Thursday 15 December 2022

साप्ताहिक बजार

 साप्ताहिक बजार 


          देशी पताल ले....देशी पताल .... 20 के ढाई किलो .... 20 के ढाई किलो ... अरे वाह रे पताल दिखे मा लाल-लाल। छाँट के लेहूँ जी...? छाँट के लेबे 15/- किलो परही... आँय ..?

          जब झोला ले के साप्ताहिक बजार म निकलबे तब अइसन विहंगम दृश्य देखते ही बनथे।सब्जी बेचने वाला मन के एक ले बढ़ के एक अंदाज । एक झन चिल्लात रहय- फोकट में आव... झोला भर के ले जाव। तिर म गेंव ता भाव बताय ल धर लिस। कहे लगिस आय के फोकट ये गुरुजी ख़रीदबे ता पइसा लगही ।

          गोभी लो भाय गोभी.... एक नम्बर का गोभी 20/- किलो ...।  जब कोनो ओकर डहर ध्यान नइ दिस तब ओ चिल्लाय लगिस - अरे ले जाव यार चोरी का माल 20 का डेढ़  20 का डेढ़...। महुँ सोच प परगेंव 5 मिनट 20 का डेढ़ कइसे होगे...??

           चना खाव बदन बनाव... अरे वाह रे गोल्लर चना... झन करबे मना.. हो जही तनानाना...। ये गोल्लर चना बेचने वाला के बदन संडउवा कांड़ी ले ओ पार। दुसर के बदन बनाय ल चले हे। जब एके प्रकार के साग भाजी ल दू झन आजु बाजू बेंचथे तब तो उँकर कम्पीटिशन देखे लइक लरहिथें। 

           मटर बीस...  मटर बीस...  मैं पूँछेव 20 रुपिया का..? किलो ? अरे नहीं गुरुजी 20 रु पाव। अइसन ट्रेजडी घलो कई दफा हो जथे। 

           करेला देशी... करेला देशी... अरे ले जा यार आज नइ कमाना हे..

          धनिया ...धनिया... देशी धनिया .. अरे वाह रे खुश्बू....मा कसम ....। धनिया के जूरी ल लहरात  चिल्लात रहय । मंय सुन परेव अजय भाय ... सोंच म पर गेंव ये आदमी मोर नाम कइसे जान डरिस ...? बाद म ध्यान दे के एक घँव अउ सुनेव तब पता चलिस वो चिल्लात रहय- आजा भाय ... ।

         टिक्कड़ खट्टम.... टिक्कड़ खट्टम...लेजा करेला हावय भक्कम.... । करेला देशी...करेला देशी.. गज्जब का । करेला देशी तो समझ म आगे फेर ये टिक्कड़ खट्टम....काला कहिथे अब तक समझ नइ पायेंव। 

           साप्ताहिक बजार के एक खास बात उँहा बेचने वाला मन सब जिनीस ल देशीच कहिथें। रहय भले नहीं । मँय अनुभव करेंव कि देशी कहे ले सब्जी के बेचाय गारंटी रहिथे। देशी सुन के हर मनखे एक नजर पलट के जरूर देखही।  

            नींबू 20 के चार .... एक झिन लइका ह कहि परिस वो मेर तो 20 के 6 देवत हे ... नींबू बेचइया वाले खखवागे, कहिस- वहीं जा के लेना .... तेरा भाँटों है फिरी में दे देगा ...। 

           एक झिन सियानिन ल तो मँय आज तक नइ समझ पायेंव। कभू भी ओकर करा सब्जी ले बर जाबे रेट ल बताबे नइ करय। ओकर एके जवाब रहिथे ले जा ना बेटा..। परवल का भाव ये दाई ? सियानिन - ले जा ना बेटा..। फेर रेट ल नइ बताय। कुछु कहिबे ता एके बात तोर करा जादा थोरे लेहूँ। 

            साप्ताहिक बजार के आनंद ही कुछु अउ होथे। किसिम-किसिम के साग-भाजी तो मिलथे ही,सस्ता घलो मिलथे अउ मनपसंद के घलो। सब्जी लेने वाला मन घलो किसिम किसिम के होथे। कुछ मन बिल्कुल 4 बजे पहुँच जाथे भीड़भाड़ ले बाँचे बर, ता कुछ मन 6 बजे धक्का खाये बर। अउ कुछ मन 7 बजे के बाद जाथे सस्ता खरीदे बर। साप्ताहिक बाजार म हरही गाय अउ गोल्लर मन के अपन अलगे वर्चस्व रहिथें। चिटिक असावधानी ले आफत घलो आ जथे। गाय अउ गोल्लर एक घव कहूँ पइध गे तब फेर वो कहाँ ले मानथे।

            ढिमरिन मुर्रा केवल साप्ताहिक बजार म ही मिलथे। वइसने ढिमरिन मन के बनाय मुर्रा लाडू, राईजीरा लाडू उँकर फोड़े चना के सुवाद ही कुछ अउ होथे। 


*अजय अमृतांशु*

भाटापारा

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