Monday 3 May 2021

छत्तीसगढ़ अउ कबीर दास




छत्तीसगढ़ अउ कबीर दास 

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     भक्ति कालीन संत कवि मन के बीच कबीर दास ल निर्गुण सम्प्रदाय के ज्ञानाश्रयी शाखा के कवि माने जाथे । डॉ हजारी प्रसाद द्विवेदी कबीर दास ल संत , समाजसुधारक , फक्कड़ , अवधूत कवि मानथें । कबीर के दोहा सबले जादा प्रसिद्ध होइस , उंकर रचना मं आंखी देखे सच के संग समाज के गरीब गुरबा ,पिछुवाए , जनजाति , छुआ छूत , अंधविश्वास असन विषय मन उपर सवालिया निशान घलाय लगाए गए हे जेहर आजो दगदगावत हे । 

   कबीर दास के समय देश मं मुगल शासन के त छत्तीसगढ़ मं मराठा शासन के सुरुआत समंगल नइ होए पाए रहिस । छत्तीसगढ़ मं जनजातीय अउ मैदानी क्षेत्र मं कबीर के बानी के बोलबाला रहिस लगभग एक तिहाई मनसे कबीर पंथ के अनुयायी रहिन । 

     मुक्ता मणि साहेब बांधवगढ़ ले कोरबा आए रहिन ,एकर बाद ही कुदुरमाल मं गद्दी के स्थापना होए रहिस । 1690 मं रतनपुर मं गुरु गद्दी स्थापित होइस । सन 1992 मं 14 वां  गुरु प्रकाश मुनि साहेब होइन । दामाखेड़ा आश्रम ले कबीर मंशूर ग्रन्थ प्रकाशित होए रहिस । नवा पारा गोबरा मं पारख पंथी आश्रम हे फेर हाटकेश्वर मं जौन गद्दी हे उहां गुरु परम्परा नइये । खरसिया मठ मं विरक्त संत मन के गुरु परम्परा हे । सेलूद (  पाटन ) के कबीर आश्रम प्रमुख सुकृत दास साहेब विद्वान प्रवचनकर्ता के रूप मं प्रसिद्ध हें । 

         छत्तीसगढ़ मं लगभग 121 कबीर आश्रम संचालित होवत हे , गरब करे लाइक बात एहर आय के लगभग 28 आश्रम के आचार्य पद मं विदुषी , सेवाभावी महिला मन प्रतिष्ठित हें । 

    कबीर दास के छत्तीसगढ़ मं प्रभाव उपर विचार करत खानी जे बात हर सबले पहिली ध्यान खींचते ओहर आय के कबीर के विचार धारा हर निवृत्ति अउ प्रवृत्ति दूनों के बीच के रस्ता आय जेला विद्वान मन मध्यम मार्गी विचार कहिथें इही विचार हर मनसे के कल्याण बर , समाज मं बगरे दुआ भेद ल घुंचाये बर  गृहस्थ धर्म के पालन करे बर कहिथे माने तपस्या करे बर जंगल जाए , मंदिर देवाला मं धूनी रमाये , तिरिथ बरत करे , मूर्ति पूजा करे के विरोध करके घर परिवार मं रहिके सहज जीवन जिए , मानवता उपर विश्वास करे के प्रेरणा देथे । 

      दूसर प्रभावशाली बात के कबीर के उपदेश , उंकर रचना के भाषा आम आदमी के बोल चाल के भाषा आय जेला हरेक मनसे गुन समझ सकथे । फेर एहू बात ल माने बर परही के उंकर रहस्यवादी रचना , उलटबासी मन गूढ़ चिंतन के सेतिर चिटिक दुरूह हो गए हें । कबीर दास के भाषा ल डॉ श्याम सुंदर दास पंचमेल खिचड़ी कहे हंवय काबर के खड़ी बोली , राजस्थानी , अवधी , पंजाबी , उर्दू संग स्थानीय बोली के शब्द मन जगर मगर करत हें । ओ समय काशी हर व्यापार , धर्म अउ राजनीति के केंद्र रहिस ते पाय के यहां के भाषा हर मिंझऱा रहिस । 

   हमर छत्तीसगढ़ मं  कबीर दास के विचार अउ रचना मन लोकप्रिय उंकर सरल बोधगम्य भाषा  के कारण होइस । जेन भाषा मं आने बोली भाषा के शब्द मन ल अपनाए के गुन होथे उही भाषा हर आम आदमी के कंठ मं ओतके जल्दी बस जाथे । इही देखव न भक्ति कालीन साहित्य के दू झन जगमगावत संत कवि कबीर अउ तुलसी ल  हमर छत्तीसगढ़ मं जतका मान्यता मिलिस ओतका सूरदास अउ मीरा ल नइ मिल पाए हे । 

     कबीर साहित्य दोहा , साखी , सबद अउ रमैनी के रूप मं बगरे हे । बुधियार लिखइया मन सो बिनती हे के कबीर दास के सामाजिक , सांस्कृतिक , भाषिक तत्व मन के बारे मं लिखयं । 

     अतका शोधात्मक विषय देहे बर लोकाक्षर पटल के एडमिन अरुण निगम ल धन्यवाद । 

            आप सबो के विचार , लेख , टिप्पणी के अगोरा मं ..... 

                        सरला शर्मा

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