: *छत्तीसगढ़ी भाषा मा आने भाषा के शब्द ला अपभ्रंश रूप मा प्रयोग करना कतका न्यायसंगत*
छत्तीसगढ़ी भाषा के "मूल शब्द" के न तो उच्चारण मा दोष देखे बर मिलथे अउ न लेखन मा कोनो दोष दिखथे। फेर आने भाषा के शब्द जब बउरे जाथे तब उन शब्द मन के छत्तीसगढ़ीकरण लोगन अपन-अपन तर्क, बुद्धि अउ ज्ञान के अनुसार करथें। आने भाषा के शब्द मन भाव ला ज्यादा स्पष्ट करे बर "अमानत" के रूप मा प्रयोग मा लाए जाथे। अमानत मा ख़यानात तो बने बात नोहय!
तइहा के जमाना मा स्कूल के कमी रहिस। बड़े-बड़े केंद्र मा बस स्कूल रहिन। शिक्षा के कमी के कारण बहुत बड़े जनसंख्या देवनागरी लिपि ला नइ जानत रहिन तेपायके जइसे सियान मन बोलँय, वइसे लइका मन बोलत रहँय। बोले मा कइसनो उच्चारण करके बोले जाय फेर लेखन मा देवनागरी लिपि के जम्मो 52 वर्ण के प्रयोग होना चाही। मौखिक मा "बोली" अउ लेखन मा "भाषा" अनुसार बोलना अउ लिखना चाही। शिक्षा के अभाव मा कई झन नुकसान ला "नुसकान" बोलथें। अब बोलत हे कहिके वोला सही शब्द नइ कहे जा सके। बबा सक्कर बोलत रहिस वोकर नाती शक्कर बोल लेथे। ये अंतर शिक्षा के कारण होथे। बबा अशिक्षित रहिस तो नाती हर शिक्षित होगे हवय।
एक महत्वपूर्ण बात यहू हे कि वर्ण ले अक्षर बनथे अउ अक्षर ले शब्द बनथे। "शब्द" कभू निरर्थक नइ होवय। हर शब्द के अपन विशिष्ट अर्थ होथे। शुक्ला के अर्थ हे, सुकुल के कोनो अर्थ नइये। रामेश्वर के अर्थ हे, रमेसर के कोनो अर्थ नइये। लेखन मा हमेशा सार्थक शब्द होना चाही। कमल शब्द तीन अक्षर ले बने हे। क, म अउ ल। कमल के अर्थ हे। इही तीन अक्षर के शब्द आय - कलम, एखरो अर्थ हवय फेर मकल, लकम घलो इही तीन अक्षर ले बने हवँय फेर इनकर अर्थ नइये। माने निरर्थक शब्द आँय।
मोर मान्यता घलो हवय अउ निवेदन घलो हवय कि भाषा के साहित्य लेखन मा "निरर्थक शब्द" के प्रयोग नइ करना चाही। प्रकाश ला परकास, प्रयोग ला परयोग, परदेश ला परदेस, प्रकृति ला परकीरती जइसन तोड़ मरोड़ के नइ लिखना चाहिए।
हमर सियान साहित्यकार मन स, श, ष, श्र जइसन अक्षर के प्रयोग बहुत पहिली ले करत हवँय। अनुकरण हमेशा अच्छा बात के होना चाही। अलग-अलग जमाना के साहित्यकार मन के कुछ अइसन अक्षर के प्रयोग के उदाहरण देखव जेन ला कुछ झन कहिथें कि छत्तीसगढ़ी मा केवल "स" अक्षर हे। श अउ ष नइये।
*“क्ष” के प्रयोग -*
*गाथा काल - (सन् 1000-1500 ई.)*
बड़ सैइता धारी *लक्ष्मण* जती जोगी, बारा बरस जोग करेरे भाई
( *फुलबासन*)
*आधुनिक काल (सन् 1900 ले 2018)*
*यक्ष* एक हर अपन काम में, गलती कुछु कर डारिस ।
तब कुबेर हर शाप छोड़ अलका ले ओला निकारिस ।।
( *मुकुटधर पांडे - मेघदूत छतीसगढ़ी अनुवाद*)
पिंगल शास्त्र न पढ़ेव कछु, *निरक्षर* अघधाम ।
अंध मंदमति मूढ़ हौं, जानत जानकि राम ।।
( *नरसिंह दास – अपन परिचय*)
झाड़ें भाषण, *गो रक्षा* के नेता बन के ।
कभू बात पतियावव झन, इन अड़हा मन के।।
( *कोदूराम “दलित”- सियानी गोठ*)
जम्मो टूरा टूरी ल *अक्षर* पढ़न दे, जिनगी के कहानी नवा गढ़न दे।।
