Saturday 29 July 2023

सुघ्घर लबारी चन्द्रहास साहू

 सुघ्घर लबारी

      

                                  चन्द्रहास साहू

                                    मो 8120 578897

"त्रेता युग मा शबरी के कुटिया मा आके अब्बड़ सुघ्घर करे राम। दरसन तो देयेस जूठा बोइर घला खायेस। पर के बेटा होके दाई शबरी ला मान देयेस.... तभे मर्यादा पुरुषोत्तम बनेस। आज  शबरी बरोबर महुँ अगोरा करत हँव राम ! मोरो घर आके दरसन दे दे....। मोरो बेटा बन जा.....। आँखी पथरा होगे बेटा के अगोरा मा। रोज दुवारी मा बइठ के बेटा के अगोरा करथंव। मोर एकलौता बेटा-कुलदीपक....?  कोन जन राम कहाँ गवागे मोर जवनहा हा ते ? दाई बर दवई लाने बर गेये रिहिन शहर अउ उहिन्चे गवां गे। शहर मा कोनो गवां सकथे का मोर राम .... ? कोनो पाये-पोगराये होही ते दे देव मोर लइका ला ! जीये के सहारा तो उँही लइका आय। मोर दुख ला टार दे मोर भांचा राम ! कब तक पाँव परावत रहिबे भांचा ! ये मामी के कलपना ला सुन।''

सबितरी डोकरी रामसीता के फोटो मा अगरबत्ती बारके माथ नवाइस। दीया बारिस धूप देखाइस अउ ..... कलप-कलप के रोये लागिस।

      शबरी कस  रोज अगोरा करथे जवनहा बेटा के सबितरी हा । बिहनिया ले अंगाकर रोटी मा घीव चुपरके रद्दा देखथे। बेटा ला अब्बड़ सुहाथे घीव चुपरे अंगाकर रोटी, जिमिकांदा के साग, रखिया बरी, चेंच भाजी बोइर डारके अउ महेरी बासी । रोज आने-आने जिनिस रांध-गड़के अगोरा करथे मयारुक बेटा के। दिन होवय कि रात जागत रहिथे। ठुक ले आरो आथे राचर के अउ नींद उमछ जाथे। देखे लागथे मोर बेटा आगे। झकनका के उठथे अउ मोहाटी ला देखथे। 

"रोगहा कुकुर-बिलई हो ! दाई के पीरा ला तुमन का जानहु  ? कभु घला आ के मोहाटी के राचर ला ढ़केल देथो। मोला भोरहा हो जाथे बेटा आगे अइसे। फेर एक दिन सिरतोन मोर बेटा आही, तब तुमन जानहु। अभिन वोखर बाँटा के जेवन ला खावत हव तब फुटानी मारत हव। लांघन रहू न..... तब जानहु। मोर बेटा आतेच होही..... ?''

साठ-पैसठ बच्छर के डोकरी कुरबुरावत देखे लागतिस अपन बेटा ला। उछाह नंदा जाथे अउ सुन्ना आँखी ले फेर खटिया मा लहुट जाथे।.... फेर नींद नइ आवय। बिहनिया के अगोरा करथे लाहर-ताहर करत। 

.....अउ अब बिहनिया ले आरो करत हाबे।

"लच्छन ! ये बाबू लच्छन ! हेर तो बेटा कपाट ला। खिड़खिड़-खिड़खिड़ ......।''

कपाट के सांकल ला बजावत हावय डोकरी हा।

"काय फुलदाई ! का होगे ओ !''

लच्छन कुनमुनावत आइस। कपाट ला हेरिस। सबरदिन बरोबर एकेच सवाल अउ ये सवाल के एकेच जवाब।

"फुलदाई ! भाई आही हमर घर तब बता दुहुँ तोला ओ! अतका परेशान झन होये कर। आ जाही झटकुन कहाँ हाबे चंडाल हा ते ... ? चला भीतरी कोती चाहा पी ले।''

भीतरी कोती चल दिस डोकरी हा। रंधनी कुरिया मा डबकत चायपत्ती अउ अदरक के ममहासी ले घर भरगे अब।

लच्छन के लइका मन पढ़त हाबे। चहा दिस वोमन ला। लच्छन के दाई हा परछी के बरदखिया खटिया के पुरती हो गेहे। उठाबे तब उठही, सुताबे तब सुतही-परभरोसा। मुँहू अब्बड़ चलथे फेर काया माटी हो गेहे। लोकवा मार देहे जेवनी कोती ला।  दाई ला आरो करिस लच्छन हा। 

"उठ ओ दाई !''

