Monday 3 May 2021

छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*


 

अजय अमृतांसु: *छत्तीसगढ़ अउ कबीरदास*

              (भाग-1)


               विश्व वंदनीय सद्गुरु कबीर के जन्म विक्रम संवत १४५५ (सन १३९८ ई ० ) के काशी (वाराणसी) मा माने जाथे। कबीरदास जी के नाम निर्गुन भक्तिधारा के कवि मा सबले ऊँचा माने जाथे,उन हिंदी साहित्य के महिमामण्डित कवि आय । कबीर दास जी जतका बात कहिन सब अकाट्य हे वोला मानेच ल परही, काबर कबीर हमेंशा यथार्थ के बात कहिन। कोरा कल्पना या सुने सुनाये बात उँकर साहित्य म कोमो मेर नइ मिलय। 

            छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा जब हम कबीर के बात करथन तब धनी धर्मदास के नाम सबले पहिली आथे। वइसे तो कबीर के सैकड़ों शिष्य होइन जेमन अपन अपन हिसाब से कबीर के विचारधारा के प्रचार प्रसार करिन फेर धर्मदास के नाम के छत्तीसगढ़ के संदर्भ मा सबले जादा मायने रखथे। माने जाथे कि धर्मदास जी वैष्णव सम्प्रदाय के रहिंन परन्तु जब उँकर मुलाकात कबीर से होइस तब कबीर के उपदेश ले उन बहुत जादा प्रभावित होइन अउ कबीर के शरण मा आगिन। तदुपरांत धर्मदास अपन सारा संपत्ति (तब लगभग 64 करोड़) ल कबीर पंथ के विस्तार खातिर लगा दिन। कबीर पंथ म ये मान्यता हवय कि धनी धर्मदास के द्वितीय पुत्र मुक्तामणिनाम ल संत कबीर अटल 42 वंश होय के आशीर्वाद दे रहिन जेकर कारण प्रथम वंश गुरु के रूप मा पंथ श्री मुक्तामणिनाम साहब कुदुरमाल म सुशोभित होइन अउ छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के विस्तार होय लगिन। अब तक के वंश गुरु ये होइन -


1. पंथ श्री मुक्तामणिनाम  (वि.सं 1570 से वि.सं. 1638 कुदुरमाल)


2. पंथ श्री सुदर्शन नाम (वि.सं 1630 से वि.सं. 1690 रतनपुर)


3. पंथ श्री कुलपतिनाम ( वि.सं 1690 से वि.सं. 1750 कुदुरमाल)


4. पंथ श्री प्रबोधगुरु (बालापीर) नाम ( वि.सं 1750 से वि.सं. 1775 मंडला)


5. पंथ श्री केवलनाम ( वि.सं 1775 से वि.सं. 1800 धमधा)


6. पंथ श्री अमोलनाम (वि.सं 1800 से वि.सं. 1825 मंडला)


7. पंथ श्री सुरतिसनेहीनाम (वि.सं 1825 से वि.सं. 1853 सिंघोड़ी)


8. पंथ श्री हक्कनाम (वि.सं 1853 से वि.सं. 1890 कवर्धा)


9/ पंथ श्री पाकनाम (वि.सं 1890 से वि.सं. 1912 कवर्धा)


10/ पंथ श्री प्रगटनाम ( 1912 से वि.सं. 1939 कवर्धा)


11. पंथ श्री धीरजनाम (1936 में गद्दीशीन होय के पूर्व लोक गमन)


12. पंथ श्री उग्रनाम  ( वि.सं 1939 से वि.सं. 1971 दामाखेड़ा)


13. पंथ श्री दयानाम ( वि.सं 1971 से वि.सं. 1984 दामाखेड़ा)


14. पंथ श्री गृन्धमुनिनाम साहब ( वि.सं 1995 से वि.सं. 2048 दामाखेड़ा)


15. पंथ श्री प्रकाशमुनिनाम ( वि.सं 2046 से आज पर्यन्त....)


