Monday 3 May 2021

विभाषा से भाषा तक छत्तीसगढ़ी के यात्रा

 विभाषा से भाषा तक छत्तीसगढ़ी के यात्रा 

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     लगभग दू करोड़ मनसे के सुख- दुख , हांसी- रोआसी , गोठ- बात के अधार आय छत्तीसगढ़ी हर । भाषा विज्ञान के अनुसार एहर पूर्वी हिंदी परिवार के आय त अर्ध मागधी के बेटी ,अवधी बघेली बुंदेलखंडी के बहिनी अउ संस्कृत के नतनिन आय । 

 डॉ. ग्रियर्सन ,  डॉ . सुनीति कुमार चटर्जी , डॉ . उदय नारायण तिवारी, बाबू राम सक्सेना , डॉ . धीरेंद्र वर्मा असन मूर्धन्य भाषाविद मन के विचार- गुनान ल ध्यान मं रख के ही प्रसिद्ध भाषाविज्ञानी डॉ. रमेश चन्द्र मेहरोत्रा छत्तीसगढ़ी के पांच ठन रूप ल मान देहे हंवय ....1 पूर्वी छत्तीसगढ़ी 2 पश्चिमी छत्तीसगढ़ी 3 उत्तरी छत्तीसगढ़ी  4 दक्षिणी छत्तीसगढ़ी 5 केंद्रीय छत्तीसगढ़ी पुरौनी मं अंतर्राज्य के भाषा ...मूल सम्पर्क के भाषा के रूप मं खदान , चाय बगान अउ कारखाना तक बगरे प्रवासी छत्तीसगढ़िया मन के बोल चाल के छत्तीसगढ़ी के अध्ययन , चिंतन करना जरूरी हे ..। 

    आवागमन के सुविधा  के चलते गांव ले दुरिहा बसत जावत , शहर मं बसत जावत मनसे मन के बोली बात के छत्तीसगढ़ी उपर भी ध्यान देना परही जेमा आने भाषा के शब्द मन पानी मं नून कस धुरत जावत हें । सुरता तो राखे च बर परही के संस्कृत के विभक्ति छत्तीसगढ़ी मं जस के तस बौरे जाथे त क्रियापद , कारक चिन्ह , अउ लिंग विधान मं कोनो भेद नइये । तत्सम शब्द के स्थानीय बदले रूप हर भी क्षेत्र विशेष के उच्चारण भेद के अनुसार रच बस गए हे । तभी शिक्षा के प्रचार प्रसार के चलते उच्चारण मं सुधार होवत जावत हे अब छाता ल साता , सीता ल छीता कहइया , लिखइया मन कमत जावत हें । हरेक बोली भाषा के अपन इतिहास , संस्कृति , आंचलिकता , प्रथा रीति रिवाज के चिटिक अटपटा ,  थोरकिन अनोखा शब्द रहिथे फेर समय के गति , विज्ञान के प्रभाव के संगे संग वर्तमान जीवन के उपयोगी शब्द मन जस के भाषा के मूल धारा संग घुरत मिलत जाथे । इही देखव न अब हंडिया तेलाई , रेंहचुल , खटा महेरी , कजरौटी , मरसा असन शब्द मन के उपयोग कहां होवत हे काबर के अब कूकर , हवाई झूला , कम्प्यूटर , मोबाइल असन शब्द मन ल लेखन मं जघा देहे च बर परही इही हर आय भाषा के बोहावत धार , समय के मांग के अनुसार भाषा मं आवत बदलाव । 

   छत्तीसगढ़ी भाषा के भी शहरीकरण होवत हे ..इहां के भाषा मं अंग्रेजी , हिंदी , उर्दू शब्द मन घुरत मिलत जावत हें अगर हमन ठेठ ग्रामीण , आंचलिक शब्दविन्यास के मोह मं परे रहिबो त छत्तीसगढ़ी हर युगानुरूप भाषा नइ बने पाही ..। भाषा के विकास मं साहित्य अउ साहित्यकार मन के जब्बर योगदान होथे ...त अभी उपर लिखे सबो तरह के छत्तीसगढ़ी मं साहित्य रचना चलन देई ....बहुत जल्दी वो समय आही जब भाषा के धार निर्मल बोहाये लगही । 

   एक बात अउ सुरता राखे बर परही कविता हर भाषा के सिंगार करथे त गद्य हर साहित्य के अंग प्रत्यंग ल सजोर , सबल बनाथे । 

 जय छत्तीसगढ़ , जय छत्तीसगढ़ी 

  सरला शर्मा

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