उठाये लागिस मुड़ी अउ पीठ ला सहारा देके। भलुक चरबज्जी उठ के दुवार-पानी दतोंन-मुखारी बना डारथे दाई हा। फेर कभु-कभु अउ सूत जाथे। आधा गिलास कुनकुना पानी पीयिस अउ अब जम्मो कोई चाहा पीये लागिस।

"बइदराज के दवई-दारू बने असर नइ करत हावय फुलदाई ! अब शहर के डॉक्टर ला देखाये ला लागही अइसे लागथे। पइसा के बेवस्था हो जाही तब लेगहु दाई ला।''

"अउ कहाँ लेगबे गा ! अब काया माटी के होगे हे। सरहा काया मा झन लगा जादा पइसा-कौड़ी। तोरो लोग-लइका हाबे पढ़ा-लिखा साहेब-सुधा बना। अब मोर सरहा काया माटी मा पटाही बेटा।''

लच्छन के दाई केहे लागिस चाहा के घूँट पीयत।  

"बने हो जाबे दीदी !  बेटा हा जतन करत हाबे। पइसा लगाही, ईलाज करही।''

डोकरी सबितरी लच्छन के गोठ मा पंदोली दिस।

"अब्बड़ गरीबी देखे हावय बेटा लच्छन ! तोर दाई हा। जब ले ये गाँव मा आये हावय तब ले अब्बड़ बुता कमाये हे। झउहा-झउहा माटी बोहो के कतको गड्डा ला पाटे हावय तब नानकुन घर अउ खार मा दू हरिया के खेत बिसाइस। तीन-तीन झन नोनी बाबू के जतन करके बड़का करिस। पइसा भलुक कमती रिहिस फेर साध पूरा करिस लइका मन के तोर दाई हा। जतन कर बेटा ! जीयत ले जतन करे बर लागही..। मोरो बेटा कब आही ते दाऊ ! मोरो सेवा करही हो...हो.......!''

सबितरी डोकरी अब गोहार पार के रो डारिस लच्छन ला समझावत। 

"सब बने होही फुलदाई ! संसो झन कर।''

डोकरी ला समझाये लागिस लच्छन हा।

       इही पीरा गरीबी मजबूरी हा दाई-ददा के पाहरो ले लच्छन के पाहरो मा घला आइस। ये गरीबी के भंवरी ले कब उबरही ते...? तीन पीढ़ी तो गरीबी के अँधियार मा अँधरा होगे। अब्बड़ सपना देखथे- समृद्धि के अँजोर बगरावंव,लइका मन ला पढ़ा-लिखा के पोठ मइनखे बनावंव अइसे फेर गरीबी के सुरसा...? बाढ़ते हाबे। लइका मन ला प्राइवेट इंग्लिश मीडियम स्कूल ले नाव कटवा के सरकारी स्कूल मा भर्ती करवाये हावय तभो ले पढ़ाये बर पइसा कमती पड़ जाथे लच्छन करा। उवत के बुड़त बुता करथे शहर जाके। बड़का-बड़का महल-अटारी बनाथे मंदिर-मस्जिद गुरुद्वारा बनाथे फेर अपन घर ला नइ सिरजा सके। जी अब्बड़ धुकुर-पुकुर होवत रिहिस फेर टिन-टिप्पा छाके चौमासा ला बुलकाये रिहिन। अब तो बखरी के भाड़ी ला  बनाये ला लागही, कुरिया ला सिरजाये ला लागही।

लच्छन गुनत हाबे।

"बाबू !  स्कूल फीस मंगाए हावय गुरुजी हा। देबे गा आज आखिरी तारीख आय।''

लच्छन के बड़का टूरा किहिस। संसो अउ सुरता ले उबरिस लच्छन हा। नान्हे टूरी घला आगे अब। वहुँ केहे लागिस फीस बर।

लच्छन ला संसो होगे। पाछू दरी मरखण्डा बछवा ला बेच के फीस जमा करे रिहिन। अब का करही......?