           उपर उल्लेखित समस्त वंश गुरु मन धर्मदास के वंशज रहिन अउ अपन अपन कार्यकाल मा के कबीर पंथ के खूब प्रचार प्रसार छत्तीसगढ़ मा करिन। छत्तीसगढ़ के कुदुरमाल, रतनपुर, धमधा, कवर्धा अउ दामाखेड़ा कबीर पंथ के प्रमुख केन्द्र बनिस । 


अजय अमृतांशु, भाटापारा

              (  भाग-2  )


           निःसंदेह छत्तीसगढ़ मा कबीरपंथ के सबले जादा अनुयायी दामाखेड़ा गद्दी से हवय। इहाँ के अधिकांश आश्रम दामाखेड़ा ले ही सम्बद्ध हवय  परन्तु  फिर भी दामाखेड़ा ले इतर भी कई कबीर आश्रम के निर्माण होइस अउ कबीर के ज्ञान के खूब प्रचार छत्तीसगढ़ मा होइस। गला मा कंठी, माथा म सफेद तिलक अउ श्वेत वस्त्रधारी साधु, संत,महंत साध्वी मन कबीर के विचार ला समूर्ण छत्तीसगढ़ मा फैलाइन। 

            कबीर पंथ मा वंश परंपरा के अनुसार प्रथम पुत्र वंश गद्दी के हकदार होथे अउ बाकी पुत्र ल गुरु गोसाई के दर्जा मिलथे। गुरु गोसाई मन ला चौका आरती करें के पूरा अधिकार होथे।  वंश विस्तार के सँग गुरु गोसाई मन घलो कबीर पंथ के विस्तार खातिर जघा-जघा कबीर आश्रम बनाइन अउ पंथ के विधान के अनुसार चौका आरती करिन अउ आजौ करत हवय। दामाखेड़ा मा वंशगुरू दयानाम साहेब के जब कोई संतान नइ होइस तब दयानाम साहेब के सतलोक गमन के बाद गुरुमाता कलाप देवी ह गृन्धमुनि नाम साहेब ल गोद लिन जो कि गुरु गोसाई के सुपुत्र अर्थात वंशज ही रहिन। लेकिन तत्कालीन कबीरपंथी समाज,कुछ साधु महंत मन येकर विरोध करिन अउ नाराज होके काशीदास जी ल  गृन्धमुनि नाम निरूपित करके खरसिया मा गुरु गद्दी बना के बइठार दिन। तब से ले के आज पर्यन्त खरसिया मा भी वंश परंपरा चले आते हे । 

         लेकिन खरसिया के गद्दी मा जो भी वंश गुरु विराजमान होथे वो योग्यता के अनुसार होथे न कि दामखेड़ा सरिक वंश कुल मा जन्म के अनुसार। वर्तमान में अर्धनाम साहब खरसिया गद्दी मा हवय।  ये गद्दी मा विराजमान वंशगुरु निहंग होथे येमन धर्मदासी नादवंश कहे जाथे। खरसिया गद्दी से उदितमुनी नाम साहेब काशी म भव्य सतगुरु कबीर प्राकट्य  धाम के निर्माण करे हवय अउ कबीर पंथ के प्रचार छत्तीसगढ़ ले बाहिर घलो करत हवय जे हमर बर गरब के बात हवय। 

              दामाखेड़ा मा वंश परम्परा टूट गे ये मान के कई महंत अपन अपन अलग-अलग कबीर आश्रम बना लिन जेमा- पंचमदास जी ग्राम-किरवई में कबीर आश्रम के स्थापना करिन। अइसने ग्राम-नादिया (राजनाँदगाँव/दुर्ग)  मा घलो

कबीर आश्रम की स्थापना कर उत्तराधिकारी मन  प्रचार प्रसार करत हवय।

           

*छत्तीसगढ़ म बीजक अउ पारख सिद्धांत*

              