( *चेतन भारती - उन्नत के बीज*)
“दलित” सहीं *शिक्षक* मिल जातिन, जौन पढ़ातिन दिन अउ रात ।
सब लइका मन मिल के गातिन, हो जातिस सुख के बरसात ।।
( *शकुंतला शर्मा - आल्हा छन्द*)
*शिक्षा* ले संस्कार जगय
सुग्घर आचार व्यवहार पगय ।
रहन-सहन के बदले सलीका
अउ दरिद्रता दूर भगय ।।
( *सपना निगम – विश्व साक्षरता दिवस*)
ईश्वर के तो रूप अनेक। करैं काज उन जग बर नेक।।
पशु *पक्षी* नर वानर रूप। किसम किसम के तोर सरूप।।
( *सूर्यकांत गुप्ता - चौपई छन्द*)
*भिक्षा* दे दे द्वार खड़े हँव, कपटी ह गोहराय |
देखय साधू ला कुटिया मा ,सीता *भिक्षा* लाय ।।
( *आशा देशमुख – सरसी छन्द*)
*“त्र” के प्रयोग -*
*भक्ति युग, मध्यकाल (सन् 1500 - 1900)*
*जंत्र मंत्र* टोटका नहीं जानेव, नितदिन फिरत उदासी ।।
( *संत धरमदास*)
कहे नरसिंह *त्रिपुरारी* देखें स्वारी, धांवे भूले सब नहीं कोऊ बारे आगी चूलहा।
( *नरसिंह दास - कवित्त*)
गंग के पानी म भंग घोटावत, बीष मिलाय पिये *त्रिपुरारी*।
( *नरसिंह दास – सवैया*)
*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*
विश्व-शांति अब लाव , सबो के भला विचारो ।
*अस्त्र शस्त्र*,बम वम सब ला सागर मा डारो ।।
पाई पाई जोर के, बनँय धनी कंजूस ।
चिरहा फटहा *वस्त्र* नित, पहिरँय मक्खीचूस ।।
रहव एक खातिर सबो, अउ सब खातिर एक।
*मूलमंत्र* सहकार के, आय यही हर नेक।।
( *कोदूराम “दलित”- सियानी गोठ*)
बी ए पास करे खातिर हम, मर मर हाड़ा टोरेन।
बने नौकरी पाबो ना कहिके, *सत्रह* बछर अगोरेन ।।
( *विमल कुमार पाठक - रे भैया हम खेती करबो*)
अँधियारी रात मा जी,दीया धर हाथ मा जी,
भूत प्रेत साथ मा जी ,निकले बरात हे।
बइला सवारी करे,डमरू *त्रिशूल* धरे,
जटा जूट चंदा गंगा,सबला लुभात हे ।।
( *जीतेन्द्र वर्मा "खैरझिटिया" -घनाक्षरी छन्द*)
साफ सफाई स्वस्थ रहे के *यंत्र*।
स्वच्छ रहे के आदत,होथे *मंत्र*।।
( *सुखदेव सिंह अहिलेश्वर – बरवै छन्द*)
*“ज्ञ” के प्रयोग -*
*गाथा काल - (सन् 1000-1500 ई.)*
सासे के बोलेव सास डोकरिया,कि सुनव सासे बिनती हमार
मोला *आज्ञा* देते सास, कि जातेव सगरी नहाय
घर हिन कुंवना कि, घर हीन बावलि
कि घर हीन करो असनांद, अहिमन झन जा सगरी नहाय ला ।।
( *अहिमन गाथा*)
*भक्ति युग, मध्यकाल (सन् 1500 - 1900)*
(1)
सन्तगुरु हमरे *ज्ञान* जौहरी,, रतन पदारथ जोर देव हो।
धरमदास के अरज गोंसाई,, जीवन के बांधे डोर छोर देव हो।।
(2)
*ज्ञान* दुलीचा झारि दसाबो, नाम के तकिया अधर लगावो ।।
धरमदास विनवै कर जोरी, गगन मंदिर मा पिया दुलरावौ ।।
( *संत धरमदास*)
*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*
गुरु हरथे *अज्ञान* ला, गुरु करथे कल्यान ।
गुरु के आदर नित करो,गुरु हर आय महान ।।
ऋषि मन के *विज्ञान* , सबो ला सुखी बनाइस ।
सीखो सब विज्ञान, येकरे जुग अब आइस ।।
( *कोदूराम “दलित”- सियानी गोठ*)
बनके लछमी भरही घर जी बन शारद देहँय गा सब *ज्ञान*।