लिम्बू अथान संग बासी खावत हाबे लच्छन हा।  गोसाइन देवकी घला तियार होवत हाबे। ड्यूटी जाये बर- मिस्त्री रेजा बुता के डयूटी आय। चौमासा गरमी सर्दी कभु नागा नइ करे दुनो कोई शहर कमाये ला जाये बर। लच्छन अउ देवकी के कमई मा घर चलथे अउ दाई के ईलाज होवत हाबे। खार के खेत तो खाये के पुरती हो जाथे। 

लइका मन फेर पदोये लागिस।

"देना बाबू ! पइसा।''

"हांव बेटा-बेटी हो ! पइसा मिल जाही। अभिन अपन ददा ला तंग झन करो। काली ठेकेदार ला माँग के लानहु पइसा ला। तब तुमन ला दे दिहु।''

लच्छन के गोसाइन किहिस गोसाइया ला मुक्का देख के। लइका मन मान गे।

"सिरतोन देवकी ! कभु जी अइसे लागथे कोनो जादूगर रहितेंव ते घर मा पइसा छाप लेतेंव, सड़क तीर के जम्मो बम्बूर रुख ला पइसा के रुख बना देतेंव- कोनो गरीब आतिस अउ अपन जरूरत के पुरती लेग जातिस टोर के। कोनो कही जिनिस बर झन लुलवातिस। जम्मो कोई के दुख-पीरा मजबूरी ला हर लेतेंव अइसे लागथे ओ ! कभु अइसे लागथे कोनो सेठ साहूकार के नोट ले भरे गड्डी मिल जातिस मोला ते घर ला पक्का बना लेतेंव। दाई के ईलाज करवा लेतेंव। तोर बर गहना जेवर बनवातेंव अउ लइका मन ला अब्बड़ पढ़ातेंव-लिखातेंव।''

सायकिल ला पोछत किहिस लच्छन हा।

"कोन कहिथे तोला जादू-टोना नइ जाने अइसे। जदवाहा तो हाबस...?''

"का जदवाहा देवकी.....? में..... में...मेंहा कुछु नइ जानो भई ।''

लच्छन अब अकबकागे देवकी के गोठ सुनके। 

"सिरतोन ओ ....! कोन कहिथे मोला जदवाहा ..?''

लच्छन अब खखवात रिहिस।

"हांव ! जम्मो गॉंव के मन कहिथे तोला जदवाहा।

देवकी किहिस अउ मनेमन मा मुचकाये लागिस। टिफिन मा बासी जोर डारिस। तगाड़ी कैचा गोली टेप जम्मो के तियारी कर डारिस। लच्छन अब पछिना ला पोछे लागिस गमछा मा। 

"भलुक जदवाहा कहिथे फेर टोनहा तो नइ कहे ना देवकी गाँव के मन। कोनो ला अइसन कहना सुघ्घर नोहे ओ ....!''

लच्छन उदास होके संसो करत पूछिस।

"हा.....हा....जदवाहा तो हाबस तेहा ! तभे तो अपन जादू मा मोला फाँस डारेस।''

"अच्छा जी, कोनो कुछु नइ कहाय तेहा कहत हस।''

देवकी के गोठ ला सुनके किहिस लच्छन हा अउ दुनो कोई ससनभर हाँस डारिस एक दुसर ऊप्पर झुलके। हेंडिल मा झोला अरवाय हे अउ पाछू कोती देवकी लदाये हावय। लच्छन तरिया के चढ़ाव मा तनियाके सायकिल के पैडल ला मसकिस अउ अब मेन रोड मा आगे। अब शहर के रद्दा मा दउड़त हाबे सायकिल हा।

"फुलदाई के बेटा कहाँ गवागे हाबे जी ! पाँच बच्छर होगे सुनत हँव फेर आज ले नइ जानो मेंहा ओला।''

देवकी किहिस

"कोन जन ओ ! कहाँ चल दे हाबे ते ? छे बच्छर होगे अब आही तब आही कहिके बाट जोहत रहिथे। कोन जन जीयत हावय धुन मरगे हाबे ते कोनो सोर-संदेश घला नइ हाबे।

"जीयत रहितिस ते सोर-सन्देश तो मिलतिस ....? वहुँ हा काबर जातिस वो दिन शहर।''

