उड़िस ।गांव ल जनपद ...।जनपद ल जिला...। जिला ल राजधानी...!



        फ़ाइल के  पांख हर कभु कमजोर होत रहिस। तब अपन बनाय विधायक ल फोन करवा के, चाहे  पंजा  के हरियर पत्ती मन ले वोमे नावा ताकत भरवा देय।



           फ़ाइल हर अपन जन्म सफल कर लेय रहिस अब ।




                      *( 4  )*



          सरपंच दाउ हर आज थोरकुन खुश हावे। वो जउन बुता ल  शुरू करे रहिस तउन हर सुफल हो गय हे ।उदयप्रकाश अउ कंचन लोकगायक अउ लोकनर्तक के रूप म सरकार- द्वार म  चढ़ गय रहिन ।



          येई खुशी म सरपंच हर छोटकुन पार्टी कहले के खाना -पीना के आयोजन करे हावय। 



        दाउ हर बड़ा धार्मिक प्रवृत्ति के मनखे माने अपन आप ल।वोकर पूजा- आंचा ल देख के अउ आन मन घलव वइसन कहें ।ये पाय के खाना म  सादा खाना हर रहिस अउ पीना म ' वो ' तो रईबे नइ करिस । दाउ ल अपन सात्विकता अउ धर्माचरण  बर थोरकुन आग्रह तो रईबे करिस ।



       बनेच अकन पहुना नेवताय रहिन ।  खाना- पीना बने जोरदार चलिस ।अब वोमन के मनोरंजन बर पीतर बाई के  नाच रहिस  अउ भजनहा के भजन रहिस ।



          स्टेज तो जोरदार बने रहिस ।फेर पीतर ल वोमे नाचे म आनन्द नइ आईस । वो तो दु भंवरी मारे के बाद तरी  भुइँया म आ गय ...अब तो वोकर उद्दाम नृत्य हर नटराज बर चुनौती हो गय रहिस ।



            पीतर बाई तो अउ नाचहां कहत रहिस ।  छोटे दाउ अउ बहुरानी मन कुछु होइन हें...!अतका समझ तो बरोबर वोला रहिस। दाउ के अइसन खुशियाली के बेरा  म नइ नाचबे तब ...अउ कब नाचबे ?



       फेर समय ल देखत सरपंच दाउ हर बोला सौ के कड़कड़ात लम्बरी  नोट ल खोचत शांत होय बर कहिस ।



    अन्न -धन- गउ -लक्ष्मी-माल - कोष- खजाना सबके बढ़वार के आशीष देवत नृत्य के बाढ़- पूरा हर उतरिस ।



       अब भजनहा के बारी रहिस-



      वोकरो अन्तस् म तो दाउ मन बर मया- दुलार छलकत हे । तब वोकर स्वर साधना  हर कमसल कइसे होही  ? पीतर तो पूरा साज- बाज के संग म उतरे रहिस अउ येती ओहर अकेला हे ।अकेला हे ...त का होइस  ।



      भजनहा हर तो स्टेज ल छू बे नइ करिस ।अइसन ऊँच जगहा म तो दाउ हर बइठथे...


   


"चल चल ठीक हे , तँय भुइँया म ही बइठ के शुरू कर ...अपन भजन मन ल...!" दाउ हुकुम दिस ।



     भजनहा सबके आगु म शीश नवाइस-



         आनी के बानी 


         चेरिया के सुभा


          कइसे म   तो


           जाये      राम


           मन मोर   नइ 


          लागे तोर भजन म ।



           आनी के बानी 


            चेरिया के सुभा


             कइसे म   तो


             जाये      राम


             मन मोर   नइ


           रमे तोर कीरतन म ।



           चिरई  चुरगुन ल


          अगासे म उड़े के


           सुख देये     राम


          मछुरी मछुरिया ल


          नदियां म तउरे के


          सुख देये      राम



         भजनहा बर सुख


         हावे तोर भजन म ।




       भजनहा माते हे भजन म...! फेर गौटिन के नंजर तीर  म सजे - वोइच तम्बूरा के संग म वोकर पूत उदयप्रकाश  के फोटो उप्पर परत हे ।



    गौटिन के आंखी ले दु बूंदी चु गय ।



*रामनाथ साहू*  -

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐


-

समीक्षा-

 पोखनलाल जायसवाल:

