Friday 28 May 2021

सुरता"* *श्री शंभुलाल शर्मा वसंत जी* ---अजय अमृतांशु


 

*"सुरता"*

*श्री शंभुलाल शर्मा वसंत जी*

                ---अजय अमृतांशु



श्री शंभुलाल शर्मा "वसंत जी" बाल साहित्य मा जाने पहचाने नाम रिहिन। सादा जीवन, मृदुभाषी अउ व्यवहार कुशलता उँकर व्यक्तित्व म चार चाँद लगाये के काम करय। हिन्दी अउ छत्तीसगढ़ी दूनो म समान अधिकार रखइया वसंत जी न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि राष्ट्रीय स्तर के पत्र पत्रिका मा भी सरलग छपत रहिन। 


वसन्त जी के जन्म आजाद हिन्दुस्तान मा 11 अप्रैल 1948 के रायगढ़ जिला के गोर्रा गाँव मा होय रहिस अउ करमागढ़ म उन निवासरत रहिन।  साहित्यकार के सँग एक कुशल शिक्षक भी रहिन जेकर प्रभाव उँकर रचना म भी दिखाई देथे। उँकर  रचना म साक्षरता के साथ बालिका शिक्षा के संदेश भी मिलथे। एक बाल रचनाकार के साहित्य म जेन खास बात होना चाही वो सब वसन्त जी के बाल कविता म मिलथे यथा- सहजता, सरलता,प्रवाह अउ कौतूहल ।

अपन जीवनकाल मा वसंत जी देश अनेक नामी पत्र पत्रिका मा छपिन। आकाशवाणी से बाल कविता के प्रसारण के संग 'कविता कोश' म भी उँकर बाल रचना संग्रहित हवय। 


हिन्दी म उँकर 12 कृति प्रकाशित होइस - 

1. सतरंगी कलियाँ   2. मामा जी की अमराई 3.चंदा मामा के आंगन में,  4.-बरखा ले आई पुरवईया  5. मेरा रोबोट  6. है ना मुझे कहानी याद  7. जंगल में बजा नगाड़ा,  8. कोयल आई धूम मचाई 9. इक्यावन नन्हें गीत  10 जमाना रोबो का 11. शेरु की सभा।  12 मैना की दुकान।


छत्तीसगढ़ी म वसन्त जी के 4  कृति प्रकाशित होय हवय-  1. बादर के मांदर  2. नोनी बर फूल  3.आजा परेवा कुरु - कुरु  4. शंभूलाल शर्मा 'वसंत' के छत्तीसगढ़ी शिशुगीत ।


एक बाल साहित्यकार लइका मन के केवल मनोरंजन करे के काम नइ करयँ बल्कि अपन दायित्व के निर्वहन करत संदेश भी देथे। जंगल के होत विनाश ला "वसन्त जी" अपन बाल कविता के माध्यम ले लइका मन ला जागरूक करे कइसे प्रयास करथे देखव :- 

    डोंगरी म नइ मिलय

    खोजे तेंदू चार,

    बेंदरा भालू भूखन मरें

    करथें गोहार।

जंगल के वनोपज जेला आज के शहरी लइका मन जानबे नइ करयँ उन ला "वसन्त जी" अपन बाल रचना मा बड़ सुग्घर ढंग से अवगत करा देथे- 

    कांदा,कोसम,चार,तेंदू

    अउ हावय बेल

    खा-पीके चिरई- चिरगुन

    चढ़ावत हे तेल।

वसन्त जी माटी ले जुड़े रचनाकार रहिन। उँकर बाल साहित्य मा गाँव-गँवई अउ प्रकृति के सुग्घर चित्रण मिलथे - 

    कोइली हर हाँकत हावय,

    रद्दा हमर ताकत हवय,

    अउ आमा के झुंझकुर ले

    टुकुर-टुकर झाँकत हवय।।


अइसन अनेक बाल कविता अउ बाल गीत के रचनाकार वसंत जी से छत्तीसगढ़ के नवा पीढ़ी ल अभी बहुत कुछ सीखे बर मिलतिस,फेर विधि के विधान म उँकर साथ अतके दिन के रहिस। निश्चित रूप से उँकर रचे साहित्य ले नवा पीढ़ी ला बहुत कुछ सीखे बर मिलही। एक अप्रतिम बाल साहित्यकार वसंत जी के सुरता हमेशा आही।


*अजय अमृतांशु*

भाटापारा (छत्तीसगढ़ )

4 comments:

  1. सुग्घर जानकारी देवत आलेख प्रणम्य अमृतांशु भइया जी सादर शत् शत् नमन वसंत गुरूजी ल 🙏🙏

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  2. बसंत गुरुजी सादर नमन

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  3. सुंदर लेख 👍👏💐
    बहुत ही सुघ्घर व्यक्तित्व के मनखे रहिन,हँसमुख स्वाभाव रहिस। उनला शत् शत् नमन हे🙏💐

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