Monday 3 May 2021

छत्तीसगढ़ अउ कबीर दास*



*विषय-- छत्तीसगढ़ अउ कबीर दास*


हिंदी साहित्य के स्वर्णकाल जेला भक्तिकाल कहे जाथे म जन्म लेये(अवतरित) विश्व के सबले बड़े क्रांतिकारी, आडम्बर द्रोही, निर्गुण काव्यधारा के महान संत कवि, प्रथम हिंदी गजलकार अउ गोस्वामी तुलसीदास, गुरुनानक देव आदि के समकालीन  पूज्यनीय कबीरदास जी के उपदेश के हमर धर्मधुरी पावन छत्तीसगढ़ म अबड़ेच प्रभाव हे। ये पावन भुँइया म कबीर पंथी सम्प्रदाय के जेमा सबो जात के मनखे शामिल हें, बहुत जादा जनसंख्या म निवास करथें। फेर कबीर पंथ ल मानने वाला म मुख्य रूप ले तेली (साहू) अउ पनिका (मानिकपुरी) मन के गिनती होथे।

          छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास जी ल समझना हे त सबले पहिली धनी धर्मदास जी ल जाने ल परही।

*धनी धर्मदास*--- छत्तीसगढ़ी के आदि कवि,छत्तीसगढ़ी कबीर पंथ के दामाखेड़ा म संस्थापक धनी धर्मदास जी (सन् 1433--1543 अनुमानित) के जन्म वर्तमान मध्यप्रदेश के बाँधवगढ़ म वैष्णव धर्म के मानने वाला कसौधन वैश्य परिवार म धनवान पिता मनमहेश अउ धर्मिन माता  सुधर्मावती के घर होये रहिस हे। इनकर बचपन के नाम जुड़ावन प्रसाद रहिस। धनी धर्मदास नाम तो कबीरदास जी ह धराये रहिन।

  धनी धर्मदास जी के पत्नी के नाम सुलक्षणावती  रहिस जेला आमिन माता के नाम ले पुकारे जाथे अउ जेला विद्वान मन छत्तीसगढ़ी के प्रथम कवियत्री कहिथें। धनी धर्मदास जी के पुत्र के नाम चुड़ामणि रहिस जेन ह मुक्तामणि नाम ले कबीर पंथ के प्रथम गुरुगद्दी म बइठिन।


*छत्तीसगढ़ म कबीर पंथ, कबीरदास जी शिक्षा के प्रसार-प्रचार म धनी धर्मदास जी के योगदान*--- एक पइत जुड़ावन प्रसाद (धनी धर्मदास) ह तीर्थयात्रा म काशी गे रहिस उँहे वोला कबीर दास जी के दर्शन होइस अउ पावन सत्संग करे के मौका मिलिस। कबीरदास जी के अलौकिक उपदेश ह जुड़ावन प्रसाद के अंग-अंग म पोहगे । सतसंगति के अइसने असर तो होबे करथे। वोकर अंतर ज्ञान जागगे अउ संत कबीरदास जी ले दिक्षा लेके वोकर शिष्य बनगे। तहाँ ले अपन गुरु कबीरदास जी ल अनुनय विनय करके बाँधवगढ़ बला लिस।  कुछ दिन पाछू कबीरदास ह बाँधवगढ़ आके अपार जन समुदाय के बीच जुड़ावन प्रसाद ल अपन प्रमुख शिष्य घोषित करत धनी धर्मदास नाम धरके ,बियाँलिस वंश तक कबीरपंथ के गुरुवाई के आशीर्वाद देइस। लाखों छत्तीसगढ़िया उही दिन कबीरपंथ ल अपना लिन।

     धनी धर्मदास ह अपन पूरा सम्पत्ति ल कबीरदास जी के चरण म अर्पित कर दिस। अब भला कबीरदास जी जइसे फक्कड़ साधू ह वो धन ल का करतिस? वो कहिस--हे धनी धर्मदास ये धन ल दीन दुखी के सेवा म अउ सत के काम ल लगा दे।

   संत कबीरदास जी के चार झन प्रमुख शिष्य--- चतुर्भुज,बंके जी, सहते जी अउ धनी धर्मदास जी रहिन। ये मन अपन गुरु के आदेश पाके भारतवर्ष के चारों दिशा म घूम-घूम के कबीरदास जी के उपदेश के प्रचार-प्रसार अउ शिक्षा देये ल धरलिन। 

   धनी धर्मदास जी ह अपन कर्मभूमि छत्तीसगढ़ ल चुनके   इहाँ अपन सात प्रमुख शिष्य -  बेटा चूड़ामणि ( अटल बियालिस वंश के प्रथम गुरु वंश), नाती कुलपति ,पत्नी सुलक्षणावती(आमिन माता),  जागू, भगत, सूरत, गोपाल अउ साहिब दास मन संग गुरु आदेश के पालन करत कबीर पंथ के धजा फहरादिन।

    धनी धर्म दास जी ह  कबीर दास जी के उपदेश ल जनभाखा छत्तीसगढ़ी म  मंगल, होली ,बसंत, बधावा, सोहर अउ चौका आरती के रूप म लिपिबद्ध करिन। अइसे भी ये जग विख्यात हे कि कबीर दास जी के उपदेश ल बीजक (सबद,  साखी, रमैनी, उलटबांसी) के रूप म संकलित अउ लिपिबद्ध धनी धर्मदास जी ह करे हें।

       *हमर छत्तीसगढ़ बर बहुतेच गौरव के बात ये के -- प्रश्नोत्तर अउ संवाद शैली म धनी धर्मदास जी के लिपिबद्ध मौलिक पांडुलिपि ---सदगुरु कबीर-धर्मदास संवाद के रूप म दामाखेड़ा के गुरुगद्दी सो उपलब्ध हे।*

 *ओइसने परम विद्वान गुरुवंशी आचार्य गृंधमुनि नाम साहेब द्वारा संम्पादित---"धनी धर्मदास जी साहेब और आमिन माता की शब्दावली"   वर्तमान के सर्व प्रमुख कबीर पंथ के केंद्र दामाखेड़ा म उपलब्ध हे।

         छत्तीसगढ़ म सिगमा नगर ले 10 कि. मी. दूरिहा म स्थित छोटे से गाँव दामाखेड़ा ह आज कबीर पंथ के प्रमुख केंद्र हे जिहाँ भारी मेला भराथे जेमा महिना भर ले सत्संग चौका आरती होवत रहिथे।विश्व के लोगन जिहाँ गुरुदर्शन बर आके अपन ल धन्य कर लेथें। दामाखेड़ा म आके सतलोकी गुरवंश के बने मठ मन के दर्शन करके अपन भाग ल सँहराथें।

 वर्तमान म  15 वां गुरुवंश प्रकाशमुनि नाम साहेब जी दामाखेड़ा म गुरु गद्दीनसीन हें।अउ 16 वां गुरुवंश उदित मुनि नाम साहेब के आविर्भाव होगे हे।


 धन्य हे अइसन छत्तीसगढ़ के माटी जिहाँ सत के अँजोर सदा बगरे रहिथे अउ बगरे रइही।धन्य हे धनी धर्मदास जी, धन्य हे पावन तीर्थ दामाखेड़ा। धन्य हे कबीर पंथ।

चोवा राम वर्मा"बादल"

हथबन्द, बलौदा बाजार


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