"शहर नइ जाही तब कहाँ जाही ओ ...! दवई बिसाये बर तो गेये रिहिस। मइनखे ले मइनखे ला डर होगे हाबे तब का कर डारबे ? दू रंग के टोपी वाला के मार-कांट चलत रिहिस वो दिन। नानचुन गोठ अउ जी के काल होगे। चौक में झंडा लहराये बर झगरा मात गे। आने शहर ले गुंडा मन आके हुड़दंग मचाइस । अब्बड़ पुलिस बल रिहिस। तभो ले उपद्रवी मन ले सिधवा मन नइ बाचीस। अंधरा कनवा लुलवा खोरवा होगे कतको झन तब कतको झन के मौत घला होगे। कतको गुमशुदा होगे। फुलदाई हा भगवान राम के भक्तिन आवय अपन बेटा के हाथ मा जय श्रीराम गोदवाये रिहिस। सिरतोन का आय तेला नइ जानो फेर हाथ के गोदना हा जान ले डारिस अइसे कहिथे जानकार मन।''

लच्छन किहिस। देवकी के जी काँपगे। सिरतोन आज पहिली दरी शहर जाये बर जी डर्राये लागिस देवकी के। सायकिल ला ठाड़े कराइस अउ गोड़ ला सोझियाइस। उतरके झोला के बासी ला घला सोज करिस। लच्छन पछिना ला पोछिस अउ फेर सायकिल चलाये लागिस। थोकिन बाँचीस अब शहर के रिंग रोड हा। रेलवाही नाहक के लच्छन के कमाये के ठीहा हाबे। एक दू ठन ददरिया सुनावत सायकिल के पैडल ला मसकत हाबे अउ आगू बाढ़त हाबे। फेर ये का......? सायकिल ला अतार दिस। निहर के अल्था-कल्था के देखे लागिस नानचुन हैंड बैग परे हाबे साबुत। ऐती-ओती देखिस फेर कोनो नइ दिखिस। अब बैग ला उठा के चैन ला हेर के देखिस तब तो सिरतोन लच्छन के धड़कन बाढ़गे। अकबकासी लाग गे। हफरासी लाग गे। देवकी घला ठाड़ सुखागे। पूरा जिनगी भर खोंटहा सिक्का तक ला नइ पाये रिहिस अउ आज पाँच सौ अउ दू हजार के नोट ले भरे हैंड बैग ला पा डारिस लच्छन हा। तरतर-तरतर पछिना निकले लागिस। पछिना पोंछ के गड़गड़-गड़गड़ पी डारिस बॉटल भर पानी ला। 

"ये कइसन संजोग आय भगवान ! आजेच घर मा गोठियाये रेहेंव अउ सौहत तोर आसीस दिखगे। अतका पइसा मा मोर भसकहा घर ला सिरजा डारहूं। दाई के ईलाज करवा लुहुँ। लइका मन के स्कूल फीस जमा कर लुहुँ। गोसाइन ला गहना-जेवर पहिरा लुहुँ। फुलदाई के खाये पीये के बेवस्था घला कर डारहूं। खेत बिसा लुहुँ अतका पइसा मा तब हटर-हटर कमाये ला नइ लागे। का करो देवकी.... ?  सिरतोन भगवान देथे ते छप्पर फाड़ के देथे ओ। बता, बता देवकी का करव मेंहा अतका पइसा के  ? 

अब बइहाये लागिस लच्छन हा।

"कोनो लहुट के आही अउ पुछही तौन ला दे देबो। आने के  जिनिस बर आस नइ हाबे भलुक हमर ओगरत पछिना ऊप्पर बिसवास हाबे जी ! कमाके पढ़ाबो-लिखाबो लइका मन ला, दाई के ईलाज कराबोन पछिना ओगरा के तौन काम आही।''

छीन भर मा कतका मोह हो गे रिहिस लच्छन ला।  फेर देवकी आँखी उघार दिस। लच्छन घला सिधवा आय फेर पइसा ला देख के....?

अब आधा घंटा एक घंटा देख डारिस फेर कोनो नइ आइस पुछे बर। 

"अब का करव.....? कोनो मंदिर देवाला मा चढ़ा देन का .....? नही। कोनो अस्पताल ला दे देंव का....? नही । कोनो स्कूल मा दान करव का....? नही। दुसर  के जिनिस मा वाहवाही नइ मारन.....। अब थाना कोती जावत हाबे। 

थाना के मोहाटी मा खुसरिस डर्रावत। 

"कौन हो रे ......! क्या काम है.....?''

पुलिसवाला दबकावत किहिस। 

"क... क ...कुछु नही साहेब !''