इँदिरा प्रतिभा सुषमा जइसे करही उँन कारज पाहँय मान ।।
( *मनीराम।साहू "मितान" - अरविंद सवैया*)
**श्र” के प्रयोग -*
*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*
मेकल *श्रेणी* बनिस सिंघासन
भगिस सोन तब मस्ती मा।।
( *प्यारेलाल गुप्त - छत्तीसगढ़ बर जीबो मरबो*)
जहाँ योगेश्वर कृष्ण चंद्र अउ जहाँ पार्थ गांडिवधारी।
उहाँ *विजय श्री* अउ विभूति सब अचल नीति हे सुभकारी।।
( *कपिल नाथ कश्यप -श्रीमद भगवत गीता*)
*श्रृंगी* भृंगी बाजत हावय, नाचे मरी समान।
ब्रह्मा जी हा बिनय सुनाइस, मौका ला शुभ जान।।
( *चोवाराम “बादल” - शिव जी के लीला*)
गौरी सुत गणराज प्रभु, हे गजबदन गणेश ।
*श्रद्धा* अउ विश्वास के, लाये भेंट रमेश ।।
( *रमेश कुमार सिंह चौहान - सुमरनी*)
आवव पेंड़ लगाइन,समय निकाल।
धरती ला सुघराइन, *श्रम* ला डाल।।
( *दिलीप कुमार वर्मा – बरवै छन्द*)
*“श और ष” का प्रयोग -*
*(भक्ति युग, मध्यकाल) (सन् 1500 - 1900)*
मैं तो तेरे भजन भरोसो *अविनाशी*
( *संत धरमदास*)
*आधुनिक युग (सन् 1900 से आज)*
(1)
*जगदीश्वर* के पाँव मा, आपन मूड़ नवाय
सिरी *कृष्ण* भगवान के, कहि हौं चरित सुनाय।।
पँड़री पँड़री देह के, रूपस सबे अघात
*श्याम* मिले के *खुशी* में, फसफसात हे जात।।
(2)
रौताइन सब सुनत रिसाइन।
कब ले *श्याम* साव बन आइन।।
साँप घलाय सबो *पोषे* हौ।
सबो जगत आज मोर देहौ।।
( *पं. सुंदरलाल शर्मा - दान लीला*)
(1)
अणु ला नान्हें मत समझ, अणु ला तुच्छ न जान।
अणु मा *शक्ति* अघात हे , अणु मन आयँ महान।।
(2)
बंधन –मां जतका हवयँ, सबला मुक्त कराव।
*पंचशील* ला मान के , *विश्व-शांति* अब लाव।।
(3)
बासी मा गुन हे गजब, एला सब झन खाव।
ठठिया भर पसिया पियौ, तन ला *पुष्ट* बनाव।।
(4)
*नष्ट* करो झन राख-ला, राख काम के आय।
परय खेत-मा राख हर , गजब अन्न उपजाय।।
( *कोदूराम “दलित” - सियानी गोठ*)
*दशरथ* बोलिस छोटी रानी, का दुख मा तंय करे गोहार ।
जौन माँगबे सब कुछ देहूँ, राजपाट मैं करंव निसार ।।
( *वसंती वर्मा – आल्हा छन्द*)
*शंभु* के बरात देखि जियरा डरावत।
डाकिनी *पिशाच* गीत लुलु लुलु गावत।।
( *नरसिंह दास - कवित्त*)
साँप के सूत मा बिच्छु गुँथाइ, लगाइके झूल जटा अहिरे।
हाथ म पाँव म साँप के *भूषण, भूषण* साँप *शरीरहि* रे।।
( *नरसिंह दास – सवैया*)
मंदिर कोती गै पुजेरी चला घंटी *शंख* ला हेरी।।
राजा *हरिश्चन्द्र* बड़ दानी। भरिन डोम के घर पानी।।
धरे रहिगै *धनुष* बान समय होथे बड़ बलवान।।
( *द्वारिका प्रसाद तिवारी विप्र - बुड़ती बेरा*)
हमरे कमई में बसे हे *शहर*
हमरे भरोसा चलत हे पुतलीघर ।।
( *कुंजबिहारी चौबे - बियासी के नागर*)
सदा काल ले *दुष्ट* समय बर, जिनगी सहज सवारी बनगे।
ये दुनिया मा *महापुरुष* मन, कतको आथें कतको जाथें।।
( *नारायण लाल परमार - हमर जिनगी*)
आँसों होरी मा सबो,धरव शांति के *भेष*।
मेल जोल जब बाढही,मिट जाही सब *द्वेष*।।
( *अजय अमृतांशु - दोहा छन्द*)
*शंकर* तांडव झुमरत नाचे,धरती दाई देख !