 हमर देश राज म जेकर लाठी तेकर भइँस के चलागन अभियो देखे जा सकत हे। गउटिया के गउटियई चल दे हे, फेर लोकतंत्र के आय पाछू घलव उँखर रौब अउ धाक ह जस के तस बने हावय। उँखर धाक तरी दुबके गरीब ह दिनोंदिन अउ गरीब होत्तेच हे। गरीब बर बने योजना मन तो नाँव लेखा गरीब बर आय। असल म तो जम्मो योजना हुसियार अउ नेता गढ़न लोगन मन बर आय, नइ त उँखर लगवार मन बर आय।

      लोगन अपन पसंद के कला ल चुनथें अउ बड़ लगन अउ जतन ले कला ल एक पहिचान दिलाथें। सरलग रियाज करथें, नवा पीढ़ी ल सउँपे के उदिम घलव करथें। उँखर समर्पण अउ सेवा जन जन ल मोह लेथे। लोक म अपन नवा छाप छोड़ जाथे। कला के जौन सच्चा साधक होथे, तौन कोनो किसम के तीन पाँच ल नइ जानय। उँकर हिरदे म सिरिफ कला अउ कला रहिथे। कला के बढ़वार ले उन ल बड़ संतोष होथे। उँकर संतोषी प्रवृत्ति के चतुरा अउ लालची मनखे मन बड़ फायदा उठाथें। अइसन चतुरा मन गाँव के सियानी ल अपने हाथ म रखे म माहिर होथें। आज सरपंच बहादुर सिंग जइसे कतको हें जउन मन गरीब मन बर बने जम्मो योजना मन ल बिलई सहीं सपटे ताकत रहिथें। उँकर असली हकदार के पेट ल मार के डकार मारे बर एक पाँव म खड़े तियार दिखथें। योजना बने म देरी हो सकत हे, फेर ओला झपटे म चिटिक देरी नइ होय। बहादुर सिंग मन बहादुरी दिखात योजना बनतेच साठ असली कलाकारी दिखाथें। सगा सोदर ल रातों-रात स्टार बनाके दम लेथें। योजना ल गटक डरथें अउ हकदार मन प्यासे मरत रही जथे। 

     उहें कला के पारखी मन कलाकार के संग होवत अनियाव ल देखत  दंग रही जथे। अपन विरोध ल बुलंद नइ करँय अउ अनियाव के भागीदार बन जथे। पछतावा भर करत रहिथे।

       ए कहानी कला के साधक भजनहा जइसे कतको कलाकार के संग होवइया अनियाव ल उजागर करे के उदिम आय। जिंकर ले सरकारी योजना ल दबा के रख दिए जाथे। 

      कहानी म चरित्र के मुताबिक़ संवाद ल गढ़े म कहानीकार सफल हें।  

     "...गउँटिन! छोटे मनखे ल जादा मुड़ म नइ चढ़ाय... समझे।"   

       ए गोठ ह सरपंच के आम आदमी के प्रति उँकर अंतस् म का हे? एकर परछो करा देथे। रामनाथ साहू जी नेतामन के करनी अउ कथनी के भेद ल उघार के रख दे हें।

      उहें सरकारी योजना के भर्राशाही ल उजागर करत लिखथें..

...नावा जिनिस योजना मन दाउ सरपंच घर म पहिली उतरथें। सरपंच दाउ राखे के लइक बने बने जिनिस मन ल राख लेथे ओमन ल अउ निकलन नइ दय।

       कहानी ल जौन ढंग ले विस्तार दे गे हे वो ह आँखों देखा सहीं जनाथे। इही ह कहानीकार के चतुराई आय।

     भजनहा अउ पीतर बाई जइसन कलाकार ले जादा दाऊ बहादुर सिंग के लालच अउ स्वारथ के चालबाजी, चतुरई अउ कलाकारी ह कहानी के शीर्षक ल सार्थक करथे।  उदयप्रकाश के महत्वाकांक्षा ह नवा पीढ़ी के विचार ले मेल खावत दिखथे, जे पीढ़ी ह कम मिहनत ले जादा कमई अउ प्रसिद्धि चाहथें।

   सुग्घर भाषा शैली म लिखे गे कहानी पाठक के मन मोह लेथे।  भ्रष्टाचार के पोल खोल के रखे म कहानीकार सफल हावय। बेवस्था के विरुद्ध सांकेतिक विद्रोह के सुर ल साजे कहानी बर कहानीकार रामनाथ साहू जी ल बधाई



पोखन लाल जायसवाल

पठारीडीह पलारी

No comments:

Post a Comment