          मूलतः बीजक ही कबीर के सर्वमान्य ग्रंथ माने गे हवय जेमा निहित कबीर के वाणी (मूलतः साखी,सबद,रमैनी ) के रूप म संग्रहित हवय। कबीर के शिष्य मा अनेक संत हवय जेन 42 बंश के मान्यता ला एक सिरा से खारिज करथे। इमन बीजक के सिद्धांत ल ही मानथे अउ बीजक के प्रचार प्रसार करथे। येकर मानने वाला संत मन पारखी संत कहे जाथे। चौका आरती के परंपरा पारख सिद्धांत मा कहीं नइ हे। पारख मा चरण बन्दग़ी के मनाही हवय बंदगी दूर से ही करे जाथे। 

पारखी संत परंपरा मा अभिलाष दास जी प्रकाण्ड विद्वान होइन । लगभग 80 किताब के रचना उन करिन । महासमुंद, राजिम आदि जघा मा पारखी संत के कबीर आश्रम बने हवय जिहाँ कबीर साहित्य के अध्ययन के सुविधा हवय। 

            अभिलाष दास जी कबीर के संदेश के प्रचार प्रसार खातिर इलाहाबाद में भव्य कबीर आश्रम बनाइन जिहाँ अध्ययन अउ अध्यापन दूनो के व्यवस्था हवय। अभिलाष दास जी मन छत्तीसगढ़ के पोटियाडीह में भी कबीर आश्रम के स्थापना करिन जिहाँ केवल साध्वी महिला मन ही रहिथे अउ कबीर के उपदेश के प्रचार करथें। 


             संत असंग साहेब (खीरी, उ.प्र) घलो छत्तीसगढ़ आइन अउ ग्राम-सरखोर मा नदी किनारे कबीर आश्रम बना के आज पर्यन्त कबीर वाणी के प्रचार प्रसार करत हवँय। इँकर अनुयायी काफी संख्या मा हवय।

               

              ( भाग-3)


 *कबीर पंथ अउ चौका आरती*       

       

       यद्यपि कबीरदास जी के गुरु रामानंद स्वामी सगुण उपासक रहिन फेर कबीरदास जी अपन गुरु ले इतर निर्गुण ब्रम्ह के उपासना म जोर दिन अउ निर्गुण पंथ के स्थापना करिन। निर्गुण भक्तिधारा के उन प्रंथम कवि रहिन। चौका आरती के संबंध म अलग अलग विद्वान मन के अलग अलग मान्यता हवय। कुछ के मतानुसार तात्कालीन समय म हिन्दू समाज मे बलि प्रथा चरम मा रहिस। 

कबीर के विचारधारा ले जब मनखे मन प्रभावित होके कबीर पंथ अपनाये लगन तब उँकर मन ले बलि प्रथा ल हटाये खातिर चौका आरती के विधान शुरु करे गिस, जेमा बलि के जगह नारियल आहुति दे गिस। 


           एक मान्यता यहू हवय कि धर्मदास के सतलोक वासी होय के उपरांत संत कबीर स्वयं धर्मदास जी के सुपुत्र मुक्तामणि नाम ल 42 वंश के आशीर्वाद दे के अउ चौका आरती करके गुरुगद्दी मा बिठाईन। लेकिन पारखी संत येकर खण्डन करथे। उँकर कहना हवय कि एक महान संत जेन निर्गुण ब्रह्न के उपासना करें के बात कहिथें उन चौका आरती के बात कइसे कहि सकथे। जो भी हो चौका आरती के परंपरा छत्तीसगढ़ मा सैकड़ो साल ले चले आवत हे अउ हजारों महंत वंशगुरु ले पंजा ले के चौका आरती अउ कबीर पंथ के प्रचार करत हवय। 


*उलटबासी अउ कबीर*


उलटबासी मा कबीर ल महारत हासिल रहिस । दुनिया मा सबले जादा उलटबासी कबीर ही लिखे हवय। उलटबासी पढ़े अउ सुने म तो उटपटांग अउ निर्थक लागथे फेर जब गहराई मा जाबे तब येकर गूढ़ अर्थ समझ आथे। पंडित मन के अहंकार ल टोरे खातिर ही कबीर उलटबासी लिखिन जेकर अर्थ ल बड़े बड़े पंडित मन घलो बूझ नइ पात रहिन । कबीर अउ गुरु गोरखनाथ समकालीन रहिन। गोरखनाथ के अहंकार ल कबीरदास जी टोरिन अउ अंत मा गुरु गोरखनाथ ला हार माने ल परिस। छत्तीसग़ढ़ी के वरिष्ठ गीतकार श्री सीताराम साहू "श्याम " द्वारा रचित ये कालजयी गीत ल आप सबे जानत हव जेन कबीर के उलटबासी ऊपर आधारित हवय - 

        बूझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी

        बरसे कमरा फीजे ल पानी जी .....