पटक-पटक के गोड़ दबाथे,छाती अपन सरेख !!
( *असकरन दास जोगी - सरसी छन्द*)
माघी पुन्नी मा चलव, दामाखेड़ा धाम।
*दरशन* ले साहेब के, बनथे बिगड़े काम।।
( *कन्हैया साहू "अमित" - दोहा छन्द*)
महँगा हवय *कीटनाशक* हा, गोबर खातू डारौ |
छोड़व रासायनिक खाद ला, करजा अपन उतारव ||
( *ज्ञानुदास मानिकपुरी*)
मोर विचार मा छत्तीसगढ़ी मा आने भाषा के शब्द के अपभ्रंश रूप के प्रयोग नइ करना चाही।
*अरुणकुमार निगम*
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एक लाइन के समर्थन बात -ठेठ अउ बनावटी छत्तीसगढ़ी ल बउरे ले , भाषा (भाखा, भासा )के प्रवाह (परवाह ) रवानगी हर छेंकाही। येहर हिंदी मोह नोंहे।समय के मांग आय। हिंदी अउ अंग्रेजी पद मन ल समोखे आत्मसात करे ले पठनीयता बढ़ही। अउ भाषा हर आधुनिक लागही। हर जुग हर अपन अलग व्याकरण क़ाबर नई लिखही ? पतंजलि के 'महाभाष' के जोहार हे।पाणिनि के 'अष्टाध्यायी' के जोहार हे। कात्यायन के 'वार्तिक' के जोहार हे। हीरालाल काव्योपाध्याय जी के जोहार हे। ग्रियर्सन के जोहार हे । कामता प्रसाद गुरु के जोहार हे। अउ आज के विनोद वर्मा अउ विनय पाठक के घलव जोहार हे।🌸🙏
रामनाथ साहू
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*विचारोत्तेजक ज्ञानवर्धक आलेख* ........आदरणीय अरुण निगम जी द्वारा पुराना अउ नवा कवि मन के रचना के उद्धरण शोधपरक संकलन हे। छत्तीसगढ राजभाषा आयोग द्वारा 22 जुलाई 2022 के बिलासपुर म आयोजित प्रांतीय संगोष्ठी म ए आलेख के अधिकांश भाग के पठन आदरणीय निगम जी अपन व्याख्यान म करे रिहिन। जेन हर छत्तीसगढ राजभाषा आयोग द्वारा प्रकाशित अउ सद्यः विमोचित ( 28 नवंबर 2022) पुस्तक *छत्तीसगढी का मानकीकरण : मार्गदर्शिका* ( संपादक- डाॅ विनोद कुमार वर्मा ) म संकलित हे। एही संगोष्ठी म *देवनागरी लिपि के हिन्दी बर अंगीकृत 52 वर्ण के छत्तीसगढी लेखन म स्वीकार्यता के प्रस्ताव सर्वसम्मति ले पारित होय रहिस।* अधिकृत रूप ले ये तिथि ( 22 जुलाई 2022 ) ल छत्तीसगढ़ी भाषा के बदलाव के बिन्दु माने जा सकत हे। हालाकि एखर पहिली से ही अनेक प्रबुद्ध छत्तीसगढी साहित्यकार मन देवनागरी लिपि के 52 वर्ण के प्रयोग अपन लेखन म करत रिहिन। *छन्द के छ* म शामिल सबो कवि/लेखक मन 2016-17 से ही 52 वर्ण के प्रयोग अपन लेखन म करत रिहिन मगर पुराना विचारधारा ( 39 वर्ण के समर्थक ) के लोगन मन एखर पुरजोर विरोध घलो करत रिहिन। *वास्तव म छत्तीसगढी लेखन म 52 वर्ण के प्रयोग के कारण ही छत्तीसगढी अपभ्रंश लेखन ले मुक्ति के मार्ग प्रशस्त होइस*। छत्तीसगढी भाषा के मानकीकरण अउ संरक्षण-संवर्धन बर एखरे सबले जादा जरूरत रहिस। सादर......🙏🌹
- विनोद कुमार वर्मा
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