उदुप ले पुलिस वाला ला चिन्ह डारिस लच्छन हा। पाछू दरी पान ठेला वाला ला धमकी-चमकी लगाके पइसा वसूले रिहिस। एक झन पुलिस वाला हा पटइल के केस ला दबाये बर घूस लेवत रिहिस। दुनो बइमान पुलिस वाला ला जान डारिस लच्छन हा। उल्टा पाँव लहुटगे। जी हाय लागिस। देवकी ला होटल मा बइठारे रिहिस, बलाइस। अब अपन ठीहा कोती चल दिस।

"का करन देवकी ये पइसा ला  ? अब्बड़ संसो होवत हाबे ओ !''

"मोरो बुध पतरागे।  का करन तिही बता.... ?'' लच्छन के गोठ सुनके किहिस देवकी हा।

"देवकी एक बात हावय....?''

"बता ।''

"ये पइसा ला बैंक मा जमा करवा देथन। फेर ?''

"का फेर .....? 

"हमर एकाउंट मा नही भलुक फुलदाई के बैंक एकाउंट मा।''

"काबर ?''

देवकी पूछिस लच्छन ला। 

"देख ओ ! फुलदाई अब्बड़ दुखयारी हाबे। बेटा सिरतोन मा नइ हाबे वोकर। मोटियारी रिहिस कमा लेवय ईटा पथरा के बुता। अब न कोनो बुता तियारे अउ न कोनो बुता कर सके। बेटा जीयत रहितिस, दुरिहा मा रहितिस तब पइसा पठौतिस महीना पुट। अउ नइ हाबे तब ......?''

"हांव मेंहा जान डारेव अब।''

देवकी मुचकावत किहिस। वृद्धावस्था पेंशन के पइसा निकलवाये बर गेये रिहिस अपन फुलदाई संग तब पोस्ट ऑफिस पासबुक ला धरे रिहिस। झोला मा हाबे अभिन तक। पाँच हजार ला बचाके जम्मो पइसा ला फुलदाई के  पोस्ट ऑफिस के खाता मा जाके जमा करवा दिस  लच्छन अउ देवकी हा।

कोस्टाहू लुगरा बिसाइस अउ गाँव लहुट गे दुनो कोई।

"फुलदाई !''

एकेच आरो ला सुनते साठ मोहाटी के कपाट उघर गे। 

"देख फुलदाई ! हमर देवर हा का पठोये हाबे तेन ला।''

"का पठोये हाबे ओ बहुरिया ! कहाँ हाबे मोर लइका हा। कब आही, कहाँ लुका गे हाबे। कोरी खइरखा सवाल कर डारिस। 

"आ जाही फुलदाई ! अभिन लुगरा पठोये हाबे पइसा पठोये हाबे। अपन बुता ला निपटा के वहुँ आ जाही। डाकिया कका हा बतावत रिहिस शहर मा अमराये रेहेंव अइसे। अब तो महीना पुट पाँच हजार पठोहु कहिके काहत रिहिस ओ ! ये महीना के पाँच हजार ला झोंक।''

लच्छन किहिस अउ पइसा ला दे दिस। डोकरी के आँखी ले आँसू के धार बोहाये लागिस।

"मेंहा कहाव सबरदिन सरपंच मन ला मोर बेटा कहँचो कमावत खात हाबे कहिके। अब पतियाही जम्मो कोई ।''

कभु हाँसत हाबे फुलदाई हा तब कभु रोवत हाबे।

"सुकारो  सुलोचना दुरपति रैपुरहीन केंवटिन सुनो ओ ! मोर बेटा हा मोर बर लुगरा पइसा पठोये हाबे।''

फुलदाई अब चिचियावत आरो करिस। रोवई हँसई जम्मो के रंग छा गे दाई सबितरी के चेहरा मा।

लच्छन अउ देवकी तो सजीवन बुटी के घूँट पीया दिस फुलदाई ला। चारो खूंट उछाह के सोर बगरगे अब। सिरतोन अतका उछाह कभु नइ देखे रिहिस डोकरी सबितरी ला। सिरतोन सबितरी के राम आगे आज, अइसन उछाह मा मगन हाबे फुलदाई हा। लच्छन अउ देवकी घला ये सुघ्घर लबारी मार के दुख ले उबार लिस अपन फुलदाई ला।

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चन्द्रहास साहू द्वारा श्री राजेश चौरसिया

आमातालाब रोड श्रध्दानगर धमतरी

जिला-धमतरी,छत्तीसगढ़

पिन 493773

मो. क्र. 8120578897

Email ID csahu812@gmail.com

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