ये गीत के लोकप्रियता ये बताथे कि कबीर के सन्देश छत्तीसगढ़िया जनमानस मा कतका लोकप्रिय हवय। 


*कबीर के संबंध म मान्यता*


पानी से पैदा नहीं, स्वांसा नहीं शरीर।

अन्नहार करता नहीं, ताका नाम कबीर।। 


कबीर पंथ के अनुयायी मन के ये मान्यता विधि के विधान के विपरीत प्रतीत होथे। येमा कहीं न कहीं भक्ति भाव के अधिकता के कारण अतिसंयोक्ति वर्णन होय प्रतीत होथे। ठीक वइसने काशी के लहरताल मा कमलपुष्प मा कबीर साहेब के प्रकट होना भी कहीं न कहीं भक्तिभाव के अधिकता दर्शाथे। 

          

*गुरु शिष्य के सुग्घर परंपरा*


कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।

हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥


कबीर कहिथे कि वो मनखे जेन गुरु के महिमा ला नइ संमझ सकय तेन अंधवा अउ मूरख दोनों हवय, काबर यदि भगवान ह रिसागे त गुरु सो जाय के जघा हवय । फेर कहूँ गुरु रिसागे तब फेर कोनो मेर जघा नइ हे। न केवल छत्तीसगढ़ बल्कि सम्पूर्ण भारतवर्ष के कबीरपंथी समुदाय मा भगवान ले पहिली दर्जा गुरु ल दे गए हवय। छत्तीसगढ़ मा चौका आरती के उपरांत कान फूंका के कंठी माला धारण करे जाथे, संगे संग शुद्ध सात्विकता के पालन के वचन गुरु ल दे जाथे। गुरु बनाये के सुग्घर परम्परा आज भी हमर इँहा प्रचलित हवय।दुख अउ दुःख के समस्त काम गुरु के द्वारा ही सम्पन्न कराये जाथे। 


*उपसंहार -* 

कबीर के अर्थ महान होथे। कबीर के संदेश हा दोहा,साखी,सबद,रमैनी अउ निर्गुणी भजन के रूप मा  छत्तीसगढिया जन मानस म रचे बसे हे।  छत्तीसगढ़ मा कबीर पंथ के अनुयायी लगभग 50 लाख हवय जेमा ज्यादातर पिछड़ा,अउ शोषित वर्ग के हवय। अभी भी अभिजात्य वर्ग में कबीर के उपासक कम ही मिलथे । धर्मदास जी ला छत्तीसगढ़ी के पहिली कवि अउ उँकर पत्नी आमीन माता ल प्रथम कवियित्री माने गे हे। उँकर लिखे पद मन आज भी छत्तीसगढ़ मा श्रद्घा के संग गाये जाथे।  कबीर के अनुयायी मन में गजब के सहजता, सरलता अउ एक दूसर के प्रति सम्मान देखे बर मिलथे। आडम्बर अउ कर्मकांड ले कोसों दूर कबीरपंथी मन उपर ये दोहा सटीक बइठथे- 


चाह मिटी चिंता मिटी, मनवा बेपरवाह।

जिसको कुछ ना चाहिए, वो ही शहंशाह।।

             

          सद्गुरु कबीर युग प्रवर्तक रहिन। हिंदी साहित्य के 1200 बछर के  इतिहास म कबीर जइसन न तो कोनो होइस अउ न अवइया बेरा म कोनो हो सकय । कबीर अद्वितीय रहिन ये बात सब ल स्वीकारे बर परही ।


---अजय अमृतांशु, भाटापारा

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